Bhopal. पंचायत एवं निकाय चुनावों की दौड़भाग के बीच नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह ने विधानसभा के आगामी मानसून सत्र को लेकर पत्र भेजा है। नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद डॉ. सिंह का यह पहला सत्र होगा। जिम्मेदारी संभालते ही आक्रामक रवैया अपनाने वाले नेता प्रतिपक्ष सिंह ने लगातार छोटे हो रहे विधानसभा सत्रों को लेकर आपत्ति जताई है। साथ ही सरकार पर जन समस्याओं के ज्वलंत मुद्दों से भागने का सीधा आरोप मढ़ते हुए पंचायत एवं निकाय चुनावों के बाद विधानसभा का मानसून सत्र बुलाने की मांग की है, वह भी कम से कम 20 दिवसीय। डॉ. सिंह ने सदन में चर्चा लंबित मुद्दों की फहरिस्त से अगले सत्र के माहौल के संकेत भी दिए हैं।
अपने आक्रामक तेवर और बयानों से सरकार को आए दिन घेरने वाले नेता प्रतिपक्ष डॉ. सिंह ने विधानसभा के मानसून सत्र को लेकर सुगबुगाहट शुरू होते ही सीएम शिवराज सिंह चौहान को पत्र भेजकर मानसून सत्र पंचायत चुनाव एवं नगरीय निकाय चुनाव के बाद कराने पर जोर दिया है। उन्होंने सीएम से मांग की है कि पंचायत एवं निकाय चुनावों के बाद कम से कम 20 बैठक का मानसून सत्र बुलाया जाए, ताकि सदन में प्रदेश की जन-समस्यायें एवं ज्वलंत मुद्दों पर विस्तृत चर्चा हो सके। नेता प्रतिपक्ष ने पत्र में लंबे सत्र की पैरवी करते हुए लिखा है कि सरकार की नाकामियों को उजागर करने, प्रदेश में जनहितैषी योजनाओं का क्रियान्वयन कराने व भ्रष्ट्राचार जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे उठाने के अवसर सत्रों में मिलते होते हैं, लेकिन प्रदेश में जबसे बीजेपी की सरकार बनी है तब से सदन की बैठकों में निरन्तर कमी होती जा रही है। जबकि संविधान में निहित भावनाओं के अनुरूप संविधान विशेषज्ञों ने समय—समय पर वर्ष में कम से कम 60 से 75 बैठकें आहूत करने की सिफारिशें की गई है। मगर इसके विपरीत राज्य सरकार की मानसिकता केवल सरकारी कामकाज निपटाने के लिए विधानसभा का सत्र बुलाने की हो गई है। इसीलिए सीमित समय के सत्र बुलाने की परंपरा सी बन गई है। वहीं कांग्रेस शासनकाल का हवाला देते हुए सिंह ने कहाकि पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में विधानसभा सत्र की अधिक से अधिक बैठकें होती थीं। सत्र की अधिसूचना के पूर्व विपक्ष से चर्चा की जाती थी, किंतु भाजपा सरकार में यह परंपरा समाप्त कर दी है जो चिंतनीय है।
राष्ट्रपति चुनाव के कारण 11 जुलाई से सत्र की तैयारी
नेता प्रतिपक्ष सिंह द्वारा विधानसभा का मानसून सत्र पंचायत एवं निकाय चुनाव के बाद बुलाए जाने की मांग करने के पीछे मुख्य वजह है सरकार की तैयारी। सूत्रों के मुताबिक सरकार द्वारा 11 जुलाई से मानसून सत्र की तैयारी शुरू कर दी गई है। 11 दिनी यह सत्र 22 जुलाई तक चलना था। इसकी वजह है राष्ट्रपति चुनाव। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 25 जुलाई को पूर्ण हो रहा है। इसके लिए सभी विधानसभा का मानसून सत्र बुलाया जाना जरूरी है। मगर अब निकाय चुनावों तक मामला टल सकता है अथवा विशेष सत्र के जरिए राष्ट्रपति चुनाव की औपचारिकताएं पूर्ण की जा सकती हैं।
लंबे सत्र के लिए इन सिफारिशों का दिया हवाला
— लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने हिमाचल प्रदेश के पीठासीन सम्मेलन में राज्य विधानमण्डल की बैठके वर्ष में 60 से 70 करने की सिफारिश की है।
— पूर्व लोक सभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी की अध्यक्षता में हुए विधानसभा अध्यक्षों के सम्मेलन में भी प्रतिवर्ष कम से कम 60 बैठकें प्रतिवर्ष आयोजित करने की सिफारिशें की थी।
