MP: आखिर क्यों अपनी सरकार को बार-बार कटघरे में खड़ा कर रहीं उमा? शराबबंदी के लिए गांधी जयंती से करेंगी आंदोलन, नड्डा को लिखा पत्र

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Shivasheesh Tiwari
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MP: आखिर क्यों अपनी सरकार को बार-बार कटघरे में खड़ा कर रहीं उमा? शराबबंदी के लिए गांधी जयंती से करेंगी आंदोलन, नड्डा को लिखा पत्र

BHOPAL. पू्र्व मुख्यमंत्री उमा भारती (Former Chief Minister Uma Bharti) शराब को लेकर लगातार मध्यप्रदेश की सरकार (Government of Madhya Pradesh) को कटघरे में खड़ा करती रहीं हैं। लेकिन भारती इस बार आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं। उन्होंने राष्ट्रीय अध्यक्ष जय प्रकाश नड्डा (Jai Prakash Nadda) को पत्र लिखा है और उसमें मध्यप्रदेश सरकार की शराब नीति की जमकर आलोचना की है। शराबबंदी (prohibition) को लेकर सरकार को बार-बार चेतावनी देकर बैकफुट पर आ रहीं पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के तेवर अब तीखे दिखाई दे रहे हैं। उमा ने नड्डा के कहने पर शराबबंदी को लेकर अपना आंदोलन (Agitation) टाल दिया था। इसके बावजूद प्रदेश में शराब पर नियंत्रण के कदम नहीं उठाए गए हैं। उमा भारती ने लिखा कि एमपी की नई शराब नीति प्रदेश को विनाश की ओर ले जा रही है। उमा की इस मामले में आरएसएस (RSS) के नेताओं के साथ भी बैठक हो गई है। वो प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव (Muralidhar Rao) से भी वे चर्चा कर चुकीं हैं। इन सारे नेताओं से चर्चा के बाद भी प्रदेश में शराब की बिक्री कम करने जैसे कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। ऐसे में अब लड़ाई सड़क पर लड़ी जाएगी।




— Uma Bharti (@umasribharti) July 9, 2022



शराब दुकान पर पत्थर, गोबर से आगे जाना चाहती हैं उमा



शराब की दुकानों पर पत्थर और गोबर फेंककर शराब बंदी की मांग का आगाज कर चुकीं पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती चुनावी ब्रेक के बाद एक बार फिर मैदान में है। अबकी बार उन्होंने बड़े स्वरूप में अपने अभियान के लिए लोगों को आवाज दी है। "जो जहां है लाम पर है-देश के काम पर है" के अंदाज में उन्होंने भी सभी से कहा है कि जहां हैं वहीं से अपनी ताकत दिखाते हुए शराबबंदी के लिए काम करें। यानी आए दिन कहीं दुकानों पर पत्थर चलेंगे तो कहीं गोबर फेंककर शटर गिराए जाएंगे।  चलते रहेंगे। इसके ​साथ ही उन्होंने भोपाल में एक बड़े प्रदर्शन के लिए गांधी जयंती दो अक्टूबर का दिन मुकर्रर कर दिया है। इसमें प्रदेश भर से लोगों खासकर महिलाओं को राजधानी में जोड़ा जाएगा। 



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पूर्व सीएम व बीजेपी की वरिष्ठ नेता सुश्री भारती ने अपने इस आव्हान से एक बार फिर सूबे की सियासत में हलचल बढ़ा दी है। उमा जी कुछ करें तो हलचल होना लाजिमी है, लेकिन इसके साथ ही सवाल भी उठने लगे हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्यों अपनी ही सरकार को कठघरे में बार- बार खड़ा कर रहीं है पूर्व मुख्यमंत्री उमाश्री भारती? ये एक राजनीतिक साध्वी का राजनीतिक स्टंट है या एक साध्वी का विशुद्ध रूप से समाज जागरण का अभियान।




