MP में हर साल 5883 मीट्रिक टन गेहूं सड़ जाता है, 6 साल में 71Cr का गेहूंं बर्बाद

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Sunil Shukla
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MP में हर साल 5883 मीट्रिक टन गेहूं सड़ जाता है, 6 साल में 71Cr का गेहूंं बर्बाद

Bhopal. दुनियाभर में 7 जून को संयुक्त राष्ट्र (UN) के आह्वान पर वर्ल्ड फूड सेफ्टी डे मनाया जाता है। इसे मनाने का मकसद लोगों को खाद्य सुरक्षा के प्रति लोगों जागरूक करना है। इस साल वर्ल्ड फूड सेफ्टी डे की थीम सुरक्षित भोजन, बेहतर स्वास्थ्य ('Safer food, better health') है। इसमें भारत भी सहभागी है लेकिन क्या आपको पता है कि देश का हृदय प्रदेश कहे जाने वाले मध्य प्रदेश में सरकार के कुप्रबंध के कारण हर साल 5 हजार 883 मीट्रिक टन गेहूं सड़ जाता है। यदि इसे कीमत में आंका जाए तो गोदामों में रखा जाने वाला करीब 12 करोड़ रुपए मूल्य का गेहूं इंसानों के खाने लायक नहीं बचता। इसे सुरक्षित किया जाए तो इतने गेहूं से एक महीने तक 14 लाख लोगों को पेट भरा जा सकता है।



सिर्फ 6 साल में सड़ा दिया 71 करोड़ का गेहूं 



भारतीय सनातन संस्कृति में अन्न को ब्रह्म यानी ईश्वर का स्वरूप माना गया है। शुद्ध, पौष्टिक और मिलावट रहित भोजन हर नागरिक का अधिकार है। लेकिन मध्य प्रदेश सरकार के आंकड़ों पर नजर डालें तो राज्य में सिर्फ पिछले 6 सालों में ही जनता की मेहनत की कमाई से खरीदकर गोदामों में रखा गया 35 हजार 297 मीट्रिक टन गेहूं सड़ गया। जन कल्याण के ध्येय वाक्य पर चलने वाली सरकार चाहती तो इतना गेहूं 4-4 किलोग्राम की मात्रा में प्रदेश के 88 लाख 24 हजार गरीबों को मुफ्त बांटा जा सकता था। देश के गोदामों में रखा अनाज सड़ने से नाराज हमारे देश की सुप्रीम कोर्ट भी यह तल्ख टिप्पणी कर चुका है कि यदि सरकार और उसकी जिम्मेदार एजेंसियां किसानों के खून-पसीने की मेहनत को सुरक्षित नहीं रख सकती तो गोदामों में रखा अनाज सड़ने से पहले गरीबों को मुफ्त बांट दिया जाए। लेकिन इसके बाद भी सरकारें अनाज भंडारण की व्यवस्था में अपेक्षित गति से सुधार लाने में असफल साबित हो रही हैं। इसकी वजह गेहूं की सरकारी खरीद औऱ भंडारण के लिए जिम्मेदार एजेंसियों में आपसी तालमेल का अभाव और रखरखाव की व्यवस्था में लापरवाही है।  



प्रदेश में इतने लाख लोगों को मुफ्त बांटा जा सकता था 4-4 किलो गेहूं 

 

खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग के अनुसार प्रदेश में सरकारी राशन दुकानों यानी पीडीएस दुकानों से राशन लेने वाले पात्र परिवारों की संख्या 1.15 करोड़ है। इन पात्र परिवारों के सदस्यों की संख्या 5 करोड़ 37 लाख है। वैसे तो सार्वजिनक वितरण प्रणाली (PDS) की 22 हजार 396 दुकानों से सस्ता राशन लेने के लिए अलग-अलग कार्ड की व्यवस्था है। इनके अनुसार राशन लेने की पात्रता भी अलग-अलग है। लेकिन हम यहां यदि सभी परिवारों को प्राथमिक राशन कार्डधारी ही मानें तो एक व्यक्ति को राशन दुकान से हर महीने 4 किलो गेहूं मिलता है। इस लिहाज से सरकारी अमले की लापरवाही से छह साल में 35 हजार 297 मीट्रिक टन गेहूं खराब हुआ है। इतना गेहूं प्रदेश में पीडीएस के 88 लाख 24 हजार पात्र हितग्राहियों को  4-4 किलोग्राम मुफ्त बांटा जा सकता था। राज्य सरकार वर्तमान में किसानों से 2015 रुपए क्विंटल की दर से गेहूं खरीद रही है। यदि यह गेहूं आज सुरक्षित रहता तो इसकी कीमत 71 करोड़ 12 लाख रुपए होती।



खराब गेहूं को अब कौड़ियों के दाम बेचने की तैयारी 

 

प्रदेश के किसानों का गेहूं ऊंचे दाम पर खरीदकर अब इसे औने-पौने दामों में बेचने की तैयारी है। यह गेहूं इतना खराब हो चुका है कि अब इंसानों के खाने के लायक नहीं बचा। इसके चलते अब इसे पशुओं के खाने और इंडस्ट्रियल उपयोग के लिए सरकार खुले बाजार के लिए नीलाम करेगी। प्रदेश के विभिन्न जिलों में खराब हुए इस गेहूं को बेचने के लिए खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम ने ग्लोबल टेंडर जारी किए थे। खराब गेहूं को खरीदने के लिए करीब 100 कंपनियों ने बिड की है। इनमें से जो कंपनियां जिस जिले के गेहूं को अधिकतम दाम पर खरीदने को तैयार होंगी उन्हें यह गेहूं बेचा जाएगा।



ऐसे बर्बाद कर दिए टैक्सपेयर्स के  60.53 करोड़ रुपए



प्रदेशभर में वर्ष 2015 से लेकर वर्ष 20-21 के बीच खरीदा गया गेहूं 390 स्थानों पर रखरखाव के अभाव में खराब हुआ। यह गेहूं अब डेढ़ से दो रुपए किलो के भाव से निजी कंपनियां खरीदेंगी। यदि गेहूं का हम अधिकतम भाव 3 रूपए प्रति किलो भी ले लें तो इसका मतलब यह हुआ कि 35 हजार 297 मीट्रिक टन गेहूं 10.58 करोड़ का बिकेगा, जबकि यदि गेहूं अच्छा होता तो आज इसकी कीमत 71.12 करोड़ से अधिक होती, मतलब टेक्सपेयर की गाढ़ी कमाई के 60.53 करोड़ यूं ही बर्बाद हो गए।  



मप्र में यहां खराब हुआ इतना गेहूं 

 




  • छिंदवाड़ा जिले के ओपन कैप चंदनवाड़ा चैरई में वर्ष 2020 -21 में खरीदकर रखा 10 हजार 980 टन गेहूं। 


  • हरेराम काटन इंडस्ट्री और गोपीनाथ वेयरहाउस में रखा वर्ष 20-21 का 951.489 टन गेहूं।

  • छिंदवाड़ा के एमपीडब्ल्यूएलसी के गोदाम में वर्ष 16-17 में रखा 5.36 टन गेहूं।

  • कटनी में वर्ष 2019-20 में खरीद कर रखा गया 1 हजार 619.15 टन गेहूं।



  • गेहूं के परिवहन और भंडारण पर सालाना करोड़ों रुपए खर्च



    राज्य सरकार समर्थन मूल्य पर खरीदे गए गेहूं का परिवहन कर उन्हें निजी गोदामों, भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई), मप्र राज्य भंडार गृह निगम (एमपीडब्ल्यूएलसी)  गोदामों और अन्य गोदामों में रखती है। एक मीट्रिक टन गेहूं के रखरखाव पर सालाना 27 रुपए प्रति मीट्रिक टन प्रति वर्ष का खर्च आता है। खरीद केंद्र से गोदामों तक गेहूं पहुंचाने के लिए भी हर साल करोड़ों रुपए खर्च होते हैं। इस हिसाब से परिवहन और भंडारण पर भी हर साल करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं।