— गोवा में 13-14 अक्टूबर 2014 को आयोजित सोलहवें अखिल भारतीय सचेतक सम्मेलन में सर्व सम्मति से यह सिफारिश की गई थी कि छोटे राज्यों की विधानसभा में कम से कम 30 बैठकें, मध्यम और बड़े राज्यों में कम से कम 70 बैठकें प्रतिवर्ष होना चाहिए।
द सूत्र के मुद्दों पर नेता प्रतिपक्ष ने बनाया पत्र का आधार
द सूत्र ने दो दिन पहले ही 7 जून को ही 400 सवाल अनुत्तरित और छोटे—छोटे सत्र शीर्षक के साथ डिटेल खबर प्रसारित की थी। साथ ही सूत्रधार में इन जिन मुद्दों और लंबे समय से लंबित विभिन्न जांच आयोगों की रिपोर्ट्स पर फोकस किया था, उन्हीं सारे तथ्यों और आंकड़ों को नेता प्रतिपक्ष सिंह ने अपने पत्र का आधार बनाया है। द सूत्र के कार्यक्रम स़ूत्रधार में नेता प्रतिपक्ष सिंह और विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम से भी इन मुददों पर द सूत्र ने बात की थी।
17 साल पुराना है पेंशन घोटाला, दस साल से दबी है रिपोर्ट
नेता प्रतिपक्ष ने अपने पत्र में सीएम से 20 दिन का मानसून सत्र बुलाने की मांग करते हुए चर्चा के मुद्दे भी गिनाए हैं। नेता प्रतिपक्ष ने आरोप लगाया है कि प्रदेश में जनसमस्याएं से जुड़े मुद्दे गिनाते हुए सरकार पर चर्चा से बचने का आरोप लगाया है। साथ ही 7 जांच आयोगों की रिपोर्ट पर भी चर्चा कराने की जरूरत बताई है। नेता प्रतिपक्ष ने लंबित मुद्दों में इंदौर के चर्चित पेंशन घोटाले की जांच के लिए बने आयोग की रिपोर्ट पर अगले सत्र में चर्चा कराने पर जोर दिया है। 17 साल पुराने इस मामले की जांच के लिए 2008 में न्यायिक जांच आयोग का गठन किया गया था। आयोग ने 5 सितंबर 2012 को अपनी रिपोर्ट शासन को सौंप दी थी। मगर आज तक यह रिपोर्ट सदन के पटल पर नहीं आई है। जबकि जांच रिपोर्ट का परीक्षण करने के लिए मंत्रिपरिषद की उपसमिति के द्वारा भी परीक्षण किया जा चुका है।
सदन के लिए यह है कांग्रेस का एजेंडा
कानून व्यवस्था: पिछले महीनों में प्रदेश में लगातार अनेक घटनाएं हुई हैं, इनमें सरकार की असफलताएं भी सामने आई है। प्रदेश में कानून व्यवस्था पूरी तरह चौपट हो चुकी है। चारों ओर अशांति एवं अराजकता का वातावरण बना हुआ है।
अपराध: चोरी, लूट, डकैती, अपरहण, हत्या, महिलाओं एवं अबोध बालिकाओं के साथ बलात्कार/सामूहिक बलात्कार एवं अपहरण तथा खरीद फरोख्त की घटनायें लगातार बढ़ती जा रही है।
बेरोजगारी: प्रदेश में बेरोजगारों की स्थिति विकराल हो रही है। विभिन्न शासकीय विभागों में बड़ी संख्या में अधिकारी—कर्मचारियों के पद रिक्त है परंतु सरकार द्वारा रिक्त पदों की पूर्ति नहीं की जा रही है।
माफिया: प्रदेश में वन माफिया हावी है जो धड़ल्ले से वनों की अवैध कटाई में संलग्न है, जिससे वन क्षेत्र का रकबा घट रहा है। भू-माफिया के नाम पर वैध मकानों पर बुलडोजर चलाकर तोड़ा जा रहा है। खनिज माफिया द्वारा रेत व अन्य खनिजों का राज्य सरकार के संरक्षण में अवैध उत्खनन किया जा रहा है, जिससे शासन को करोड़ों रूपयों की हानि हो रही है।
बिजली संकट : प्रदेश में विद्युत संकट गहरा गया है, नगरीय एवं ग्रामीण क्षेत्र में विद्युत कटौती की जा रही है। बिजली के भारी भरकम बिल देकर अवैध वसूली की जा रही है।
किसान: देश के किसान आत्महत्या कर रहे है। खाद-बीज के लिए भटक रहे तथा महंगे व नकली अमानक खाद खरीदने को मजबूर हैं।
महंगांई : पेट्रोल, डीजल एवं रसोई गैसों की अत्यधिक कीमतें बढ़ाए जाने के बाद नाम मात्र की कीमत घटाने से आम जनता को राहत नहीं मिल रही है, जिससे महंगाई चरम सीमा पर है।
स्वास्थ्य सेवाएं: प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्थायें पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। आम जनता निजी अस्पतालों में इलाज कराने को मजबूर है। आयुष्मान योजना भी घोटाले की भेंट चढ़ चुकी है।