भोपाल। राजधानी भोपाल और इंदौर में प्रस्तावित पुलिस कमिश्नर सिस्टम (MP Commissioner System) में कानून की 6 प्रमुख धाराओं में कार्रवाई और सजा का अधिकार पुलिस कमिश्नर को दिया जा सकता है। यह सिस्टम लागू करने के लिए तैयार किए गए ड्राफ्ट में पुलिस कमिश्नर को मोटर व्हीकल एक्ट (Motor Vehicle Act) की धारा 59 (वाहनों की आयु सीमा संबंधी मामले), प्रिजनर्स एक्ट-3 (बंदियों को पेरोल देने) से लेकर नेशनल सिक्युरिटी एक्ट-65 (NSA) के तहत कार्रवाई करने का अधिकार देना प्रस्तावित किया गया है। हालांकि ड्राफ्ट (Commissioner System Draft) में शामिल किए गए अधिकारों के संबंध में अंतिम फैसला 4 दिसंबर को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (CM Shivraj) की अध्यक्षता में होने वाली बैठक में लिया जाएगा।
IAS, IPS लॉबी के बीच संतुलन
जानकारों का मानना है कि पुलिस कमिश्नर प्रणाली के प्रस्तावित ड्राफ्ट में आईएएस और आईपीएस के अधिकारों में संतुलन साधने की कोशिश की गई है। इस कवायद में इस बात का ध्यान रखा गया है कि प्रदेश में IPS की बहुप्रतीक्षित मांग भी पूरी हो जाए और आईएएस लॉबी (IAS lobby) भी नाराज न हो। इसीलिए यह माना जा रहा है कि पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होने के बाद भी भोपाल (Bhopal, indore Commissioner System) और इंदौर जिले के शहरी क्षेत्र में कानून-व्यवस्था (Law and order) से जुड़े मामलों में DM के रूप में कलेक्टर की भूमिका पूरी तरह से खत्म नहीं होगी। खासकर प्रतिबंधात्मक धारा 144 लागू करने के मामले में कलेक्टर की भूमिका बरकरार रखे जाने की संभावना है। नई व्यवस्था का ड्राफ्ट तैयार करने से पहले गृह विभाग (Home Ministry) ने उत्तरप्रदेश, राजस्थान एवं महाराष्ट्र में लागू पुलिस कमिश्नर प्रणाली का अध्ययन किया है।
बता दें कि वर्तमान व्यवस्था में CRPC 1973 की धारा 20 के तहत जिला मजिस्ट्रेट (DM) के रूप में कलेक्टर, अपर जिला मजिस्ट्रेट (ADM), SDM और एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट के अन्य महत्वपूर्ण अधिकार भी पुलिस कमिश्नर को दिए जाएंगे। गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा (Narrottam Mishra) के मुताबिक 4 दिसंबर को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की बैठक में पुलिस कमिश्नर सिस्टम के ड्राफ्ट पर मुहर लग सकती है।
कमिश्नर को मिलेगा एनएसए का अधिकार
यदि पुलिस-प्रशासन को लगता कि कोई व्यक्ति कानून- व्यवस्था सुनिश्चित करने वाले कार्यों में बाधा बन रहा है तो यह कानून उसे गिरफ्तार (Commissioner System Police Power) करने की शक्ति देता है। साथ ही, अगर उसे लगे कि वह व्यक्ति आवश्यक सेवा की आपूर्ति में बाधा बन रहा है तो वह उसे गिरफ्तार करवा सकती है। इस कानून के तहत जमाखोरों की भी गिरफ्तारी की जा सकती है। इस कानून (MP New Law) का उपयोग और कार्रवाई करने का अधिकार अभी जिला दंडाधिकारी (डीएम) के रूप में कलेक्टर के पास है। नई प्रणाली में भोपाल एवं इंदौर के शहरी क्षेत्र में अब ऐसी कार्रवाई करने का अधिकारी पुलिस कमिश्नर के पास होगा।
मप्र राज्य सुरक्षा एवं लोक व्यवस्था अधिनियम-1990 का अधिकार
राज्य सरकार के इस कानून के तहत अभी किसी भी आदतन और बड़े अपराधी के खिलाफ जिला बदर (District Badar) की कार्रवाई की मंजूरी का अधिकार कलेक्टर के पास के है। इसके तहत जिन आरोपियों के खिलाफ 3 से ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज होते हैं उनके खिलाफ जिला बदर की कार्रवाई की जा सकती है। वर्तमान में कार्रवाई के लिए थाना प्रभारी जांच प्रतिवेदन बनाकर एसपी को भेजता है। वहां से यह प्रतिवेदन मंजूरी के लिए कलेक्टर कार्यालय को भेजा जाता है। वो आरोपी को कम से कम 6 महीने के लिए जिलाबदर कर सकते हैं। नए सिस्टम में ये अधिकार पुलिस कमिश्नर के पास होगा।
