भोपाल. प्रदेश के सरकारी स्कूलों में शिक्षक (Adhyapak) बनने के लिए 2018 में पात्रता परीक्षा (Eligibility Test) पास करने वाले करीब 2.15 लाख युवा स्कूल शिक्षा विभाग (School Education) से नियुक्ति पत्र के लिए लंबे समय से आंदोलन कर रहे हैं। उनका तर्क है कि हमारा काम था प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड (PEB) की पात्रता परीक्षा पास कर अपनी योग्यता साबित करना जो हम कर चुके हैं। अब सरकार की जिम्मेदारी है कि वो हमें नियुक्ति दे। लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि क्या परीक्षा पास करने और चयन प्रक्रिया में शामिल होने से नियुक्ति पत्र हासिल करना उनका कानूनी अधिकार बन जाता है ? ...जी नहीं, बिल्कुल भी नहीं। यह सुनकर भले ही उन्हें बुरा लगे। लेकिन शिक्षक के पद पर नियुक्ति के उनके तमाम दावों का कोई कानूनी आधार नहीं है।
पात्रता परीक्षा पास करना और नियुक्ति अलग-अलग विषय
पीईबी की पात्रता परीक्षा के रिजल्ट के बाद करीब 3 साल से चयनित युवा शिक्षक पद पर नियुक्ति के लिए आंदोलन कर रहे हैं। ये युवा नियुक्ति पत्र के लिए स्कूल शिक्षा विभाग के विज्ञापन, पीईबी की पात्रता परीक्षा और मेरिट जारी किए जाने का तर्क दे रहे हैं। लेकिन उनके तमाम तर्कों का कोई कानूनी आधार नहीं है। सरकार में भर्ती और नियुक्ति प्रक्रिया के जानकारों के मुताबिक किसी पद के लिए परीक्षा पास करना और नियुक्ति मिलना दो अलग-अलग विषय हैं। प्रदेश सरकार में सामान्य प्रशासन विभाग के पूर्व प्रमुख सचिव मुक्तेश वार्ष्णेय साफ तौर पर स्पष्ट करते हैं कि सिर्फ चयन के आधार पर नियुक्ति पाने का कोई कानूनी अधिकार नहीं बनता।
चॉइस फिलिंग कराने से नियुक्ति का अधिकार नहीं
चयनित युवाओं का दूसरा तर्क है कि पीईबी की पात्रता परीक्षा की मेरिट लिस्ट के आधार पर स्कूल शिक्षा विभाग ने हमारे सभी डॉक्युमेंट्स का वेरिफिकेशन कराने के बाद चॉइस फिलिंग भी करा चुका है। इसलिए अब उन्हें नियुक्ति देना सरकार की जिम्मेदारी है। लेकिन जानकार उनके इस तर्क को भी कानूनी रूप से सही नहीं मानते। लेकिन उनकी राय में यदि सरकार ने शिक्षकों के खाली पदों और विज्ञापन के आधार पर भर्ती निकाली है तो उसे नैतिक आधार पर पात्र उम्मीदवारों को नियुक्ति देनी चाहिए।