MP : भोपाल की जिस महिला उद्यमी की सक्सेस स्टोरी IIM लखनऊ में पढ़ाई जाती है, सरकार की गलत नीति से बंद हुई उनकी फैक्टरी

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Ruchi Verma
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MP : भोपाल की जिस महिला उद्यमी की सक्सेस स्टोरी IIM लखनऊ में पढ़ाई जाती है, सरकार की गलत नीति से बंद हुई उनकी फैक्टरी

BHOPAL: यह सही है कि मध्य प्रदेश के औद्योगिक विकास में बड़े उद्योग अहम भूमिका अदा कर रहे हैं, पर सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) आर्थिक विकास के इंजन और समग्र विकास की रीढ़ होते हैं। MP की करीब 2 लाख 50 हज़ार MSMEs राज्य की GDP में 42% और एक्सपोर्ट में 45% का योगदान देती हैं। साथ ही प्रदेश के 14 लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार का जरिया भी MSME ही हैं। यानि कि राज्य के कुल रोजगार अवसरों का 48 प्रतिशत। लेकिन सिस्टम की खामियों के चलते राज्य के MSME उद्योगों की हालत बेहद खराब है। पहले कोविड-19 और फिर उसके बाद रॉ-मटेरियल की कीमतों में हुई वृद्धि ने दो बार इंडस्ट्री को झटका दिया। अब उद्योगों का आरोप है कि MSME उद्योगों को दी जाने वाली सरकारी सहायता और स्कीम्स सिर्फ कागज़ों पर ही काम कर रहीं है। मध्य प्रदेश सरकार का MSME सेक्टर को ऊपर उठाने के लिए साल 2022-23 में 654 करोड़ के सरकारी निवेश का दावा है, लेकिन द सूत्र की ये ग्राउंड रिपोर्ट और आंकड़ें कुछ और सच्चाई बयां कर रहे हैं.....



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सरकार के ही विभाग ने ठप्प किया 200 लोगों को रोजगार देने वाला करोड़ों का लघु उद्योग: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के गोविंदपुरा औद्योगिक क्षेत्र में स्थित आइसोलेटर्स एंड आइसोलेटर्स इंडस्ट्री है। यह 25 KVA से 1600 KVA तक के और 10 MVA तक के डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफार्मर्स का निर्माण और सप्लाई करती थी। इस इंडस्ट्री को संध्या मिश्रा ने वर्ष 1989 में स्थापित किया था। संध्या मिश्रा की कहानी जहाँ एक तरफ एक महिला उद्यमी के कमिटमेंट का प्रत्यक्ष उदाहरण है....वहीँ जिस तरह से उनके करोडो के टर्नओवर वाले सफल लघु उद्योग को सरकारी विभाग द्वारा एक झटके में ठप्प कर दिया गया.....वह यह साफ़ प्रमाणित करता है की प्रदेश की सरकार लघु उद्योगों को ऊपर उठाने की बातें सिर्फ और सिर्फ घोषणाओं में ही करती है। धरातल पर जिस तरह से काम चल रहा है उससे तो औद्योगिक गतिविधियां उलटा सिमटती नज़र आ रहीं हैं।




  • संध्या मिश्रा ने 29 साल की उम्र में वर्ष 1986 में राजीव गाँधी महिला उद्यमिता स्कीम के अंतर्गत ट्रेनिंग ली थी। ट्रेनिंग IDBI बैंक और रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने महिला उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए शुरू की थी। 10,000 महिला आवेदकों में से कुछ सौ का सिलेक्शन हुआ जिनमे से संध्या एक थी। ज्यादातर सिलेक्टेड कैंडिडेट्स के मुकाबले संध्या की आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी। पति MP इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में मात्र 700 रुपए मासिक की तनख्वाह पर कार्यरत थे। साथ में दो बच्चो की पढ़ाई और सास-ससुर की देखभाल। इसके बावजूद संध्या ने अपनी ट्रेनिंग पूरी की। IDBI बैंक और रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया के अधिकारी भी उनकी काबिलियत देखकर प्रभावित थे। उन्होंने ही संध्या को ज्यादातर महिलाओं द्वारा किये जाने वाले अचार-पापड के बिज़नेस से अलग हटकर मैकेनिकल-इलेक्ट्रिकल फील्ड में कुछ करने की सलाह दी।


