MP: खुराक लेने के बाद भी पोलियो हुआ, 27 साल बाद 48 लाख मुआवजे का आदेश

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MP: खुराक लेने के बाद भी पोलियो हुआ, 27 साल बाद 48 लाख मुआवजे का आदेश

राजगढ़. मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के राजगढ़ (Rajgarh) जिला निवासी को कोर्ट (court) ने 27 साल बाद न्याय दिया। मामला पोलियो दवा से जुड़ा हुआ है। याचक ने पोलियो (polio) दवा ली थी, इसके बावजूद उसके पैर खराब हो गए थे। कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए 48 लाख रुपए हर्जाना (damages) देने का आदेश (order) दिया है। दिव्यांग (handicapped) ओढ़पुर (Odhpur) गांव का निवासी है। गांव में पोलियो का कैंप लगा था। पीड़ित के माता-पिता काम करने चले गए थे। इसलिए दादा-दादी ने उसे दवा पिलवा दी। दवाई पिलाने के बाद दूसरे दिन से इसका चलना बंद हो गया।

क्या है पूरा मामला

मध्य प्रदेश राजगढ़ जिले के ओढ़पुर गांव के रहने वाले देवीलाल (Devi Lal) नाम के व्यक्ति को साल 1995 में पोलियो की दवा स्वास्थ्य विभाग द्वारा पिलाई गई थी। इस पल्स पोलियो दवा पीने के बाद भी देवीलाल को पोलियो हो गया और वह दिव्यांग हो गए। इसके बाद पीड़ित देवीलाल ने हर्जाने के लिए साल 1996 में कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

देवीलाल तब 3 साल के थे, जब उनको पल्स पोलियो की वैक्सीन लगाई गई थी। जो वैक्सीन लगाने के बाद नाकाम हो गई थी। जिला न्यायालय ने उस समय 25,000 रुपये के हर्जाने के आदेश शासन को दिए थे, लेकिन जिला न्यायालय के फैसले के विरुद्ध शासन उच्च न्यायालय चला गया था। यहां 17 साल सुनवाई चली।

साल 2017 में हाईकोर्ट ने 10 लाख रुपए क्षतिपूर्ति राशि 1996 से ब्याज सहित देने का आदेश शासन को दिया था। इस आदेश के खिलाफ भी शासन ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों निचली अदालतों के फैसले को सही मानते हुए शासन की अर्जी निरस्त कर दी। उसके बाद से अब तक देवीलाल की फाइल जस-की-तस पड़ी हुई थी और उन्हें किसी तरह का भुगतान नहीं हुआ।

पहले जिला कोर्ट, फिर हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई

दिव्यांग देवीलाल बताते हैं कि जिला कोर्ट की ओर से 25 हजार रुपए मुआवजा देने के आदेश को शासन ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी जहां से भी साल 2017 में उनके पक्ष में फैसला आया। हाईकोर्ट ने ब्याज सहित मुआवजा देने के आदेश शासन को दिए।लेकिन इसके बाद शासन ने जिला कोर्ट और हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों निचली अदालतों के फैसले को सही मानते हुए शासन की अर्जी निरस्त कर दी लेकिन उसके बाद से अभी तक देवीलाल को दिए जाने वाले मुआवजे की फाइल सरकारी दफ्तरों में दबी रही।

हाईकोर्ट के आदेश के बाद शासन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसे कोर्ट ने 2018 में निरस्त कर दिया था। फिर हाईकोर्ट के फैसले के आधार पर मामला राजगढ़ कोर्ट पहुंचा था। राजगढ़ कोर्ट में 3 साल चली कानूनी लड़ाई के बाद दिव्यांग को ब्याज सहित पूरी राशि का भुगतान हो गया है। लेकिन देवीलाल को 27 साल का इंतजार करना पड़ा।

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