Jabalpur. मध्यप्रदेश के सबसे पुराने नगर निगम के चुनाव संपन्न हो चुके हैं। करीब एक महीने तक चली उहापोह के बाद अब जीत हार के चर्चे शहर के गली-नुक्कड़ों से लेकर ऑफिसों के गलियारों में चल रहे हैं। कोई अपने वार्ड के नतीजे का विश्लेषण कर रहा है तो कोई बीजेपी की हार और कांग्रेस की जीत का विषय विशेषज्ञ बना हुआ है। सबसे ज्यादा चर्चा सगे संबंधियों के बीच हुई चुनावी जंग और परिवार समेत राजनीति के मैदान में उतरे उम्मीदवारों की हार पर चटखारों के साथ चर्चा कर रहे हैं।
पूर्व विधानसभा क्षेत्र में भाई-भाई की जंग की चर्चा
जबलपुर के पूर्व विधानसभा क्षेत्र में एक छोटे भाई ने अपने ही बड़े भाई को चुनाव मैदान में पटखनी दी है। पूर्व मंत्री अंचल सोनकर ने अपने बेटे विवेक उर्फ राम सोनकर को अपने ही वार्ड से टिकट दिलाया था। पूर्व में इस वार्ड की कमान उनके भतीजे वीरेंद्र और उनकी पत्नी दीपमाला भी बतौर पार्षद संभाल चुकी हैं। हम बात कर रहे हैं वार्ड नंबर 52 की, जहां बेटे को टिकट दिलाए जाने से भतीजा बिफर पड़ा और आम आदमी पार्टी के टिकट से चुनाव मैदान में अड़ गया था। चुनाव के रिजल्ट सबके सामने हैं जिसमें विवेक उर्फ राम ने अपने बड़े भाई को हराकर जीत हासिल कर ली। वीरेंद्र सोनकर इस चुनाव में महज 817 वोट ही हासिल कर पाए।
शिवसेना के भाईयों को जनता ने नकारा
वहीं बात यदि शिवसेना की हो तो यहां भी चुनाव मैदान में उतरे दो भाईयों को जनता ने नकार दिया है। शिवसेना प्रदेश अध्यक्ष ठाड़ेश्वर महावर ने अपने परंपरागत वार्ड को छोड़ पड़ोस के वार्ड से चुनाव लड़ा था। परंपरागत वार्ड नंबर 4 से अपने भाई गुरूदयाल महावर को प्रत्याशी बनाया। खुद वार्ड नंबर 5 से लड़े लेकिन दोई दीन से गए पांड़े वाली कहावत की तर्ज पर दोनों वार्ड में दोनों भाईयों को केवल हार मिली। गुरूदयाल जहां कांग्रेस के गुड्डू तामसेतवार से करीब 2 हजार वोटों से हारे तो ठाड़ेश्वर को बीजेपी के अनुपम जैन ने करीब 3 सौ वोटों से 5 साल के लिए ठाड़ा कर दिया।