BHOPAL. इस बार पंचायत चुनावों (panchayat elections) के मतपत्रों (Ballot Paper) में नोटा (NOTA) शामिल हो गया है। यानी अब लोग उम्मीदवार (candidates) पसंद न आने पर इनमें से कोई नहीं का विकल्प चुन सकते हैं। सात साल बाद हो रहे पंचायत चुनावों में नोटा एक अहम विकल्प बनकर आया है। क्योंकि 2018 में हुए विधानसभा चुनावों (assembly elections) में 20 उम्मीदवारों की हार का कारण यही नोटा रहा है। यानी जो उम्मीदवार विधायक बने हैं उनकी जीत का अंतर नोटा से मिले वोटों से कम रहा है। पंचायत चुनाव छोटे चुनाव होते हैं और यहां पर जीत का अंतर चंद वोटों का ही होता है इसलिए ये नोटा कई उम्मीदवारों की जीत पर तलवार बनकर लटक सकता है। इसमें रोचक बात ये भी है कि सरपंच (sarpanch) या पंच (Panch) के लिए आस—पास का व्यक्ति ही उम्मीदवार होता है, यदि कोई उससे पुराना हिसाब चुकता करना चाहेगा तो वो नोटा दबाकर जीत का रोड़ा बन सकता है।
इन विधायकों की जीत का अंतर नोटा से कम
- प्रवीण पाठक— कांग्रेस— ग्वालियर दक्षिण — जीत का अंतर 121 वोट — नोटा — 1550
पिछली बार मशीन में था नोटा
देश में 2013 में चुनावों में नोटा का इस्तेमाल शुरु हुआ था। मध्यप्रदेश के 2013 में हुए विधानसभा चुनावों में ईवीएम में नोटा का विकल्प शामिल था। इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनावों में नोटा मशीन में शामिल होकर आया। प्रदेश में पंचायत चुनाव 2015 में थे लेकिन ग्राम पंचायत के चुनाव मतपत्रों से होता है इसलिए इन मतपत्रों में नोटा शामिल नहीं था। हालांकि पिछली बार जिला और जनपद पंचायत का चुनाव ईवीएम से हुआ था जिनमें नोटा शामिल किया गया था। इस बार त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव मतपत्र से ही हो रहे हैं,इसलिए इनमें नोटा शामिल किया गया है। मतपत्र में सभी उम्मीदवारों के बाद नोटा लिखा गया है। नोटा का मतलब इनमें से कोई नहीं है।
25 जून को पहले चरण के वोट
प्रथम चरण में 52 जिलों के 115 विकासखण्ड की 8702 ग्राम पंचायतों के 26 हजार 902 मतदान केन्द्रों में मतदान होगा। इनमें से 22 हजार 915 सामान्य और 3 हजार 989 संवेदनशील मतदान केन्द्र हैं। इन केन्द्रों पर शनिवार को मतदान होगा। मतदान के दिन इन निर्वाचन क्षेत्रों में स्थानीय अवकाश रहेगा। सभी मतदान केन्द्रों पर सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था की गयी है। प्रथम चरण के मतदान के लिए 52 हजार से अधिक पुलिस बल की ड्युटी लगायी गयी है।