— Uma Bharti (@umasribharti) July 9, 2022



भारती ने अब अपने अभियान में महात्मा गांधी को भी शामिल कर लिया है। गांधी जयंती 2 अक्टूबर के जरिए। पूर्व सीएम ने घो​षणा की है कि वे 2 अक्टूबर को भोपाल में महिलाओं को जोड़कर मार्च निकालेंगी। इस घोषणा को सियासी गणितज्ञ उसी पत्थर की तरह देख रहे हैं जो उमा भारती ने भोपाल और छिंदवाड़ा की शराब दुकानों पर मारे थे। भले ही उनके यह पत्थर सीधे तौर पर शराब दुकानों पर गिर रहे हैं, लेकिन कहीं न कहीं इसके निशाने पर राज्य सरकार की नीति ही है। वजह भी है, शराब की दुकानें भी सरकार ही तय करती है और ​शराब बिक्री की नीति भी सरकार ही बनाती है। फिर क्या वजह है सुश्री भारती प्रदेश में अपनी ही पार्टी यानी बीजेपी की सरकार को ही निशाना बना रही हैं। अपनी गतिविधियों से सरकार को सांसत में डाल देती हैं। संगठन को भी कई बार सोच—विचारने के बाद उनसे चर्चा करना पड़ती है। निश्चित रूप से सत्ता और संगठन में उनके कद का दूसरा कोई नहीं है, मजबूरी में संगठन को अपने अधिकार को आगे कर उनसे मंतव्य जानकर अपनी राय से उन्हें अवगत कराना पड़ता है। बीते दो दशकों में ऐसा कई बार हो चुका है। लेकिन कुछ तो ऐसा है कि भारती कुछ दिन मौन रहती हैं और फिर मुखर हो जाती हैं। शराब बंदी को लेकर बीते दो सालों में ऐसे कई नजारे बन चुके हैं तो रायसेन के शिव मंदिर को लेकर भी उनकी किले पर चढ़ाई अपने ही दल की सरकार की सांसें फुलाने वाली साबित हुई थी। इसके अलावा अपनी मौजूदगी से भी वे कई बार नए सियासी समीकरणों की ओर इशारा करा देती हैं। 




— Uma Bharti (@umasribharti) July 9, 2022



पीढ़ी परिवर्तन के दौर में यह भी जरूरी ?अपनी मौजूदगी का अहसास कराने का जतन तो नहीं? 



यह सही है कि प्रदेश में सत्ता परिवर्तन कराकर बीजेपी की सत्ता का वनवास खत्म कराने में मुख्य चेहरा उमा भारती ही थीं। मगर प्रदेश की सत्ता के बाद संगठन से भी जिस तरह से उनको किनारा किया गया, वह किसी हादसे से ज्यादा राजनीति ज्यादा थी। फिर उन्हें मध्यप्रदेश की बजाय उत्तरप्रदेश से सक्रिय राजनीति में उतारा गया। केंद्र में मंत्री भी बनाई गईं। देश की धार्मिक आस्था से जुड़ी गंगा नदी से संबद्ध महकमा की कमान उन्हें सौंपी गई। मगर केंद्र में भी उनके साथ वही दोहराया गया जो मध्यप्रदेश में हुआ था। इसके बाद सबसे बड़ा संकट है अपनी मौजूदगी बनाए रखना। यही वजह है कि कभी वे चुनाव लड़ने की घो​षणा कर देती हैं तो कभी अपनी ही सरकार की नीतियों के खिलाफ आंदोलन की तिथि घोषित कर देती हैं। 



बीजेपी इस समय पीढ़ी परिवर्तन के दौर से गुजर रही है। संगठन की बात हो या मैदानी जमावट की। दिल्ली से लेकर दूर गांव तक युवाओं को मौका दिया जा रहा है। 50 साल की उम्र का बंधन भी रखा जा रहा है। ऐसे में पुराने नेताओं के साथ धर्मसंकट की स्थिति बन गई है। युवाओं को बढ़ावा दिए जाने से ज्यादा उनको खुद के साथ यूज एंड थ्रो की पॉलिसी से नाराजगी है। नए चेहरों की भीड़ में अपनी मौजूदगी बनाए रखने के लिए कोई सोशल मीडिया का सहारा लेकर अपनी ही सरकार और संगठन को घेरने का मौका नहीं छोड़ रहा, तो कोई जनहित के मुद्दों की आड़ लेकर अपनी ही सरकार को चुनौती देते हुए धरने पर बैठ रहा है। 



शराबबंदी बीजेपी का वादा ?



