भोपाल. जीवन में फैसला लेना बेहद जरूरी है। यदि आप समय पर फैसला नहीं लेते है तो इसके दो नुकसान हैं। पहला दिमाग में द्वंद चलता रहता है और दूसरा उलझे रहने के कारण फायदा विरोधी उठाते हैं। ये तो हुई जीवन की बात लेकिन सरकार के लिए भी फैसला लेना जरूरी होता है। यदि वो ऐसा नहीं करती है तो इसके लिए एक शब्द का इस्तेमाल होता है पॉलिसी पैरालिसिस। मध्यप्रदेश में सरकारी विभागों में प्रमोशन में आरक्षण का मसला इसी पॉलिसी पैरालिसिस का शिकार है। इसी के चलते 67 महीने यानी पांच साल 7 महीने से कर्मचारी और अधिकारियों को प्रमोशन में आरक्षण नहीं मिला है और इसके लिए गठित किए गए मंत्री समूह ने ये जिम्मेदारी कर्मचारी संगठनों पर ही डाल दी है। अब सवाल उठ रहा है कि जब यही करना था तो पांच साल पहले ही क्यों नहीं कर दिया गया। आइए आपको बताते हैं आखिर एमपी में प्रमोशन में आरक्षण का मसला क्या है और आखिरकार क्यों सरकार इस पर फैसला नहीं ले पा रही है।
पहले समझिए पूरे विवाद को : अजाक्स का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की प्रत्याशा में फिलहाल मुख्यमंत्री (Chief Minister) की निगरानी में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता मनोज गौरकेला के माध्यम से बनाए गए पदोन्नति संबंधी ड्राफ्ट को लागू कर दिया जाए, तो दोनों ही पक्षों आरक्षित एवं गैर आरक्षित वर्ग के अधिकारी कर्मचारियों को पदोन्नति का लाभ प्राप्त होने लगेगा, वहीं सपाक्स का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा अंतिम निर्णय का इंतजार करना चाहिए और क्रीमी लेयर के आधार पर प्रतिनिधित्व देने के सिद्धांत को लागू किया जाए। इससे मंत्रिमंडलीय समिति के समक्ष उपस्थित गतिरोध ज्यों का त्यों बना रहा और भ्रम की स्थिति के कारण चौथी बैठक में भी कोई निर्णय नहीं लिया जा सका।
सरकार ने इसलिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया : मध्यप्रदेश में पदोन्नति नियम 2002 के तहत अधिकारियों-कर्मचारियों की पदोन्नति होती थी, पर 2016 में हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी। हाईकोर्ट ने पदोन्नति नियम में आरक्षण, बैकलॉग के खाली पदों को कैरी फॉरवर्ड करने और रोस्टर संबंधी प्रावधान को संविधान के विरुद्ध मानते हुए इन पर रोक लगा दी थी। इस फैसले के खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जहां पदोन्नति का अंतिम फैसला आने तक यथावत रखने को कहा गया है। जिस पर फैसला आना बाकी है। सुप्रीम कोर्ट में अब 24 फरवरी से सुनवाई होना है।
भारतीय और राज्य प्रषासनिक सेवा की तरह मिले पदोन्नति : मंत्रालय कर्मचारी संघ के अध्यक्ष आशीष सोनी ने कहा कि मध्यप्रदेश ने अपना पदोन्नति का एक अलग अधिनियम बनाया था, जिसे विधि विभाग को भेजा गया था। वहां से वो वापस आ गया है, लेकिन अभी कैबिनेट में प्रस्तुत नहीं हुआ है। पदोन्नति में आरक्षण के विवाद को सुलझाने के लिए तीन साल पहले मंत्रालय कर्मचारी संघ की ओर से एक प्रस्ताव सरकार को दिया गया था। प्रस्ताव में भारतीय प्रशासनिक सेवा, राज्य प्रशासनिक सेवा की तरह टाइम बाउंड पदोन्नति की बात कही गई थी। इसमें वरिष्ठता सूची के हिसाब से पदोन्नति मिलती जाती है। वरिष्ठ श्रेणी वेतनमान मिल जाता है, एक निश्चित समय के बाद प्रवर श्रेणी वेतनमान मिल जाता है। इसमें आरक्षण का नियम कहीं लागू नहीं होता, ऐसा नहीं होता कि आरक्षित वर्ग का जम्प करके अनारक्षित वर्ग के उपर चला जाए।
