MP: 10 लाख बच्चे कुपोषित, फिर भी CM की नाक के नीचे करोड़ों का टेक होम राशन घपला! घोटाले के बाद जागा विभाग, कलेक्टर्स को पत्र जारी

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Ruchi Verma
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MP: 10 लाख बच्चे कुपोषित, फिर भी CM की नाक के नीचे करोड़ों का टेक होम राशन घपला! घोटाले के बाद जागा विभाग, कलेक्टर्स को पत्र जारी

सतना इनपुट: सचिन त्रिपाठी 



Bhopal: भारत सरकार ने वर्ष 2030 तक देश को कुपोषण मुक्त करने का लक्ष्य रखा है पर मध्य प्रदेश सरकार ने तो जैसे राज्य के माथे से कुपोषण का कलंक मिटने न देने की कसम ले रखी हैं। जहाँ राज्य में पहले ही 10 लाख से ज्यादा कुपोषित बच्चें दर्ज हैं....वहीँ सतना जिले के मझगवां क्षेत्र से अब एक और अति कुपोषित बच्ची का पता फिर से चला है! मामला मझगवां विकासखण्ड अंतर्गत चित्रकूट नगर परिषद के वार्ड 13 - पथरा के ग्राम सुहागी के आदिवासी बस्ती सुरंगी टोला से सामने आया है। जहाँ सात साल की ये बच्ची सोमवती इतनी कमज़ोर है की वो ठीक से चल तक नही पा रही हैं। कुपोषित मासूम का मामला मामला मुख्यमंत्री तक पहुंचा और सरकारी तंत्र पर सवाल खड़े हुए तो प्रशासन में हड़कंप मच गया। इसके बाद जिला प्रशासन तुरंत हरकत में आया और आनन फानन में मामले में संज्ञान लिया...महिला एवं बाल विकास ने एक टीम कुपोषित बच्ची के घर पहुंचाई गई। और अब मासूम को जिला अस्पताल में गहन इकाई शिशु वार्ड में भर्ती कराया गया हैं....जहाँ उसका उपचार जारी है। गौरतलब है कि चित्रकूट का मझगवां क्षेत्र में पहले भी ऐसे कई मामले आ चुके हैं। द सूत्र की आज कि इस पड़ताल करती रिपोर्ट में आपको दिखाएंगे कि आखिर वो क्या कारण हैं जिनकी वजह से मध्य प्रदेश से कुपोषण सालों से दूर नहीं हो पा रहा हैं। साथ ही आपको बताएंगे कि जहाँ एक तरफ राज्य में कुपोषण के इतने बुरे हाल हैं, वही दूसरी तरफ मप्र CAG ने महिला बाल विकास विभाग की टेक होम राशन योजना में एक बड़ा घोटाला उजागर किया है, और हमेशा की तरह विभाग घोटाले के बाद एक्शन मोड में आया और पत्रचार शुरू कर दिया है। लेकिन इसके पहले देखिये कि क्या हैं सतना जिले का ये पूरा मामला...



क्या है पूरा मामला



दरअसल, कुपोषण का ये मामला तब सामने आया जब जिले के चित्रकूट अंतर्गत आने वाले सुरंगी टोला की एक बालिका का गंभीर रूप से कमजोर स्वास्थ्य का वीडियो वायरल हो गया। कुपोषित बच्ची का नाम सोमवती है। 7 वर्षीय इस बच्ची का जन्म 2015 में हुआ था। और वह सुरंगी टोला बस्ती में अपने नाना के घर में रहती है। इसके नाना और मौसी मजदूरी करते हैं। वीडियो में साफ़ दिखाई देता है कि बच्ची शारीरिक रूप से बेहद ही कमजोर है और हड्डियों का ढांचा भर रह गई है। सोमवती का हाल का वीडियो वायरल होने पर सीएम शिवराज सिंह के 'ऑफिस ऑफ द शिवराज सिंह' के ट्विटर हैंडल से प्रशासन को निर्देश दिए गए। ट्वीट में कहा गया कि - "बेटी सोमवती को जिला कलेक्टर सतना द्वारा अस्पताल में भर्ती करवाया गया है और  उसकी देखभाल की व्यवस्था की गई है। बिटिया को पूर्ण स्वास्थ्य लाभ दिया जाएगा और उसके उचित पालन पोषण की व्यवस्था भी होगी।"  मामले में जांच के लिए सोमवार को भोपाल से संचालक स्तर के अधिकारी भेजे गए हैं। और कहा जा रहा कि अतिरिक्त संचालक महिला एवं बाल विकास राजपाल कौर दीक्षित सतना मामले में जांच करेंगे



