गोडाउन में धरा रह गया स्वदेशी यूरिया: किसानों को जागरूक करते तो बच जाते टैक्सपेयर के 8 हजार करोड़

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गोडाउन में धरा रह गया स्वदेशी यूरिया: किसानों को जागरूक करते तो बच जाते टैक्सपेयर के 8 हजार करोड़

भोपाल। किसानों की सरकार होने का दावा करने वाली मध्यप्रदेश की बीजेपी सरकार अब विधानसभा में भी मान चुकी है कि वो इस साल रबी सीजन के लिए किसानों को मांग (20 लाख मीट्रिक टन) के मुकाबले सिर्फ आधा यानि (10 लाख मीट्रिक टन) यूरिया ही उपलब्ध (mp urea stock) करा पाई है। साफ है कि खाद की डिमांड और सप्लाई (Urea supply) में इतने बड़े अंतर के कारण ही प्रदेश में यूरिया के लिए मारामारी के हालात बने। लेकिन यदि सरकार और उसके कृषि महकमे के कर्ताधर्ता चाहते तो वे किसानों को ठंड में यूरिया की एक-एक बोरी के लिए रात-रातभर जागकर लाइन में लगने और पुलिस के डंडे खाने से बचा सकते थे। लेकिन ये तब संभव होता जब सरकार किसानों को विदेशी यूरिया का सस्ता और बेहतर स्वदेशी विकल्प नैनो यूरिया (Nano liquid urea) अपनाने के लिए प्रेरित करती। इससे सरकार को यूरिया पर दी जाने वाली भारी भरकम 8 हजार 888 करोड़ रुपए की सब्सिडी (Urea subsidy) की भी बचत होती। वही नैनो यूरिया जिसके फायदे गिनाकर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान (CM Shivraj on nano urea) और केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्रसिंह तोमर (Narendra singh tomar on urea) ने इसी साल किसानों के एक बड़े समारोह में यूरिया के इस स्वदेशी विकल्प को अपनाने की अपील की थी। लेकिन नैनो यूरिया के भरपूर स्टॉक (Nano urea stock) के बाद भी किसान इसका उपयोग नहीं कर पाए क्योंकि कृषि विभाग (Agriculture Department) इसका अपेक्षित प्रचार और जागरूक फैलाने में नाकाम रहा।

अक्टूबर में ही सरकार ने बढ़ाई सब्सिडी

पिछले महीनों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे माल की बढ़ती कीमतों को देखते हुए कई कंपनियों ने खाद के रेट बढ़ा (Fertilizer Rate) दिए थे। इसके बाद अक्टूबर में मोदी सरकार (Modi govt on urea subsidy) ने 2021 में ही यूरिया की सब्सिडी में बढ़ोतरी की। यूरिया में सब्सिडी 1500 रुपए से बढ़ाकर 2000 रुपए कर दी गई। मतलब कच्चे माल की कीमतों में इजाफे से खाद की बोरी में जो 500 रूपए बढ़े उसे सब्सिडी में शामिल किया गया।

नैनो यूरिया अपनाने के ये फायदे

नैनो यूरिया की एक बॉटल आधे लीटर की होती है, जो एक बोरी यूरिया के बराबर का असर करती है। फसलों के बेहतर उत्पादन के लिहाज से दोनों में ही नाइट्रोजन की पर्याप्त मात्रा होती है।  

- 2000 रूपए की सब्सिडी के आधार पर जो यूरिया की बोरी किसान को 268 रूपए में मिलती है। जबकि नैनो यूरिया की एक बॉटल बिना सब्सिडी के करीब 240 रूपए में मिल जाती है। 
- एमपी में हर साल रबी सीजन (Rabi crop season) में 4.50 करोड़ बोरी यूरिया की खपत होती है। यदि इसकी जगह नैनो यूरिया का उपयोग किया जाए तो सिर्फ 2.25 करोड़ लीटर नैनो यूरिया की खपत होती। 
- यदि सरकार नैनो यूरिया के उपयोग को प्रोत्साहित करती तो उसे रबी सीजन में यूरिया की सब्सिडी पर 8 हजार 888 करोड़ रूपए खर्च नहीं करने पड़ते। वहीं, किसानों को भी खाद के ऊपर होने वाले खर्च में करीब 26 प्रतिशत राशि की बचत होती। 

