BETUL: बिना फॉरेस्ट क्लीयरेंस शुरू हुआ इलेक्ट्रॉनिक पार्क विवादों में, अब तक 2 करोड़ रुपए खर्च, LUN के MD की भूमिका पर सवाल

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Ruchi Verma
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BETUL: बिना फॉरेस्ट क्लीयरेंस शुरू हुआ इलेक्ट्रॉनिक पार्क विवादों में, अब तक 2 करोड़ रुपए खर्च, LUN के MD की भूमिका पर सवाल

BHOPAL: एक तरफ तो मध्यप्रदेश सरकार राज्य को औद्योगिक हब के रूप में विकसित करने के बड़े-बड़े दावे करती है, और वहीं दूसरी तरफ उसके अपने ही विभागों की कन्फ्यूज़न और अधिकारियों की लापरवाही के चलते औद्योगिकीकरण के उसके प्रोजेक्ट मुश्किलों में पड़ रहें हैं। इसका ताज़ा मामला बैतूल जिले में सामने आया हैं जहाँ जमीन अधिग्रहण के पेंच फसने के चलते तहसील घोड़ाडोंगरी के ग्राम चोरडोंगरी की जमीन (खसरा नंबर 13/1) पर बनने वाले इलेक्ट्रिकल-मेकैनिकल क्लस्टर के भविष्य पर सवालिया निशान लग गया है। बैतूल के इस इलेक्ट्रिकल-मेकैनिकल क्लस्टर का निर्माण मध्य प्रदेश लघु उद्योग निगम द्वारा किया जा रहा है। 





आपत्ति इस बात को लेकर उठी है कि क्लस्टर की जिस ज़मीन को राजस्व विभाग की ज़मीन बताकर उद्योग विभाग को आवंटित कर दिया गया, वह असलियत में जंगल मद की भूमि है। और जंगल मद की ज़मीन होने के बावजूद प्रोजेक्ट के लिए फॉरेस्ट क्लीयरेंस नहीं लिया गया है और औद्योगिक क्षेत्र के निर्माण का कार्य चालू है। मामले में बैतूल मुख्य वन संरक्षक,जिला व्यापर एवं उद्योग केंद्र के महाप्रबंधक रोहित डाबर, उद्योग आयुक्त पी नरहरि, लघु उद्योग निगम (एलयूएन) के के प्रबंध संचालक (एमडी) विशेष गढ़पाले के भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। आरोप है कि पूरे मामले में वन अधिकारियों और राजस्व अधिकारियों की मिलीभगत हैं और इसीलिए कई शिकायतों के बावजूद मामले में कोई कार्यवाही नहीं हो रही। सभी अधिकारी, यहाँ तक की वन मंत्री विजय शाह भी, मसले पर टालमटोल का रवैया अपना रहे है....हालाँकि एक फॉरेस्ट अधिकारी ने यह जरूर माना कि उक्त ज़मीन पर कार्य के लिए फॉरेस्ट क्लीयरेंस लगेगा।





यह है पूरा मामला







  • शिकायतकर्ता प्रकाश चौरसिया ने 3 मार्च 2022 को वन विभाग में PCCF सुनील अग्रवाल को, वन विभाग के प्रमुख सचिव अशोक वर्णवल को, मध्य प्रदेश शासन मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस को, और बैतूल CCF को एक शिकायत पत्र भेजा था जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि जिला बैतूल की तहसील घोड़ाडोंगरी के ग्राम चोरडोंगरी के खसरा क्रमांक 13/1 पर बिना फारेस्ट क्लीयरेंस के उद्योग विभाग द्वारा इल्क्ट्रिकल मैकेनिकल क्लस्टर बनाया जा रहा है।



  • यह जमीन राजस्व अभिलेख निस्तार पत्रक में और अधिकार अभिलेख में जंगल मद में छोटे-बड़े झाड़ के जंगल के रूप में दर्ज़ है। साथ ही उपरोक्त जमीन भारतीय वन अधिनियम की धारा 4 में भी अधिसूचित भूमि में भी आती है। वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के अनुसार ऐसी ज़मीन पर किसी भी गैर-वन गतिविधि के लिए केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति यानि की फॉरेस्ट क्लीयरेंस जरुरी है।


  • परन्तु अधिकारियों ने इस तथ्य को छुपाकर कि जमीन जंगल मद की है, इसका आवंटन उद्योग विभाग को गैर-वन कार्य यानी कि इलेक्ट्रॉनिक-मैकेनिकल क्लस्टर डेवलपमेंट के लिए कर दिया। उद्योग विभाग ने भी इस ज़मीन पर औद्योगिक क्षेत्र का निर्माण कार्य शुरू करने से पहले फॉरेस्ट क्लीयरेंस लेना ज़रूरी नहीं समझा। विभाग ने क्लस्टर के डेवलपमेंट के लिए टेंडर भी जारी कर दिए और कार्य भी शुरू करवा दिया।


  • शिकायतकर्ता द्वारा जिला व्यापर एवं उद्योग केंद्र के महाप्रबंधक रोहित डाबर को मामले से अवगत कराया गया था।






