MP: आदिवासी किसानों को जैविक खेती के गुर सिखाने के बजाय बांट दिए घटिया बीज-खाद

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Pooja Kumari
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MP: आदिवासी किसानों को जैविक खेती के गुर सिखाने के बजाय बांट दिए घटिया बीज-खाद

भोपाल। प्रदेश में करीब एक लाख गरीब आदिवासी किसानों (tribal farmers) को जैविक खेती (organic farming) और खाद (fertilizer) बनाने का प्रशिक्षण देकर उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार (central and state government) से मिले 110 करोड़ रुपए की बंदरबांट हो गई है। कृषि एवं जनजाति विभाग (agriculture and tribal department) के मैदानी अधिकारी औऱ कर्मचारियों ने किसानों को जैविक खेती की ट्रेनिंग देने के बजाय घटिया खाद (substandard fertilizers), बीज एवं कीटनाशक (seeds and pesticides) खरीदकर बड़े घोटाले (big scams) को अंजाम दिया है। इतना ही नहीं योजना के अमल में मनमाने बदलाव कर आदिवासी किसानों के विकास के लिए आया पैसा दूसरे वर्ग के लोगों पर भी खर्च कर दिया गया है। आदिवासी जिलों में किए गए इस बड़े गोलमाल की राष्ट्रीय जनजाति आयोग (National Commission for Tribes) में शिकायत के बाद सीबीआई जांच (CBI investigation) भी कराई जा रही है लेकिन संबंधित जिलों के कलेक्टर (collector) से लेकर विभाग के मंत्री भी मुंह खोलने को राजी नहीं हैं। 





योजना में केंद्र सरकार का योगदान 74 करोड़ और राज्य सरकार का योगदान 36 करोड़ रुपए था। केंद्र से स्वीकृत 74 करोड़ रुपए में से 54 करोड़ रुपए अन्य आदिवासी समुदाय के लिए और 20 करोड़ रुपए विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समुदाय के लिए थे। वर्ष 2016-17, 2018-19 में BJP शासन के दौरान मध्यप्रदेश किसान कल्याण विभाग (Madhya Pradesh Farmers Welfare Department) द्वारा मध्य प्रदेश आदिम जाति कल्याण विभाग (Madhya Pradesh Tribal Welfare Department) को अन्य आदिवासी समाज में ऑर्गेनिक फार्मिंग को प्रोत्साहन देने के लिए 90 करोड़ रुपए एवं अति पिछड़े आदिवासी जैसे बैगा, सहरिया और भारिया (Baiga, Sahariya, Bharia) के लिए 20 करोड़ रुपए दिए गए थे। लेकिन RTI एक्टिविस्ट पुनीत टंडन के माध्यम से राज्य जनजातीय कार्य मंत्रालय (State Ministry of Tribal Affairs) से हासिल जानकारी के अनुसार योजना में संरचनात्मक स्तर पर बिना केंद्र से पूछे बदलाव कर दिए गए।





योजना में अपात्र लोगों को भी बांट दिया पैसा :  संचालन स्तर पर एवं खेती-सामग्री वितरण के स्तर पर गंभीर गड़बड़ियाँ की गईं। राशि का उपयोग केंद्र द्वारा निर्धारित कार्य के लिए ना करते हुए किसी और कार्य के लिए किया गया एवं राशि के लाभान्वितों की सूची में भी फर्जीवाड़ा कर अपात्र लोगों को राशि का फायदा पहुंचाया गया है। यह जानकारी केवल मंडला, बालाघाट, डिंडोरी एवं अनूपपुर जिलों से है, जबकि ग्वालियर, शिवपुरी ,दतिया के हितग्राहियों की सूची की जानकारी आरटीआई में उपलब्ध नहीं कराई गई। करोड़ों के इस घोटाले के बारे में पूछताछ किए जाने पर कृषि विभाग के साथ-साथ आदिम जाति कल्याण विभाग की प्रमुख सचिव पल्लवी गोविल और मंत्री मीना सिंह ( Minister Meena Singh) भी चर्चा के लिए तैयार नहीं हैं। इससे जाहिर होता है कि इस मामले में कितना गड़बड़ घोटाला हुआ है कि अधिकारी हों या मंत्री वे घोटाले से जुड़े सवालों के जवाब देना तो दूर बात करने के लिए भी राजी नहीं हैं। वर्ष 2016-17 में प्रदेश के आदिम जाति कल्याण विभाग एवं कृषि विभाग ने केंद्र को 4 कंपोनेंट्स वाली योजना का प्रस्ताव भेजा था। योजना का उद्देश्य प्रदेश के 89 ब्लॉक्स के 1 लाख आदिवासी किसानों जैसे अति पिछड़े आदिवासी किसान (बैगा, सहरिया और भारिया) और अन्य आदिवासी समूह के किसानों में जैविक खेती (पोषण, स्वास्थ्य और जैविक उत्पादों की ब्रांडिंग/ पैकेजिंग) को प्रोत्साहित कर उनकी आय बढ़ाना था। केंद्र ने राज्य के 4 कंपोनेंट्स वाली योजना को 2 कम्पोनेंट्स वाली योजना बनाकर मंजूरी दी।