बच्ची 2019 और 2020 में भी कुपोषण का शिकार रही है



इस पूरे मामले में अचरज वाली बात यह है कि यह पहली बार नहीं है कि यह बच्ची इस हालत में है। बच्ची को महिला बाल विकास की सेवाओं के साथ दो बार जुलाई 2019 और नवंबर 2020 में एनआरसी सामुदायिक केंद्र मझगवां में भर्ती कर उपचार किया गया है। ऐसा खुद महिला बाल विकास सतना के जिला कार्यक्रम अधिकारी सौरभ सिंह ने बताया। सोमवती का यह मामला सिर्फ इसलिए ही चिंता का विषय नहीं है कि वह छोटी बच्ची हैं और कुपोषित है...मामला ज्यादा चिंताजनक इसलिए भी हो जाता है कि इस बच्ची के कुपोषणग्रस्त होने का पता सरकार को साल 2019-2020 में ही चल गया था....लेकिन इन चार सालों में भी उसके हालत जस-की-तस बनी हुई है! आखिर इतने सालों में बच्ची की हालत में सुधार क्यों नहीं हुआ? द सूत्र ने जब मामले की पड़ताल की तो कई प्रदेश में कुपोषण के कई कारण नज़र आए। और राज्य में कुपोषण के जो आंकड़े हैं वो अपने आप में चौकाने वाले हैं:



मध्य प्रदेश: 10 लाख से ज्यादा बच्चे कुपोषण के शिकार




  • पूरे मध्य प्रदेश की बात करें तो राज्य में आज भी शून्य से लेकर 5 वर्ष की उम्र के 65 लाख दो हजार से ज्यादा बच्चे हैं। इनमें से 10 लाख 32 हजार 166 बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। इनमें से छह लाख 30 हजार 90 बच्‍चे अति कुपोषित की श्रेणी में हैं। 2 लाख 64 हजार 609 ठिगनेपन और 13 लाख सात हजार 469 दुबलेपन के शिकार हैं।


  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के 2019 से 2021 के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में हर पांच बच्चे में से एक निर्बल है।

  • आंकड़ों के मुताबिक मप्र में एनीमिक बच्चों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है और ये आंकड़ा 72.7 फीसदी हो गया है।

  • मई में जारी किये गए सैेंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम-2022 के अनुसार शिशु मृत्यु दर में के मामले में भी मध्य प्रदेश में देश में पहले नंबर पर है। इसके अनुसार मध्यप्रदेश में जन्म लेने वाले हर एक हजार बच्चों में से 43 बच्चे आज भी जन्म के एक साल के अंदर ही दम तोड़ देते हैं। यह राष्ट्रीय औसत 28 से ज्यादा है।

  • नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 5 की रिपोर्ट में भी मध्य प्रदेश खिसक कर देश में चौथे पायदान पर पहुंच गया है। सर्वे के आंकड़ों के हिसाब से प्रदेश में इन्फेंट डेथ रेट (28-365 दिन) 41.3 (हर 1000 जीवित जन्म में पर) है। वहीँ नवजात मृत्यु दर भी 29 (हर 1000 जीवित जन्म में पर) है।

  • वहीँ 2016 से 2018 के बीच एमपी में करीब 57 हजार बच्चों की कुपोषण से मौत हुई थी।



  • सतना: 8,838 बच्चें कुपोषण से ग्रस्त




    • वर्तमान वर्ष 2022 में सतना जिले में कुल 8,838 बच्चे कुपोषण से ग्रस्त हैं - जहाँ 1417 बच्चे अति गंभीर रूप से कुपोषित (SAM) हैं...वहीँ 7421 मध्यम कुपोषण (MAM) बच्चे हैं।