    इन 5 कैटेगरी में बेचा जाता है खराब गेहूं 



    राज्य सरकार ने खराब हो चुके इस गेहूं की 5 तरह की कैटेगरी बनाई हैं। एक और दो कैटेगरी के गेहूं का उपयोग पशु आहार के लिए किया जा सकेगा। तीसरी कैटेगरी का उपयोग पोल्ट्री आहार, चौथी कैटेगरी के गेहूं का इस्तेमाल इंडस्ट्रियल यूज के लिए हो सकेगा। पांचवी क्वालिटी केवल खाद बनाने के उपयोग में की जा सकेगी।



    किसान संगठनों का आरोप- पहले गेहूं खराब करो, फिर औने-पौने दाम में बेच दो 



    किसान संगठनों ने गेहूं खराब होने को लेकर सरकार पर निशाना साधा। किसान जागृति संगठन के प्रमुख इरफान जाफरी का आरोप है कि सरकारी खरीद के गेहूं के रखरखाव में गड़बड़ी कर अपना आर्थिक लाभ साधने के लिए सुनियोजित तरीके से रैकेट काम कर रहा है। इसका मंत्र है- पहले गेहूं खराब करो, फिर उसे औने-पौने दाम पर कॉर्पोरेट या लिकर इंडस्ट्री को बेच दो। इसलिए सवाल खड़ा होता है कि प्रदेश में गोदामों रखा जाने वाला गेहूं खराब हो जाता है या जानबूझकर खराब किया जाता है। 6 साल से गेहूं खराब हो रहा है, सरकार क्या कर रही है, जिम्मेदारों पर कार्रवाई क्यों नहीं की जाती। पूरा खेल जनता की मेहनत की कमाई के पैसों को लूट-खसोट करना है।



    इन कारणों से खराब होता है गोदाम में रखा गेहूं 




    • केमिकल ट्रीटमेंट और उचित भंडारण न होने से गेहूं में घुन या कीड़े लग जाते हैं। 


  • गोदाम में सीपेज के पानी और नमी से गेहूं सड़ने लगता है। 

  • खुले (ओपन कैप) में रखा गेहूं बारिश से खराब होता है। 

  • गोदामों में चूहे घुस जाते हैं, वे पैकेट या बोरे फाड़ देते हैं। 



  • ये हैं जिम्मेदार 



    इतने बड़े पैमाने पर अनाज खराब होने के पीछे सरकार का मिसमैनेजमेंट जिम्मेदार है। इसमें पहली जिम्मेदारी सरकार के कृषि विभाग के मुखिया के रूप में कैबिनेट मंत्री कमल पटेल और खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री बिसाहूलाल सिंह की बनती है। खाद्य विभाग ही इसकी खरीदी करने और उसका उचित भंडारण करने के लिए जिम्मेदार होता है। विभागीय स्तर पर इस व्यवस्था की सही मॉनिटरिंग नहीं की जाती। गेहूं की खरीदी करने वाली एजेंसी खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम और वेयर हाउसिंग कॉर्पोरेशन में तालमेल की कमी भी इसका बड़ा कारण है। सिविल सप्लाइज कार्पोरेशन के मैनेजिंग डायरेक्टर तरुण पिथोड़े कहते हैं कि प्रदेश में अनाज के भंडारण की व्यवस्थाएं बेहतर करने के लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। जल्द ही इनके परिणाम बेहतर नजर आएंगे।

     

