BHOPAL. मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव के रिजल्ट घोषित हो चुके हैं। परिणाम सामने आने के बाद दोनों मुख्य दल भाजपा-कांग्रेस जीत की खुशी मना रही हैं। लेकिन गौर से देखा जाए तो कई जगहों पर पेंच अभी भी फंसा हुआ है। 347 में से 27 निकाय ऐसे हैं, जहां किसकी नगर सरकार बनने वाली है यह तय ही नहीं हो पा रहा है। देखा जाए तो 105 शहरों में किसी को भी स्पष्ट बहुमत हासिल नहीं हुआ है। यहां भाजपा-कांग्रेस को तीसरा मोर्चा या निर्दलीयों के साथ नगर पालिका अध्यक्ष, नगर परिषद अध्यक्ष या निगम अध्यक्ष बनाना पड़ेगा। कई जगहों पर पार्षदों एक या दो का अंतर है तो कई जगह ऐसी भी है जहां दोनों पार्टियों के पास बराबर पार्षद हैं। इस हालत में निर्दलीय ही तय करेंगे की कौन सी पार्टी नगर पर राज करने वाली है।
ये होने वाला है
परिणाम आने के बाद निकायों में अध्यक्ष चुनने का दौर शुरू होगा। अध्यक्ष को पार्षद मिलकर चुनेंगे। 105 शहर यहां ऐसे है जहां पर तीसरे मोर्चे या निर्दलीय का सहारा लेना दलों की मजबूरी होगी। इनकी मदद के बिना कांग्रेस या बीजेपी अपना अध्यक्ष नहीं बना पाएगी। जिस पार्टी के पास सबसे ज्यादा पार्षदों मत होंगे, अध्यक्ष भी उसी पार्टी का होगा।
12 नगर पालिकाओं में भी यही स्थिती
बालाघाट में बालाघाट व वारासिवनी, उज्जैन में महिदपुर, छतरपुर में नौगांव, दमोह नगर पालिका, अनूपपुर नगर पालिका, सीहोर में आष्टा नगर पालिका, खरगोन में बड़वाह, छिंदवाड़ा में डोंगर परासिया, भिंड में भिंड व गोहद नगर पालिका और मुरैना में सबलगढ़ नगर पालिका में भी किसी भी दल को बहुमत हासिल नहीं हुआ है।
यही हाल 89 नगर परिषद का
प्रदेश में कुल 255 नगर परिषद हैं, जिनमें से 89 नगर परिषद ऐसी हैं जहां किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है। वहीं 27 नगर परिषद ऐसी भी हैं जहां बीजेपी और कांग्रेस के पार्षदों से ज्यादा निर्दलीय और दूसरी पार्टियों के पार्षद जीते हैं। अगर वे चाहें तो खुद अकेले ही अध्यक्ष चुन सकते हैं। वहीं बाकी की बची नगर परिषदों में कांग्रेस और बीजेपी दोनों के पास मौका है कि वे सहयोग से अपना अध्यक्ष कुर्सी पर बैठा सकते हैं।
राजगढ़ : दिग्विजय सिंह के क्षेत्र में स्पष्ट बहुमत नहीं
राजगढ़ पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह का गढ़ माना जाता है। यहां कि बोड़ा व सुठालिया नगर परिषदों में दोनों ही पार्टियों को बहुमत नहीं मिला है। इन नगर परिषदों में बहुमत का जादूई आंकड़ा 8 सीटों का है। हालांकि यहां पर सत्तासीन बीजेपी पूरी कोशिश में है कि इन परिषदों में अपना अध्यक्ष बनाकर राजगढ़ में कांग्रेस के वोटों में सेंध लगाई जा सके।
रायसेन : प्रभुराम चौधरी के क्षेत्र में पार्षद बराबर
एमपी के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी का रायसेन गृह क्षेत्र है। यहां पर इनका प्रभाव भी काफी है, बावजूद इसके यहां की सुल्तानपुर नगर परिषद में कांग्रेस और बीजेपी के 6—6 पार्षद जीते है। जनता ने यहां निर्दलीय और अन्य पर ज्यादा भरोसा जताता है। नतीजतन यहां अन्य और निर्दलियों की 10 सीटें आई हैं। अब यहां पर अपना अध्यक्ष बनाने के लिए दोनों की दलों को तीन निर्दलियों का साथ जरूरी हो गया है।
छतरपुर: बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष के इलाके में मामला रोचक
छतरपुर में 12 नगर परिषदों और 3 नगर पालिका में चुनाव हुआ है। इसमें बीजेपी-कांग्रेस बहुमत (8) के आंकड़े से पीछे हैं। अब निर्दलियों के सहारे यहां अध्यक्ष बनाने की रेस आरंभ हो चुकी है।
गुना : केपी यादव के इलाके में भी फंसा पेंच
गुना दिग्विजय सिंह के साथ बीजेपी के सांसद केपी यादव के प्रभाव वाला क्षेत्र माना जाता है। यहां के कुंभराज नगर और मधुसूदनगढ़ में बीजेपी-कांग्रेस निर्दलीयों को अपने साथ करने की कोशिश में लगे हुए हैं।
छिंदवाड़ा : कमलनाथ के क्षेत्र में भी यही हाल
छिंदवाड़ा पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का क्षेत्र है। यहां की डोंगर परासिया नगर पालिका में सबसे दिलचस्प मुकाबला देखने को मिला रहा है। यहां पर 1 निर्दलीय जिस तरफ जाएगा, उसका अध्यक्ष बनेगा। दरअसल, यहां बीजेपी-कांग्रेस के 10—10 पार्षद जीते हैं।
सिवनी: निर्दलियों को साथ लाने की कोशिश
सिवनी विधायक मुनमुन राय के प्रभाव वाला क्षेत्र है। यहां की बरघाट और छपारा नगर परिषद में बीजेपी वैसे तो बहुमत से बेहद दूर है, लेकिन इन दोंनो ही जगह पर बीजेपी निर्दलीयों के साथ अध्यक्ष बनाने की जुगत में जुटी है।
बालाघाट: पूर्व मंत्री गौरीशंकर सिंह बिसेन का प्रभाव माना जाता है। यहां की बालाघाट नगर पालिका और कटंगी नगर परिषद में दोनों दलों में निर्दलीयों को रिझाने का क्रम जारी है। वारासिवनी में निर्दलीय अध्यक्ष बनाने की भूमिका में है। सभी निर्दलीय माइनिंग कार्पोरेशन के अध्यक्ष प्रदीप जायसवाल के करीबी बताए जाते हैं।