MP में ये कैसा सुशासनः तहसीली स्तर की समस्या, कलेक्ट्रेट में मिलती है...बस तारीख

author-image
एडिट
New Update
MP में ये कैसा सुशासनः तहसीली स्तर की समस्या, कलेक्ट्रेट में मिलती है...बस तारीख

मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल जिले झाबुआ के कलेक्ट्रेट (collectorate) के बाहर तैनात पुलिस फोर्स के सामने तीखी धूप में दबंग अंदाज में कलेक्टर सोमेश मिश्रा को उनकी ड्यूटी याद दिलाने वाली बीए फर्स्ट ईयर की स्टूडेंट निर्मला चौहान (Nirmala Chouhan) पूरे देश में चर्चा का केंद्र बन चुकीं हैं। जिले के स्टूडेंट की समस्याओं के समाधान के लिए कलेक्टर और सरकार को ललकारती एक गरीब आदिवासी (Adivasi) किसान की बेटी निर्मला के आत्मविश्वास और नेतृत्व क्षमता (Leadership Quality) की सोशल मीडिया पर जमकर सराहना हो रही है। लेकिन गांव से पढ़ाई के लिए शहर आने वाली लड़कियों की बुनियादी समस्याओं के समाधान के लिए कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन करने के मजबूर निर्मला का सवाल (सरकार हमारे लिए नहीं तो फिर किसके लिए है ?) सरकार के सुशासन के तमाम दावों पर भी बड़ा सवाल खड़ा करता है। झाबुआ का मामला तो बस इसकी एक बानगी भर है। द सूत्र की टीम ने प्रदेश के चार बड़े जिला मुख्यालय में कलेक्टर के पास आने वाली जन शिकायतों (Problems) और उन पर सरकारी कार्यवाही का जायजा लिया तो यह कड़वी हकीकत सामने आई कि प्रदेश में सुशासन का दावा अभी मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की मंशा के अनुरूप पूरी तरह धरातल पर नहीं उतर पाया है। 25 दिसंबर को पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी के जन्मदिन पर मनाए जाने वाले सुशासन दिवस के मौके पर देखिए द सूत्र की खास रिपोर्ट...

मप्र में 25 दिसंबर को मनाया जाता है सुशासन दिवस  

आम आदमी यानि कॉमन मैन के जीवन-सरोकार से जुड़ी समस्याओं और शिकायतों के निराकरण को लेकर सरकारी कर्मचारी औऱ अधिकारियों की संवेदनशीलता और तत्परता का हाल बचाने से पहले आइए आपको बताते हैं कि आखिर सरकार ने 25 दिसंबर को सुशासन दिवस के रूप में मनाने के पीछे सरकार की मूल भावना क्या थी। सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्म दिन 25 दिसंबर को मध्य प्रदेश में सुशासन दिवस के रुप में मनाने का फैसला 10 साल पहले यानी 2011 में लिया था। तब प्रदेश में सुशासन दिवस मनाने की शुरुआत करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था- ‘सुशासन मध्यप्रदेश सरकार की प्राथमिकता है। सरकार सज्जनों के लिए फूल से ज्यादा कोमल और दुर्जनों के लिए वज्र से भी ज्यादा कठोर है।’ 

जनसुनवाई पर हावी लालफीताशाही

आम नागरिकों की समस्याओं और शिकायतों के निराकरण के लिए सरकार ने जनता से जुड़े सभी कार्यालयों नगर पालिका और नगर निगम से लेकर एसपी आफिस (SP Office) और कलेक्ट्रेट तक हर मंगलवार को जनसुनवाई की व्यवस्था तय कर रखी है। लेकिन देखने में आ रहा है कि मैदानी कर्मचारियों की लापरवाही (Negligence), असंवेदनशीलता और विभागीय अधिकारियों की पर्याप्त मॉनिटरिंग के अभाव में अतिक्रमण, साफ-सफाई, सड़कों के रखरखाव से जुड़ी समस्याएं व शिकायतें भी कलेक्ट्रेट में होने वाली जनसुनवाई तक पहुंच रही हैं। कायदे से इनमें से अधिकांश समस्याओं का निराकरण वार्ड (Ward) और तहसील स्तर (Tehsil Level) पर ही हो जाना चाहिए। लेकिन निचले स्तर के कर्मचारी और अधिकारी गैर जिम्मेदाराना रवैये के चलते समय पर और सही एक्शन नहीं लेते। इसकी वजह से लोगों को अपनी छोटी-छोटी समस्याओं के समाधान के लिए भी कलेक्ट्रेट का रुख करना पड़ता है। यहां पर भी ज्यादातर मामलों में पीड़ित लोगों को लालफीताशाही का सामना करना पड़ता है। उन्हें यहां से वापस उन्हीं दफ्तरों में भेज दिया जाता है जहां वे पहले भी कई चक्कर काट चुके होते हैं। आइए, आपको बताते हैं कैसे प्रदेश के बड़े जिला मुख्यालयों की कलेक्ट्रेट में होने वाली जनसुनवाई में भी महीनों चक्कर काटने के बाद भी आम आदमी की शिकायतों पर कार्रवाई नहीं हो रही है।