  • पैसों की कमी ,काम शुरू करने के लिए जमीन की किल्लत और सरकारी सिस्टम में व्याप्त भ्रस्टाचार जैसी सभी बाधाओं के बावजूद.....और खुद का लघु उद्योग स्थापित करने के दृण निश्चय के चलते संध्या मिश्रा ने 1989 में आइसोलेटर्स एंड आइसोलेटर्स इंडस्ट्री शुरू की। करीब 6 लाख रुपए से शुरू की गई इंडस्ट्री उनकी मेहनत से 28 सालों के अंदर 5 करोड़-10 करोड़ के वार्षिक टर्नओवर वाली वाली इंडस्ट्री बनी। इससे करीब 200 लोगों को रोजगार मिलता था जिसमें 60% महिलाएं थी। इन सालों के दौरान संध्या मिश्रा ने MPCON, हॉस्पिटल्स, BHEL, मध्य प्रदेश विद्युत् निगम सहित कई संस्थाओं के साथ काम किया। उनको कई पुरुस्कारों से भी सम्मानित किया गया। यहाँ तक की IIM-लखनऊ ने संध्या मिश्रा की उद्यमिता की कहानी को अपने स्टूडेंट्स के मैनेजमेंट लेसंस में शामिल किया। जिसमें वह अपने स्टूडेंट्स को बताता है कि कैसे बिना किसी मैकेनिकल-इलेक्ट्रिकल स्टडी बैकग्राउंड के भी MP में एक महिला उद्यमी ट्रांसफॉर्मर्स का एक सफल बिज़नेस चलाती है।

  • एक ऑर्डर पूरा नहीं किया तो फैक्ट्री बंद करवा दी, फैक्ट्री पर तीन साल का बैन लगा दिया: 2018-19 तक तो संध्या की ट्रांफॉर्मर्स के बिज़नेस के अच्छा काम किया। न कभी कोई बकाया क़र्ज़ रहा और ना ही डूबत क़र्ज़। पर 2018-19 में भोपाल में हुई मूसलाधार बारिश में संध्या के बिज़नेस को भारी नुकसान हुआ। उनकी पूरी इंडस्ट्री और ट्रांसफार्मर्स बारिश के पानी में डूब गए। इसमें मध्य प्रदेश विद्युत् मंडल को दिए जाने वाले 50 लाख- 1 करोड़ तक के ट्रांसफार्मर्स के दो कन्साइन्मेंट्स भी पानी की वजह से ख़राब हो गए। जिसके चलते MP विद्युत मंडल ने उनकी इंडस्ट्री को सीधे-सीधे 3 सालों के लिए डीबार यानी बैन कर दिया। साथ ही 40 लाख रुपए की पेनल्टी भी लगा दी। बारिश से 1 करोड़ का नुकसान और सरकारी विभाग द्वारा 40 लाख की पेनल्टी के साथ काम पर 3 सालों की रोक - ये काफी था एक ऐसी चालु इंडस्ट्री को बंद करने के लिए जो महिला उद्यमिता की मिसाल थी और सैकड़ों लोगों के रोजगार का जरिया भी। दूसरे राज्य में जिस लघु उद्यमी संध्या की सफलता को IIM सिलैबस तक में शामिल किया गया...खुद MP सरकार को उससे फर्क ही नहीं पड़ता। तभी तो सिस्टम के भ्रस्ट 'स्ट्रक्चर' और लघु उद्योगों के प्रति सरकार का गैरजिम्मेदाराना रवैये के चलते एक सफल इंडस्ट्री ठप्प हो गई।

