भोपाल. शिवपुरी में बाढ़ के कारण आई तबाही के मंजर अब भी देखने को मिल रहे हैं। द सूत्र की पड़ताल में यह सामने आया कि शिवपुरी में आई बाढ़ प्राकृतिक आपदा नहीं थी, बल्कि यह लापरवाही और मॉनीटरिंग सिस्टम फेल होने से आई। मणिखेड़ा डैम का जलस्तर 28 जुलाई से ही बढ़ने लगा था, इसके बावजूद डैम के गेट नहीं खोले गए। 2 अगस्त की सुबह 8 बजे डैम का जलस्तर 336 मीटर तक चला गया, फिर भी किसी ने सुध नहीं ली।
डैम भर रहा था, जिम्मेदार बेसुध थे
हमारी जांच बताती है कि डैम के कैचमेंट एरिया में लगातार बारिश हो रही थी और इधर जिम्मेदार सो रहे थे। नतीजा 2 अगस्त की रात 9 बजे ही डैम का जलस्तर अपनी पूरी क्षमता से महज 0.25 मीटर ही खाली था। जब तक अधिकारी जागे, तब तक डैम का फुल हो गया। हड़बड़ी में दसों गेट 9 मीटर तक खोल दिए गए। 3 और 4 अगस्त को 10 हजार 800 क्यूसेक पानी छोड़ा गया, जिसने शिवपुरी में तबाही ला दी। 2008 मे मणिखेड़ा का उद्धघाटन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के ने ही किया था। अब से पहले कभी भी डैम को 345मी के लेवल तक नहीं भरा गया था। कुछ इसी तरह की लापरवाही आहूदा बांध, बजरा बांध और पिछोर तहसील के अन्य एक बांध में भी देखने को मिली।
समय पर नहीं बजा सायरन
नियमानुसार डैम के गेट खोलने से 2 घंटे पहले सायरन बजाना अनिवार्य है, पर स्थानीय लोगों की मानें तो कोई सायरन भी नहीं बजाया गया। इससे समय रहते लोगों को सूचना नहीं मिली और निचले क्षेत्र मगरोनी मे रह रहे लोगों का गांव टापू बन गया। लोग चारों तरफ से आए पानी मे फंस गए।
मोहनी डैम के खोलने पड़े गेट
नरवर के किले के पीछे स्थित मोहनी डैम के पूरे 23 गेट खोले गए। इससे 12 हजार 168 क्यूसेक पानी डिस्चार्ज किया गया। मणिखेड़ा की तुलना मे मोहनी बांध से 1368 क्यूसेक ज्यादा पानी छोड़ा गया।
1971 के बाढ़ ऐसे हालात पहली बार निर्मित हुए थे। दतिया, शिवपुरी, ग्वालियर, भिंड मोहनी बांध के कैचमेंट एरिया मे आता है। यही कारण था कि एक के बाद एक पुल बहते चले गए। नरवर-मगरोनी का एक पुल दतिया-इंदरगढ़ का एक पुल, रतनगढ़ माता का पुल, सेंवढ़ा नदी का पुल, लांच का पुल दतिया के कुल तीन पुल बहे, मोहनी से 4 पुल बहे।
तीन लापरवाही, जिसने मचाई तबाही....
