JABALPUR. जबलपुर के न्यूलाइफ मल्टी स्पेशियलिटी हॉस्पिटल (Newlife Multi Specialty Hospital) में आग लगने से 8 लोगों की मौत के मामले में स्वास्थ्य विभाग (Department of Health) और जिला प्रशासन (District Administration) के अधिकारियों की गंभीर लापरवाही का मामला सामने आया है। द सूत्र को कुछ ऐसे दस्तावेज मिले हैं जिनसे ये पता लगता है कि यदि जबलपुर के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO), कलेक्टर, नगर निगम कमिश्नर और डिवीजनल कमिश्नर सजगता से समय रहते कार्रवाई करते तो शायद इतना बड़ा हादसा नहीं होता। जनता के टैक्स के पैसों से मोटा वेतन और सुविधाएं लेने वाले इन सभी अधिकारियों को नगर निगम के फायर सेफ्टी ऑफिसर ने करीब 07 महीने पहले पत्र लिखकर चेता दिया था। उन्होंने पत्र के साथ शहर के ऐसे 28 अस्पतालों की जानकारी देकर कार्रवाई करने को लिखा था जिनमें फायर सेफ्टी और आपातकालीन परिस्थितियों में इमरजेंसी एग्जिट के लिए जरूरी इंतजाम नहीं थे। लेकिन सीएमएचओ से लेकर डिविजनल कमिश्नर तक ने इस पत्र को गंभीरता से नहीं लिया।
अस्पताल संचालकों के साथ अधिकारी भी जिम्मेदार
न्यूलाइफ मल्टी स्पेशियलिटी हॉस्पिटल में आग लगने से 1 अगस्त को 8 लोगों की मौत हो गई थी। इस दुर्घटना के लिए जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (सीएमएचओ) और नगर निगम के अग्निशमन अधिकारी को सस्पेंड कर दिया गया। अस्पताल के 4 डायरेक्टर डॉ. निशांत गुप्ता, डॉ. सुरेश पटेल, डॉ. संजय पटेल, डॉ. संतोष सोनी और मैनेजर राम सोनी के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का केस दर्ज किया गया। हॉस्पिटल के मैनेजर को गिरफ्तार कर अस्पताल इसके 4 डायरेक्टर पर 10-10 हजार रूपए का इनाम घोषित किया गया । मामले की जांच डिवीजनल कमिश्नर को सौंपी गई है। यह तो वह जानकारी है जिसके बारे में आप जानते हैं लेकिन क्या आपको पता है अग्निकांड में हुई 8 लोगों की मौत के जिम्मेदार वे अधिकारी भी हैं, जिन्होंने सब कुछ जानते हुए भी कार्रवाई नहीं की, नतीजा 8 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।
नगर निगम ने 7 महीने पहले चेताया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं
मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान (Chief Minister Shivraj Singh Chouhan) ने 12 नवंबर को हुई कैबिनेट की बैटक में भोपाल के कमला नेहरू अस्पताल में 8 नवंबर 2021 को हुए अग्निकांड का जिक्र करते हुए मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस को निर्देश दिए थे कि 30 नवंबर तक सभी सरकारी और निजी अस्पतालों का फायर ऑडिट (Fire Audit) कराया जाए। इसके बाद कमिश्नर नगरीय प्रशासन की ओर से सभी नगर निगम कमिश्नर को इसका पालन कराने के आदेश जारी किए गए। इसी आधार पर नगर निगम जबलपुर के अग्निशमन अधिकारी ने अस्पतालों का निरीक्षण कर 29 दिसंबर 2021 यानी करीब 7 माह पहले मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी यानी सीएमएचओ को पत्र लिखा था। पत्र के साथ जबलपुर के ऐसे 28 अस्पतालों की सूची भी भेजी थी जिनमें अग्निसुरक्षा और आपातकालीन निकासी व्यवस्थाओं में गड़बड़ियां पाई गईं थीं। इन अस्पतालों पर कार्रवाई के लिए नगर निगम के तत्कालीन प्रशासक (अब संभागीय कमिश्नर) बी.चंद्रशेखर, कलेक्टर कर्मवीर शर्मा और कमिश्नर नगर निगम अनूप कुमार सिंह को भी इसकी प्रतिलिपि भेजी गई थी। इस पत्र के रिसीविंग लेटर पर सीएमएचओ के साथ कलेक्टर औऱ कमिश्नर नगर निगम के आफिस की भी मुहर लगी है। इन अस्पतालों की सूची में 26 वें नंबर पर न्यू लाइफ अस्पताल भी था लेकिन जिम्मेदारों ने इस पत्र पर कोई कार्रवाई ही नहीं की और ये अग्निकांड हो गया और इसमें 8 लोगों की जान चली गई। मतलब इस अग्निकांड के लिए तो ये अधिकारी भी जिम्मेदार हैं। यदि वे नगर निगम के फायर सेफ्टी ऑफिसर के पत्र पर कार्रवाई का फॉलोअप लेकर सीएमएचओ को कड़ाई से एक्शन लेने को निर्देशित करते तो शायद ये हादसा होता ही नहीं या फिर इतने लोगों की जान नहीं जाती। सवाल ये है कि फिर इन सभी अधिकारियों को भी लापरवाही के लिए जिम्मेदार मानते हुए इन पर FIR क्यों नहीं की गई।