दुकानदार वापस कर रहे नैनो यूरिया

प्रदेश में यूरिया की भारी किल्लत के दौरान कृषि विभाग ने नैनो यूरिया के प्रयोग को कितना प्रोत्साहित किया, द सूत्र की टीम ने जब इसकी जमीनी पड़ताल की तो हकीकत सामने आने में देर नहीं लगी। राजधानी भोपाल (Bhopal Farmers) की सीमा से सटे गांव सूखी सेवनिया के किसान राधेकिशन सैनी, रामचरण अहिरवार, बलवीर मीणा और घनश्याम मीणा ने बताया कि स्थानीय कृषि सेवा केंद्र से लेकर कृषि विभाग तक के किसी भी कर्मचारी, अधिकारी ने उन्हें नैनो यूरिया के उपयोग के बारे में कुछ नहीं बताया। यदि हमें बताया जाता तो यूरिया के लिए मारे-मारे फिरने के बजाय हम नैनो यूरिया का इस्तेमाल करके जरूर देखते। सूखी सेवनिया थाने के पास कृषि सेवा केंद्र का संचालन करने वाले एक दुकानदार ने बताया कि उन्होंने एक पेटी नैनो यूरिया बुलाया था पर एक भी किसान नहीं लिया। इसलिए उन्होंने पूरा नैनो यूरिया डीलर (Nano urea dealer) को वापस करना पड़ा।  

भिंड में भी किसानों को नहीं जानकारी

राजधानी भोपाल के बाद द सूत्र ने चंबल संभाग (Chambal divison urea) के भिंड जिले में भी नैनो यूरिया के उपयोग को लेकर पड़ताल की तो पता चला कि यहां दुकानों पर नैनो यूरिया तो उपलब्ध है लेकिन किसानों को इसकी जानकारी नहीं होने से खेतों में इसका उपयोग नहीं हो रहा है। स्थानीय खाद व्यापारी सौरभ जैन ने बताया कि किसान अपने खेत में परंपरागत यूरिया का ही इस्तेमाल करना चाहता है। जबकि लिक्विड यूरिया के रूप में नैनों यूरिया कम खर्चे में ज्यादा बेहतर नतीजे देता है। वहीं, जिले के मल्लपुरा गांव के किसान बबलेश और रमेश ने बताया कि उन्हें नैनो यूरिया के बारे में कोई जानकारी नहीं है। इस बारे में जिला कृषि विस्तार अधिकारी मनोज कश्यप से सवाल करने पर जवाब मिला कि धीरे-धीरे जानकारी का विस्तार होने पर किसान नैनो यूरिया का प्रयोग करने लगेंगे।

सवा दो लाख लीटर बिका नैनो यूरिया

इफको (IFFCO Urea) के स्टेट मैनेजर सुनील सक्सेना ने बताया कि अब तक प्रदेश में 4.5 लाख बॉटल यानि करीब सवा दो लाख लीटर नैनो यूरिया बिक चुका है। वहीं 6 लाख बॉटल यानि 3 लाख लीटर नैनो यूरिया का स्टॉक रखा हुआ है। 

