Jabalpur. बीजेपी महापौर प्रत्याशी के रूप में डॉ. जितेन्द्र जामदार के नाम की घोषणा होते ही कई सवाल खड़े हो गए। क्या कमलेश अग्रवाल जबलपुर में बीजेपी की राजनीति के अभिमन्यु बन गए ? क्या सांसद राकेश सिंह ने आखिरी समय में कमलेश अग्रवाल को मंझधार में छोड़ दिया ? क्या अब अभिलाष पांडे जबलपुर पश्चिम से अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी बनेंगे? डॉ. जितेन्द्र जामदार के नाम में सहमति बनाने में केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल क्या भूमिका रही?
कई नाम थे, पर डॉ. जामदार पर मुहर
शुरुआती दौर में जबलपुर में बीजेपी के महापौर प्रत्याशी के रूप में डॉ. जामदार, कमलेश अग्रवाल, अभिलाष पांडे का नाम भोपाल तक पहुंचा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने डॉ. जामदार का नाम आगे बढ़ाया तो सांसद राकेश सिंह कमलेश अग्रवाल के पक्ष में दिखे। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा अपने विश्वस्त और शिष्य अभिलाष पांडे को महापौर की टिकट दिलाने के लिए अडिग दिखे। लगातार बैठकों के दौर में नाम ऊपर नीचे होते रहे। इस बीच एक नाम आशीष दुबे का जुड़ा। आशीष के पिता अंबिकेश्वर दुबे महापौर का चुनाव कांग्रेस के विश्वनाथ दुबे के विरूद्ध लड़ चुके थे। यह चुनाव दुबे हार गए थे। आशीष दुबे आरएसएस से संबद्ध हैं। उनका नाम बैठकों के दौर में पिछड़ता गया। निर्णायक दौर की बैठक में दो नाम- डॉ. जितेन्द्र जामदार और कमलेश अग्रवाल के बचे। वीडी शर्मा ने अभिलाष पांडे के नाम की जिद इस संभावना के आधार पर छोड़ दी कि उन्हें अगले विधानसभा चुनाव में वे जबलपुर पश्चिम से बीजेपी के प्रत्याशी होंगे।
ऐसे बनी डॉ. जामदार की राह
प्रदेश आलाकमान की बैठकों में डॉ. जितेन्द्र जामदार के नाम पर सहमति कैसे बनती गई, यह भी दिलचस्प किस्सा है। 2003 में उमा भारती के प्रादुर्भाव के समय जबलपुर में डॉ. जितेन्द्र जामदार, प्रहलाद पटेल और राकेश सिंह की रोज शाम आत्मीय बैठक जमती थी। इसमें डॉ. जामदार कृष्ण की तो प्रहलाद पटेल और राकेश सिंह अर्जुन की भूमिका में थे। डॉ. जामदार मार्गदर्शक के तौर पर मैनेजमेंट से लेकर तमाम विषयों पर दोनों का ज्ञान बढ़ाते थे। उस समय राकेश सिंह राजनीति का ककहरा सीख रहे थे। उमा भारती पाटन विधानसभा से राकेश सिंह को उतारना चाहती थीं, लेकिन कांग्रेसी सोबरन सिंह के जुझारू तेवर के सामने वे हिम्मत नहीं जुटा पाए। 2004 के लोकसभा चुनाव में राकेश सिंह उतरे और विजयी हुए। इसके बाद राकेश सिंह और प्रहलाद पटेल की राहें जुदा होती गईं। इसके बाद डॉ. जामदार के यहां इस प्रकार की आत्मीय बैठकों को सिलसिला भी रुक गया।
डॉ. जामदार आरएसएस से जुड़े होने के कारण प्रहलाद पटेल-राकेश सिंह समेत सभी बीजेपी के लोगों के लिए सम्मानीय और वरिष्ठ रहे। डॉ. जामदार लगातार कोशिश करते रहे कि वे राज्यसभा में चले जाएं या महापौर बन जाएं, लेकिन किन्हीं ना किन्ही कारणों से सफल नहीं हुए। इस बार जबलपुर महापौर की सामान्य सीट होने पर डॉ. जामदार की महत्वाकांक्षाएं जाग गईं। वे बीस साल से लगातार जबलपुर के सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक जगत में सक्रिय थे। बीच-बीच में उनकी चिकित्सकीय या उनके नर्सिंग होम की अनियमितताओं की खबरें सोशल मीडिया में जरूर तैरती रहीं। कोरोना काल में हॉस्पिटल के रेट को ले कर उनकी भूमिका पर भी उंगली उठी। घटनाक्रम के बीच डॉ. जामदार को मध्यप्रदेश जन अभियान परिषद का उपाध्यक्ष मनोनीत कर दिया गया। बाद में उन्हें राज्य मंत्री का दर्जा भी दिया गया। नगरीय निकाय के चुनाव की घोषणा होते ही जबलपुर में महापौर के नाम को लेकर चर्चा का दौर शुरू हो गया। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के दौरे के समय डॉ. जामदार पूरे समय सक्रिय रहे।
कमलेश ने लंबी राह तय की, पर कामयाब नहीं हुए
अभी तक पार्षद रहे कमलेश अग्रवाल का नाम महापौर के लिए उभरा। ईश्वरदास रोहाणी के अवसान के बाद उन्होंने खुद को सांसद राकेश सिंह के साथ जोड़ लिया। जबलपुर शहर के इकलौते बीजेपी विधायक अशोक रोहाणी भी सांसद राकेश सिंह के समर्थन में हैं। भोपाल की कोर मीटिंग में राकेश सिंह ने शुरुआती दौर में कमलेश अग्रवाल का नाम महापौर के रूप में प्रस्तावित किया, लेकिन डॉ. जामदार की आत्मीयता, वरिष्ठता और आरएसएस की संबद्धता से राकेश सिंह पीछे हटते गए या निरपेक्ष भाव में आ गए। उन्होंने भीतर ही भीतर डॉ. जामदार पर अपनी सहमति दे दी।
कमलेश अग्रवाल का नाम भोपाल तक तो पहुंच गया, लेकिन आगे का रास्ता उनके लिए मुश्किल होता गया। ज़मीनी पकड़ उनके लिए काम नहीं आई। भोपाल की कई दौर की बैठकों में उनके पक्ष में बोलने वाला या दावेदारी करने वाला कोई नहीं था। कमलेश अग्रवाल की स्थिति महाभारत के अभिमन्यु जैसी हो गई। वे चक्रव्यूह में फंस गए। वहीं दिल्ली में प्रहलाद पटेल ने अपने स्तर पर डॉ. जामदार का पक्ष रख दिया। अमित शाह तक डॉ. जामदार का नाम पहुंच गया। मुख्यमंत्री ने दिल्ली दौरे में जब डॉ. जामदार का नाम प्रस्तुत किया तो उनके नाम पर सहर्ष स्वीकृति मिल गई और नाम वहां से भोपाल स्वीकृति के साथ पहुंच गया। संक्षेप में कहें तो डॉ. जामदार का हाई प्रोफाइल होना और कमलेश अग्रवाल का जमीनी होना ही बीजेपी राजनीति का आधार बना। पिछले 10 दिनों के घटनाक्रम के बाद कमलेश अग्रवाल समझ गए होंगे कि भविष्य में उन्हें ‘अर्जुन’ बनने के लिए अपनी पहुंच जबलपुर से निकालकर भोपाल या दिल्ली तक करनी होगी।