पदोन्नति के इंतजार में एक लाख कर्मचारी हो गए रिटायर : प्रदेश में 2016 से पदोन्नति पर रोक है। इस दौरान अब तक एक लाख कर्मचारी रिटायर हो गए हैं। हालांकि यह रोक सिर्फ मध्यप्रदेश में ही है। पदोन्नति के दायरे में 11000 क्लास वन और क्लास टू के अफसर है, जिनमें से अधिकांश रिटायर हो गए हैं और जो कार्यरत हैं उनकी देनदारी है। 44 हजार तृतीय वर्ग के कर्मचारियों की पदोन्नति का मामला भी अटका हुआ है।
पदोन्नति नहीं होने से मंत्रालय के कई पद खाली : राज्य की शीर्ष संस्थान मंत्रालय की स्थिति को देखें तो पदोन्नति नहीं होने से यहां कई पद खाली पड़े हुए हैं। जानकारी के अनुसार एडिषनल सेकेटरी का पद पदोन्नति का पद है, 6 पद स्वीकृत पर एक पर भी पदस्थ नहीं। उप सचिव के 14 पद स्वीकृत, काम कर रहे सिर्फ 2, अंडर सेकेटरी के 60 प्रतिषत पद खाली पड़े हुए हैं। यही स्थिति अनुभाग अधिकारी, सहायक ग्रेड 02 इन सभी पदों की है।
नरोत्तम मिश्रा बोले- दोनो संगठनों के बीच 90 फीसदी बनी सहमति : गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि हमने दोनो संगठनों से कह दिया था कि आपसी सहमति से जो भी प्रस्ताव आएगा सरकार उसे स्वीकार करेगी। चर्चा में 90 प्रतिषत बिंदुओं पर सहमति आ गई है। एक कर्मचारी संगठन की ओर से पक्ष यह आया कि 24 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आ रहा है, जिसकी प्रतिक्षा करनी चाहिए, निर्णय के बाद उस हिसाब से आगे की कार्रवाई करना चाहिए, जिस पर मंत्री समूह ने भी अपनी सहमति जताई। वहीं एसीएस जीएडी को भी कहा गया है कि 90 प्रतिषत सहमति बन चुकी है तो 10 प्रतिषत पर भी दोनो संगठनों की सहमति बन सकती है तो बनाए और सर्व सम्मति से प्रस्ताव आ सकता है तो उसे लेकर आए।
सरकार ने सोच समझकर नहीं लिया निर्णय तो सपाक्स करेगी आंदोलन : सपाक्स के राष्ट्रीय अध्यक्ष हीरालाल त्रिवेदी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने सभी चीजों को क्लीयर कर दिया है। पदोन्नति में आरक्षण तभी दिया जा सकता है जब तक यह सिद्ध न हो कि जिन पदों पर यह दिया जा रहा है उन पदों पर उस वर्ग को पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिला है या नहीं। यदि पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिला है तो उस वर्ग को आरक्षण देने की जरूरत नहीं है। हर पद पर जो कोटा है उससे अधिक पर ये ऑलरेडी काम कर रहे हैं तो फिर रूटीन में प्रमोषन होंगे, नियुक्तियां हो रही है तो फिर पदोन्नति में आरक्षण का सवाल ही नहीं उठता, यहां क्रीमी लेयर की बात ही नहीं हो रही है। सरकार ने सोच समझकर निर्णय नहीं लिया तो सपाक्स ऐसा आंदोलन खड़ा करेगी कि सरकार चलाना मुष्किल हो जाएगा।
अनुसूचित जाति-जनजाति के लिए पदोन्नति में आरक्षण मौलिक अधिकार : अजाक्स के प्रांतीय महासचिव एसएल सूर्यवंषी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय राज्य सरकार पर छोड़ दिया है और आगे भी जो दो निर्णय आ सकते हैं, उसमें पहला तो यही होगा कि जो नियम बना है वह सही बना है और दूसरे निर्णय के आने के 1 प्रतिषत चांस है कि डेटा के साथ राज्य सरकार इसमें फिर से विचार करे, करना तो आखिरकार सरकार को है। इस पर अजाक्स ने कहा कि जो सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता मनोज गौरकेला ने ड्राफ्ट तैयार किया है उसे लागू कर दें तो सभी वर्गों की पदोन्नति हो जाए। हमें उम्मीद है कि मुख्यमंत्री इसे लागू करेंगे। दूसरा हमने यह कहा कि यदि यह भी नहीं करना चाहते हैं तो सषर्त पदोन्नति के जो पात्र अधिकारी कर्मचारी है, उनकी सषर्त पदोन्नति कर दी जाए, पर सपाक्स ने कहा निर्णय आ जाने दीजिए और पदोन्नति में क्रीमी लेयर लागू की जाए। जबकि 16-4 ए में स्पष्ट लिखा है कि अनुसूचित जाति-जनजाति के लिए पदोन्नति में आरक्षण मौलिक अधिकार है, तो क्रीमी लेयर कहां से आ गया।