6 महीने तक क्यों सोते रहे जिम्मेदार

प्रदेश में इफको ने मई 2021 में नैनो यूरिया का प्रोडक्ट लॉन्च (Nano urea product launch) कर दिया था। जबकि किसानों को यूरिया की जरूरत करीब 5 महीने बाद अक्टूबर में पड़ी। प्रदेश में यूरिया के बड़े संकट का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रदेश में पिछले साल 2 नवंबर 2020 को 20 लाख मीट्रिक टन यूरिया उपलब्ध था। जबकि इस साल रबी सीजन में 30 नवंबर 2021 को 10.02 लाख मीट्रिक टन यानि आधा यूरिया ही उपलब्ध था। यदि सरकार में कृषि विभाग और इफको के अधिकारी चाहते तो इन 5-6  महीनों में किसानों के बीच नैनो यूरिया का प्रचार-प्रसार कर उन्हें इसके उपयोग के लिए प्रोत्साहित कर सकते थे। इस तरह किसान प्रदेश में यूरिया (Farmers urea problem) के लिए मची मारामारी से बच सकते थे और सरकार भी यूरिया पर दी जाने वाली भारी भरकम सब्सिडी की राशि बचत कर इसे जनहित की दूसरी जरूरतों पर खर्च कर सकती थी।  

द सूत्र के सवाल...

- यूरिया के उत्पादन से बड़ी-बड़ी विदेशी कंपनी जुड़ी हैं, क्या इसीलिए स्वदेशी नैनो यूरिया के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए अपेक्षित प्रयास नहीं किए गए ?
- नैनो यूरिया के उपयोग से किसान को भी आर्थिक बचत होती। साथ ही किसानों को यूरिया पर सब्सिडी के लिए खर्च होने वाले अरबों रूपए बच जाते। क्या यूरिया की खरीद में होने वाली कमीशनखोरी के फेर में नैनों यूरिया को महत्ता नहीं दी गई। 
-  प्रदेश मेंनैनो यूरिया के प्रचार के लिए कृषि विभाग ने ऑनलाइन वेबिनार, वॉल पेंटिंग, प्रशिक्षण दिए जाने का दावा किया है तो फिर किसानों को 6 महीने बाद भी इसकी जानकारी क्यों नहीं है ?  

किसानों में नैनो यूरिया से कम पैदावार का डर

भोपाल में मिसरोद गांव (Misrod village) के किसान घनश्याम पाटीदार ने बताया कि उन्होंने अपने 5 एकड़ के खेत में नैनो यूरिया का इस्तेमाल किया और कहीं कोई शिकायत नहीं आई। पाटीदार के अनुसार ज्यादातर किसानों को इस बात का डर है कि यूरिया के बजाय नैनो यूरिया के उपयोग से उनकी पैदावार कम हो सकती है। यही सबसे बड़ी वजह है जिसके कारण किसानों ने नैनो यूरिया से दूरी बनाई हुई है। यदि इसका समय पर पर्याप्त प्रचार किया और जागरूकता फैलाई जाती तो किसान जरूर इसका उपयोग करते।  

किसानों में नैनो यूरिया की डिमांड नहीं

इफको के डीलर मानसिंह राजपूत ने बताया कि किसानों के बीच नैनो यूरिया की ज्यादा डिमांड नहीं है क्योंकि न तो इसका सही तरीके से प्रचार किया गया और न ही किसानों के बीच जागरूकता फैलाई गई। यदि यह सब किया जाता तो यूरिया की किल्लत से प्रदेश में बने हालात से बचा जा सकता था। इससे सरकार और किसान दोनों को फायदा होता। 

यूरिया की किल्लत के कारण नैनो यूरिया को प्रमोट कर रही है सरकार

इफको के डायरेक्टर अमित सिंह ने बताया कि नैनो यूरिया के प्रचार-प्रसार की सीधे तौर पर तो सरकार की जिम्मेदारी नहीं है। लेकिन हम इसे इस तरीके से महत्वपूर्ण कह सकते हैं कि ये उत्पाद पूरी तरह से स्वदेशी है और इससे करोड़ों रूपए की सब्सिडी बचाई जा सकती थी। राज्य सरकार इस बार मांग के मुताबिक यूरिया की व्यवस्था नहीं कर पाई, इसलिए अब वह नैनो यूरिया को प्रमोट कर रही है। कुछ हद तक किसान भी अभी इसकी उपयोगिता को नहीं समझ पा रहे हैं।

भोपाल से राहुल शर्मा और भिंड से मनोज जैन की रिपोर्ट  

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