आदिवासी किसानों के घर में बनाने थे वर्मी कंपोस्ट यूनिट : स्वीकृत योजना के तहत पहले 37 करोड़ रुपए के वर्मी कम्पोस्ट यूनिट्स बनाने थे, जिनके निर्माण से आदिवासी किसानों को घर में ही अच्छी क्वालिटी की जैविक खाद तैयार करने में मदद मिलती। प्रति वर्मी कम्पोस्ट यूनिट का मूल्य था 5000 रुपए। निर्धारित संख्या के वर्मी कम्पोस्ट यूनिट्स बनाने के बाद उनका भौतिक सत्यापन यानी की फिजिकल वेरिफिकेशन भी होना था। दूसरा, 73 करोड़ रुपए के सेस्बनिआ बीज बांटे जाने थे। 





सामग्री-वितरण के स्तर पर भी की गईं गड़बड़ियां -





1. केंद्र द्वारा स्वीकृत 2 कंपोनेंट्स की योजना को बदल कर 4 घटकों की योजना बना दिया: वर्ष 2016-17, 2018-19 में भारत सरकार द्वारा स्वीकृत 2 कंपोनेंट्स वाली योजना को बदल कर वापस 4 कम्पोनेंट्स वाली योजना बना दिया गया। 1. हरी खाद बीज  2. प्रोम 3. मेटराइज़ियम 4.बायोपेस्टीसाइड सप्लाई। राज्य स्तर पर वर्मी कम्पोस्ट यूनिट्स कम्पोनेंट को हटा कर बायोपेस्टीसाइड सप्लाई के कम्पोनेंट में इसलिए बदल दिया गया क्योंकि अगर यूनिट्स बनती तो उनकी पुष्टि 10 साल बाद भी की जा सकती थी। जबकि PVTGs यानी कि'विशिष्टतः असुरक्षित जनजातीय समूह'। आम भाषा में इन्हें विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह के रूप में जाना जाता है। अन्य आदिवासी समुदायों की विकास योजनाओं के प्रोग्राम में कोई भी बदलाव करने के अधिकार राज्य सरकार के पास नहीं होते।





2. केंद्र को भेजे फर्जी उपयोगिता प्रमाणपत्र तो केंद्र ने रोकी  ग्रांट : इतना ही नहीं राज्य सरकार द्वारा केंद्र सरकार को उपयोगिता प्रमाणपत्र भी भेज दिए गए जो कि फ़र्ज़ी साबित हुए क्योंकि जब कोई वर्मी कम्पोस्ट यूनिट्स बने ही नहीं तो उपयोगिता प्रमाणपत्र किस बात का? हालांकि, राज्य सरकार द्वारा केंद्र को भेजे गए फ़र्ज़ी उपयोगिता प्रमाणपत्रों को संज्ञान में लेकर केंद्र द्वारा वित्तीय वर्ष 2021-2022 की ग्रांट रोक दी गयी है। ग्रांट रुकने के बाद मध्य प्रदेश आदिम जाति कल्याण विभाग ने राज्य कैबिनेट से केंद्र सरकार द्वारा दी गयी राशि का एडजस्टमेंट स्टेट हेड के फंड से करवाने की अनुमति ले ली।  इसके बाद राज्य सरकार ने केंद्र से उक्त खर्चे को राज्य सरकार का खर्चा मानकर उपयोगिता प्रमाण पत्रों को रद्द कर वित्तीय वर्ष 2021-2022 की ग्रांट जारी करने का आग्रह किया। कहा जा सकता है मध्य प्रदेश आदिम जाति कल्याण विभाग राज्य सरकार की मिलीभगत से इस पूरे विषय को दबा कर बैठा है।  