  • संध्या अपनी इंडस्ट्री को चालु रखने के उद्देश्य से मध्य प्रदेश MSME मिनिस्ट्री, MP विद्युत् विभाग, केंद्रीय MSME मिनिस्ट्री और राज्य के फाइनेंसियल सेक्रेट्री तक के पास गई। पर कोई मदद नहीं मिली। अब हालत यह है कि उनकी इंडस्ट्री पूरी तरह से बंद पड़ी है और 2024 से पहले शुरू नहीं हो सकती। खर्चे निकालने के लिए इंडस्ट्री की कई मशीनें बिक चुकी हैं। इंश्योरेंस कंपनी ने भी उन्हें किसी तरह का क्लेम देने से मना कर दिया।

  • संध्या आइसोलेटर्स एंड आइसोलेटर्स इंडस्ट्री के बंद होने का जिम्मेदार सिस्टम, उसके अधिकारी और उनके काम करने के तरीको में खामियों को बताती है। उनका कहना है कि बीमार लघु उद्योगों को सहारा देने के लिए सरकार की कथनी और करनी में बड़ा अंतर है। सरकार न तो उद्योगों की समस्याएं सुनती है और न ही नीतियां उनकी सुविधा के हिसाब से तैयार करती है। मंत्री और अफसर प्रदेश में उद्यमिता, महिला उद्यमिता और MSMEs को बढ़ावा देने के लिए पॉलिसीस और स्कीम्स तो शानदार बनाते हैं, पर इनके कार्यान्वयन के वक़्त सिस्टम में व्याप्त कमियाँ और भ्रष्टाचार कई छोटे उद्योगों को ऊपर उठने से रोक रहे हैं। नतीजतन प्रदेश के उद्योग बीमार होते जा रहे हैं। बंद होते जा रहे हैं।

  • यहाँ पर गौर करने लायक एक बात यह भी है की संध्या मिश्रा के केस में  फैक्ट्री में पानी भरने की एक वजह यह भी है की फैक्ट्री निचली सतह पर है और रोड ऊंचे पर। यह नगरीय प्रशासन और नगर निगम के कार्यशैली पर सवाल है। वह भी तब जब औद्योगिक क्षेत्रों में स्थापित उद्योगों से नगर निगम संपत्ति कर लेती है। जबकि वास्तव में लीज़ रेंट के मुताबिक़ यह कर निगम को लीज़ प्रदाता से लेना चाहिए। और कर लेने के बावजूद नगर निगम द्वारा क्षेत्र में कुछ ख़ास विकास कार्य नहीं किया गया।



  • संध्या मिश्रा की आइसोलेटर्स एंड आइसोलेटर्स इंडस्ट्री का बंद होना तो सिर्फ एक केस है जो हम आपको दिखा रहे है...ऐसे कई मामले प्रदेश में हैं। द सूत्र ने प्रदेश में MSMEs की इस खराब हालत के कारण जाने के लिए प्रदेश के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम के प्रतिनिधि संघठन 'मध्य प्रदेश स्मॉल स्केल इंडस्ट्रीज आर्गेनाईजेशन' के प्रेजिडेंट विपिन कुमार जैन से मिलकर बात की। उन्होंने जो दिक्कतें बताई उनके रहते तो कोई प्रदेश औद्योगिक क्षेत्र में कभी भी आगे नहीं बढ़ सकता...




    • MSMEs की गिरावट के वजह सरकारी नीतियां और उनका गलत क्रियान्वयन: पहले नोटबंदी, फिर GST, और फिर COVID-19। इन नीतियों ने 4-5 सालों में बहुत से ऐसे छोटे उद्योग इंडस्ट्री जो फायदे में चल रहे थे वो नुकसान में आ गए। बड़े उद्योगों को तो राजनैतिक, आर्थिक, बैंक - हर तरह का संरक्षण और सहयोग प्राप्त है। पर उस वक़्त लघु उद्योगों को सरकारी विभागों से जो फाइनैंशल सपोर्ट चाहिए था वो सिर्फ कागज़ों पर ही मिला क्यूंकि ज़मीन पर क्रियान्वन के वक़्त अधिकारियों के मनमानी ने सब बर्बाद कर दिया - खासकर मैन्युफैक्चरिंग उद्योगों के लिए। नतीजतन MSMEs बीमार हो गया। MSMEs प्रदेश की जीडीपी में सबसे ज्यादा सहयोग करता है पर प्रदेश के कुल फाइनेंस का इसको सिर्फ 17-18% ही मिलता है।


