हरीश दिवेकर। मध्य प्रदेश के सत्ता के गलियारों में इस वक्त आदिवासी मुद्दे की गूंज है। बीते हफ्ते जनजातीय गौरव सप्ताह का समापन हुआ है। 2023 विधानसभा चुनाव की कवायद भी शुरू हो चुकी है। जो हवा चल रही है कि उससे साफ है कि इस वक्त तो बीजेपी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) और गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) के नाम से पत्ता खड़कता है। देखना ये रहता है कि मोदी प्रशंसा में कौन कितना आगे जा पाता है। इसमें शिवराज सिंह चौहान बाजी मारते से लगते हैं। ...तो देर किस बात की, अंदरखाने की बात जानने के लिए सीधे अंदर चले आइए...
क्या मामा को मोदी दरबार से मिल गया अभयदान?
क्या मामा यानी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को मोदी दरबार से अभय दान मिल गया है या फिर दिया बुझने से पहले भभक रहा है?...बीजेपी संगठन ने शिवराज पर नकेल कस दी या फिर शिवराज विधायकों को काबू में रखना चाहते हैं...सब जानना चाहते हैं कि आखिर सच क्या है...... राजनीति में नेताओं की बॉडी लैंग्वेज का बड़ा महत्व होता है...कॉन्फिडेंट होने पर उनके तेवर और बॉडी लैग्वेंज अलग होती है और ओवर कॉन्फिडेंट होने पर अलग...उसका पासवर्ड वही जानते हैं, जो अंदर की खबर रखते हैं...। मामा की पिछले एक पखवाड़े की बॉडी लैंग्वेज से दो बातें सामने आती हैं...एक तो है तेवर में सख्ती और दूसरा है भक्ति में शक्ति....शिवराज ने जिन शब्दों में मोदी की तारीफ की, उस ऊंचाई तक कोई दूसरा नेता अभी तक शायद नहीं गया। मतलब साफ है कि जब तक मोदीजी का वरदहस्त है, उनका कोई भी बाल बांका नहीं कर सकता...।
जलकुकड़े मत बनो
प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में सीएम शिवराज ने कहा कि जलकुकड़े मत बनो...काम करते रहो...कि काम करने से ही मेवा मिलता है। उन्होंने मिसाल के तौर पर खुद का उदाहरण देते हुए कहा कि मैंने नहीं सोचा था कि 4 बार मुख्यमंत्री बनूंगा, पर बना...। यह कहकर इशारों ही इशारों में शिवराज ने संकेत दे दिया कि वो न सिर्फ सीएम हैं बल्कि आगे भी बने रहेंगे। बैठक के बाद विधायक आपस में एक दूसरे को कहते नजर आए कि सीएम का ये इशारा उन लोंगों के लिए था, जो अंदर ही अंदर शिवराज हटाओ मुहिम में शामिल थे।
मंत्री से कारोबारी परेशान...
मालवा क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले मंत्री जी से इंदौर के छोटे कारोबारी खासे परेशान हैं। दरअसल मंत्रीजी जब भी अपने गृह नगर जाते हैं तो कुछ देर के लिए इंदौर जरूर रुकते हैं। ऐसे में मंत्री के यहां से इंदौर के कारोबारियों को फोन पहुंच जाता है कि मंत्रीजी आने वाले हैं, आप लोग पहले से पहुंच जाएं। शुरुआत मैं तो कारोबारियों ने जोशीले अंदाज में मंत्री जी का स्वागत किया। अब हर तीसरे दिन मंत्री का इंदौर दौरा और उस पर सरकारी अधिकारियों जैसा प्रोटोकॉल कारोबारियों को अखरने लगा है। कारोबारी कन्नी काटने लगे हैं। दरअसल, इन कारोबारियों का कहना है कि सौहार्द मुलाकात तक तो ठीक है, लेकिन मंत्री का व्यापार ज्ञान झेलना बड़ा भारी पड़ता है।
कमिश्नर सिस्टम ने खोली कलई
प्रदेश के बड़े साहब की कलई पुलिस कमिश्नर सिस्टम ने खोलकर रख दी। दरअसल, इसके पहले ब्यूरोक्रेसी में बड़े साहब का रुतबा बड़े जोरों का चल रहा था, कुछ अफसर सम्मान में तो कुछ अफसर खौफ में बड़े साहब का इकबाल मानते थे। लेकिन बड़े साहब के राज में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होने की घोषणा और उस पर तेजी से हो रहे अमल को लेकर ब्यूरोक्रेसी में खासा आक्रोश है। अब सभी अपने सोशल मीडिया ग्रुप में बड़ी तीखी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। असल में, पहले बड़े साहब भी इस कमिश्नरी सिस्टम का खुलकर विरोध करते रहे हैं, लेकिन अब जब वे मुखिया के पद पर हैं, तब ही ये सिस्टम लागू हो रहा है और उन्होंने इसे रोकने के लिए असमर्थता जाहिर कर दी है। अब ब्यूरोक्रेसी उन अफसरों को याद कर रही है, जिन्होंने पहले तीन बार घोषणा होने के बाद भी इस कमिश्नरी सिस्टम को लागू नहीं होने दिया।
फेंकू IAS
मंत्रालय में उच्च पद पर पदस्थ आईएएस इन दिनों अपने केबिन में दरबार लगा रहे हैं। साहब से मिलने के बाद बाहर आने वाले लोग कहते हैं कि आजकल साहब बड़ी लंबी-लंबी फेंक रहे हैं। दरअसल, साहब इन दिनों हल्के विभाग में बैठे हैं। जब लोग उनसे मिलने आते हैं तो वो संघ से अपने नजदीकी होने का दावा करते हुए कहते हैं कि मुझे दो ऑफर दिए गए हैं- या तो मुख्य सचिव बन जाऊं या फिर राजगढ़ से चुनाव लड़ लूं। बड़े साहब ये भी कहते हैं मैं अब अपने समाज के लिए काम करना चाहता हूं, इसलिए मैंने दोनों ऑफर पर विचार करने की बात कहकर टाल दिया। हम आपकी सुविधा के लिए बता दें ये साहब एक विशेष वर्ग समूह संघ के पदाधिकारी भी हैं।
नदारद क्यों रहे ‘नंदी’?