3. मंडला, बालाघाट में विशेष रूप से कमज़ोर आदिवासियों का पैसा ब्राह्मणों को बांटा  : A. उदाहरण के लिए मंडला जिले की ग्राम पंचायत किंदरई, मोहगांव एवं खैरीमाल में गैर-आदिवासी वर्ग के लोगों (जैसे ब्राह्मण, तेली, कुर्मी, लोहार आदि) में को उक्त राशि का वितरण कर दिया गया। लेकिन जब भी डेवलपमेंट ऑफ़ पर्टिक्यूलरली वल्नरेबल ट्राइबल ग्रुप्स योजना के तहत केंद्र सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय की तरफ से किसी भी राज्य सरकार को फण्ड का आवंटन या सैंक्शन होता है तब जो आदेश/निर्देश दिए जाते हैं उसमें साफ़ तौर पर लिखा होता है की आवंटित किया गया पैसा सिर्फ और सिर्फ  PVTGs यानी की विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह के विकास के लिए ही उपयोग होना चाहिए। और यहाँ पर इस बात का साफ़ उल्लंघन हुआ है।





B.जिला बालाघाट: इसी तरह बालाघाट जिले की PVTGs की सूची से साफ़ प्रदर्शित होता है की उक्त राशि का लाभ 477 गौंड जनजाति के लोगों को मिला जबकि राशि का वितरण केवल मध्य प्रदेश की 3 विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह सहरिआ, भारिआ एवं बैगा में ही किया जा सकता था।





4. बैगा, भारिया, सहरिया के नाम पर हितग्राहियों की फ़र्ज़ी सूची:  A. जिला डिंडोरी: उक्त दो मामलों की ही तरह डिंडोरी जिले में भी फण्ड वितरण में अनियमितता सामने आई है। यहाँ पर विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह एवं अन्य आदिवासी समूह, दोनों की हितग्राहियों की सूची एक समान ही है। दोनों सूचियों में एक जैसे ही नाम है। इससे प्रतीत होता है की एक आदिवासी को लाभान्वित करने के लिए दो जगहों से भुगतान हुआ या फिर एक फंड की राशि का गबन कर लिया गया है।  





B. अनूपपुर: अनूपपुर की PVTG सूची एवं अन्य आदिवासी हितग्राहियों की सूची भी एक सामान है जिससे लगता है की एक ही हितग्राही के नाम पर दोनों फंड की राशि का उपयोग किया गया है और एक फंड की राशि का गबन कर लिया गया है।





अब तक क्या कार्यवाही हुई-





1. विधानसभा जांच समिति: 21 जुलाई, 2019 में विधानसभा सत्र में कांग्रेस के फुंदेलाल सिंह मार्को की ध्यान आकर्षण सूचना में घोटाले के जिक्र के बाद कांग्रेस के तत्कालीन कृषि मंत्री सचिन यादव द्वारा पूर्व विधान सभा अध्यक्ष एनपी  प्रजापति की अध्यक्षता में 14-सदस्यीय जांच दल भी गठित किया गया; जिसकी समीक्षा बैठक 5 फ़रवरी 2020 को हुई। बैठक में समिति को 22 बिंदुओं पर जांच करने को कहा गया और 15 से 20 दिन में निर्णय लेकर भ्रष्टाचारियों को दण्डित करने कहा गया था। हालांकि, बाद में जुलाई, 2021 में इस समिति की जांच को दबाने की कोशिश में शिशिरकान्त चौबे (BJP) द्वारा इसे निरस्त करवाने की कोशिश भी की गई। बाद में जांच का क्या हुआ, कब ठन्डे बस्ते में चली गई...कुछ पता नहीं। 





शिकायत के बाद सीबीआई ने भी दर्ज कीप्रारंभिक जांच-





 2. CBI जांच: 19 सितम्बर,2019 को इक़बाल खान, निवासी नरेंद्र देवनगर की भोपाल की I के जॉइंट डायरेक्टर को संबोधित शिकायत के बाद इस मुद्दे पर प्रिलिमनरी इन्क्वायरी रजिस्टर की गयी थी जिसका प्रभारी दीप शर्मा, सब-इंस्पेक्टर, CBI , ACB, भोपाल को बनाया गया था। शिकायत में कहा गया कि 2016-2018 में मध्य प्रदेश कृषि विभाग की आवश्यकता पर नेशनल सीड्स कारपोरेशन के रीजनल ऑफिस ने कुछ टेंडर्स निकाले थे जिसमें 'सेस्बेनिया रोस्ट्रेटा' नामक बीज को खरीदने के लिए निर्देशित किया गया था। और मुंबई की ज्योलाइफ एग्रीटेक इंडिया कंपनी से सिंगर टेंडर द्वारा रोस्ट्रेटा के नाम पर ढेंचा बीज ही 5 से 10 गुनी कीमत पर खरीद लिए गए।





