MP में गलत शिक्षा नीति और शिक्षकों की कमी से बच्चों की हिंदी हो रही खराब, सिर्फ 41% बच्चों की हिंदी ठीक, NCERT सर्वे में आया सामने

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Ruchi Verma
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MP में गलत शिक्षा नीति और शिक्षकों की कमी से बच्चों की हिंदी हो रही खराब, सिर्फ 41% बच्चों की हिंदी ठीक, NCERT सर्वे में आया सामने

BHOPAL. आज राष्ट्रीय हिंदी दिवस है। NCERT यानी राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद 2022 द्वारा किया गए सर्वे में सामने आया है की मध्य प्रदेश के आधे से ज्यादा बच्चों की हिंदी भाषा काफी खराब है। सिर्फ 41% स्कूली बच्चे ऐसे हैं जिनकी भाषा पर अच्छी पकड़ है। हिंदी भाषा का ऐसा हाल तब है, जब राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुसार प्राथमिक और पूर्व-माध्यमिक स्तर पर मातृभाषा द्वारा शिक्षा पर जोर देने की बात की गई है। राष्ट्रीय हिंदी दिवस पर पढ़िए द सूत्र की ये स्पेशल रिपोर्ट...



आखिर क्या है NCERT का सर्वे



दरअसल, NCERT ने देशभर में सरकार के विभिन्न शैक्षणिक कार्यक्रमों - जैसे NIPUN भारत मिशन और SDG के लिए डाटा प्राप्त करने के लिए और बच्चों में इंग्लिश, हिंदी, मराठी एवं अन्य भाषाओं को पढ़ने की दक्षता, प्रवाह और समझ को मापने का मानदंड स्थापित करने के लिए..... FLS यानी फॉउण्डेशनल लर्निंग स्टडी नाम का एक सर्वे किया। इस सर्वे में मध्य प्रदेश के भी 361 सरकारी एवं गैर-सरकारी स्कूलों के 3,358 बच्चों को शामिल किया गया। किये गए सर्वे में देखा गया कि मध्य प्रदेश के बच्चे हिंदी के एक वाक्य को लिखने, पढ़े और समझने में कैसे हैं। पता चला कि मध्य प्रदेश के 14 साल से कम उम्र वाले केवल 41% बच्चे ही मानक वैश्विक स्तर को पास कर पाए! सर्वे में निकली इस चौंकाने वाली बात की द सूत्र की टीम ने जमीनी हक़ीक़त पता करने की कोशिश की। तो जो हालत सामने आए वो सर्वे पर मुहर लगा रहे थे।



केस स्टडी: महात्मा गांधी हायर सेकंडरी स्कूल, भेल, भोपाल



बच्चों के एक बड़े भाग को हिंदी भाषा नहीं पसंद



भोपाल के भेल एरिया में स्थित महात्मा गांधी हायर सेकंडरी स्कूल मुख्यमंत्री के महत्वकांक्षी सीएम राईज स्कूल योजना का हिस्सा है। जब यहाँ के 6वीं, 7वीं और 8वीं के बच्चों से हिंदी के कुछ शब्द लिखने को बोला गया तो बच्चे सही शब्द नहीं लिख पाए। लिखना-पढ़ना तो छोड़िये बच्चे ये भी नहीं जानते कि हिंदी दिवस क्यों मनाया जाता है! काफी बच्चे ऐसे थे जिन्हे हिंदी भाषा पसंद ही नहीं है। जब उनसे इसका कारण पूछा तो जवाब मिला कि उन्हें इस भाषा को लिखने में दिक्कत होती है। यानी यहाँ एक बात साफ़ होती है कि बच्चों में हिंदी भाषा के प्रति इंट्रेस्ट ही ख़त्म होता जा रहा है। और उसका कारण है उन्हें हिंदी एक भाषा के तौर पर जटिल लग रही है। अब ऐसा तो तभी हो सकता है जब हिंदी भाषा से जुड़ी उनकी समस्याएँ सुलझ न रही हो।



हिंदी शिक्षकों को खुद भाषा का पूरा ज्ञान नहीं, प्राइमरी लेवल से हिंदी पर फोकस की जरुरत: हेमलता परिहार, स्कूल की प्रिंसिपल




  • हमने स्कूल की प्रिंसिपल हेमलता परिहार से भी इस बारे में सवाल किया किआखिर क्या कारण है कि स्कूल के बच्चे हिंदी भाषा में इंटरेस्टेड नहीं है? उन्होंने बच्चों में प्राइमरी लेवल से ही हिंदी पर फोकस करने की जरुरत बताई। उनका कहना था कि जब तक भाषा का आधार मजबूत नहीं बनेगा, तब तक ये समस्या रहेगी।


