SIDHI: मिड डे मील में गिरी छिपकली, फूड प्वॉइजनिंग का शिकार हुए सरकारी स्कूल के 26 बच्चे, प्रशासन में मचा हड़कंप

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Vivek Sharma
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SIDHI: मिड डे मील में गिरी छिपकली, फूड प्वॉइजनिंग का शिकार हुए सरकारी स्कूल के 26 बच्चे, प्रशासन में मचा हड़कंप

Sidhi. अक्सर स्कूलों में मिड डे मील(mid-day meal) में बड़े पैमाने पर लापरवाही देखने को मिलती है। नौनिहालों को परोसे जाने वाले इस खाने में गुणवत्ता का पूरी तरह से अभाव रहता है। देश के कई राज्यों से ऐसी खबरें आती रहती हैं। मिड डे मील के नाम पर बच्चों को जहर परोसा जा रहा है। अक्सर मिड डे मील में छिपकिली, सांप,बिच्छू,कंकड़, पत्थर(Lizards, Snakes, Scorpions, Pebbles, Stones in Mid Day Meal) मिलने की बात सामने आती हैं और कई बार तो यह खाना खाने से बच्चों की मौत भी हो जाती है। मिड डे मील में छिपकली या अन्य जीव जंतुओं के गिरने की खबरें आए दिन सुनने को मिलती हैं। मध्यप्रदेश के सीधी जिले में भी कुछ ऐसा ही मामला सामने आया है। यहां एक स्कूल में मध्याह्न भोजन में छिपकली गिर गई। इससे 26 बच्चे बीमार(26 children sick) हो गए। उन्हें जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है। जांच में खाने के अंदर एक मरी हुई छिपकली पाई गई। मामला जनपद शिक्षा केंद्र सिहावल के शासकीय प्राथमिक शाला घमसान, उत्तर टोला पतुखली का है। वहां मध्याह्न भोजन खाने के बाद अचानक बच्चों की तबीयत बिगड़ने लगी। इसके बाद हड़कम्प मच गया। फूड पॉइजनिंग(food poisoning) की वजह से किसी को सिरदर्द तो किसी को पेटदर्द की शिकायत हुई। शाम होते-होते सबको अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। जिला अस्पताल के डॉक्टरों का कहना है कि अब उनकी तबीयत में सुधार है। किसी को भी गंभीर समस्या नहीं हुई है। शिक्षा विभाग और प्रशासनिक अधिकारियों को सूचना मिलते ही वे भी जिला अस्पताल पहुंचे। कलेक्टर के निर्देश पर डॉक्टरों की टीम बच्चों की जांच कर रही है।  



स्कूल में 51 बच्चे थे



 इनमें से 32 बच्चों ने मध्याह्न भोजन किया था। इनमें ही 26 बच्चों की तबीयत खराब हुई है।  सीधी कलेक्टर मुजीबुर्रहमान खान(Sidhi Collector Mujibur Rahman Khan) ने मामले की जांच कर दोषियों के खिलाफ एक्शन लेने की बात कही है। इस प्रकार की घटना दोबारा ना हो इसके लिए कड़े कदम उठाए जाएंगे। दूसरी ओर स्कूल के हेड मास्टर विजयपाल मिश्रा(school head master vijaipal mishra) ने बताया कि कुल 51 छात्र-छात्राओं विद्यालय में उपस्थित थे, जिसमें से 32 विद्यार्थियों ने खाना खाया था तथा 26 छात्राओं की तबीयत खराब हो गई। वहीं मध्यान भोजन देने का कार्य देवी महिला स्व सहायता समूह के द्वारा स्कूल में बच्चों को किया जाता है।



उच्चस्तरीय जांच के निर्देश 



सीधी कलेक्टर मुजीबुर्रहमान खान का कहना है कि इस घटना की गहनता के साथ उच्चस्तरीय जांच कराई जाएगी और जो भी दोषी होगा उसके ऊपर कार्यवाही की जाएगी।



