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रूचि वर्मा, ओ पी नेमा
BHOPAL. मध्य प्रदेश के किसानों पर राष्ट्रीयकृत बैंक, निजी बैंक, सहकारी बैंक, और ग्रामीण विकास बैंकों का करीब 1 लाख 28 हज़ार करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज है। राज्य की बैंकर्स समिति के अनुसार 94 लाख एकाउंट्स को यह क़र्ज़ दिया गया था जो बकाया हैं। ख़ास बात यह है कि लिए गए क़र्ज़ में लगभग 18 हज़ार 9 सौ करोड़ रुपये डूब गया है यानी NPA-नॉन परफार्मिंग एसेट्स हो चुका है! राज्य में कृषि से जुड़े NPA एकाउंट्स की संख्या 9,25,153 है। इन सब में सबसे ज्यादा नुकसान पब्लिक सेक्टर बैंक्स (PSB) को हुआ है जिनका करीब 55 हज़ार करोड़ रुपए से ज्यादा पैसा अटका हुआ है। इसका असर यह है कि जहाँ कई बैंक भारी नुकसान में हैं वही प्रदेश के पांच सहकारी बैंक इसी वजह से ठप्प हो चुकें हैं। समिति के अनुसार बैंकों ने यह क़र्ज़ किसानों को फसल के लिए, कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे ट्रैक्टर व कुआं सहित अन्य उपकरणों के लिए, कृषि क्लीनिक और कृषि व्यवसाय केंद्र स्थापित करने के लिए, खाद्य और कृषि-प्रसंस्करण के लिए दिया था। द सूत्र ने जब यह पता करने की कोशिश कि क्या कारण है आखिर किसान बैंकों का क़र्ज़ वापस नहीं करते तो बैंकों और किसानों दोनों ने ही सीधे तौर पर सरकार को ही कटघरे में खड़ा कर दिया। जहाँ बैंकों का मानना है की सरकार कि ऋणमाफी जैसी योजनाओं ने कई किसानों को क़र्ज़ न चुकाने का रास्ता दे दिया है... वहीँ किसानों का कहना है कि वह तो क़र्ज़ चुकाना चाहते हैं पर सरकार उन्हें घाटे का सौदा देती है तो वो क्या करें। द सूत्र की इस रिपोर्ट में जानिये की कैसे किसानों द्वारा क़र्ज़ वापस ना करने से और उसके बाद सरकारों की वोट-बैंक पॉलिटिक्स का खामियाज़ा आम जनता भुगतती है...
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बकाया एग्रीकल्चर लोन्स और NPA: (राशि लाख में/सोर्स: बैंकर्स समिति/ 31 मार्च, 2022 तक )
- पब्लिक सेक्टर बैंक्स: आउटस्टैंडिंग लोन: 55 हज़ार 6 सौ करोड़ रुपए / NPA: 10 हज़ार 6 सौ करोड़ रुपए
बैंक्स का क्या कहना है: सरकारों की क़र्ज़ माफ़ी बैंकों के नुकसान का सबसे बड़ा कारण - PNB अधिकारी
- पब्लिक सेक्टर बैंक PNB यानी पंजाब नेशनल बैंक के एक सीनियर अधिकारी ने नाम न लेने की शर्त पर बताया कि बैंकों के इस नुकसान का सबसे बड़ा कारण सरकारों द्वारा की जाने वाली वोट बैंक की राजनीति यानी क़र्ज़ माफ़ी है। उनका कहना है कि क़र्ज़ माफ़ी के प्रचलन की वजह से अब कई किसान ऋण चुकाने से कतरातें हैं। एक बार क़र्ज़ माफ़ होने के बाद किसान फिर क़र्ज़ लेते हैं.... और उसके बाद वो अगले चुनाव का इंतजार करते हैं, इस उम्मीद में कि शायद उनका ऋण माफ हो जाए। इससे सबसे बड़ा परेशानी यह है कि इससे वैसे किसान जो ऋण का भुगतान करने में सक्षम हैं, वे भी ऋण भुगतान से पीछे हट रहे हैं। उनका कहना होता है की अगर वे क़र्ज़ चुका के लोन अकाउंट क्लियर कर देंगे तो उनका क़र्ज़ माफ़ी का फायदा नहीं होगा।
5 सहकारी बैंक NPA बढ़ने से ठप्प; कमलनाथ की ऋण माफ़ी योजना फॉल्टी - अरविन्द सिंह सेंगर, जॉइंट कमिश्नर, को-ऑपरेटिव
