Bhopal: मध्यप्रदेश के पंचायत चुनाव में किन्नर भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। छह सीटों के लिए उन्होंने फॉर्म भरा है और अपने जुदा अंदाज में प्रचार भी शुरू कर दिया है। इनमें से दो ने महिला सीट चुनी है। यह पहला मौका है जब वे महिला या सामान्य, किसी भी सीट से चुनाव लड़ पा रहे हैं। वोटर लिस्ट में उन्हें थर्ड जेंडर कैटेगरी (third gender category) नाम दिया गया है। छह किन्नर उम्मीदवारों में से चार सरपंच बनना चाहते हैं। 1-1 नामांकन जिला पंचायत सदस्य और पंच के लिए आए हैं। उन्होंने शहडोल (3 सरपंच ), नर्मदापुरम (1 सरपंच), कटनी (1 जिला पंचायत सदस्य) और रतलाम (एक पंच) से फॉर्म भरा है। इनमें से चार ने सामान्य सीटों से पर्चा भरा है, तो दो ने आदिवासी महिला सीट से।
महिला सीट से किन्नर दुर्गा
कटनी जिला पंचायत सदस्य के लिए वार्ड नंबर 6 से किन्नर दुर्गा दीदी मैदान में हैं। ये सीट आदिवासी महिला के लिए आरक्षित (reserved for tribal women) है। किन्नर समाज की महामंडलेश्वर 34 वर्षीय दुर्गा दीदी ने किन्नर समाज की महामंडलेश्वर(Mahamandaleshwar) की पदवी ले रखी है। उन्हें हस्ताक्षर करना आता है। दुर्गा ने बताया कि निरक्षर होने से नियम-कायदे की समझ कम है, लेकिन दुनियादारी समझती हूं। लोगों की मदद वाले मेरे काम अधिकारी झट से कर देते थे। अटकाने वालों को समझाने का मेरा दूसरा तरीका था। इसी विश्वास के दम पर इस बार आदिवासी महिला(tribal woman) के लिए आरक्षित जिला पंचायत सदस्य सीट से प्रत्याशी बनी हूं। इस बार भी गांव वाले चंदा देकर चुनाव लड़वा रहे हैं।
गांव की मौसी, अब सरपंच प्रत्याशी
नर्मदापुरम संभाग की केसला ग्राम पंचायत तीन गांवों को शामिल कर ये ग्राम पंचायत बनी है। 2750 वोटर वाली इस ग्राम पंचायत में सरपंच के पांच प्रत्याशियों में इस बार 35 वर्षीय राधा मौसी भी शामिल हैं। दिलचस्प ये कि ग्राम पंचायत में वह इकलौती किन्नर मतदाता भी हैं। सरपंच का पद आदिवासी महिला के लिए आरक्षित है। राधा का सरनेम धुर्वे है। पांचवीं तक पढ़ी राधा मौसी कहती हैं कि मेरा पेशा ही गांव-गांव घूम कर मांगना है। इस कारण मैं गांव की एक-एक गली और हरेक परिवार की तकलीफों से वाकिफ हूं।
राधा मौसी ने कहा- मैं गांव वालों के कहने पर ही चुनाव लड़ने को तैयार हुई हूं। मेरे केसला गांव की सड़क और गलियां अब भी कच्ची हैं। महिलाएं खुले में शौच को मजबूर हैं। पानी की परेशानी है। पेंशन नहीं मिलती। पीएम आवास तक नहीं है। ऐसे ही कितनी ही समस्याएं हैं, क्या-क्या गिनाऊं? लोगों की तकलीफों को दूर करने के लिए ही चुनाव में उतरी हूं। अब लोगों को तय करना है कि उन्हें सरपंच के तौर पर राधा मौसी चाहिए या कोई और।
चुनाव आयोग की गाइडलाइन
मप्र निर्वाचन आयोग की जारी चुनाव गाइडलाइन के अनुसार किन्नर किसी भी पद के लिए महिला या पुरुष सीट से प्रत्याशी बन सकते हैं। आरक्षित सीटों के लिए प्रमाण पत्र लगाने का प्रावधान है।
जबलपुर की पार्षद रह चुकी हीराबाई के मुताबिक किन्नर को बचपन में ही बेघर कर दिया जाता है। उनकी पहचान तक छीन ली जाती है, ऐसे में अधिकतर किन्नर, जाति, धर्म या अन्य पहचान साबित करने की स्थिति में नहीं रहते। चुनाव आयोग को किन्नर को किसी भी आरक्षित सीट पर भी चुनाव लड़ने की छूट देनी चाहिए।
पहले भी मिली सत्ता की चाबी
शहडोल की शबनम मौसी 1998 में जिले की सोहागपुर सीट से देश की पहली किन्नर विधायक चुनी गई थीं। उनकी जिंदगी पर फिल्म तक बन चुकी है लेकिन यह सीट सामान्य थी।
कमला जान 2000 में कटनी नगर पालिका अध्यक्ष के तौर पर चुनी गई थीं। हालांकि बाद में हाईकोर्ट ने उन्हें पुरुष बताते हुए चुनाव निरस्त कर दिया था। 2009 में सागर के लोगों ने निर्दलीय कमला बुआ को मेयर चुन लिया। कमला बुआ ने खुद को कोरी अनुसूचित जाति का दर्शाया था। दो साल बाद कोर्ट ने जाति साबित नहीं कर पाने पर, उनका चुनाव शून्य कर दिया। 14 नवम्बर 2019 को 65 की उम्र में उनका निधन हो गया।
ये भी जानिए
- देश में 1994 में ट्रांसजेंडर को पहला मताधिकार तमिलनाडु में मिला।