बिहार में 45 घरों के चिराग बुझ गए थे



16 जुलाई 2013 में बिहार राज्य में ऐसा ही जहरीला खाना खाने से 23 घरों के चिराग बुझ गए थे। बिहार के कई राज्यों में मिड डे मील में गंभीर अनियमितताएं देखने को मिलती हैं। छपरा और सारण जिले में विषाक्त खाना खाने से बड़ी संख्या में बच्चों की मौत हो गई थी। सारण में 23 गरीब बच्चों ने जान गंवाई थीच जबकि छपरा में 22 बच्चे मौत के आगोश में सो गए थे। आज भी लोग इन घटनाओं को यादकर लोग सिहर उठते हैां और कई जिलों में भी बड़ी संख्या में बच्चों के बीमार होने की घटना सामने आती हैं। सिस्टम की लापरवाही से 45 बच्चों के प्राण पखेरू हो गए थे। बच्चे पेट की भूख मिटाने स्कूल गए थे लेकिन भोजन उसके लिए यमराज बनकर आया। ये बच्चे दरअसल उस वर्ग के है जिनके परिवार के लिए दो वक्त की रोटी जुटानी भी मुश्किल होती है। ये बच्चे गरीब परिवार से ताल्लुक रखते थे तभी ये स्कूल में रोजाना मिलने वाले मिड डे मिल से भूख मिटाते थे। ऐसे ही अनेक खबरें आज भी सुनने को मिलती हैं।

 



15 अगस्त 1995 को शुरू हुई थी योजना



मिड डे मिल यानी मध्यान्ह भोजन (मिड डे मील) योजना भारत सरकार तथा राज्य सरकार द्वारा संचालित की जाती है, जो कि 15 अगस्त 1995 को लागू की गई थी, जिसमे कक्षा 1 से 5 तक के सरकारी, परिषदीय, राज्य सरकार द्वारा सहायता प्राप्त प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले सभी विद्यार्थियों को, जिनकी उपस्थिति 80 फीसदी है, उन्हे हर महीने 3 किलो गेहूं या चावल दिए जाने का प्रावधान था। मिड डे मील की जो केंद्र सरकार की वेबसाइट है उसके मुताबिक देशभर में 1 लाख स्कूलों में इस योजना के जरिए 12 करोड़ बच्चों को लाभ मिलता है । सरकारी दावे के तहत इससे 24 लाख रसोइए को काम मिलता है। यानी इतने रसोइए को रोजगार मिला हुआ है 5 लाख 77 हजार किचन हैं जहां मिड डे मिल बनाया जाता है। इस योजना के तहत 50 ग्राम सब्जी, 20 ग्राम दाल और 100 ग्राम चावल प्रति छात्र/छात्राओं को दिया जाता है। सरकारी दावे के मुताबिक इस योजना पर पांच साल में 38343 करोड़ रुपये का खर्च आया। सोचने वाली बात है कि करीब सवा अरब की आबादी में अगर रोजाना 12 करोड़ गरीब बच्चे भूख मिटा पाते हैं तो इस देश में गरीबी दूर होते भी देर नहीं लगेगी। अगर ये आंकड़ा सच होता तो फिर देश में 80 फीसदी से ज्यादा लोग रोजाना 20 रुपया भी बतौर मजदूरी क्यों नहीं अर्जित कर पाते? 



शुरूआत से विवादों में रही योजना



सरकार की यह योजना शुरू से ही विवादों के घेरे में रही और इसपर हमेशा से सवाल उठते रहे। अक्सर ये योजना खराब क्वालिटी वाले खाने के लिए विवादों में घिरती रही है। वर्ष 1995 में यह योजना देश के सभी जिलों में लागू कर दी गई। उस वक्त बच्चों को हर दिन 100 ग्राम अन्न मुफ्त दिया जाता था। 2004 में इस योजना में बदलाव किया गया और प्राइमरी क्लास यानि क्लास 1 से 5 तक के बच्चों बच्चों को पका हुआ खाना खिलाना शुरू किया गया। अक्टूबर 2007 में मिड डे मील योजना का दायरा और बढ़ाया गया। इसमें प्राइमरी ही नहीं बल्कि अपर प्राइमरी सरकारी स्कूलों को भी शामिल किया गया। यानि अब देश में मिड डे मील का फायदा कक्षा 1 से 8 तक के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को मिलता है। मकसद यही था कि खाने के बहाने बच्चे स्कूल आएंगे और पढ़ेंगे भी। लेकिन सही मायने में नतीजे कभी इतने अच्छे नहीं रहे जितना दावा किया जाता रहा। कागजी दावों और हकीकत की दुनिया में कभी कोई तालमेत नहीं होता, यह बात किसी से छिपी नहीं है।



स्कूलों में नहीं हैं किचन



अनेक राज्यों में स्कूलों में किचन ही नहीं हैं ऐसे में वहां खाना खुले आसमान के नीचे बनाया जाता है।  ऐसे में कब उस खाने में सांप-बिच्छू या छिपकली चली जाए या फिर खाना जहरीला हो जाय, यह कहा नहीं जा सकता। यही वजह है कि हम अक्सर मिड डे मील में छिपकिली, सांप,बिच्छू,कंकड़, पत्थर मिलने की बात सामने आती है। यह हमारे देश के सिस्टम का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है।

 


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