मां शारदा: माई का हार गिरने से बना मैहर, दावा आज भी सबसे पहले पूजा करते है आल्हा

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मां शारदा: माई का हार गिरने से बना मैहर, दावा आज भी सबसे पहले पूजा करते है आल्हा

सचिन त्रिपाठी, मैहर. मध्यप्रदेश के मैहर में देवी मां का प्रसिद्ध मंदिर है। मैहर, सतना जिले का एक शहर है। यहां के त्रिकूट पर्वत पर मां शारदा देवी विराजी हैं, जो यहां के लोगों के आस्था का बड़ा केंद्र है। भक्तों में नवरात्रि के दिनों में देवी मां के प्रति आस्था के सैलाब उमड़ पड़ता है। मां भवानी के मंदिरों में माथा टेकने देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं। इस मंदिर से जुड़ी कई जनश्रुतियां और मान्यतायें प्रचलित हैं। 'द सूत्र' की इस खास सीरीज में पढ़िए मैहर और माँ शारदा की अद्भुत कहानियां…। 



कंठ की देवी मां शारदा की महिमा



ज्ञान की देवी मां शारदा का मैहर स्थित यह मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है। लोगों का कहना है कि यहां मां जगदंबा के सती रूप का हार और कंठ गिरा था। मां को माई भी कहते हैं। माई का हार गिरने के कारण पहले इस शहर को मइहर कहा गया। बाद में लोग इस शहर को मैहर कहने लगे। कंठ (गला) गिरने के कारण यह विद्या की देवी मां शारदा कहलाईं। मंदिर के पुजारी सुमित पांडेय ने 'द सूत्र' को बताया कि मां सती पर भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र चलाया था, तो उनके 52 टुकड़े हुए थे। इनमें से मां का कंठ और हार यहां गिरे थे। पुजारी ने बताया कि यहां हमेशा ही श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। चैत्र और शारदीय नवरात्रि में मां के दरबार में माथा टेकने का खास महत्व है। 



पट खुलने से पहले कौन कर जाता है पूजा



त्रिकूट वासिनी मां शारदा की पूजा अर्चना को लेकर कहा जाता है कि महोबा के वीर आल्हा सबसे पहले माई की पूजा करते हैं। प्रधान पुजारी रहे गोलोकवासी देवी प्रसाद पांडेय ने तो कई बार दावा किया था कि पट खुलने से पहले ही माई की ड्योढ़ी (मां के चरणों) में फूल चढ़े मिले। हालांकि वर्तमान पुजारी ने कहा कि इस बारे में सुना है। जनश्रुतियां के अनुसार 12 वीं सदी में महोबा के आल्हा और ऊदल मां शारदा के परम भक्त थे। आल्हा ने त्रिकूट पर्वत पर ही 12 वर्षों तक तप किया था। इसके अलावा शीश भी मां के चरणों में समर्पित कर दिया था। इस बात से प्रसन्न होकर मां ने आल्हा को अमरता का वरदान दिया था। तब से वह प्रतिदिन पट खुलने से पहले ही पूजा कर रहा है। 



ग्वाले को माई ने दिए थे दर्शन



एक कहानी यह भी प्रचलन में है कि ग्वाले को माई ने पहले दर्शन दिए थे। 200-250 साल पहले की बात है। एक ग्वाला जिसका नाम दामोदर था। वह रोजाना त्रिकूट पर्वत के आसपास गाय चराने जाता था। कुछ दिनों बाद एक सुंदर सी गाय आकर उसके झुंड में शामिल हो गई, जो दिन में झुंड में रहती थी और शाम होते ही अलग पर्वत में चली जाती थी। ये क्रम कई दिनों तक चला। एक दिन ग्वाला भी उसके पीछे-पीछे पर्वत में गया। वह गाय एक झोपड़ी में घुस जाती है। वहां से एक वृद्ध औरत निकलती है। वह बूढ़ी औरत उसे आशीर्वाद देकर गायब हो जाती है। इसके बाद ग्वाले ने यह बात तब के राजा दुर्जन सिंह जूदेव को बताई थी। कहते हैं राजा ने मूर्ति स्थापना कर पूजा पाठ कर भण्डारा किया था। 



पहाड़ी में सांप, 8 सपेरे तैनात



चैत्र नवरात्रि 2 अप्रैल से शुरू हो रही है। ऐसे में मां शारदा के दरबार में माथा टेकने आने वाले श्रद्धालुओं को किसी तरह की असुविधा ना हो, इसके लिए सतना जिले प्रशासन और पुलिस ने इंतजाम किए हैं। मैहर तहसीलदार मानवेन्द्र सिंह ने 'द सूत्र' को बताया कि पहाड़ी में सांप हैं, इसलिए सपेरों का विशेष इंतजाम किया है। 8 सपेरे लगाए गए हैं। इसके अलावा गर्मी से बचाने के लिए टेंट और पंखों की व्यवस्था जगह-जगह पर की गई है। साथ ही 1000 पुलिस बल की अतिरिक्त व्यवस्था भी की गई है। 


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