Panna. जंगल में अपने साम्राज्य (Territory) का निर्धारण करने के लिए सिर्फ बाघों के बीच ही संघर्ष नहीं होता है। जंगल के राजा की तर्ज पर अन्य दूसरे वन्य जीव भी अपना इलाका बनाते हैं और इसके लिए उनके बीच भीषण लड़ाई भी होती है। सरीसृप वर्ग का वन्य जीव गोह भी बाघ की तरह अपनी टेरीटरी बनाने तथा अधिक से अधिक मादाओं को अपने नियंत्रण में रखने का गुण पाया जाता है। प्रकृति की गोद में हर वन्य प्राणी के रहने तथा जीवन जीने का तरीका अनूठा और विचित्र होता है। छिपकली प्रजाति के वन्य जीव गोह जिसे मानीटर लिजार्ड भी कहते हैं, उसकी जीवन शैली बाघ की प्रकृति से मिलती-जुलती प्रतीत होती है।
बारिश के मौसम में ज्यादा आता है नजर
लगभग ढाई से तीन फिट लम्बा तमाम खूबियों वाला यह विचित्र वन्य जीव बारिश के मौसम में ज्यादा नजर आता है। नर गोह बरसात प्रारंभ होते ही मैटिंग के लिए मादा गोहों की ओर आकर्षित होता है। इस दौरान नर गोह की टेरीटरी में रहने वाली मादा गोहों के पास दूसरे नर गोह के आने पर दोनों नरों के बीच अस्तित्व कायम रखने के लिए भीषण संघर्ष होता है। शक्तिशाली नर गोह जो संघर्ष में जीत हासिल करता है, टेरीटरी में उसी की हुकूमत चलती है तथा वही इस टेरीटरी की मादाओं से मैटिंग करता है।
सांप की तरह दो भागों में बंटी होती है गोह की जीभ
पन्ना टाइगर रिजर्व के सहायक संचालक रहे एमप ताम्रकार ने बताया कि गोह के पंजे अत्यधिक शक्तिशाली होते हैं तथा पेड़ या दीवार में चिपक जाने पर इसे निकालना मुश्किल होता है। इस मांसाहारी वन्य जीव की जीभ काफी लम्बी और सांप की तरह दो भागों में बंटी होती है। राजाशाही जमाने में गोह का उपयोग ऊंचे स्थानों व किलों आदि में चढऩे के लिए सैनिक भी करते थे। ताम्रकार ने बताया कि पन्ना टाइगर रिजर्व में गोह प्रचुर संख्या में हैं और यहां इनके बीच होने वाले संघर्ष के दुर्लभ नजारे कभी- कभी दिखाई देते हैं। नर गोहों के बीच टेरीटरी के लिए हुए संघर्ष का बेहद दुर्लभ नजारा भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून के रिसर्चर रवि परमार ने कुछ वर्ष पूर्व अपने कैमरे में कैद किया था, जिसमें गोहों की जीवन शैली व प्रकृति की झलक मिलती है
जहरीले नहीं होते गोह
पर्यावरण व प्रकृति प्रेमी कबीर संजय इस निर्दोष और शांतिप्रिय जीव के बारे में बताते हैं कि गोह एक प्रकार की बड़ी छिपकली है, जिसे विषखोपड़ा, गोहेरा, गोयरा, घ्योरा, गोह, बिचपड़ी आदि नामों से जाना जाता है। विशेषज्ञ इसे मानीटर लिजर्ड कहते हैं। इस प्रकार की छिपकलियों की यूं तो 70 के लगभग प्रजातियां दुनिया भर में पाई जाती हैं लेकिन हमारे देश में इनकी चार प्रजातियां मिलती हैं। ये हैं बंगाल मानीटर लिजर्ड, यलो मानीटर लिजर्ड, वाटर मानीटर लिजर्ड और डिजर्ट मानीटर लिजर्ड। इनमें से बंगाल मानीटर लिजर्ड सबसे ज्यादा दिखता है।
निगलकर खाता है शिकार
आमतौर पर लोग विषखोपड़ा या गोह को बेहद जहरीला मानते हैं लेकिन, इस प्राणी में बिलकुल भी जहर नहीं है। यह सरीसृप है, यानी ठंडे रक्त वाला। इसलिए इसे धूप सेंकने की जरूरत पड़ती है। इसके मुंह में विषदंत नहीं होते हैं और न ही विष की थैली। यह अपने शिकार को चबाकर नहीं बल्कि निगलकर खाता है। मनुष्यों के बीच घिर जाने पर भी इसकी कोशिश किसी तरह से निकल भागने की होती है लेकिन, कई बार बहुत ज्यादा छेड़छाड़ करने पर यह काट भी सकती है। हालांकि, उसकी यह बाइट जहरीली नहीं है, पर उससे बैक्टीरियल इंफेक्शन हो सकते हैं। ऐसे जीवों के साथ कभी भी छेड़छाड़ नहीं करें। वे कहीं दिखें तो उन्हें निकलने का सुरक्षित रास्ता दें, ताकि वे अपने पर्यावास में जा सकें।