  • सरकार की तरफ से नहीं मिलता फाइनेंनशियल सपोर्ट, 3 सालों से उद्योगों की फाइलें धूल खा रहीं: वर्ष 2020 में सरकार ने Covid-19 सहायत पैकेज के तहत देशभर के MSMEs के लिए 3 लाख करोड़ रुपए के कोलैटेरल-फ्री आटोमेटिक लोन्स और 20,000 करोड़ के लोन्स की घोषणा की थी। यह लोन उन सूक्ष्म,लघु और मध्यम उद्योगों के लिए था जो लॉकडाउन के बाद  आपने काम वापस शुरू करने के लिए और अपने कर्मचारियों को वेतन देने के लिए संघर्ष कर रहीं थी। विपिन जैन का कहना है कि ज़मीन पर इन लोन्स की असलियत कुछ और ही है। लोन्स की घोषणा होने के 2 साल के अंदर 3 लाख करोड़ रुपए का सिर्फ 22 प्रतिशत यानी 60-65 हज़ार करोड़ रूपये ही MSMEs को प्राप्त हो पाया। जो खींचतान कर 40% तक ही  आगे पंहुचा। यानी 60% फण्ड अभी भी ऐसे ही पड़ा हुआ है। इस लोन से जुड़ी एक और मुश्किल ये भी रही कि ये लोन जीरो इंटरेस्ट पर नहीं था...जैसा कि आम राहत पैकेजेस में होता है। यानी  इससे एक तय समय बाद छोटे उद्यमों पर वित्तीय बोझ ज्यादा बढ़ेगा और वे अधिक कर्ज और देनदारी के जाल में फंस जाएंगे। इसी तरह 20,000 करोड़ के राशि भी MSMEs के फायदे की नहीं थी। क्योंकि ये पैसा था तो बीमार या स्ट्रेस्ड MSMEs के लिए, पर बहुत ज्यादा चान्सेस थे की ये फण्ड फाइनैंशल इंस्टीटूशन्स अपने NPA अकाउंट सेटल करने के लिए उसे कर लेते।

  • डिलेड पेमेंट एक्ट से राहत कम, बोझ ज्यादा: इसी दौरान सरकार ने डिलेड पेमेंट एक्ट भी बनाया था। इसके पीछे की मंशा तो काफी अच्छी थी पर इससे जुड़े केसेस की फाइलें सरकारी विभागों में सालों से धूल खा रहीं हैं।3-3 सालों से इनका निराकरण नहीं हो पाया है। अब ऐसी पालिसी बनाने का क्या फायदा जिसकी प्रोसेस इतनी लम्बी हो और जिसके क्रियान्वयन के वक़्त काम सालों तक अटका रहे और? छोटे उद्योग कैसे ये सहेंगे?

  • MSMEs के लिए इस ऑफ़ डूइंग बिज़नेस जीरो,लेनी पड़ती हैं 24 सरकारी महकमों से मंज़ूरी: विपिन जैन की बड़ी शिकायत यह है कि मध्य प्रदेश में MSMEs के लिए इस ऑफ़ डूइंग बिज़नेस बिलकुल भी नहीं है। उल्टा एक लघु उद्योग व्यापारी को परेशान किया जाता है। सरकारी विभागों में मानवीयता ख़त्म है। ज़रा-ज़रा से कारणों को लेकर छोटे उद्योगों को ब्लैकलिस्ट कर दिया जाता है। एक लघु उद्यमी के ऊपर कम से कम 24 सरकारी विभाग नियंत्रण रखते हैं। जिनकी कागज़ी कार्यवाही पूरी करने में और काम का क्लीयरेंस लेने में उसका वक़्त बर्बाद होता रहता हैं। आमतौर पर छोटे उद्योगों में स्टाफ कम होता है। और कागज़ों का ज्यादातर काम उद्योग चलाने वाला ही करता है। ऐसे में वह अपने उद्योग को आगे बढ़ाने पर ध्यान दे या विभागों के चक्कर काटे? ये बड़ा सवाल है।सरकार ऐसी कोई ट्रेनिंग नहीं देती जो इन उद्योगों को ये बताए कि कैसे अपना पेपरवर्क  सही तरीके से करें। विपिन जैन का कहना है कि अगर सरकार उद्योगों को 24 विभागों के चक्कर काटने से भी राहत दे दे तो छोटे उद्योगों की कई मुश्किलें आसान हो जाएं।

