Ruchi Verma/ OP Nema/ Lalit Upmanyu
Bhopal: भोपाल के जेपी अस्पताल में अपने बच्चे को जन्म देने वाली एक माँ का कहना है कि उसका बच्चा जन्म के बाद से ही कमजोर होने के कारण NICU में एडमिट है और अभी तक उसने दूध नहीं पिया है। परन्तु फिर भी वह अस्पताल में आकर मदर्स मिल्क बैंक में अपना दूध डोनेट करती है जिससे की अन्य उन बच्चों को दूध मिल सके जिनको जरुरत है। वह पिछले 7 दिनों से हर दिन दूध डोनेट कर रही है। मध्य प्रदेश के अस्पतालों में अक्सर ऐसे मामले आते हैं, जिनमें नवजात शिशु मां के दूध से वंचित हो रहे हैं अक्सर देखा जाता है कि कई ऐसी मां होती हैं, जो प्रसव के बाद ठीक तरीके से ब्रेस्ट फीडिंग नहीं करा पाती हैं। इसकी वजह प्रीमैच्योर प्रसव, ब्रेस्ट में मिल्क न बनना या अन्य कोई भी कारण हो सकता हैं। वहीं कई बार बच्चे इतने कमजोर पैदा होते है की वे स्तनपान नहीं कर पाते। इससे बच्चे को वो पोषक तत्व नहीं मिल पाते जो मां के दूध में होते है और जीवनरक्षक होते हैं। ऐसे में कई बार वे पैदा होते ही कमजोर होने के साथ-साथ बीमार भी पड़ जाते हैं। एक आंकड़े के अनुसार प्रदेश में सिर्फ 34.29 फीसदी यानी 4.8 लाख बच्चों को ही माँ का पहला दूध मिल पाता है। मध्य प्रदेश में जहाँ IMR देश में सबसे ज्यादा (46) है, यह आंकड़ा चिंताजनक है। इसी के चलते राज्य सरकार ने प्रदेश में भोपाल, इंदौर एवं जबलपुर में मदर्स मिल्क बैंक संचालित करने का निर्णय लिया था जहाँ माएँ अपना दूध डोनेट कर सकती हैं। इस मदर्स डे (8 मई, रविवार) के अवसर पर द सूत्र ने देखा की कैसे इन मिल्क बैंक्स के जरिये माएँ दे रहीं प्रदेश के नवजातों को जीवनदान।
भोपाल: जेपी अस्पताल का 'अमृत कलश' मदर मिल्क बैंक 15-80 नवजातों को हर महीने दे रहा जीवनदान
- भोपाल के जेपी अस्पताल में अमृत कलश के नाम से मदर मिल्क बैंक का संचालन किया जा रहा है। -फिलहाल यहाँ स्थित मिल्क बैंक का लाभ केवल उन्हीं बच्चों को मिल पाता है जो अस्पताल के एसएनसीयू में भर्ती हैं और खुद से फीड नहीं कर पा रहे हैं। मिल्क बैंक में इन बच्चों की मांओं का मिल्क स्टोर करके रखा जाता है और बाद में और बच्चों को दिया जाता है। बैंक में उपलब्ध सुविधाओं और तकनीकी की मदद से यह दूध करीब 6 माह तक सेफ रहता है।
इंदौर: एमटीएच हॉस्पिटल में शुरू हुआ था मप्र का पहला मिल्क बैंक, बच्चों की मृत्यु दर गिरकर हुई 10%
- प्रदेश में सबसे पहले मिल्क बैंक की स्थापना इंदौर में हुई थी। इंदौर के एमटीएच हॉस्पिटल में संचालित होने वाला मिल्क बैंक छह महीने पहले शुरू हुआ था। अब तक कई बच्चे इससे लाभान्वित हो चुके हैं । मिल्क बैंक के दूध से बच्चों की मृत्यु दर में आश्चर्यजनक ढंग से कमी आई है। कुछ महीने पहले तक डेथ रेट 25 से 30 प्रतिशत तक था, जो गिरकर 10-11 प्रतिशत तक आ गया है।
जबलपुर: 10 लाख के फंड के बावजूद फाइलों में नत्थी मदर्स मिल्क बैंक
- जहाँ भोपाल और इंदौर में मदर मिल्क बैंक बेहद अच्छा कार्य कर रहे हैं और आगे विस्तार की योजना बना रहे है वहीँ जबलपुर का रानी दुर्गावती महिला चिकित्सालय (एल्गिन अस्पताल) में शुरू होने वाला मदर्स मिल्क बैंक अफसरशाही और फाइलों में गुम होकर रह गया है। जनवरी, 2022 में इस मिल्क बैंक को 6 महीने के अंदर शुरू करने की घोषणा की गई थी। एनएचएम की योजना - जिसमें UNICEF का भी योगदान है - अच्छी थी लेकिन उन्हीं के अधिकारियों की लेटलतीफी के कारण महीनों से फाइलों में बंद है। जबकि इसके लिए आठ लाख का बजट भी स्वीकृत हो चुका है।
