BHOPAL. मध्यप्रदेश के मंत्री बिसाहूलाल सिंह का बयान एक बार फिर सुर्खियों में है। 16 अक्टूबर को रतलाम में बिसाहू बोल गए कि शेर हम लोग मारते थे, नाम राजा का होता था। राजा तो मंच पर दारू पीकर पड़े रहते थे, हम लोगों को लगा देते थे कि जाओ शेर मारो। इस बयान ने सियासी हलकों में हड़कंप सा मचा दिया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1900 में देश में 1 लाख बाघ हुआ करते थे।
बाघ मारने को शान समझा जाता था
पुराने दौर में बाघ का शिकार मुख्यत: राजाओं-महाराजाओं द्वारा किया गया। बांधवगढ़ शासक अपनी व्यक्तिगत बहादुरी को प्रतिष्ठित रखने के उद्देश्य से 109 शेरों का शिकार (माला) पूर्ण करने का प्रयास किया जाता था। कहा जाता है महाराज वेंकट रमन सिंह ने 1913-14 तक 111 बाघों का शिकार किया। 109 बाघों का शिकार होने पर माला मानी गई और इसे बड़ी धूमधाम से पूरे राज्य में उत्सव के रूप में मनाया गया था। रीवा के महाराज गुलाब सिंह ने 144 बाघों का शिकार किया। यही नहीं 1923-24 में महज 1 साल में ही 83 बाघों का शिकार कर डाला। उस समय शिकार पर किसी तरह का प्रतिबंध नहीं था।
मार्तंड सिंह ने व्हाइट टाइगर की ब्रीडिंग के लिए काम किया
रीवा के अंतिम शासक महाराजा मार्तंड सिंह ने सफेद बाघ मोहन को पकड़कर ना केवल पाला पोसा, बल्कि ब्रीडिंग करवाकर दुनिया को सफेद बाघ का उपहार दिया। 19 साल में व्हाइट टाइगर मोहन 34 शावकों का पिता बना। मोहन की संतानों ने विश्वभर में 144 सफेद और 56 सामान्य बाघों को जन्म दिया, जो आज भी एक विश्व रिकॉर्ड है।
बाघों को बचाने के लिए प्रोजेक्ट टाइगर 1973
टाइगर को बचाने के लिए उत्तराखंड के जिम कार्बेट नेशनल पार्क से प्रोजेक्ट टाइगर शुरू किया गया। मध्यप्रदेश में प्रोजेक्ट टाइगर मंडला के कान्हा राष्ट्रीय उद्यान से शुरू हुआ। कान्हा को मध्यप्रदेश का पहला टाइगर रिजर्व बनाया गया। मध्यप्रदेश में अब 526 बाघ है। देश में सबसे ज्यादा बाघ अभी मध्यप्रदेश में हैं। 524 बाघों के साथ कर्नाटक का बांदीपुर नेशनल पार्क दूसरे और 442 बाघों के साथ उत्तराखंड का जिम कार्बेट तीसरे स्थान पर है। प्रदेश के 6 नेशनल पार्क कान्हा, पेंच, सतपुड़ा, संजय दुबरी, बांधवगढ़, पन्ना में टाइगर रिजर्व हैं। उल्लेखनीय है कि बाघ गणना के अनुसार भारत में बाघ की संख्या 2 हजार 967 है, जो विश्व की संख्या का लगभग 75 प्रतिशत से ज्यादा है।