ग्वालियरः अवैध तलघर निर्माण से मकान को नुकसान, 3 महीने से कार्रवाई नहीं  

सबसे पहले जानते हैं संभागीय मुख्यालय ग्वालियर की हकीकत। ग्वालियर के दौलतपुर में रहने वाले मनीष अग्रवाल अपनी शिकायत के समाधान के लिए पिछले तीन महीने से नगर निगम के वार्ड कार्यालय से लेकर मुख्यालय और कलेक्ट्रेट में होने वाली जनसुनवाई के चक्कर काट रहे हैं।  दरअसल मनीष का पड़ोसी बिना परमिशन के अवैध रूप से मकान में तलघर का निर्माण करवा रहा है। जिसकी वजह से उनका मकान क्षतिग्रस्त हो रहा है। इस बारे में उन्होंने अपने पड़ोसी से बात की, लेकिन वह उनकी बात सुनने को तैयार नहीं है। इस बात को लेकर उनका पड़ोसी से कई बार विवाद भी हो चुका है। वे इस अवैध निर्माण के खिलाफ नगर निगम के अधिकारियों को कई बार लिखित शिकायत कर चुके हैं, लेकिन निगम के अधिकारी उन पर कोई कार्रवाई करने को तैयार नहीं हैं। इसके बाद उन्होंने कलेक्टर कार्यालय में शिकायत की जहां पर उनके आवेदन पर तत्काल कार्रवाई किए जाने की टीप लिखकर उन्हें वापस नगर निगम के कार्यालय में संपर्क करने को कहा जाता है। लेकिन नगर निगम के अधिकारी कलेक्टर के आदेश करने के बाद भी कार्रवाई करना तो दूर अवैध अतिक्रमण का निरीक्षण करने की भी जहमत नहीं उठाते। वे पिछले तीन महीने से वो कलेक्ट्रेट और नगर निगम के बीच कार्रवाई के लिए भटक रहे हैं। लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। इस मामले में नगर निगम के सिटी प्लानर पवन सिंघल से बेहद लापरवाह रवैये वाला जवाब मिला कि शिकायतों पर हम तत्परता से कार्रवाई करते हैं लेकिन उनके समाधान में समय तो लगता है।   

जबलपुरः टैक्स लेने के बाद भी ना सड़क, ना साफ-सफाई 

जबलपुर में भी जनशिकायत से जुड़ी शिकायत पर सरकारी रवैये का ढर्रा ग्वालियर से अलग नजर नहीं आया। यहां डुमना एयरपोर्ट रोड पर स्थित प्रियदर्शनी कॉलोनी के रहवासी लंबे समय से सड़क, साफ-सफाई जैसी बुनियादी नागरिक सुविधाओं के लिए परेशान हैं। यह कॉलोनी करीब पांच साल पहले नगर निगम सीमा में शामिल की जा चुकी है। नगर निगम प्रशासन स्थानीय रहवासियों से टैक्स भी वसूल रहा है, लेकिन नागरिक सुविधाएं नहीं दे रहा। कॉलोनी की रहवासी समिति के अध्यक्ष रजनीश सिंह ने बताया कि सड़क और साफ-सफाई की व्यवस्था के लिए हम लोग 5 साल से नगर निगम से लेकर जिला प्रशासन तक गुहार लगा चुके हैं लेकिन कोई सुनने को तैयार नहीं है। इस बारे में कलेक्ट्रेट की जनसुनवाई में भी शिकायत करने पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। इस पर अपर कलेक्टर राजेश बाथम का कहना है कि चूंकि यह मामला नगर निगम से संबंधित है इसलिए नगर निगम को कार्रवाई के लिए पत्र लिखा है। वहीं नगर निगम के स्वास्थ्य अधिकारी भूपेंद्र सिंह का कहना है कि यह वार्ड बड़ा है लेकिन हमारे पास स्टॉफ कम है। इसलिए शिकायतों का निराकरण प्राथमिकता के आधार पर किया जाता है। 

इंदौरः रजिस्ट्री के 20 साल बाद भी नहीं मिला प्लॉट का कब्जा

इंदौर में भू-माफियाओं के शोषण के शिकार सैकड़ों लोग उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए सालों से अधिकारियों के चक्कर लगा रहे हैं। उन्ही में से एक नाम है वैज्ञानिक नरेंद्र भारद्वाज का जो पिछले 20 सालों से इंसाफ के लिए दर-दर की ठोकरे खाने को मजबूर हैं। भारद्वाज ने 2002 में क्लासिक गृह निर्माण सोसायटी की द न्यू इंदौर टाउनशिप में प्लॉट लिया था। लेकिन 20 साल बाद भी उन्हें अब तक प्लॉट का कब्जा नहीं मिला। बिल्डर ने उनके जैसे कई लोगों से तीन-तीन महीने की किस्तों में पैसा लेने के बाद रजिस्ट्री करा ली थी। लेकिन 20 साल बाद भी उन्हे प्लॉट नहीं मिल पाया है। । सोसायटी का ऑफिस बंद हो चुका है। इसकी सप्रमाण शिकायत 2016 में कलेक्टर कार्यालय में की गई। इसके बाद तहसीलदार ने सहकारिता विभाग के अधिकारियों से जवाब तलब किया था। लेकिन 5 साल बीत जाने के बाद भी उन्हें प्लाट का कब्जा नहीं मिल पाया है। सरकार के रवैये से निराश और नाराज भारद्वाज बताते हैं कि वो कई बार सहकारिता विभाग (Cooperative Department) से लेकर कलेक्ट्रेट के अधिकारियों से शिकायत कर चुके हैं, लेकिन कार्रवाई के नाम पर हासिल शून्य ही है। इस मामले में अपर कलेक्टर राजेश राठौर का कहना है कि प्रशासन हर शिकायत का समय सीमा में निराकरण करने का पूरा प्रयास करता है। लेकिन भारद्वाज जैसे सैकड़ों पीड़ित नागरिकों का  बड़ा सवाल यही है कि ये कैसी समय सीमा है जो 20 बाद भी खत्म नहीं हो रही।

