हरीश दिवेकर, भोपाल। बक्सवाहा की हीरा खदान को लेकर हम बता चुके हैं कि किस तरह जिम्मेदार अफसरों ने रिपोर्टर्स को दबाया तो जरूरत पड़ने पर कैसे सरकारी तंत्र ने प्रस्ताव की फाइल को बुलेट की स्पीड से दौड़ाया। अब आपको बताते हैं कि यदि बक्सवाहा में हीरा खदान को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय मंजूरी दे देता है तो किस तरह से बुंदेलखंड में पानी को लेकर हाहाकार मच सकता है। यह कटु सत्य है कि सालों से बुंदेलखंड सूखे और अकाल को लेकर अभिशप्त रहा है।
खदान के लिए चाहिए बेहिसाब पानी
बक्सवाहा में यदि हीरा खदान को मंजूरी मिलती है तो जमीन से हीरा निकालने के लिए बेतहाशा पानी की जरूरत पड़ेगी, लेकिन बक्सवाहा क्षेत्र में पानी की किल्लत है। सेंट्रल ग्राउंड वॉटर की रिपोर्ट के मुताबिक, बक्सवाहा सेमी क्रिटिकल जोन में है। इसके भूजल स्तर को बढ़ाने के लिए एक प्लान भी दिया गया है। यह सामान्य तथ्य है कि भूजल स्तर को बढ़ाने में पेड़ बेहद कारगर होते हैं। ऐसे में जब सवा दो लाख पेड़ों को काटा जाएगा तो एक तरह से सूखे को दावत दी जा रही है। बिड़ला ग्रुप की एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड की प्री फिजिबिलिटी रिपोर्ट के मुताबिक हीरा खनन के लिए चट्टान के टुकड़ों को साफ करना जरूरी होगा और इसके लिए रोज 16,050 किलो लीटर पानी की जरूरत पड़ेगी। मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी अपनी एक रिपोर्ट दी है, जिसके मुताबिक खनन के लिए जितने पानी की जरूरत होगी, उतना तो बारिश में रिचार्ज भी नहीं होता।
तो सूख सकती है बेतवा
बड़ा सवाल यह है कि जब खनन होगा तो पानी का इंतजाम कैसे होगा? इसके लिए इस्तेमाल किया जाएगा पास का प्राकृतिक झरना। कंपनी की रिपोर्ट के मुताबिक, वो इस झरने पर एक बांध बनाएगी, जिसकी क्षमता 17 मिलियन क्यूबिक मीटर होगी। झरना बारिश के दिनों में ही शुरू होता है। ऐसे में बारिश का पानी इकट्ठा होगा और खनन के काम आएगा। लेकिन यही झरना इस इलाके में खेती के लिए भी अहम है और आगे चलकर बेतवा नदी में मिलता है। पर्यावरणविदों का मानना है कि पानी की ऐसी किल्लत होगी कि पांच साल में बेतवा नदी के सूखने के आसार हैं।
सरकार के ऐसे मासूम तर्क
इधर मप्र सरकार ने बक्सवाहा हीरा खदान को लेकर एक फैक्ट शीट दी है, जिसमें लिखा है कि प्राकृतिक संसाधनों का ह्रास एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। पानी की कमी के कारण भी गिनाए हैं। जिसमें लिखा है कि वाष्पीकरण, कम वर्षा, ज्यादा मांग और खेती के लिए इस्तेमाल, लेकिन इस फैक्ट शीट में ये नहीं लिखा कि पानी की कमी को दूर कैसे किया जाएगा! जाहिर है जंगल तो कटेगा ही, प्राकृतिक झरना भी खत्म हो जाएगा। पानी के लिए हाहाकार मचेगा और पर्यावरण को नुकसान होगा वो अलग...