शुक्रवार 8 जुलाई को अपने शराब बंदी अभियान को भारती ने एक बार फिर आवाज बुलंद की है। दो दिन बाद यानी रविवार, 10 जुलाई को देवशयनी एकादशी होने का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि दो दिन बाद सूर्य दक्षिणायन हो जाएंगे। इसलिए उन्होंने कल ही अपने आंदोलन का आव्हान करते हुए आमजन से कहा है कि जहां हैं वहीं अपनी समर्थ शक्ति दिखाते हुए मुहिम चलाएं। मगर इस अभियान के साथ ही भारती ने अपनी जिंदगी का ब्यौरा भी दिया है। अपने अच्छे-बुरे हर व्यवहार का हवाला देते हुए बीजेपी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दर्शाई है। लेकिन एक बार फिर बैठे ​बैठाए कांग्रेस को एक मुद्दा दे दिया है। हालांकि उन्होंने अपने इस अभियान को बीजेपी से जोड़कर कहा कि ये बीजेपी का ही वादा है और वे पार्टी के लिए ही शराब बंदी का अभियान चला रही है। 



सीएम बड़े भाई सात्विक फिर भी आहत हैं उमा ?



 एमपी और यूपी में शराबबंदी के लिए दोनों राज्यों के सीएम से उन्होंने लगातार बाचचीत व उनकी ओर से मिले आश्वासन का भी हवाला पूर्व सीएम भारती ने दिया है। सीएम शिवराज को अपना बड़ा भाई और सात्विक व्यक्ति बताया, लेकिन यह कहने से नहीं चूकी कि प्रदेश में शराब की नई नीति से उनका मान-सम्मान तो कम नहीं हुआ, लेकिन वे आहत बहुत हुईं हैं।



क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक ?



वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा का कहना है कि पूर्व सीएम उमा भारती द्वारा शराब बंदी को लेकर चलाए जा रहे अभियानों को राजनीति से अलग रखा जाना चाहिए। यह मूलत: समाज जागृति से जुड़ा विषय है। उमा जी संत रहीं है और संतों का काम ही जन जागृति का रहा है। नशा मु​क्ति के जरिए समाज में बदलाव और सुधार का काम कर रहीं हैं। इसके लिए उन्होंने हमेशा समाज से ही अपील की है। कल से शुरू किए गए अभियान में भी उन्होंने जनता से ही अपील की है। जनता के माध्यम से ही उसे आगे बढ़ाया जाएगा। इसे राजनीति से अलग रखते हुए उन्होंने अपनी अपील में ही स्पष्ट किया है कि जो किसी राजनीतिक दल के सदस्य नहीं हैं, वे इसमें शामिल हों। शराब बंदी को लेकर एक संत के रूप में उनकी अपनी राय है। कई बार सरकारें शराब की दुकानों की प्रतिस्पर्धा में शामिल हो जाती हैं, इससे सरकार की नीति पर सवाल उठने लगते है। समाज में भी इसका विरोध होता है। मगर पूर्व सीएम उमा भारती ने कभी भी सरकार पर अटैक नहीं किया, चूंकि शराब की बिक्री सरकार से जुड़ा मामला है, इससे उनका यह आंदोलन सरकारों के खिलाफ नजर आता है। लेकिन समाज जागृति की इस मुहिम को राजनीतिक चश्मे से देखना उचित नहीं होगा। उनका यह अभियान भी सीधे तौर पर शराब बंदी के लिए है। इसे लेकर उन्होंने सरकार को कभी निशाने पर नहीं लिया। दोनों विषय ही अलग हैं।



2023 के विस चुनाव में जमीन तलाशने की कोशिश में उमा



प्रदेश की राजनीति पर गहरी नजर रखने वालों का कहना है कि अगले साल यानी 2023 में मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव (assembly elections) होने वाले हैं। अपनी राजनीतिक जमीन तलाशने के लिए उमा भारती ने इस बार आर-पार की लड़ाई लड़ने की तैयारी कर रखी है। अपने अभियान में जिस तरह के लोगों से जुड़ने की अपील उन्होंने की है, उसमें उन्हें पर्दे के पीछे विरोधी दल के लोगों का साथ भी मिल सकता है।


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