  • साल 2021 में टोटल 23,006 बच्चे कुपोषित थे - 3,120 बच्चे अति गंभीर कुपोषित (SAM) थे और 19,886 बच्चे मध्यम कुपोषण (MAM) से ग्रस्त थे।

  • वहीँ वर्ष 2020 में  21,791 बच्चे कुपोषित थे - 2123 बच्चे अति गंभीर रूप से कुपोषित (SAM) थे...और 19668 मध्यम कुपोषण (MAM) बच्चें थे।

  • आपको बता दें कि आंकड़ों के अनुसार सतना जिलें में टोटल 3034 आंगनबाड़ी सेंटर्स हैं जिसमें 158603 लाभार्थी बच्चे दर्ज हैं। इसमें से हर एक बच्चे पर पोषक आहार योजना के तहत 8 से 12 रुपये सरकार खर्च करने का दावा करती हैं।



  • चित्रकूट: 993 बच्चे कुपोषित




    • वहीँ अगर सिर्फ चित्रकूट के वार्ड-13 की करें तो वहां कुल जनसँख्या 580 है।


  • जानकारी के अनुसार इस वार्ड के आंगनबाड़ी केंद्र में 5 वर्ष तक के बच्चों की कुल 54 बच्चे रजिस्टर्ड हैं। यहाँ ज्यादातर मवासी अनुसूचित जनजाति के लोग निवासी है।

  • वहीँ मझगवां ब्लॉक के महिला एवं बाल विकास की चित्रकूट-1 परियोजना में 5 वर्ष तक के कुल 15875 है। इनमें मध्यम श्रेणी के कमजोर 812 और 181 सैम बच्चे हैं। मझगवां में कुल 203 आंगनबाड़ी केंद्र हैं।



  • MP को 400 करोड़ का पोषण अभियान फण्ड




    अब अगर आपको लगता हैं कि कुपोषण पर काम करने के लिए सरकार के पास फंड्स की कोई कमी हैं तो ऐसा बिलकुल भी नहीं हैं। क्यूँकि पोषण योजनाओं के लिए भारी भरकम बजट है। मध्य प्रदेश में कुपोषण दूर करने के लिए करीब 97135 आंगनबाड़ी केंद्रों की मदद से कई तरह के पोषण अभियान चलाए जा रहे हैं। इसी साल मप्र सरकार ने बच्चों के लिए अलग से बजट की व्यवस्था की है। 17 विभाग जो बच्चों के लिए योजनाएं संचालित करते हैं उनका बजट प्रावधान किया 57 हजार 803 करोड़ रु। इसमें स्वास्थ्य विभाग का बजट भी शामिल है। पोषण अभियान के लिए भी केंद्र द्वारा मध्य प्रदेश को वर्ष 2017-18 से वर्ष 2021-22 तक करीब 39398.53 लाख रुपए दिए जा चुके हैं। इसमें से जनवरी,2022 तक  20087.83 लाख रुपए खर्च भी किये जा चुके हैं।



    कुपोषित बच्चों को ट्रैक करने का और उनके फ़ॉलोअप का सिस्टम फेल



    अब सवाल ये है कि योजना के बावजूद और इतना खर्च करने के बाद भी नवजातों की मौतों का सिलसिला रुकने का नाम क्यों नहीं ले रहा? दरअसल, 7 साल कि सोमवती का सालों-साल कुपोषित बने रहना इस बात की साफ़ गवाही देता हैं कि सरकारी सिस्टम की किस कदर लापरवाह है। और यह दिखाता है कि उसका कुपोषित बच्चों के लिए बनाया गया ट्रैकिंग सिस्टम किस कदर फेल है। बता दें कि विभाग की कुपोषण से निबटने की रड़नीति  के अनुसार SAM और MAM - दोनों तरह के कुपोषित बच्चो के फ़ॉलोअप का प्रॉपर सिस्टम होता हैं। लेकिन साफ़ हैं..कि वो ज़रूरत के अनुसार काम नहीं कर रहा। इसके साथ ही सरकार की करोड़ो के बजट वाली महत्वकांक्षी पोषण योजनाओं पर बड़े सवाल खड़े होते हैं।