- जॉइंट कमिश्नर, को-ऑपरेटिव, अरविन्द सिंह सेंगर ने भी किसानों द्वारा लिए गए क़र्ज़ की भरपाई न करने को ही मध्य प्रदेश में पांच सहकारी बैंकों के ठप्प होने की वजह बताया। उन्होंने बताया: "प्रदेश के कई सहकारी बैंक्स कृषि ऋण ना चुकाए जाने से और NPA ज्यादा होने की वजह से मुश्किल में हैं। प्रदेश की पांच बैंक्स इसी वजह से बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट, 1949 (सहकारी समितियों के लिए लागू) की धारा 11 (1) के प्रावधानों का पालन नहीं कर पा रहीं हैं। धारा के तहत, कोई भी प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक बैंकिंग व्यवसाय शुरू या चालू नहीं कर सकता है यदि उसका पेड-अप कैपिटल और रिज़र्व का रियल या एक्सचैंजेबल वैल्यू एक लाख रुपये से कम है। इस नियम का पालन नहीं कर पाने के कारण RBI इन बैंको को काम करने की इज़ाज़त नहीं दे रहा और अब इन बैंक्स को ऐसी स्थिति में रे-फाइनांस भी नहीं मिल पा रहा। ग्वालियर सहकारी बैंक को चार सालों से इसी कारण फाइनेंस नहीं मिला....इसके अलावा रीवा सहकारी बैंक, सतना सहकारी बैंक, सीधी सहकारी बैंक, भोपाल सहकारी बैंक और दतिया सहकारी बैंक भी इन्ही दिक्कतों की वजह से फाइनेंस नहीं ले पा रहीं। हालांकि, काफी कोशिशों के बाद दतिया बैंक को अभी फिर से चालू किया गया।
किसानों का क्या कहना है: सरकार के निकम्मेपन के कारण किसान कर्ज़दार - शिव कुमार शर्मा, भारतीय किसान महासंघ
भारतीय किसान मजदूर महासंघ के संयोजक शिव कुमार शर्मा (कक्का जी) का कहना है कि खेती में लागत बढ़ गई है....खेती में लगने वाली सभी चीज़ें जैसे बिजली, फ़र्टिलाइज़र, बीज, पेट्रोल, डीजल सब महंगा हो गया है....सब पर GST लगी हुई है। आज 1 कुन्टल गेहूं पर चार हज़ार की लागत आती है और किसानों को 2 हज़ार ही मिल रहे हैं...यानी 50% का नुकसान। इसलिए सरकार कितनी भी जुमलेबाज़ी या घोषणाएं करले पर जब तक किसान को उसकी फसल का लाभकारी मूल्य नहीं मिलेगा, उसकी समस्या का समाधान संभव नहीं है। जब तक किसानों को उनकी फसल का लाभकारी मूल्य या लागत पर प्रॉफिट नहीं मिलेगा यह क़र्ज़ बढ़ता ही चला जाएगा...क्योंकि क़र्ज़ पर ब्याज रुकता नहीं है। उनका कहना है की किसान जानबूझकर ऋण नहीं चुका रहे ऐसा नहीं है....जब वो खुदघाटे में है...क़र्ज़ में है तो कहा से चुकाएगा। उन्होंने स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट का जिक्र भी किया और कहा सरकार के निकम्मेपन के कारण किसान कर्ज़दार हुआ है
समझें कर्जमाफी से आम जनता कैसे भुगतती है?
- विकास योजनाओं के फण्ड से कटौती: कृषि ऋण माफी से विकास को गहरा आघात पहुंचता है....दरअसल, राज्य सरकार अगर किसानों का कर्ज माफ करती हैं तो सरकार को ही माफ किए गए कर्ज की भरपाई भी बैंकों को करनी पड़ती है। अमूमन माफ़ किया क़र्ज़ भारी-भरकम होता है और राज्य सरकार बिना किसी फण्ड या वैकल्पिक व्यवस्था के सिर्फ चुनावी फायदे के इस तरह के फैसले कर देती हैं। ऐसे में सरकार के सामने दो ही ऑप्शन होते हैं - 1) या तो सरकार का राजकोषीय घाटा बढ़ता है यानि की दूसरे शब्दों में, बाजार से उधारी बढ़ती है, २) या फिर उसे बैंको को चुकाने के लिए यह पैसा आम जनता के हितों से जुडी विकास की अन्य योजनाओं में कटौती करके जुटाना पड़ता है - जैसे सिंचाई, इंफ्रास्ट्रक्चर, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि.....अगर कर्ज माफ नहीं हुआ होता तो सरकार यह पैसा विकास से जुड़ी गतिविधियों और सुविधाओं को बढ़ावा देने पर खर्च करती। यानी कर्ज माफी से आखिरकार जनता को ही नुकसान उठाना पड़ता है।
मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों में क़र्ज़ माफ़ी के ट्रेंड ने हर बार दिलाई सत्ता
- कांग्रेस पार्टी ने साल 2018 के विधानसभा चुनावों से पहले ऐलान किया था की सरकार बनने के 10 दिन के अंदर किसानों का क़र्ज़ माफ़ किया जाएगा। सरकार बनने के बाद कमलनाथ जय किसान फसल ऋण माफ़ी योजना लाए। इसके पहले चरण में 20 लाख 22 हज़ार 731 पात्र किसानों का 7,151 करोड़ रुपए ऋण माफ़ करने का ऐलान किया गया। दूसरे चरण में 12 लाख 2 हज़ार 78 किसानों का क़र्ज़ माफ़ करने बात की गई। घोषणा होते ही किसानों ने लोन नहीं चुकाया और खुद तो डिफाल्टर हो ही गए क्योंकि योजन पूरी तरह लागू ही नहीं हो पाई। साथ ही बैंक्स को भी नुकसान हुआ।