हरीश दिवेकर। ठंड में बारिश भिगा रही है। बारिश भले ही बेमौसम हो जाती हो, लेकिन राजनीति में कुछ भी बेवजह नहीं होता। पंजाब में प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक को ही ले लीजिए। एक तरफ विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और पंजाब सरकार हिली हुई है। देशभर के बीजेपी नेता पार्टी के मौजूदा पितृपुरुष की सलामती के लिए दुआ मांग रहे हैं और कांग्रेस को लानतें-मलामतें भेज रहे हैं। इधर, मध्य प्रदेश में भी कई खबरें पकी। एक छापे ने दो दोस्तों में गिले-शिकवे पैदा कर दिए। ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी पकड़ मजबूत बनाने में जुटे हैं। अंदरखाने की ऐसी कई खबरें हैं, आप तो जुगाली करते हुए अंदर उतर आइए।
दोस्त दोस्त न रहा...: प्रदेश के बड़े उद्योगपति इन दिनों संगम फिल्म का एक गाना दोस्त दोस्त ना रहा गुनगुनाते नजर आ रहे हैं। इन साहब पर केंद्रीय जांच एजेंसी की वक्रदृष्टि क्या पड़ी, सबसे पहले उनके बालसखा माने जाने वाले मामू जान ने ही उनसे पल्ला झाड़ लिया। उद्योगपति का मानना है कि मामू चाहते तो शायद उनकी छीछालेदर होने से बच जाती। उद्योगपति ने मामू का दरवाजा बंद होते देख प्रदेश के कद्दावर मंत्री का हाथ थामा। मामू और मंत्री के बीच राजनीतिक अनबन जगजाहिर है। मंत्री ने मौका देख चौका मारा और दुखी उद्योगपति के हितैषी बन गए। एक विशेष विमान से उनकी पैरवी करने दिल्ली तक भी गए। काम बना या नहीं बना, ये तो अंदर की बात है, लेकिन उद्योगपति के ऊपर मंत्री जी का अहसान जरूर चढ़ गया।
पोस्टिंग से पहले महाराज की एनओसी जरूरी: महाराज तो महाराज हैं। उन्होंने सरकार को बता दिया है कि ग्वालियर-चंबल में कलेक्टर-एसपी, आईजी-कमिश्नर की पोस्टिंग से पहले उनसे अनापत्ति प्रमाणपत्र यानी NOC लेना जरूरी है। यानी जब तक अफसर के नाम पर ‘महल’ की सील नहीं लगेगी, तब तक वो ग्वालियर-चंबल में पदस्थ नहीं हो सकता। सरकार और महल के वर्चस्व की लड़ाई में गृह विभाग के सचिव रहे सीनियर आईपीएस श्रीनिवास वर्मा त्रिशंकु बन गए। वर्मा को ग्वालियर आईजी बनाया गया है, आदेश जारी होने के बाद महल से फरमान आ गया कि वर्मा महाराज की NOC के बगैर जॉइन नहीं कर सकते। उधर, गृह विभाग में भी सचिव पद पर गौरव राजपूत की जॉइनिंग के बाद वर्मा अधर में लटक गए हैं। वे ना तो गृह विभाग में वापस लौट सकते और ना ही बिना NOC के ग्वालियर में जॉइनिंग ले सकते हैं। मजबूरन वर्मा छुट्टी पर चले गए है। हालांकि, सरकार ने अब तक आदेश वापस नहीं लिया। अंदरखाने की मानें तो महाराज को मनाने की कोशिशें जारी हैं। सरकार को डर है कि यदि महाराज की जिद के चलते आदेश बदलता है तो किरकिरी होना तय है।
ये प्यार है या कुछ और: दिख तो यही रहा है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया और कैलाश विजयवर्गीय में राजनीतिक प्रेम उपज गया है। लेकिन जो दिख रहा है, वो अंतिम सत्य हो, ये जरूरी नहीं। कम से कम संगठन में चल रहे लेन-देन को लेकर तो यही दिख रहा है। कहानी कुल जमा यह है कि इंदौर में हाल में बीजेपी की जिला इकाई की घोषणा हुई। सिंधिया ने व्हाया तुलसी सिलावट ना केवल अपने आधा दर्जन बंदों का संगठन में बंदोबस्त कर दिया, बल्कि बीजेपी के तमाम मापदंडों को लांघकर पदाधिकारियों की संख्या भी बढ़वा ली। लेकिन...लेकिन महामंत्री पद पर तो विजयवर्गीय का वीटो चला। उनके अनन्य भक्त चिंटू वर्मा ये कुर्सी ले उड़े। अब यही कहानी शहर में दोहराई जाने वाली है। यहां अध्यक्ष गौरव रणदिवे आधा कार्यकाल पूरा करने के बाद भी सिर्फ इसलिए अपनी टीम घोषित नहीं कर पा रहे, क्योंकि सिंधिया एंड कंपनी से एक ऐसे पुराने कांग्रेसी का नाम उसमें आगे बढ़ाया जा रहा है, जिन्हें विजयवर्गीय एंड कंपनी इस जन्म में तो कभी कुबूल नहीं करेंगे। इसके लिए वे खुद तो आगे नहीं आए, लेकिन अपने हनुमान रमेश मेंदोला को हर उस जगह पहुंचा दिया, जहां से उक्त कांग्रेसी उर्फ भाजपाई के पैरों में जंजीर डाली जा सके। अभी तक तो मेंदोला के पत्ते सही बैठे हैं। वैसे बता दें कि उक्त कांग्रेसी जब कांग्रेस में थे, तब कांग्रेसी तक उनसे परहेज करते थे, फिर ये तो भाजपा है और उसमें भी विरोध विजयवर्गीय का है...। देखते हैं क्या होता है।