    कुपोषण दूर करने के लिए सरकार को कन्वर्जन्स के तहत काम करना होगा: प्रतीक, सोशल वर्कर



    चित्रकूट क्षेत्र में कुपोषण की कारणों को जब हमने जाना तो सामने आया कि जिले में ये समस्या सिर्फ पोषण योजना या आगनबाड़ी/ICDS स्कीम के विफलता से ही नहीं। बल्कि स्वास्थ्य व्यवस्था, रोजगार व्यवस्था और खेती व्यवस्था से भी उतनी ही जुड़ी हुई हैं। देखिये कि इस पूरे मसले पर सामाजिक कार्यकर्त्ता प्रतीक का क्या कहना हैं। प्रतीक करीब 15 सालों से मझगवां में कुपोषण दूर करने पर काम कर रहे हैं:



    प्रतीक: "मझगांव एक आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र हैं। यहाँ कुपोषण की समस्या बड़ी हैं....अभी भी कई बच्चे गंभी हैं..स्थिति नाज़ुक हैं.... इस आदिवासी समुदाय की कुपोषण की समस्या का समाधान सिर्फ इक्ड्स के तहत संभव नहीं हैं क्यूँकि यहाँ के लोगो का खाद्य-सुरक्षा चक्र टूट गया हैं। यहाँ का समुदाय आजीविका के समस्या भी देख रहा हैं। इसी वजहों से बच्चों में कुपोषण हैं और महिलाओं में एनीमिया हैं.... इसके लिए सरकार को कन्वर्जेन्स के तहत उसके सभी विभागो जैसे -स्वास्थ्य, कृषि, पशुपालन, पंचायत और उद्यानिकी - को एक साथ काम करना होगा....तभी इस समुदाय की खानपान की व्यवस्था दुरुस्त होगी...उनकी आजीविका का साधन बनेगा...और कुपोषण दूर हो सकेगा।"



    प्रतीक ने सरकारी तंत्र की लापरवाही को भी इसके लिए साफ तौर पर जिम्मेदार बताया....उन्होंने बताया की कैसे अधिकारी कागज़ों पर तो सब करते हैं पर जमीने स्तर पर कोई कुछ देखने ही नहीं जाता। और पोषण आहार का फायदा दिनों-दिन मिलता ही नहीं हैं। पहले ये आदिवासी लोग खान-पान के लिए  लोग जंगलों पर निर्भर थे, तब उन्हें पर्याप्त न्यूट्रीशिन जंगलों की उपज से मिलता था। पर अब फारेस्ट राइट एक्ट में दिक्कतों के चलते वो भी मुमकिन नहीं....अब महिलाएं लकडिया बेचकर और पुरुष थोड़ी बहुत मजदूरी करके गुज़ारा करते हैं....उससे क्या ही पोषण मिलेगा....वहीँ युवा पलायन कर चुके हैं। यानी, साफ़ हैं की कुपोषण दूर करने के लिए सरकारी विभागों में आपसी सामजस्य ही नहीं हैं तो....कुपोषित बच्चों के लिए ट्रैकिंग सिस्टम का काम न करना अचरज की बात नहीं हैं।



    कुपोषण तो दूर कर नहीं पाए, करोड़ो का टेक होम राशन घोटाला जरूर कर दिया



    अब चौकाने वाली बात हैं कि सरकार की करोड़ो के बजट वाली महत्वकांक्षी पोषण योजनाएं कैसे विभाग में व्याप्त भ्रस्टाचार की वजह से फेल हो रहीं हैं। जहाँ पोषण आहार की कमी से एक बच्ची हड्डी का ढांचा बनकर रह गई हैं... वहीँ  महिला एवं बाल विकास विभाग के कर्मचारी बच्चों के हक़ के पोषण पर घोटाले करने से बाज़ नहीं आ रहें। ये खुलासा हुआ हैं मध्य प्रदेश CAG रिपोर्ट में हुआ हैं जिसमें बताया गया कि कैसे 2393 करोड़ का 4.05 मीट्रिक टेक होम राशन में गड़बड़ियां की गई हैं। पता हो कि यह विभाग CM शिवराज सिंह चौहान के के पास हैं। CAG की  36 पन्नों की रिपोर्ट  के मुताबिक:




    • करोड़ों का पोषण आहार का कागजों में ट्रकों से परिवहन दिखाया गया, लेकिन जांच में सामने आया कि ये मोटरसाइकिल और ऑटो से किया गया


  • रिपोर्ट में दावा किया गया कि छह कारखानों से 6.94 करोड़ रुपयों की लागत के 1 हजार मीट्रिक टन से ज्यादा राशन का परिवहन किया गया

  • लेकिन परिवहन विभाग से सत्यापन करने पर पता लगा कि ट्रकों के जो नंबर दिये गये हैं उन पर मोटरसाइकिल, कार, ऑटो और टैंकर रजिस्टर्ड हैं

  • लाखों ऐसे बच्चे जो स्कूल नहीं जाते उनके नाम पर भी करोड़ों का राशन बांट दिया गया

  • योजना के तहत 49.58 लाख रजिस्टर्ड  बच्चों और महिलाओं को पोषण आहार दिया जाना था

  • इसमें 6 महीने से 3 साल की उम्र के 34.69 लाख बच्चे, 14.25 लाख गर्भवती महिलाएं और स्तनपान कराने वाली मां और 11-14 साल की लगभग 64 हजार बच्चियां शामिल थीं जिन्होंने स्कूल छोड़ दिया

  • इसके अलावा  विभाग में बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी, लाभार्थियों की पहचान में अनियमितता

  • स्कूली बच्चों के लिए महत्वाकांक्षी मुफ्त भोजन योजना के वितरण और गुणवत्ता नियंत्रण में गड़बड़ी भी पायी गयी

  • इस तरह से CAG की रिपोर्ट में 110.83 करोड़ रु. मूल्य के राशन का फर्जीवाड़ा सामने आया है



  • CAG कि रिपोर्ट राय होती है आखिरी फैसला नहीं: गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा



    अब रिपोर्ट सामने आने के बाद सरकार के प्रवक्ता और गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने भी अजीबोगरीब प्रतिक्रिया दी हैं। उन्होंने कहा हैं कि प्रतिक्रिया कि CAG कि रिपोर्ट राय होती है आखिरी फैसला नहीं! अकाउंट कमेटी अंतिम निर्णय करती है। कभी-कभी विधानसभा की लोक लेखा समिति के पास भी मामला जांच के लिए जाता है।  सबको पता हैं कि CAG अपनी रिपोर्ट पूरा ऑडिट कर ही बनाते है। और जो भी रिपोर्ट आई है, वो बहुत सारे सवाल खड़े करती है.... और सवालों के साथ सरकार की मंशा को भी कटघरे में खड़ा करती है।



    घोटाला होने के बाद विभाग ने जारी किये कलेक्टर्स को लेटर 



    यही नहीं....जब पूरा घोटाला CAG ने लम्बी-चौड़ी फ़ाइल के साथ सामने रख दिया। उसके बाद महिला एवं बाल विकास विभाग के नींद खुली और संचालक रामराव भोंसले ने सभी जिलों के कलेक्टर को आनन-फानन में एक पत्र जारी किया। जिसमें पूरक पोषण आहार की गुणवत्ता और निगरानी सिस्टम मेन्टेन करने की बात की गई हैं। पर अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत!



    2030 तक भारत ने खुद को कुपोषण मुक्त करने का लक्ष्य रखा है। अब सवाल भारत सरकार पर भी है कि भारत सरकार ने लक्ष्य रख लिया लेकिन कुपोषण के मामले में जो राज्य सबसे ज्यादा भागीदारी निभा रहा है.... वो मप्र है। और केंद्र सरकार भी मप्र की मॉनिटरिंग करने में दिलचस्पी नहीं दिखाती। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि कैसे दूर होगा कुपोषण का कलंक और भारत आठ साल में कुपोषण मुक्त हो पाएगा।


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