मनोज चौबे, Gwalior. ग्वालियर में जिला उपभोक्ता आयोग ने गलत आई ड्रॉप से मरीज की आंख खराब होने के मामले में अपना फैसला सुनाया है। आयोग ने पीड़ित मरीज के दावे पर निजी अस्पताल को आदेश दिया है कि वो पीड़ित मरीज को पांच लाख रुपए का हर्जाना दे। अस्पताल को 30 दिन के अंदर हर्जाना देना होगा।
कन्हैयालाल विनोद कुमार मेमोरियल आई हॉस्पिटल की लापरवाही
ग्वालियर के रहने वाले मानवेंद्र सिंह तोमर ने मार्च 2019 को उपभोक्ता फोरम में एक शिकायत की थी। शिकायत में उसने बताया था कि आंख में समस्या होने पर उसने कन्हैयालाल विनोद कुमार मेमोरियल आई हॉस्पिटल के डॉ. राकेश कुमार गुप्ता से इलाज लेना शुरू किया था। उस समय उसकी उम्र 13 साल थी। इलाज के दौरान मिल्फोडेक्स आई ड्रॉप (स्टेरॉइड) प्रिस्क्राइव की गई थी। उसने लगभग 2 महीने 10 दिन तक अपनी आंख में ये दवाई डाली लेकिन फिर भी आराम नहीं मिला।
दूसरी जगह जांच कराई तो ग्लूकोमा सामने आया
दवा से आराम नहीं मिलने पर मानवेंद्र ने जब दूसरे नेत्र रोग विशेषज्ञ को दिखाया, तो उसकी आंख में सेकेंडरी ग्लूकोमा, कॉर्टिकोस्टेरॉइड इंड्यूस्ड ग्लूकोमा हो चुका था जो स्टेरॉइड दवा देने से होता है। इस बीमारी के चलते उसकी आंख की काम करने की क्षमता 70 से 80 प्रतिशत खत्म हो गई। मानवेंद्र सिंह तोमर ने अपना इलाज अरविंद आई हॉस्पिटल मदुरई, एम्स हॉस्पिटल दिल्ली के साथ ही ग्वालियर के सुनैना क्लीनिक में कराया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
अस्पताल ने की पल्ला झाड़ने की कोशिश
इसके बाद मानवेन्द्र ने वकील मनोज उपाध्याय के जरिए से ग्वालियर के जिला उपभोक्ता आयोग से शिकायत की। इसके जवाब में डॉ. राकेश गुप्ता और कन्हैया लाल हॉस्पिटल ने आयोग में बताया कि रोगी ने 2 साल तक मिल्फोडेक्स आई ड्रॉप अपनी मर्जी से डाला है, जिसकी वजह से उसे ग्लूकोमा हुआ है। ऐसे में हॉस्पिटल जिम्मेदार नहीं है।
डॉक्टर राकेश गुप्ता ने लिखी थी गलत दवा
डॉ. राकेश गुप्ता ने मानवेंद्र को गलत दवा लिखी थी। इसका खुलासा आई ड्रॉप की कंपनी सन फार्मा ने दवा उपयोग करने के निर्देश की रिपोर्ट देखने के बाद हुआ। सन फार्मा कंपनी के अनुसार मिलफ्लोडेक्स ऑफ आई ड्राप 18 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए प्रिसक्राइब नहीं की जानी चाहिए थी लेकिन डॉ राकेश गुप्ता ने दवा 13 साल के रोगी को दी। वो भी लगभग 2 महीने से अधिक समय तक दी गई।
उपभोक्ता फोरम ने उपचार में कमी माना
उपभोक्ता फोरम ने डॉ. राकेश गुप्ता के इससे काम को उपचार में कमी का कृत्य माना और 5 लाख रुपए क्षतिपूर्ति शिकायतकर्ता को अदा करने के आदेश दिए। साथ ही 3 हजार रुपए प्रकरण का खर्चा भी देने का आदेश दिए। फोरम ने दिए आदेश का पालन 30 दिन के भीतर न करने पर 7 प्रतिशत वार्षिक ब्याज भी अदा करने का आदेश दिया है।