14 लाख बच्चों में से 9 लाख बच्चों को माँ का पहला दूध नसीब नहीं
महिला एवं बाल विकास के 2021 में बताए एक आंकड़े के अनुसार मध्य प्रदेश में जन्म लेने वाले 14 लाख बच्चों में से करीब 9 लाख बच्चों को माँ का पहला दूध यानि कि कोलोस्ट्रम नसीब नहीं होता। जन्म के एक घंटे के अंदर मिलने वाला मां का दूध बच्चे को कई बीमारियों से लड़ने की ताकत देता है लेकिन प्रदेश में सिर्फ 34.29 फीसदी यानी 4.8 लाख बच्चे ही यह दूध पी पाते हैं। वहाँ केवल 8 लाख बच्चों को 6 माह तक माँ का दूध दिया जाता है और 5.8 लाख बच्चे इससे वंचित रह जाते हैं। यह आंकड़ा काफी चिंताजनक इसलिए है क्योंकि वर्ष 2019 के सैंपल रजिस्ट्रेशन सर्वे के अनुसार मध्य प्रदेश में इन्फेंट मोर्टेलिटी दर-46, नवजात मृत्यु दर-33, प्रारंभिक नवजात मृत्यु दर-25 और अंडर-5 मृत्यु दर-53 देश में सबसे ज्यादा है। इन हालातों में मदर मिल्क बैंक - जिन्हें दुनिया भर में काम्प्रीहेन्सिव लेक्टेशन मैनेजमेंट सेंटर के नाम से जाना जाता है - नवजात को उचित पोषण देने के लिए कारगर साबित हो रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि मिल्क बैंक की मदद से भोपाल की शिशु मृत्यु दर में 22% तक की कमी आ सकती है।
जानिये क्या होता है मदर मिल्क बैंक और कैसे काम करता है
मदर्स मिल्क बैंक वो सुविधा है जिसमें मां अपना दूध सुरक्षित रख सकेंगी और जरूरत पड़ने पर ले सकेंगी। मिल्क बैंक में दूध उन माताओं से लिया जाएगा, जिनके बच्चे नहीं बचते, या फिर जिन्हें जरूरत से ज्यादा दूध आता है। इससे खासतौर से उन नवजातों को दूध मिल सकेगा, जिनकी मां प्रसव के बाद ब्रेस्ट फीडिंग की स्थिति में नहीं हैं या जिनकी माँ को दूध नहीं बनता अथवा वे नवजात जिनकी माँ की मौत हो चुकी है।
मदर्स मिल्क बैंक में 6 महीने तक सुरक्षित रहता है दूध
मदर मिल्क बैंक में इलेक्ट्रिक ब्रेस्ट पंप मशीन होती है। इसके माध्यम से डोनर से दूध लिया जाता है। इस दूध का माइक्रोबायोलॉजिकल टेस्ट होता है। रिपोर्ट में दूध की गुणवत्ता सही होने के बाद उसे कांच की बोतलों में 30-30 मिलीलीटर की यूनिट बनाकर -20 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर सुरक्षित रख दिया जाता है। वैसे एकत्र किया गया दूध सामान्य तापमान में 8 से दस घंटे तक स्टोर किया जा सकता है, जबकि फ्रिज में यह अवधि 48 घंटे तक होती है। पाश्चुरीकरण के बाद दूध बैंक में डीप फ्रीजर में 6 महीने तक सुरक्षित रहता है और जरूरत पड़ने पर यह नवजातों को दिया जाता है।
दूध डोनेट और स्टोर करने के नियम
- जब कोई माँ दूध डोनेट करने आती है तो सबसे पहले उसके स्वास्थ्य की पूरी जांच की जाती है और ये देखा जाता है इसमें किसी तरह की कोई बीमारी न हो तभी किसी माँ का दूध लिया जा सकता है।
मां के दूध के फायदे
- मां का दूध एक संपूर्ण आहार है और जिन्हें मां का दूध पीने को मिलता है, उनके जीवित रहने की संभावना 14 प्रतिशत बढ़ जाती है।