    व्यवस्था में सुधार के लिए ये कदम उठाना जरूरी 



    किसान नेता केदार सिरोही कहते हैं कि इस मामले में सरकार की समय पर प्लानिंग ना करना ही सबसे बड़ी कमी है। यदि सरकार फसल कटने के पहले ही उसकी पैदावार का अनुमान कर ले तो उसे रखने की बेहतर व्यवस्थाएं की जा सकती हैं। सरकार को भंडारण के लिए हर कमोडिटी का वर्गीकरण भी करना पड़ेगा। जो फसल अपेक्षाकृत जल्दी खराब होने लगती है तो उसे समय पर नष्ट करना भी जरूरी है। चूंकि खराब फसल आसपास रखे अनाज को भी खराब करने लगती है। वक्त पर गोदामों की मरम्मत पर कॉर्पोरेशन को ध्यान देना पड़ेगा। 



    जानिए,  विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस का इतिहास और महत्व 



    दुनिया भर में हर साल 7 जून को 'विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस' यानी 'वर्ल्ड फूड सेफ्टी डे' (World Food Safety Day) मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का मकसद खाद्य सुरक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) हर साल इस दिन को इस उद्देश्य से मनाता है कि खराब और दूषित खाने से होने वाली बीमारियों को रोका जा सके। इन्हें पहचाना जा सके और खाद्य जनित रोगों के जोखिम का ठीक तरह से प्रबंधन करके लोगों की सेहत को बेहतर बनाया जा सके। 



    World Food Safety Day का महत्व 



    WHO की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर सालाना हर 10 में से एक व्यक्ति खाद्य जनित रोगों (Foodborne Diseases) का शिकार होता है। खराब फूड क्वालिटी सेहत पर बुरा असर डालती है, जिससे व्यक्ति की ग्रोथ और डेवलपमेंट पर असर पड़ता है। इससे कुपोषण ( micronutrient deficiencies) गैर संक्रामक और संक्रामक रोगों के साथ मानसिक बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है। World Food Safety Day का लक्ष्य इस मैसेज को लोगों तक पहुंचाना है कि हर स्टेज में फसल का उत्पादन, भंडारण, वितरण, इसे तैयार करने और खाने तक में खाद्य सुरक्षा का ध्यान रखा गया हो। 



    इस बार वर्ल्ड फूड सेफ्टी डे की थीम, सुरक्षित भोजन-बेहतर स्वास्थ्य 



    WHO के मुताबिक, World Food Safety Day वैश्विक स्तर पर 7 जून का मनाया जाता है। हर साल इस दिन के लिए एक थीम तय की जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने मार्च में World Food Safety Day की थीम की घोषणा की थी। इस साल वर्ल्ड फूड सेफ्टी डे की थीम है- Safer food, better health। WHO ने इसके लिए एक कैम्पेन भी लॉन्च किया है, जिससे वैश्विक भागीदारी को बढ़ावा मिल सके।



    वर्ल्ड फूड सेफ्टी डे का इतिहास



    2018 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने World Food Safety Day की शुरुआत की थी, जिससे महत्वपूर्ण फूड सेफ्टी को लेकर  लोगों में जागरूकता बढ़ाई जा सके। विश्व स्वास्थ्य संगठन और फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन ऑफ द यूनाइटेड नेशंस (FAO) ने संयुक्त रूप से सदस्य देशों और दूसरे साझेदारों के सहयोग से वर्ल्ड फूड सेफ्टी डे की शुरुआत की थी। वर्ल्ड फूड सेफ्टी डे (World Food Safety Day) का मकसद खाद्य व्यवस्था में बदलाव लाना है, जिससे अच्छे स्वास्थ्य और खाद्य जनित रोगों से बचा जा सके। ये दिन उन प्रयासों को मजबूत करने का भी अवसर उपलब्ध कराता है, जिससे ये सुनिश्चित किया जा सके कि जो खाना हम खा रहे हैं, वो सुरक्षित हो और वै​श्विक स्तर पर खाद्य जनित रोगों को कम किया जा सके। 



    (इनपुट: भोपाल से अरुण तिवारी और राहुल शर्मा)


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