MP: आंकड़ों से पलटती रही है बाजी, वोटिंग ट्रेंड से टेंशन में दोनों दल; 50 प्लस से बीजेपी खुश, कांग्रेस भी मान रही अपना

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Praveen Sharma
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MP: आंकड़ों से पलटती रही है बाजी, वोटिंग ट्रेंड से टेंशन में दोनों दल; 50 प्लस से बीजेपी खुश, कांग्रेस भी मान रही अपना

BHOPAL. नगरीय निकायों (urban bodies) के पहले चरण में पिछले चुनाव (Election) की तुलना में तेजी से गिरे मतदान (vote) प्रतिशत ने दोनों प्रमुख दलों की टेंशन बढ़ा दी है। प्रदेश में वोटिंग कम वोटिंग आमतौर सत्तापक्ष (ruling party) के लिए फायदेमंद मानी जाती है। इसी का परिणाम है कि भले ही बीजेपी (BJP) कम वोटिंग होने पर राज्य निर्वाचन आयोग (state election commission) को घेर रही है, लेकिन अंदर ही अंदर हो रही खुशी भी पार्टी के नेता छुपा नहीं पा रहे हैं। दूसरी ओर कांग्रेस (Congress) इसे सत्ता के खिलाफ नाराजगी मानकर अपने लिए गुड न्यूज का इंतजार करने लगी है। हालांकि बीजेपी के लिए चिंता का विषय है सारी 16 नगर निगमों में उनका अपना महापौर। 



असल में सात साल पहले प्रदेश के सभी 16 नगर निगमों पर बीजेपी ने परचम लहराया था। पहले एक साथ 14 नगर निगम के चुनावों में बीजेपी ने क्लीन स्वीप कर लिया था। इसके बाद करीब एक साल बाद हुए चुनाव में मुरैना और उज्जैन नगर निगम भी बीजेपी के खाते में पहुंच गए थे। अब एक नगर निगम भी हाथ से निकलती है तो यह बीजेपी के खाते में गिरावट के तौर पर ही गिनी जाएगी। मगर कल हुई प्रदेश में अब तक चार बार हुए चुनावों का वोटिंग ट्रेंड बीजेपी को खुशी देते नजर आ रहे हैं। इस बार पूरे ​प्रदेश में वोटिंग का आंकड़ा बमुश्किल 61 प्रतिशत पर पहुंच पा रहा है। वोटिंग खत्म होने के 24 घंटे बाद भी फाइनल परसेंटेज तैयार नहीं हो सका है। वहीं प्रदेश की शेष पांच नगर निगमों में दूसरे चरण में होने वाले चुनावों पर भी दोनों दल नजर गढ़ाए बैठे है। हालांकि पहले चरण की वोटिंग को अगले चरण का ट्रेंड भी माना जा रहा है। इसे देखते हुए खुलकर दोनों ही दल किसी निष्कर्ष पर पहुंचते नजर नहीं आ रहे। 



बीजेपी ने कम वोटिंग में भी किया था क्लीन स्वीप 



पहले चरण में भोपाल, इंदौर, ग्वालियर व जबलपुर सहित सभी 11 नगर निगमों के लिए हुए मतदान में पिछले साल की तुलना में गिरावट आई है। बुरहानपुर, छिंदवाड़ा, सिंगरौली, ग्वालियर में पिछले चुनाव की तुलना में मतदान प्रतिशत में काफी बड़ा अंतर आया है। कुछ नगर निगमों में तो 12 फीसदी तक की गिरावट आई है। यह बड़ी गिरावट दोनों दलों की समझ में नहीं आ रही है। राजधानी में भी  चार प्रतिशत से अधिक की कमी रह गई है। पिछले चुनाव में करीब 56 प्रतिशत वोटिंग हुई थी तो इस बार यह आंकड़ा 51 फीसदी से अधिक तक पहुंच गया है। पिछले चुनाव में भी बीजेपी ने 2009 की तुलना में​ मतदान प्रतिशत में गिरावट के बाद भी सभी 16 सीटों पर जीत हासिल की थी। इस बार पहले चरण में शामिल 11 नगर निगमों में से एक भी जगह पिछले चुनाव की तुलना में मतदान बढ़ नहीं सका है। वैसे भी कम वोटिंग सत्ता पक्ष के लिए फायदेमंद मानी जाती रही है। ज्यादा वोटिंग को ही सत्तापक्ष के खिलाफ नाराजगी मानी जाती है। मुरैना में तो पिछले साल पहला ही चुनाव था और यहां भाजपा ने परचम लहराया था। खासकर 50 प्रतिशत के करीब मतदान होने पर सत्तापक्ष को फायदा मिलता रहा है। जिन 11 नगर निगम में कल मतदान हुआ है, उनमें से नौ में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर मानी जा रही है तो दो नगर निगमों इंदौर और उज्जेन में कांटे की टक्कर है। इंदौर में 22 सालों से कांग्रेस को जीत हासिल नहीं हो सकी है। जबकि उज्जैन में चेहरे और दल बदलते रहे हैं। 



