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हरीश दिवेकर, BHOPAL. प्रदेश में लागू होने वाली नए पदोन्नति नियम 2022 में एससी-एसटी कर्मचारी-अधिकारियों को भारी झटका लग सकता है। प्रस्तावित नियमों के अनुसार 3 साल तक पदोन्नति के लिए एससी-एसटी के कर्मचारी-अधिकारी पदोन्नति के लिए नहीं मिलते हैं तो उक्त पद स्वयं समाप्त हो जाएंगे। चौथे साल से नई चयन सूची में जो पदोन्नति के पद निर्मित होंगे केवल उन्हीं पदों पर ही एससी-एसटी कर्मचारी-अधिकारियों को पदोन्नति मिलेगी। इससे पहले 15 सितंबर को द सूत्र ने अपनी एक्सक्लूसिव खबर में बताया था कि प्रमोशन के प्रस्ताव पर विधि विभाग ने आपत्ति लगा दी थी।
प्रस्तावित पदोन्नति नियम पर कानून विभाग ने आपत्ति जताई थी
दरअसल सामान्य प्रशासन विभाग के प्रस्तावित पदोन्नति नियम पर लॉ डिपार्टमेंट ने कई आपत्तियां ली थी, इसमें एक प्रमुख आपत्ति ये थी कि यदि चयन वर्ष में पदोन्नति के लिए एससी-एसटी के कर्मचारी या अधिकारी नहीं मिलते हैं तो इनके पदों को अनिश्चितकाल तक खाली नहीं रखा जा सकता। सरकार को इसकी समय सीमा तय करना होगी। लॉ की आपत्ति के बाद जीएडी एसीएस विनोद कुमार ने 16 सितंबर को सीनियर अफसरों के साथ बैठक कर तय किया कि चयन वर्ष में एससी-एसटी के लिए रिजर्व होने वाले पदोन्नति पर के लिए यदि कर्मचारी-अधिकारी नहीं मिलते हैं तो इन्हें तीन साल तक के लिए रिजर्व किया जाएगा। इसके बाद ये पद खुद ब खुद खत्म हो जाएंगे।
यानी यदि चौथे साल में एससी-एसटी के कर्मचारी-अधिकारी पदोन्नति के लिए पात्र होते हैं तो उन्हें उसी वर्ष में निकलने वाले पदोन्नति पदों पर ही पदोन्नति मिलेगी। ऐसे में यदि एससी-एसटी कर्मचारियों की संख्या ज्यादा हुई तो उन्हें पदोन्नति के लिए अगले साल इंतजार करना होगा। बैठक में लिए गए फैसलों के आधार पर पदोन्नति नियम 2022 में बदलाव कर मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस को भेजा जाएगा। मुख्य सचिव इस मामले में सीएम शिवराज सिंह से चर्चा करेंगे। उनकी सहमति होने के बाद इन नियमों को कैबिनेट में लाया जाएगा।
डेटा संग्रहित करने वाली आपत्ति बनेगी सिरदर्द
लॉ डिपार्टमेंट ने एक ओर मुख्य आपत्ति की थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि एससी-एसटी कर्मचारी-अधिकारियों को प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिले। इसके लिए सरकार को मात्रात्मक डेटा जुटाना होगा। लॉ ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा था कि सरकार डेटा किसी भी तरह से इकट्ठा कर सकती है, लेकिन वो साइंटिफिक होना चाहिए, जिसे कोर्ट के सामने साबित किया जा सके। जीएडी एसीएस विनोद कुमार की अध्यक्षता में हुई सीनियर अफसरों की बैठक में लॉ डिपार्टमेंट की इस महत्वपूर्ण आपत्ति को गंभीरता से नहीं लिया।
बैठक में तय किया गया कि एससी-एसटी का डेटा संग्रहित करने के लिए एक समिति गठित की जाएगी। समिति किस आधार पर डेटा संग्रहण करेगी, जिसका अभी नियम में उल्लेख नहीं किया जा रहा है। दरअसल सीनियर अफसर भी ये जानते हैं कि साइंटिफिक और अधिकृत डेटा सिर्फ जनगणना से ही मिल सकता है, लेकिन 2011 की जनगणना का डेटा ही सरकार के पास है। नई जनगणना 2021 में होनी थी, लेकिन किन्हीं कारणों से नहीं हो पाई। अब नई जनगणना कब होगी, इसकी भी अभी कोई जानकारी सरकार के पास नहीं है। ऐसे में सरकार के लिए लॉ डिपार्टमेंट की डेटा संग्रहण करने की आपत्ति आगे चलकर सिरदर्द बन सकती है।
6 साल से अटके हैं प्रमोशन
मप्र में 6 साल से प्रमोशन में आरक्षण पर रोक लगी है। हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल 2016 को प्रमोशन में आरक्षण से जुड़े नियम 2002 को खारिज कर दिया था। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। कोर्ट ने मई 2016 में यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश दिए थे। इन 6 सालों में 70 हजार से ज्यादा कर्मचारी रिटायर हो चुके हैं। इनमें से करीब 39 हजार कर्मचारी रिटायरमेंट तक पदोन्नति का इंतजार करते रह गए, लेकिन प्रमोशन नहीं मिला। अब इस फैसले को चुनावी कहना गलत नहीं होगा। 2023 के विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। उसमें कर्मचारियों की नाराजगी सरकार पर भारी न पड़े, इसलिए सरकार इस रोक को हटाने की कवायद कर रही है।
द सूत्र की खबर- प्रमोशन के प्रस्ताव पर विधि विभाग ने लगाई आपत्ति
मध्यप्रदेश के लाखों सरकारी कर्मचारी और अधिकारियों के प्रमोशन पर पानी फिर सकता है। कर्मचारी और अधिकारी पिछले 6 साल से प्रमोशन की राह देख रहे हैं। कर्मचारियों को कुछ दिनों पहले बड़ी खुशी हुई थी, क्योंकि सरकार ने प्रमोशन के नए नियम बनाए थे, लेकिन ये नियम कैबिनेट में आते उससे पहले ही लॉ डिपार्टमेंट ने इस पर आपत्ति लगा दी है। लॉ डिपार्टमेंट की आपत्ति के बाद अब लाखों कर्मचारियों के प्रमोशन का मामला अटक गया है।
लॉ डिपार्टमेंट ने सामान्य प्रशासन विभाग को पत्र लिखकर कहा है कि पदोन्नति में आरक्षण वाले प्रस्तावित नियम-2022 में एससी-एसटी कर्मचारी-अधिकारियों को पदोन्नति में आरक्षण पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने की बात कही गई है। पर्याप्त प्रतिनिधित्व के लिए कर्मचारी-अधिकारियों का डेटा अनिवार्य होगा लेकिन नियमों में कहीं भी ये नहीं लिखा गया है कि पर्याप्त प्रतिनिधित्व का डेटा कहां से लिया जाएगा और उसकी गणना कैसे की जाएगी।
पूरी खबर पढ़िए.. मध्यप्रदेश के लाखों कर्मचारियों के प्रमोशन का मामला अटका, सरकार के प्रस्ताव पर विधि विभाग ने क्यों लगाई आपत्ति ?