प्रिजनर्स एक्ट-3 का अधिकार
इस कानून के तहत अभी बंदी को पैरोल पर छोड़ने का अधिकार (right to be released on parole) कलेक्टर को है। किसी बंदी को पैरोल पर छोड़ने के लिए जेल अधीक्षक,कलेक्टर को सिफारिश करते हैं। इसके लिए कलेक्टर कार्यालय से बंदी के निवास क्षेत्र से संबंधित थाना प्रभारी से रिपोर्ट तलब की जाती है। थाना प्रभारी अपनी रिपोर्ट में बताते हैं कि उक्त बंदी को उसकी पारिवारिक जिम्मेदारी के निर्वहन के लिए पैरोल देने से कोई खतरा है या नहीं। बंदी की पैरोल से किसी को कोई आपत्ति तो नहीं है। थाना प्रभारी की रिपोर्ट के आधार पर कलेक्टर पैरोल की अनुमति देते हैं। पैरोल की अवधि कितनी होगी, इसका फैसला भी कलेक्टर ही करते हैं। कमिश्नर सिस्टम लागू होने के बाद प्रिजनर्स एक्ट- 3 की शक्तियां कमिश्नर के पास चली जाएंगी।
पुलिस एक्ट धारा- 5 का अधिकार
गुंडा एक्ट (Gunda Act) के अंतर्गत कार्रवाई कलेक्टर करते हैं। किसी उपद्रवी, आरोपी या आदतन अपराधी के खिलाफ कार्रवाई के लिए संबंधित थाना प्रभारी अपने उच्च अधिकारी को जांच प्रतिवेदन भेजते हैं। पुलिस अधीक्षक कार्यालय से प्रतिवेदन कलेक्टर कार्यालय भेजा जाता है। इसे मंजूरी देकर कलेक्टर संबंधित आरोपी को गुंडा घोषित कर देता है। उससे बांड भी भरवाया जाता है। इसके बाद भी यदि आरोपी दोबारा कोई अपराध करता है तो बांड की राशि जब्त कर ली जाती है।
पॉइजन एक्ट (विष अधिनियम)-12
कृषि कार्य में उपयोग आने वाले पेस्टिसाइड, कीटनाशक (सल्फास) या अन्य जहरीले पदार्थ को विष (Poison) की श्रेणी में रखा गया है। इन्हें बेचने के लिए कलेक्टर कार्यालय से लाइसेंस लेना होता है। दुकानदार अधिकृत व्यक्ति जैसे किसान (Farmers) या अनाज के स्टॉकिस्ट को ही ये दवाएं बेच सकता है। यदि किसी व्यक्ति की मौत सल्फास या अन्य किसी जहरीले पदार्थ के खाने से होती है तो पुलिस इसकी जांच करती है। पुलिस पता लगाती है कि किस दुकान से जहरीला पदार्थ खरीदा गया था। इसकी बिक्री अवैध पाए जाने पर उक्त दुकानदार का लाइसेंस निरस्त करने के लिए पुलिस, कलेक्टर कार्यालय को जांच प्रतिवेदन भेजती है। अभी लाइसेंस निरस्त करने का पॉवर कलेक्टर के पास है जो नई व्यवस्था में कमिश्नर के पास होगा।
मोटर व्हीकल एक्ट 1988 की धारा 59 का अधिकार
केंद्र सरकार नागरिकों की सुरक्षा, सुविधा को ध्यान में रखते हुए किसी भी वाहन की अधिकतम आयु तय करती है। अलग-अलग वाहनों के लिए अलग-अलग आयु सीमा तय की जाती है। इसके संबंध में राजपत्र में अधिसूचना जारी होती है। इस कानून का पालन कराने की जिम्मेदारी अभी परिवहन विभाग (transport Department) के पास है। इसके तहत कार्रवाई का अधिकार कलेक्टर को है। नई व्यवस्था में कानून का पालन कराने की जिम्मेदारी पुलिस की होगी। यानि पुलिस कमिश्नर ही कानूनी कार्रवाई करेंगे।
सराय एक्ट-22 का अधिकार
इस कानून के तहत सराय (Saray Act) यानि रैन बसेरा, धर्मशाला आदि के बारे में व्यवस्था बनाने का अधिकार नगरीय निकायों का है। अभी पुलिस के पास इनकी चैकिंग के अधिकार हैं। ऐसे स्थानों पर कोई अनैतिक गतिविधि या आपराधिक घटना पर पुलिस कार्रवाई करती है। लेकिन अभी आरोपी को गिरफ्तार कर एडीएम कोर्ट में पेश किया जाता है। नई व्यवस्था में पुलिस कमिश्नर ही इन मामलों में सुनवाई और कार्रवाई करेंगे। हालांकि शहरी क्षेत्रों में अब यह कानून अप्रासंगिक माना जाने लगा है।
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