साधारण बीज खरीदकर महंगे दाम पर सीड कार्पोरेशन को दिया : CBI भोपाल द्वारा उक्त शिकायत दर्ज करने के बाद की गयी जांच-पड़ताल में यह खुलासा हुआ था की 2017-2018 में नेशनल सीड्स कारपोरेशन लिमिटेड, भोपाल (जो की भारत सरकार का एक उपक्रम है) के रीजनल ऑफिस ने मध्य प्रदेश कृषि विभाग की आवश्यकता पर सेस्बेनिया रोस्ट्रेटा (SESBANIA ROSTRATA ) बीज के लिए टेंडर्स निकाले थे। यह तब जबकि भारत में सेस्बेनिया रोस्ट्रेटा का व्यावसायिक उत्पादन नहीं होता है। मुंबई की ज्योलाइफ एग्रीटेक इंडिया कंपनी को सिंगल बिड के तहत दे दिया गया था। ज्योलाइफ एग्रीटेक इंडिया ने सेस्बेनिया रोस्ट्रेटा की जगह धौलपुर, खेरली, आगरा, मथुरा एवं अलीगढ़ आदि के स्थानीय विक्रेताओं से साधारण ढेंचा बीज खरीदकर धोखाधड़ीपूर्वक नेशनल सीड्स कारपोरेशन लिमिटेड को ऊँचे दामों पर बेच दिए। नेशनल सीड्स कारपोरेशन लिमिटेड, भोपाल ने भी बीजों का लैबोरेट्रीज में गुड़वत्ता परिक्षण करवाए बिना ही ज्योलाइफ एग्रीटेक इंडिया को भुगतान कर दिया. ये दर्शाता है की ज्योलाइफ एग्रीटेक इंडिया के साथ-साथ नेशनल सीडस कारपोरेशन, भोपाल के अधिकारियों द्वारा घोर गलती की गयी है। सीबीआई जांच में दोषी पाए जाने के बावजूद अभी तक कोई दण्डित नहीं किया गया है। 





राष्ट्रीय जनजाति आयोग के नोटिस पर कलेक्टर ने बनाई जांच समिति : 28 नवंबर, 2021 को प्राप्त एक शिकायत पर तथाकथित फ़र्ज़ी सूचियों का संज्ञान लेकर राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने 15 दिसंबर, 2021 को मध्य प्रदेश शासन के मुख्य सचिव एवं मंडला कलेक्टर को नोटिस जारी कर हितग्राहियों की पहचान करने और फ़र्ज़ी सूचियों के आरोपों की जांच कर प्रकरण दर्ज करने  कहा था। मुख्य सचिव एवं मंडला कलेक्टर से 15 दिन के भीतर जवाब माँगा गया था अन्यथा समन्न देने की चेतावनी दी गयी थी। इस पर कलेक्टर हर्षिका सिंह ने 7 जनवरी,2022 जिला पंचायत सीईओ सुनील दुबे की अध्यक्षता में 3-सदस्यीय जांच समिति गठित की है। समिति को 15 दिन में रिपोर्ट देनी थी।  





द सूत्र के सवालों पर कौन क्या बोला 





जांच समिति की रिपोर्ट आने के बाद ही कुछ बोलेंगे- हर्षिका सिंह, मंडला कलेक्टर  





उपरोक्त मुद्दे पर जब द सूत्र ने मंडला कलेक्टर से बात करने के कोशिश की तो उन्होंने जांच समिति के बारे में  बोला और कहा कि जबतक जांच समिति रिपोर्ट नहीं दे देती , मैं कुछ नहीं बोल सकती।



-मैंने कुछ नहीं किया, मेरे आदेश से कुछ नहीं होता : अहिरवार, अधिकारी, कृषि विभाग





सेस्बनिआ बीज प्रकरण में विधान सभा जांच समिति के जांच बिन्दुओं में कृषि विभाग के तत्कालीन अधिकारी कोमल प्रसाद अहिरवार का नाम सामने आया था। अहिरवार से द सूत्र को बताया कि उन्होंने सेस्बनिआ बीज को सेस्बनिआ रोस्त्राता नहीं किया था। इस अनियमितता में उनकी कोई गलती नहीं है।





विभाग की पीएस बोलीं-अभी बाहर हूं, बाद में बात करती हूं





3. मैं अभी भोपाल के बाहर हूं। वापस आकर ही बात कर सकती हूँ। पल्लवी गोविल,प्रमुख सचिव,  आदिम जाति कल्याण विभाग    



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