  • हर विभाग में देना होता है 'सुविधा शुल्क': जब उनसे सिस्टम के भ्रष्टाचार के बारे में बात की तो उन्होंने इस बारे में सरकारी महकमे पर यह तंज कसते हुए कि आजकल भष्टाचार को भ्रष्टाचार नहीं सुविधा-शुल्क बोला जाता है जो उद्यमियों को देना ही पड़ता है।



  • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों पर 76 हज़ार करोड़ रुपया उधार



    सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम की हालत कितनी ज्यादा खराब है यह इस बात से साबित होता है कि मार्च 2022 को MP की बैंको का राज्य की MSMEs पर करीब 76 हज़ार करोड़ रुपया बकाया था। यह वह पैसा है जो बैंकों ने इन उद्योगों को तय समय पर चुकाने की शर्त पर लोन स्वरुप दिया था पर वह वक़्त पर नहीं चुकाया गया। मार्च 2021 की तुलना में बकाया क़र्ज़ 15.3% ज्यादा है। मार्च 2021 में यही बकाया क़र्ज़ 65 हज़ार करोड़ के आसपास था।




    • मार्च 2019: 55,745 करोड़


  • मार्च 2020: 60,228 करोड़ (8% की बढ़ोत्तरी)

  • मार्च 2021: 65,696 करोड़ (9.1% की बढ़ोत्तरी)

  • मार्च 2022: 75,769 करोड़ (15.3% की बढ़ोत्तरी)



  • डूबत क़र्ज़ दोगुना होकर 7 हज़ार करोड़ हुआ



    आउटस्टैंडिंग लोन के साथ ही MSME सेक्टर का NPA यानी कि डूबत क़र्ज़ भी हर साल बढ़ता ही जा रहा है। मार्च 2019 में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम के द्वारा न चुकाया गया लोन (NPA) 5 हज़ार रुपए के करीब था जो मार्च 2020 में बढ़कर 5 हज़ार 9 सौ रुपए के करीब हो गया...मार्च 2021 में यही NPA 6 हज़ार 2 सौ रुपए हो गया। वहीँ मार्च 2022 में यह  भारीभरकम 7 हज़ार करोड़ रुपए  के करीब है।



    मार्च 2019: 5041 करोड़  

    मार्च 2020: 5892 करोड़ (16.89% की बढ़ोत्तरी)

    मार्च 2021: 6191 करोड़ (5.07% की बढ़ोत्तरी)

    मार्च 2022: 6818 करोड़ (10.13% की बढ़ोत्तरी)



    डूबते MSMEs ने बैंकों पर वित्तीय भार बढ़ाया, कमर्शियल बैंकों को ज्यादा नुकसान

    MSME के बकाया क़र्ज़ का नुक्सान सबसे ज्यादा कमर्शियल बैंक्स को उठाना पड़ रहा है जिनका करीब 66 हज़ार 3 सौ करोड़ रुपया का क़र्ज़ MSME पर बकाया है। वहीँ पब्लिक सेक्टर बैंक्स का MSME पर करीब 38 हज़ार 4 सौ करोड़ रुपया उधार है। साथ ही प्राइवेट सेक्टर बैंक्स का MSME पर करीब 28 हज़ार करोड़ रुपए क़र्ज़ बकाया है। वहीँ RRB बैंक्स का दो हज़ार दो सौ करोड़ उधार है, सहकारिता बैंक का 1 हज़ार 8 सौ करोड़ बकाया है और स्माल फाइनेंस बैंक्स का करीब 5 हज़ार 5 सौ करोड़ रुपया MSME पर उधार है।



