MP के सांसद-विधायक और पत्रकारों की जासूसी, MLA डागा ने लगाए बैतूल पुलिस पर आरोप

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Aashish Vishwakarma
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MP के सांसद-विधायक और पत्रकारों की जासूसी, MLA डागा ने लगाए बैतूल पुलिस पर आरोप

भोपाल. क्या मध्यप्रदेश में भी पेगासस जैसी जासूसी की जा रही है और यह काम मप्र की पुलिस कर रही है। यह गंभीर सवाल इसलिए खड़ा हुआ है क्योंकि कांग्रेस विधायक निलय डागा ने बैतूल पुलिस पर कई नेताओं, उद्योगपतियों, कारोबारियों और पत्रकारों के मोबाइल फोन की सीडीआर (कॉल डिटेल रिपोर्ट) निकलवाकर जासूसी कराने का सनसनीखेज आरोप लगाया है। उन्होंने इस मामले की जांच कराने और सच्चाई सामने लाने के लिए पुलिस महानिदेशक विवेक जौहरी को पत्र भी लिखा है।





बैतूल से कांग्रेस विधायक डागा ने शुक्रवार सुबह बकायदा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर पुलिस पर सीडीआर के माध्यम से शहर के कई रसूखदार लोगों की जासूसी कराने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि बैतूल के हर जनप्रतिनिधि, दर्जनों व्यापारियों की सीडीआर निकाली गई है। इसमें मैं अकेला कांग्रेस विधायक नहीं हूं। बीजेपी के विधायक और सांसद की सीडीआर भी निकाली गई है। कई पत्रकारों के मोबाइल फोन की भी सीडीआर निकाली गई है। उन्होंने इस मामले की तत्काल जांच कराकर हकीकत सामने लाने के लिए डीजीपी और आईजी को भी पत्र लिखा है। उनका कहना है कि आखिर पुलिस ने किसकी परमिशन से इन लोगों सीडीआर निकाली इसके फैक्ट और सच्चाई सबके सामने आनी चाहिए। डागा ने सरकार से भी मांग की है कि यदि जांच में यह साबित होता है तो इस गैरकानूनी कार्य के लिए जिम्मेदार सभी पुलिस अधिकारियों को बर्खास्त किया जाना चाहिए। 





विधानसभा में सवाल लगाएंगे: विधायक डागा ने दावा किया है कि बैतूल पुलिस ने उन्हें एक बाइक चोर बताकर उनके मोबाइल फोन की सीडीआर निकाली है। यह बात मोबाइल फोन के सर्विस प्रोवाइर के ईमेल के रिकॉर्ड में दर्ज है कि सीडीआर निकाली गई है। उन्होंने बताया कि उनके अलावा पुलिस ने विभिन्न राजनीतिक दलों से जुड़े नेता, कार्यकर्ताओं और मीडिया संस्थानों के लिए काम करने वाले पत्रकारों की भी सीडीआर निकलवाई है। डागा ने सवाल उठाया कि इस मामले में तत्काल उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए जिससे यह साफ हो सके कि आखिर पुलिस को इतने बड़े पैमाने पर लोगों की सीडीआर निकलवाने की जरूरत क्यों पड़ी। क्या वो संबंधित लोगों को ब्लैकमेल करना चाहती है। यदि इस मामले की जांच नहीं हुई तो उन्होंने धरने पर बैठने का ऐलान किया है। उन्होंने कहा कि वे इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री एवं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ से चर्चा कर विधानसभा में भी सवाल लगाएंगे।  





SP सिमाला प्रसाद- किसी भी नेता, विधायक की सीडीआर नहीं निकालीः विधायक निलय डागा के आरोपों के संबंध में द सूत्र ने बैतूल की एसपी सिमाला प्रसाद से चर्चा की तो उन्होंने किसी भी नेता या विधायक के मोबाइल फोन की सीडीआर निकलवाए जाने की बात से साफ इनकार किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि किसी भी व्यक्ति के फोन की टैपिंग वैसे भी जिला स्तर पर नहीं होती है। इसके लिए आईजी के स्तर पर प्रक्रिया की जाती है। ये विधिवत अनुमति के बाद ही की जा सकती है।