पहली लापरवाही. मानसून की शुरूआत में ही डैम भरना कितना सही
डैम में पानी मॉनसून आधा बीत जाने के बाद भरता है, क्योंकि कैचमेंट एरिया में हो रही बारिश से पानी डैम में आता है। मणिखेड़ा डैम में मॉनसून से पहले ही डैम 326.85 मीटर तक भर गया और इस पानी को कभी खाली किया ही नहीं गया। नतीजा...जब कैचमेंट एरिया में बारिश हुई, उसने डैम को खतरे के लेवल तक ला दिया। यदि डैम को धीरे-धीरे खाली किया जाता तो यह स्थिति नहीं बनती।
दूसरी लापरवाही. मॉनीटरिंग सिस्टम पूरी तरह से फेल
मणिखेड़ा डेम का जलस्तर 30 जुलाई को 330.1 मीटर, 31 जुलाई को 331.7 मीटर, 1 अगस्त को 334.35 मीटर और 2 अगस्त की सुबह 8 बजे तक 336 मीटर था। मतलब डैम का जलस्तर लगातार बढ़ रहा था। मौसम विभाग का रेड अलर्ट था। कैचमेंट एरिया में लगातार बारिश हो रही थी, इसके बाद भी गेट नहीं खोले गए। नतीजा देर रात तक डेम अपनी पूरी क्षमता तक भरा गया और दसों गेटों को एक साथ खोल दिया गया।
तीसरी लापरवाही : नहीं किया मेंटनेंस, गेट अटका
2 अगस्त की शाम को डैम से पानी डिस्चार्ज करने के लिए गेट खोलने की कोशिश की गई, मगर तकनीकी खामी से गेट नहीं खुल सका। एक विश्वसनीय सूत्र के मुताबिक मणिखेड़ा एसडीओ शाम 5.30 बजे नरवर एक मिस्त्री को लेने के लिए गए, जो मणिखेड़ा डेम पर ही पोस्टेड था। एसडीओ मिस्त्री को लेकर करीब रात 10 बजे लौटे, तब तक डेम का लेवल 346.15 को क्रॉस कर गया था। इसके बाद गेट को सुधारकर उसे खोला गया। जबकि नियमानुसार मॉनसून से पहले सभी गेटों को ऑपरेट कर टेस्टिंग करना अनिवार्य है।
फंड आया और निकला भी, पर गया कहां
जरूरत पड़ने पर गेट में तकनीकी खराबी ना हो और कोई दुर्घटना ना हो, इसके लिए सरकार मेंटेनेंस फंड देती है। इसमें रबर पैकिंग, ग्रीसिंग, ऑयलिंग, रस्से बदलने के काम किए जाते हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, मेंटेनेंस का फंड आया भी और निकाला भी गया, लेकिन जब मेंटेनेंस हुआ ही नहीं तो वो पैसा आखिर गया कहां?
एक्सपर्ट व्यू : तिलकराज कपूर, रिटायर्ड सचिव, जल संसाधन विभाग
मणिखेड़ा डेम के गेट ऑपरेशन मैनुअल के हिसाब से नहीं खोले गए हैं, तो यह गंभीर लापरवाही है। ऑपरेशन मैनुअल होते ही इसलिए हैं। रही बात गेट के बंद होने की तो मॉनसून से पहले इसकी प्रॉपर टेस्टिंग होती है। यह अनिवार्य है, ताकि जरूरत पड़ने पर कोई दिक्कत न हो। डैम से पानी डिस्चार्ज करना या नहीं करना, ये निर्णय किसी इंजीनियर के लिए साइकोलॉजिकली काफी चुनौतीपूर्ण होता है। यदि उन्होंने पानी डिस्चार्ज कर दिया और बारिश न होने से डेम नहीं भरा पाया तो इसका असर सिंचाई पर पड़ेगा।
जिम्मेदारों के गैर जिम्मेदाराना बयान
डैम सेफ्टी डायरेक्टर अनिल सिंह ने कहा कि हर डैम के रूलिंग क्लॉज होते हैं। जून से लेकर सितंबर तक किस स्टेज में कितना परसेंट रहेगा, उस हिसाब से डैम को भरते हैं। मणिखेड़ा डैम का रिकॉर्ड मेरे पास नहीं है। आप सीई से बात कीजिए। वहीं, दतिया के चीफ इंजीनियर सीएल गर्ग ने कहा कि जो बड़े डैम होते हैं, जिनमें गेट होते हैं, उनकी अपनी एक पॉलिसी होती है और उसके अनुसार डैम को भरा जाता है। 2 तारीख से पहले आप जिस लेवल की बात कर रहे हैं, वह लेवल काफी कम था, पानी तो उसमें और भरना था। इसलिए उसे पहले खाली नहीं कर सकते थे।