  • दूसरा, उन्होंने प्राइमरी लेवल पर ही ऐसे हिंदी के शिक्षकों को लाने की जरुरत बताई जिनकी हिंदी भाषा अच्छी हो। साथ ही ये भी कहा कि कई बार जो शिक्षक बच्चों को भाषा का ज्ञान दे रहे हैं, खुद उन्हें ही सही ज्ञान नहीं होता, तो वो बच्चों को क्या सिखाएंगे।

  • प्रिंसिपल ने एक बात और कही कि बच्चों को अंग्रेजी भाषा सीखने-सीखाने के चक्कर में भी हिंदी भाषा पर ध्यान कम हो गया है। इससे अब कई बच्चे ना तो ठीक से अंग्रेजी ही सीख पाए और ना ही हिंदी। 

  • महात्मा गांधी हायर सेकंडरी स्कूल में प्राइमरी एवं मिडिल मिलकर हिंदी के कुल 6 से 7 शिक्षक हैं।



  • शिक्षकों की कमी से बच्चों में हिंदी का ज्ञान कम, गलत शिक्षा नीति ने किया हिंदी को बर्बाद




    • हिंदी के शिक्षकों की कमी के कारण हिंदी के जानकार बच्चों की संख्या कम हो रही है। बच्चे अगर हिंदी भाषा सीखना भी चाहे तो सरकारी स्कूलों में हिंदी भाषा शिक्षा के लिए अलग से टीचर्स प्रयाप्त नहीं हैं। और इस वजह से स्कूली बच्चों का भविष्य हिंदी भाषा के सही ज्ञान से वंचित हो रहा है।


  • मप्र में करीब 1 लाख 33 हजार 271 स्कूल है जिसमें सभी विषयों के करीब 3 लाख से ज्यादा टीचर्स है। यानी एक स्कूल के लिए औसत 3 टीचर। तो अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि हिंदी के टीचर कितने होंगे।

  • हिंदी के अच्छे शिक्षकों की कमी पर जब द सूत्र ने पड़ताल की तो पता चला कि इसकी जड़ तो राज्य की गलत शिक्षा नीति है। जिसके अनुसार पहली कक्षा से लेकर 5वीं कक्षा तक के बच्चों को हिंदी पढ़ाने के लिए अलग से डेडिकेटेड हिंदी शिक्षक की जरुरत नहीं है। यानी किसी भी विषय का शिक्षक हिंदी पढ़ा सकता है। हालाँकि, इसके लिए इन शिक्षकों को जरुरत अनुसार ट्रेन किया जाता है। पर जाहिर है भाषा की एक कामचलाऊ ट्रेनिंग-प्राप्त शिक्षकों में और भाषा के डिग्री-प्राप्त शिक्षकों में अंतर तो होगा ही।



  • प्राथमिक और पूर्व-माध्यमिक स्तर पर हिंदी भाषा के शिक्षक अनिवार्य होने चाहिए: डॉ दामोदर जैन, NCERT के पूर्व सदस्य




    • हिंदी के शिक्षकों की कमी पर NCERT के पूर्व सदस्य डॉ दामोदर जैन से बात की तो उन्होंने भी कहा कि प्रदेश कि शिक्षा नीति के अनुसार सरकारी स्कूलों में हिंदी के डेडिकेटेड शिक्षकों जो पदपूर्ति की जा रही है उसमें कमी है। इसे पूरा करने की बहुत ज्यादा जरुरत है।


  • दामोदर जैन ने भी प्राइमरी लेवल पर - जहाँ बच्चे भाषा को सीखना शुरू करते हैं - वहाँ पर हिंदी शिक्षकों की जरुरत पर जोर दिया। प्राथमिक और पूर्व-माध्यमिक स्तर पर हिंदी भाषा के शिक्षकों को अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए। उन्होंने सैनिक स्कूल एवं खेल-स्कूलों की तर्ज़ पर  ख़ास भाषा के विद्यालयों को स्थापित करने पर भी जोर दिया। उनका कहना है कि इससे हिंदी भाषा के ज्ञान में बच्चों में आई कमी को पूरा किया जा सकेगा।



  • बहरहाल, हिंदी की ऐसी हालत को देखकर ये कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि बच्चों के लिए  न तो हिंदी अच्छी मां बन सकी और न ही अंग्रेजी मौसी।


    Inder Singh Parmar NCERT Rajya Shiksha Kendra Madhya Pradesh National Education Policy-2020 (NEP-2020) Hindi Hindi Teachers