MP में फोन टैपिंग मामला: आपको बता दें कि प्रदेश में इससे पहले भी नौकरशाहों, राजनेताओं और अन्य प्रमुख लोगों के टेलीफोन कथित रूप से टैप कराने पर राजनीतिक बवाल मच चुका है। ये मामला 2014 में सामने आया था। तब व्हिसल ब्लोअर प्रशांत पांडेय इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट गए थे। पांडेय की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कथित तौर पर टेलीफोन टैपिंग, कॉल डिटेल तैयार करने वाली अमेरिकी कंपनी स्पंदन द आईटी पल्स समेत राज्य और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किए थे। इसके साथ ही जांच के निर्देश भी दिए थे लेकिन बाद में यह मामला ठंडा पड़ गया था। 





फोन टैपिंग के लिए अमेरिकी सॉफ्टवेयर के उपयोग के आरोप: याचिकाकर्ता ने बताया कि प्रदेश में लगभग चार साल तक चले टेलीफोन टैपिंग मामले को लेकर याचिका दायर होते ही सरकार ने इस काम को बंद कर दिया था। मध्यप्रदेश पुलिस फोन टैपिंग के लिए एक ऐसे सॉफ्टवेयर का उपयोग कर रही थी, जो पूरी तरह अवैधानिक था। इसके लिए पुलिस अफसरों ने एक एजेंसी की मदद ली। कंपनी के साथ पूरा डेटा शेयर किया गया, जो नहीं किया जाना चाहिए था। इसमें मोबाइल नंबर समेत दूसरी महत्वपूर्ण जानकारियां थीं। उस आधार पर स्पंदन द आईटी पल्स ने एक सॉफ्टवेयर बनाया था। इसके आधार पर कंपनी कॉल डिटेल के अलावा दूसरे विश्लेषण कर पुलिस को ब्योरा देती थी।





कांग्रेस की कमलनाथ सरकार कराने वाली थी जांच: इस मामले को लेकर राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा ने प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने पर तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ को बीजेपी शासन में हुए टेलीफोन टैपिंग के मामले की जांच कराने के लिए पत्र लिखा था। तन्खा का दावा था कि पुलिस की विशेष शाखा ने साल 2009 से 2014 के बीच कई राजनेताओं, नौकरशाहों और खास लोगों के फोन टैप किए थे। इसके अलावा उनके कॉल डिटेल की जानकारी भी हासिल की थी। 





जानिए क्या और कैसे होती है CDR: CDR यानि कॉल डिटेल रिकॉर्ड। CDR में मोबाइल फोन यूज करने वाले का नाम होता है। किसी व्यक्ति की CDR से पता चलता है कि उसने कितने कॉल किए। कितने कॉल रिसीव किए. किन नंबरों पर कॉल किए, किन नंबरों से कॉल रिसीव हुआ। कॉल की डेट, टाइम यानि कितने समय तक बात हुई, किन नंबरों पर मैसेज भेजे गए, किन नंबरों से मैसेज रिसीव हुए, इसकी भी डिटेल होती है। लेकिन इसका डेटा नहीं होता कि भेजे गए एसएमएस और रिसीव किए गए एसएमएस में क्या लिखा था। सबसे जरूरी बात ये कि CDR से ये भी पता चलता है कि कॉल कहां से की गई। यानि फोन करने वाले की लोकेशन क्या थी। जिसको कॉल किया गया है, उसकी लोकेशन क्या थी। कॉल कैसे कटी? नार्मल तरीके से या कॉल ड्राप हुआ। 