भोपालः पैसे देने के बाद भी प्लॉट के लिए भटक रहे हैं 75 साल के बुजुर्ग देवनानी 

राजधानी भोपाल में भी भू-माफियाओं के जाल में फंस कर सैंकड़ों लोग अपने जीवन भर की कमाई लुटा चुके हैं। उनका ना तो खुद का घर होने का सपना पूरा हुआ, ना ही बिल्डरों से मेहनत की कमाई का पैसा वापस मिला। आज भी बड़ी संख्या में ऐसे लोग इंसाफ की उम्मीद में सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं। 75 वर्ष के बुजुर्ग भुगड़ामल देवनानी भी उनमें से एक हैं, जो भोपाल के बैरसिया रोड इलाके में रहते हैं। देवनानी ने 1986 में स्वजन गृह निर्माण सोसाइटी (Housing Society) से जाटखेड़ी में एक प्लॉट (Plot) लिया था। समिति में पैसा जमा कराया था, जिसकी रसीदें भी देवनानी के पास हैं। लेकिन समिति ने रजिस्ट्री नहीं कराई। देवनानी बताते हैं 1986 में पैसा लेते वक्त समिति के अध्यक्ष रमेश सिंह ने रजिस्ट्री कराने का वादा किया था। इसके बाद डायवर्सन के लिए भी पैसा ले लिया। लेकिन 35 साल भटकने के बाद भी रजिस्ट्री नहीं मिली। देवनानी पिछले 8 साल से लगातार जनसुनवाई में आ रहे हैं, लेकिन उनकी शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।

स्वजन सोसाइटी के सदस्य आरसी बकोरिया ने बताया कि समिति ने वर्ष 2000 में आवास संघ से करीब डेढ़ करोड़ लोन लिया था। जिसके बाद से ही अध्यक्ष लापता हैं। प्लॉट लेने वाले सभी लोग परेशान हैं, लेकिन सहकारिता विभाग के अधिकारी कोई कार्रवाई नहीं करते। लिहाजा उन्हें बार-बार कलेक्टर कार्यालय आना पड़ता है। कलेक्टर की जनसुनवाई में लोगों की शिकायतें सुन रहीं डिप्टी कलेक्टर अंकिता त्रिपाठी का कहना है कि गृह निर्माण सोसाइटियों से संबंधित शिकायतें सहकारिता विभाग को भेजी जा रहीं हैं। उनकी रिपोर्ट हफ्तेभर में आ जाएगी। लेकिन पीड़ित फरियादियों का कहना है कि हर बार सिर्फ यही आश्वासन मिलता है। सहकारिता विभाग के अधिकारी कोई कार्रवाई नहीं करते।

अधिकारी नहीं करते मॉनिटरिंग, इसलिए मैदानी कर्मचारी लापरवाह 

रिटायर्ड आईएएस मुक्तेश वार्ष्णेय कहते हैं कि आम जनता छोटे-छोटे मामलों को लेकर ही ज्यादा परेशान होती है। उनकी शिकायतों के समय पर समाधान के लिए  विभागीय स्तर पर पर्याप्त मॉनिटरिंग (Departmental Monitoring) की जानी चाहिए। होता यह है कि प्रशासन में निचले स्तर स्तर पर कर्मचारियों की लापरवाही और उनकी अधिकारी स्तर पर अपेक्षित मॉनिटरिंग न होने की वजह से लोग परेशान होते हैं। उनका मानना है कि प्रदेश में असली सुशासन तभी कायम माना जाएगा, जब सरकार का हर मैदानी कर्मचारी और अधिकारी जनसमस्याओं और शिकायतों को पूरी संवेदनशीलता और तत्परता से निराकरण को अपना प्राथमिक कर्त्तव्य मानने लगेगा।

द-सूत्र ऐप डाउनलोड करें :

https://bit.ly/thesootrapp

द-सूत्र को फॉलो और लाइक करें:

">Facebook  |   Twitter |   Instagram  |  Youtube

मध्य प्रदेश Collectorate good governance हकीकत MP solution कलेक्ट्रेट The Sootr तहसील स्तर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान दावे सुशासन tehsil level problems