अस्पताल नहीं दुकानें और आवास के लिए थी बिल्डिंग परमीशन
न्यू लाइफ हॉस्पिटल जिस बिल्डिंग में संचालित हो रहा था, दरअसल उस प्लॉट पर बिल्डिंग परमीशन नगर निगम की भवन अनुज्ञा शाखा से अर्ध व्यावसायिक उपयोग के लिए लिए गई थी। इसके नक्शे में भी ग्राउंड फ्लोर पर दुकानें और ऊपर की मंजिल पर ड्राइंग और डाइनिंग रूम दर्शाए गए हैं,जबकि अब वहां अस्पताल का एक्स रे और लैब है। चूंकि इस बिल्डिंग की परमीशन अस्पताल के लिए थी ही नहीं, इसलिए आपात स्थिति में बाहर निकलने के लिए कोई भी इमरजेंसी एग्जिट भी नहीं था और यही हादसे की मुख्य वजह बना। सवाल यह उठता है कि जिस बिल्डिंग की परमीशन अर्ध व्यावसायिक/आवासीय के लिए थी, वहां आखिर अस्पताल कैसे शुरू हो गया। इसके लिए सीएमएचओ ने अस्पताल का रजिस्ट्रेशन कैसे कर दिया।
इंदौर में भी 40 निजी अस्पताल आवासीय भूखंड पर संचालित
प्रदेश में आवासीय प्लॉट और बिल्डिंग परमीशन पर प्रायवेट नर्सिंग होम और हॉस्पिटल सिर्फ जबलपुर में भी नहीं बल्कि दूसरे शहरों में भी चल रहे हैं। इंदौर की बात करें तो यहां 40 से अधिक अस्पताल आवासीय भूखंडों पर बने हैं। यहां बने अस्पतालों पर नगर निगम किसी तरह की फायर एनओसी जारी ही नहीं कर सकता है क्योंकि अवैध निर्माण को लेकर एनओसी जारी करने का कोई नियम ही नहीं है। इसे लेकर निगमायुक्त प्रतिभा पाल भी सीएमएचओ को पत्र लिख चुकी है कि वह इन अस्पतालों के संचालक के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करें लेकिन अभी भी यह सभी अस्पताल बिना फायर एनओसी के संचालित हो रहे हैं।
अस्पताल संचालकों के खिलाफ कार्रवाई के सवाल पर सब खामोश
इंदौर में करीब 300 अस्पताल है, हालांकि इन सभी की एनओसी की जांच जनवरी में मेदांता अस्पताल में लगी आग के बाद की गई थी। इस दौरान अधिकांश में यह एनओसी हो गई थी। हालांकि स्वास्थ्य विभाग ने सभी अस्पातलों को नोटिस जारी कर एक बार फिर तीन दिन में उनकी एनओसी की जानकारी मांगी है। लेकिन आवासीय या व्यावसायिक भूखंड पर अवैध रूप से संचालित 40 अस्पतालों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई, इस पर कोई कुछ कहने को तैयार नहीं है। नगर निगम के एडिशनल कमिश्नर और फायर एनओसी इंचार्ज संदीप सोनी ने कहा कि जिन 40 अस्पतालों ने फायर एनओसी के लिए आवेदन किया था उनकी बिल्डिंग परमीशन आवासीय उपयोग के लिए है, जहां फायर एनओसी देने का प्रावधान ही नहीं है। इसलिए वहां फायर एनओसी दी ही नहीं जा सकती।
हॉस्पिटल का रजिस्ट्रेशन करने से पहले मापदंडों की जांच जरूरी
प्रदेश में ऐसे सैंकड़ों नर्सिंग होम और निजी अस्पताल है जो आवासीय प्लॉट पर संचालित हो रहे हैं। नगरीय प्रशासन विभाग के एक रिटायर्ड अफसर सवाल उठाते हैं कि आखिर अस्पताल का रजिस्ट्रेशन जारी करने से पहले सीएमएचओ उनकी बिल्डिंग परमीशन क्यों नहीं देख रहे हैं। सवाल यह भी है कि ऐसे अस्पताल जो इन आवासीय भूखंडों पर संचालित हो रहे हैं और इसी वजह से उन्हें फायर एनओसी भी नहीं मिलेगी। इस कारण वे बंद भी हो सकते हैं तो इस सबके पीछे क्या सीएमएचओ जिम्मेदार नहीं है। बता दें कि यदि किसी प्लॉट पर हॉस्पिटल बनाने की परमीशन दी जाती है तो उसके कुछ निर्धारित मापदंड होते हैं,जैसे 4 फीट चौढ़ी सीढ़ियां, दिव्यांगों के आने जाने के लिए रैम्प, इमरजेंसी एग्जिट, फायर ब्रिगेड के लिए कॉरीडोर आदि । यदि जिलों में सीएमएचओ नर्सिंग होम और हॉस्पिटल का रजिस्ट्रेशन जारी करने से पहले बिल्ंडिग में इसके लिए जरूरी प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित कराएं तो जबलपुर जैसे हादसे बहुत हद तक टाले जा सकते हैं।
(भोपाल से राहुल शर्मा, जबलपुर से राजीव उपाध्याय और इंदौर से संजय गुप्ता का इनपुट।)