कैसे हासिल होती है CDR: कानूनी तौर पर तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं किया जा सकता है। सीबीआई, इनकम टैक्स डिपार्टमेंट, इंटेलीजेंस ब्यूरो, पुलिस, एनआईए, एटीएस, NCB और जितनी भी जांच एजेंसियां हैं, उन्हें किसी मामले की जांच के दौरान CDR की जानकारी जुटाने का अधिकार है। लेकिन इसके लिए भी अनुमति लेना जरूरी है। नियमानुसार एसपी, डीसीपी रैंक का अधिकारी ही जांच में शामिल व्यक्ति की CDR के लिए मोबाइल नेटवर्क सर्विस देने वाली कंपनियों के नोडल ऑफिसर को लिख सकता है, जानकारी मांग सकता है। आम तौर पर जिन व्यक्तियों की CDR चाहिए होती है, उन नंबरों को पुलिस स्टेशन उन अधिकारियों को भेजता है, जिन्हें ये अधिकार मिला है कि वो CDR के लिए मोबाइल नेटवर्क सर्विस देने वाली कंपनियों को रिक्वेस्ट भेज सकें। जिन पुलिस अधिकारियों को ये अधिकार मिला है, वो इन नंबरों को संबंधित कंपनियों को मेल कर देते हैं। 





जांच एजेंसियों को CDR कब तक मिल जाता है: अगर कोई गंभीर अपराध हुआ हो, जैसे मामला आतंकी गतिविधियों से संबंधित हो, किसी की हत्या हुई हो, रेप का मामला हो, आरोपी फरार हो, उसे तुरंत गिरफ्तार करने की जरूरत हो, तो मेल मिलने के बाद मोबाइल नेटवर्क सर्विस देने वाली कंपनियां आधे घंटे में CDR उपलब्ध करा देती हैं। सामान्य केस में दो हफ्ते तक का वक्त लग जाता है। आम तौर पर मोबाइल कंपनियां एक साल तक का CDR उपलब्ध कराती हैं। अगर इसके आगे सीडीआर की आवश्यकता होती है तो वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से विशेष अनुमति लेनी होती है।





क्या CDR कोर्ट में मान्य है: एविडेंस ऐक्ट, 1872 की धारा- 65B के तहत इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को सबूत के तौर पर पेश किया जा सकता है लेकिन इसको एक हलफनामे के साथ पेश करना जरूरी है। इस हलफनामे में इस बात का जिक्र करना जरूरी है कि सबूत के साथ किसी भी तरह से छेड़छाड़ नहीं की गई है।





क्या है पेगासस pegasus spyware: इजरायली कंपनी NSO का पेगासस स्पाईवेयर ‘नेटवर्क इंजेक्शन’ एक बेहद संवेदनशील सॉफ्टवेयर है। यह किसी बेस ट्रांसीवर स्टेशन (BTS) के जरिए लोगों के फोन में सेंध लगाने में सक्षम है। बीटीएस उस फर्जी मोबाइल टॉवर को कहते हैं, जिसका निर्माण वैध सेलुलर टॉवर की नकल के तौर पर किया जाता है। पेगासस की मदद से सेवा प्रदाता कंपनी के वैध टॉवर में भी सेंधमारी की जा सकती है। 





कितना घातक है पेगासस: पेगासस फोन पर आने-जाने वाले हर कॉल का ब्योरा जुटाने की क्षमता रखता है। यह फोन में मौजूद मीडिया फाइल और दस्तावेजों के अलावा उस पर आने-जाने वाले एसएमएस, ईमेल और सोशल मीडिया मैसेज की भी जानकारी दे सकता है। पेगासस यूजर की ऑनलाइन गतिविधियों के अलावा उसमें सहेजे गए अहम पासवर्ड, कॉन्टैक्ट लिस्ट, कैलेंडर इवेंट आदि की जानकारी देने में भी सक्षम है। यह फोन के कैमरे और माइक का नियंत्रण भी हासिल कर सकता है। भारत सरकार पर आरोप लगते रहे हैं कि उसने भी विरोधियों के अलावा अपनी ही पार्टी के कई नेताओं और पत्रकारों की जासूसी के लिए इस सॉफ्टवेयर का उपयोग किया है।



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