  • मामले में कोई ठोस कार्यवाही नहीं 







    • शिकायत मिलने के बाद वन विभाग में PCCF सुनील अग्रवाल ने बैतूल CCF को तीन से चार  बार (4 मार्च, 2022 को, 5 अप्रैल, 2022 को, 18 अप्रैल,2022 को, और 10 मई, 2022) लेटर लिखा कि मामले में जांच कर प्रतिवेदन भेजिए, पर इसके बाद भी PCCF को CCF के तरफ से कोई जवाब नहीं मिला। द सूत्र ने इस बारे में बैतूल CCF से बात की तो उन्होंने पहले तो बात को यह कहकर टालने की कोशिश की कि उस जमीन को रिजेक्ट कर दिया गया है पर दोबारा बात करने पर उन्होंने बोला कि उन्हें चोरडोंगरी की ज़मीन के बारे में कोई जानकारी नहीं है और इस बारे में DFO राकेश J से बात करें।



  • द सूत्र ने बात की DFO राकेश J से तो उन्होंने कहा कि इस बारे में जांच भी हुई है जिसका जांच प्रतिवेदन बना के दे दिया गया है....DFO ने कहा कि असलियत में वो जमीन फॉरेस्ट लैंड नहीं है और राजस्व की जमीन है...पर पेंच यह है कि रेवेन्यू के रिकार्ड्स में वो छोटे-बड़े झाड़ का जंगल मद में दर्शा रहा है। उनसे जब यह पूछा गया कि FPA एक्ट के तहत मुद्दा फॉरेस्ट क्लीयरेंस का है...और क्या फॉरेस्ट क्लीयरेंस की ज़रूरत है तो उन्होने भी माना कि है फॉरेस्ट क्लीयरेंस तो लगेगा। और बिना फॉरेस्ट क्लीयरेंस के निर्माण कार्य जारी रहने के सवाल पर उन्होंने मामले का करंट स्टेटस पता कर जवाब देने की बात कही।


  • जिला व्यापार एवं उद्योग केंद्र के महाप्रबंधक रोहित डाबर ने शिकायत मिलने के बाद शाहपुर अनुविभागीय राजस्व अधिकारी द्वारा जांच करवाकर उद्योग आयुक्त पी नरहरि को की गई कार्यवाही की जानकारी दी... इसमें उन्होंने बोला कि जांच में सामने आया है कि उक्त जमीन तकनीकी गलती के कारण छोटे झाड़ के जंगल मद में अंकित है....और असल में ज़मीन घास मद में राजस्व की ज़मीन है। जब द सूत्र ने उद्योग आयुक्त पी नरहरि से बात कि तो उन्होंने बोला कि उन्हें मामले के बारे में पता करना पड़ेगा तभी वो कोई जवाब दे सकते हैं।


  • लघु उद्योग निगम के MD विशेष गढ़पाले को भी शिकायत की गई कि बैतूल की जिस जमीन पर क्लस्टर का निर्माण कार्य जारी है वह जंगल मद की है...वहां के लिए वन संरक्षण अधिनियम,1980 के तहत फॉरेस्ट क्लीयरेंस लिया जाए अन्यथा यह सुप्रीम कोर्ट के आदेशों कि अवमानना होगी...परन्तु कोई एक्शन नहीं लिया गया। द सूत्र ने जब गढ़पाले से बात करने की कोशिश की तो उन्होंने जवाब दिया कि वो भोपाल से बाहर हैं।






  • साफ़ है कि जब निस्तार पत्रक में यह साफ़ लिखा है कि उक्त ज़मीन जंगल मद की है और उसके बावजूद वन अधिकारी और राजस्व अधिकारी सबूतों को नज़रअंदाज़ कर रहें हैं। इस तरह से निस्तार पत्रक में दिए गए रिकॉर्ड को न मानकर गलत तथ्यों के आधार पर बिना फॉरेस्ट क्लीयरेंस के फॉरेस्ट लैंड के रूप में दर्ज़ उक्त ज़मीन पर इलेक्ट्रिकल मैकेनिकल क्लस्टर डेवलपमेंट का काम जारी रखना SC के आदेश का साफ़ उल्लंघन है।





    सुप्रीम कोर्ट ने अपने टी एन गोदवर्मन VS यूनियन ऑफ़ इंडिया प्रकरण आदेश - दिनाँक 12/12/1996 - में साफ़ कहा था





    "किसी भी "वन" के क्षेत्र के भीतर किसी भी गैर-वन गतिविधि के लिए केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति आवश्यक है। वन संरक्षण अधिनियम, 1980 की धारा 2 के अनुसार, केंद्र सरकार के पूर्वानुमोदन के बिना, पूरे देश में किसी भी राज्य में किसी भी वन के भीतर चल रही सभी गतिविधियों को तुरंत बंद कर देना चाहिए। इसलिए, केंद्र सरकार के पूर्व अनुमोदन के बिना ऐसी किसी भी प्रकार की गैर-वन उद्देश्यक गतिविधि वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के प्रावधानों का प्रथम दृष्टया उल्लंघन है। प्रत्येक राज्य सरकार को तत्काल ऐसी सभी गतिविधियों को पूरी तरह से बंद करना सुनिश्चित करना चाहिए।"





    प्रोजेक्ट पर अब तक 2 CR  से ज्यादा रुपए खर्च, अटकने पर किसकी होगी जिम्मेदारी?