कांग्रेस इसलिए हो रही खुश 



दूसरी तरफ कांग्रेस इस कम वोटिंग पर ही खुश हो रही है। इसकी वजह है बीजेपी शासन काल में ही वोटिंग प्रतिशत विधानसभा और लोकसभा चुनाव की तुलना में कम होने पर भी पार्टी को मिलती रही जीत। भोपाल में सुनील सूद को बीजेपी शासनकाल में ही जीत हासिल हुई थी। जबकि उस चुनाव में लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बीजेपी के प्रत्याशी जीतकर आए थे। उस चुनाव में प्रदेश के 15 नगर निगमों में से आधे पर कांग्रेस प्रत्याशियों का प्रदर्शन भी अच्छा रहा था। इस बार पिछले चुनाव की तुलना में भोपाल में करीब 4 फीसदी की कमी आ रही है। जब पहली बार डायरेक्ट चुनाव महापौर पद पर हुए थे, तब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और 50 फीसदी से कम वोटिंग हुई थी। इस समय कांग्रेस की महापौर विभा पटेल बनी थीं। इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा भारी अंतर से जीती थी। अमूमन यही स्थिति प्रदेश की अन्य नगर निगमों में भी रही थी। 



बीजेपी में खींचतान और चेहरों पर तकरार 



इस चुनाव में तस्वीर में तो कोई ज्यादा अंतर नहीं आया है, लेकिन फ्रेम जरूर बदल गया है। प्रत्याशियों को लेकर जिस तरह की खींचतान पिछले चुनाव तक कांग्रेस में रहती थी तो इस बार बीजेपी इसकी शिकार रही। प्रत्याशियों की घोषणा में कांग्रेस आगे रही तो बीजेपी अंतिम दिन तक मेहनत करती नजर आई। इसके बाद प्रत्याशियों को लेकर कांग्रेस की तुलना में बीजेपी में नाराजगी ज्यादा देखी गई। कार्यकर्ताओं की नाराजगी भी कांग्रेस से ज्यादा कांग्रेस में है। प्रदेश और नगर सरकार बीजेपी की रहने के कारण मतदाताओं की नाराजगी भी बीजेपी के खिलाफ ज्यादा देखी गई। इसी के चलते सीएम शिवराज सिंह चौहान और बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष ​वीडी शर्मा को डैमेज कंट्रोल के लिए भी चुनाव क्षेत्रों में पहुंचना पड़ा है। दूसरी तरफ कांग्रेस में इस बार अपेक्षाकृत ज्यादा शांति रही।

 

इंदौर की वोटिंग में भी दिखी टक्कर 



इस बार कांटे की टक्कर इंदौर और उज्जैन में मानी जा रही है। इंदौर में कांग्रेस ने अपने युवा व तेज दबंग विधायक संजय शुक्ला को मैदान में उतारा है तो बीजेपी से संघनिष्ठ अधिवक्ता पुष्यम़ि भार्गव प्रत्याशी हैं। कल हुई वोटिंग ने भी यहां कांटे की टक्कर पर मुहर लगा दी है। पिछले चुनाव के मुकाबले सबसे कम अंतर इंदौर में ही है। पिछले चुनाव में मतदान प्रतिशत 61.77 था तो इस बार भी यह आंकड़ा 60 के ऊपर निकल गया है। ऐसे में दोनों ही दल दांतों में उंगलियां दबाकर बैठ गए हैं और एक दूसरे की गतिविधियों पर नजर रखे हुए हैं।



नगर निगम    2014—15   2022




  • ग्वालियर       58.42     49


  • सागर           65.34     60

  • सतना           67.82     63

  • सिंगरौली       64.28     52

  • जबलपुर        62.96     60

  • छिंदवाड़ा      77.36     68

  • भोपाल          56.1      50.68

  • खंडवा           65.37     55

  • बुरहानपुर      75.4      68

  • इंदौर             61.77     60

  • उज्जैन             64       60

     


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