सूबे के पुराने मुखिया कमलनाथ हाल में इंदौर पधारे। सुख-दुख में गए। सबकुछ कुशल-मंगल रहा, लेकिन पूरी भागमभाग में इक सुरसुरी साथ-साथ दौड़ती रही। बरसों से साहब के नंदी कहे जाने वाले एक नेताजी ना दुखी द्वार पर उनके साथ थे, न सुखी द्वार पर। नेताजी खुद तो ठीक, उनके जो चार-छह लोकल नंदी भी बिखरे-बिखरे से दिखे। वैसे साहब का स्वभाव कांग्रेस में रहकर भी निर्दलीय सा ही है। बोले तो.. वे गुट से ज्यादा ये देखते हैं कि बंदा कांग्रेसी हो और पार्टी के काम का हो। भले ही चरण किसी भी नेता के स्पर्श करता हो। फिर भी कुछ नेता हैं जो बरसों से साहब के नाम के साथ सटे हुए खड़े हैं। अब वो ही नदारद रहे तो बातें तो बनेंगी ना। कहने वाले तो कह रहे हैं, पता नहीं सुनने वाले सुन रहे हैं या नहीं कि साहब के दरबार में नेताजी की जड़ें उतनी मजबूत नहीं रहीं। हां, समझने वालों ने जरूर सब समझ लिया है। ये राजनीति है जी, इसमें समझने, समझाने के लिए दीक्षा नहीं, दृष्टि लगती है।
खेल-खेल में...
जन-बल के इंदौरी विधायक हैं रमेश मेंदोला। इन दिनों राजनीति कम, खेल ज्यादा कर रहे हैं। अरे नहीं जी, खेल..ऐसे-वैसे नहीं। सचमुच खेल ही। इंदौर में हॉकी वालों का तानाबाना था। बरसों से उस पर कांग्रेस के कद्दावर नेता महेश जोशी का कब्जा रहा। वे स्वर्ग सिधारे तो संगठन की हॉकी पर से पकड़ छूटने लगी। ऐसे में मेंदोला उर्फ दादा दयालु प्रकट हुए और जोशी युग से संगठन से जुड़े एक कांग्रेसी को सम्मोहित कर अपने साथ लेकर संगठन को दो नंबरी कर दिया। अब सब ठीक है। फिर नजर दौड़ाई फुटबाल संगठन पर। यहां भी एक कुर्सी पर महेश जोशी के सुपुत्र दीपक जोशी उर्फ पिंटू और दूसरी पर कांग्रेस के ही बड़े इंदौरी नेता के दूर के दामाद जी विराजित थे। संगठन में फुटबाल कम और सिर फुटव्वल ज्यादा होने लगी तो यहां भी ‘दया’ बरस गई। अभी फुटबाल संगठन के दो हिस्से हो गए हैं। एक दयालु की दया पर है और दूसरा पिंटू के पाले में। दोनों के बीच कड़ा मुकाबला जारी है और इशारे बता रहे हैं कि फुटबॉल भी दो नंबर में ही उछलती दिखेगी। बता दें ये वो ही पिंटू हैं, जो तीन नंबर से विधायकी के टिकट का दम लगा रहे हैं। तीन नंबर मतलब...आकाश विजयवर्गीय की विधायकी वाला क्षेत्र। अब बात छोटे विजयवर्गीय की है मतलब बड़े विजयवर्गीय की हुई ना। अब सबकुछ खुलकर बताएं क्या?
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