    आम आदमी के लिए रोजगार के 1 लाख अवसर घटे

    साफ़ है कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के माली हालात बिलकुल भी ठीक नहीं हैं। बेहद बीमारू स्थिति में हैं। शायद यही कारण है कि जहाँ साल 2020-21 में पौने दो लाख के करीब MSMEs राज्य के करीब 15 लाख लोगों को रोजगार देते थे वहीं साल 2021-22 में MSMEs की संख्या तो बढ़कर ढाई लाख हुई पर पर इनमे मिलने वाले रोजगारों की संख्या घटकर 14 लाख हो गई।




    • साल 2020-21: 1 लाख 86 हज़ार 876 MSMEs रजिस्टर्ड: 1499642 लोगों को रोजगार


  • साल 2021-22: 2 लाख 46 हज़ार 513 MSMEs रजिस्टर्ड: 1407858 लोगों को रोजगार



  • MSMEs के डूबत क़र्ज़ को चिंता की वजह: पी नरहरि



    सूक्ष्म, लघु और माध्यम उद्यमों पर डूबत क़र्ज़ के दोगुना होने की क्या वजह है इस बारे में द सूत्र ने मध्य प्रदेश MSME विभाग सेक्रेटरी व इंडस्ट्रीज कमिश्नर पी नरहरि से बात की। इस बारे में उनका कहना है  यह MSMEs का बढ़ता NPA एक चिंता का विषय है जिसके बारे में कुछ करने की जरुरत है। उन्होंने सूक्ष्म, लघु और माध्यम उद्यमों पर बढ़ते डूबत क़र्ज़ के कारण बताए:




    • कच्चे माल, लेबर, लोजिस्टिक्स की बढ़ती कीमत


  • सप्लाई-डिमांड साइकिल में बैलेंस नहीं बन पाना

  • और इसकी वजह से क्रेडिट-प्रॉफिट साइकिल न मैटेन हो पाना



  • उन्होंने बताया कि इसके लिए विभाग MSMEs से बात कर रहा है और उनकी समस्याओं को सुलझाने की कोशिश भी कर रहा है। यह काम विभाग इंडस्ट्री एसोसिएशन की मदद से करता है। पी नरहरि का कहना है कि छोटे उद्योगों के पास फाइनेंसियल एक्सपर्ट्स नहीं होते हैं। जिसकी वजह से कई बार उद्योग उनके पास मौजूद फण्ड को सही तरीके से मैनेज नहीं कर पातें है और उन्हें व्यापार में नुकसान उठाना पड़ जाता है। इसी नुकसान के कारण छोटे उद्योग क़र्ज़ नहीं चुका पाते है। वो बताते है और इसी लिए विभाग इंडस्ट्री एसोसिएशन के मदद से छोटे उद्योगों के लिए फाइनेंसियल मैंनेजमेंट की वर्कशॉप लगाते हैं। हालांकि विपिन जैन ने ऐसे किसी वर्कशॉप के होने की बात को खुद साफ़-साफ़ नकार दिया था और सवाल किया की कब ऐसा हुआ।



    यानि कि सरकारी अधिकारी ये तो मानते हैं कि MSMEs के डूबत क़र्ज़  चिंता की वजह हैं। पर जब ये पूछा जाए की जमीन पर इस बारे में काम क्या हो रहा है तो सबकुछ इंडस्ट्री एसोसिएशन के भरोसे है। बात साफ़ है कि  जब तक सूक्ष्म उद्योगों को ऊपर उठाने के लिए और उनकी समस्याओं को खत्म करने के लिए कोशिश नहीं होगी, तब तक उद्योग ऊपर नहीं उठ सकते हैं। और इसके लिए सिर्फ तरह-तरह की योजनाएं बनाने व एलान करने से काम नहीं चलेगा बल्कि छोटे उद्योगों के लिए एक मजबूत आधारभूत ढांचा जुटाना जरुरी है।


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