    अब इस सिचुएशन को देखकर तो यही लगता है कि मामले में अधिकारी अपने स्वार्थ के लिए खुद ही कोई ठोस कार्यवाही नहीं करना चाहते। सरकार के विभागों में आपसी समन्वय व सूझबूझ नहीं होने के कारण योजना में देरी होती है, और निर्माणाधीन प्रोजेक्ट की न सिर्फ लागत बढ़ जाती है। और अब अगर बैतूल इलेक्ट्रॉनिक मैकेनिकल क्लस्टर का मामला कोर्ट में जाता है -जैसा कि शिकायतकर्ता ने कहा है - और प्रोजेक्ट अटकता है तो इसके वजह से होने वाले नुक्सान की जवाबदेही कौन लेगा - वन विभाग, राजस्व विभाग या उद्योग विभाग? क्योंकि जैसी कि जानकारी है प्रोजेक्ट पर अब तक दो करोड़ से ज्यादा रुपए कर दिए गए खर्च किये जा चुके हैं।  ये वहीँ प्रोजेक्ट हैं जिनके समय पर पूरा हो जाने से हजारों करोड़ रुपये का निवेश होता तो वहीं हजारों लोगों को रोजगार मिलता। अगर अधिकारियों की गलतियों के कारण निवेश लाने और रोजगार देने वाले सरकार के कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट महीनों के लिए अटक जाते हैं।





    जमीन अधिग्रहण के पेंच के चलते विवादों में उलझे MP के आधा दर्जन सरकारी प्रोजेक्ट







    • मध्य प्रदेश सरकार ने करीब दो साल पहले इंदौर में फर्निचर क्लस्टर और टॉय क्लस्टर के रूप में दो नए औद्योगिक क्षेत्रों के विकास की घोषणा की थी। धार रोड पर छोटा बेटमा पर 400 एकड़ से ज्यादा जमीन पर फर्निचर क्लस्टर बनाने की योजना थी। इसी तरह रंगवासा में महज सवा लाख वर्गफीट जमीन पर खिलौना क्लस्टर बनना था। पर मार्च, 2022 तक तो ये दोनों औद्योगिक क्षेत्र जमीन पर ही नहीं उतर सके। कारण रहा जमीन आवंटन में देरी। फर्निचर क्लस्टर के संयोजक हरीश नागर के अनुसार हमारे यहां एसपीव्ही ने करीब सवा करोड़ रुपये न केवल एकत्र किए बल्कि सरकारी एजेंसियों के पास जमा भी करवा दिए।अब जमीन आवंटन में वन विभाग की बाधा बताई गई। इसी तरह खिलौना क्लस्टर को दी जाने वाली जमीन भी आईटी इंडस्ट्री के नाम से पूर्व में आरक्षित बताई गई। इस जमीन पर भी स्थिति साफ नहीं होने से कई उद्यमियों को अपनी उद्योग की योजना ही टालनी पड़ी। इसके बाद क्लस्टर के शुरू होने में देरी कि शिकायत पर MSME मंत्री ओमप्रकाश सकलेचा ने उद्योगपतियों की इंदौर में बैठक ली और अप्रैल तक आवंटन का वादा किया



  • सलमपुरा के पास पीथमपुर -7 के नाम से बन रहे नए निवेश क्षेत्र की जमीन पर वन विभाग ने आपत्ति जता कर रोक लगा दी है...यह तब है जबकि मध्यप्रदेश औद्योगिक विकास निगम इंदौर इसे बनाने के लिए लगभग 550 करोड़ के टेंडर भी जारी कर चुका है। MPIDC यानी औद्योगिक विकास निगम इंदौर का कहना है कि उन्होंने विकास कार्य शुरू करने के पहले जाहिर सूचना प्रकाशित की थी। वन विभाग को तभी आपत्ति जताना थी। इधर वनसंरक्षक इंदौर का कहना है कि इस मामले में उन्हें कोई सूचना नहीं दी गई। इसलिए हमने अपनी 16 हेक्टेयर जमीन पर तार फेंसिंग कर विभाग के मालिकाना हक का बोर्ड लगवा दिया है।


  • इसी तरह बैतूल के डूडाबोरगाओं में बनने वाला बम्बू क्लस्टर भी जमीन की दिखातों के कारण रोक दिया गया




  • Supreme Court Madhya Pradesh Forest Minister Vijay Shah Betul Madhya Pradesh Forest Department msme minister mp P NARHARI इलेक्ट्रॉनिक-मैकेनिकल क्लस्टर FOREST CLEARANCE FOREST PREVENTION ACT 1980 REVENUE DEPARTMENT MP