उन्होंने कहा-उनसे सीखो: कांग्रेस अगर बीजेपी की तारीफ करे तो कान तो देना पड़ेगा ना। फिर तारीफ अगर ऐसे नेता के श्रीमुख से निकले, जिनके 24 घंटे में से साढ़े तेइस घंटे सिर्फ बीजेपी को कोसने में जाते हैं तो कान क्या आंख भी लगाना पड़ेगी घटना पर। इंदौर में हाल में कांग्रेस ने बीजेपी की तर्ज पर प्रशिक्षण शिविर जैसा कुछ आयोजित किया। उम्मीद से ज्यादा ठीक रहा। कमाल का अनुशासन भी देखने को मिला। विधायक, बड़े नेता, पुराने मंत्री सब पधारे। यहीं पर एक बड़े नेता ने जब अपने संबोधन में ये कह दिया कि हमें अनुशासन बीजेपी से सीखना चाहिए। देखो, उन्होंने देवास के व्यक्ति को इंदौर विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष बना दिया और किसी की आवाज तक नहीं निकली। पता नहीं चला कि उन्होंने बीजेपी नेताओं की तारीफ की या उनकी हस्ती पर सवाल खड़े किए। वैसे भी ये नेताजी पढ़ने में खूब भरोसा रखते हैं और जब बोलते हैं तो समझने में वक्त लगता है कि तीखा बोला है या मीठा। नेताजी के उक्त भाषण की भाजपा और कांग्रेस दोनों समझा-समझी कर रहे हैं। इशारों में बता दें, नेताजी पूर्व मंत्री भी रहे हैं।
पंचायत की पंचायत से सरकार परेशान: पंचायत विभाग की आए दिन पंचायत से सरकार परेशान हैं। अफसरों की नादानी कहो या लापरवारही से सरकार की किरकिरी हो रही है। पंचायत के एक अध्यादेश से प्रदेश की राजनीति में ओबीसी आरक्षण का भूचाल थमा नहीं था कि अफसरों ने जिला पंचायत, जनपद पंचायत और सरपंच स्तर पर प्रशासकीय प्रधान समिति को वित्तीय अधिकार दे दिए। आदेश जारी होने के एक घंटे में प्रदेशभर में स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने विरोध के स्वर उठाए तो आनन-फानन में सरकार को आदेश निरस्त करना पड़े। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि पंचायत की हर छोटी-बड़ी चीजों में दखल देने वाले पंचायत मंत्री को ना तो अध्यादेश आने की जानकारी थी, ना ही वित्तीय अधिकार देने के आदेश की। रायता बगरने पर समेटने के लिए मंत्री को बुलाया जाता है।
पीएस को फेस पसंद है: प्रदेश के एक छोटे से विभाग के प्रमुख सचिव को लेकर मैदानी अमला इन दिनों गॉसिप कर रहा है। इन साहब के बारे में कहा जाता है कि साहब को फेस पसंद है। दरअसल, जब भी विभाग की वर्चुअल बैठक होती है तो साहब मैदान में पदस्थ महिला अधिकारियों को कैमरा ऑन करके बात करने को कहते हैं, जबकि पुरुष अधिकारी इस वर्चुअल बैठक में कैमरा ऑफ कर मीटिंग में शामिल होते हैं। हम आपकी सुविधा के लिए बता दें ये प्रमुख सचिव की इमेज शुरू से सत्ता के शीर्ष में अच्छी नहीं रही है। यही वजह है कि वे सालों से लूपलाइन में चले आ रहे हैं।
जवानों की थाली में रोटी बढ़ाने पर खजांची को आपत्ति: प्रदेश के पुलिस मुखिया इन दिनों जवानों के पोषण को लेकर बेहद चिंतित हैं। सूबे के मुखिया शिवराज सिंह चौहान भले ही बैठकों में कहते हों कि जवानों को हेल्दी और फिट रखने पर विभाग ध्यान दें। लेकिन, फाइनेंस विभाग को जवानों की थाली में रोटी बढ़ाने पर आपत्ति है। पुलिस मुख्यालय की पोषण आहार भत्ता बढ़ाने की फाइल दो बार कमियां निकालकर लौटा दी गई है। पुलिस मुखिया इस बात से परेशान हैं कि आखिर खजांची को कैसे समझाया जाए कि जवान फिट रहेंगे तभी तो अपराधियों के साथ दो-दो हाथ कर पाएंगे। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि वर्तमान में पुलिस जवानों को डाइट के नाम पर मात्र 650 रुपए हर महीने दिए जाते हैं। जबकि केंद्रीय बल के जवानों को 4 गुना ज्यादा यानी 2400 रुपए हर महीने पोषण आहार भत्ते के मिलते हैं।