अवैध खनन, प्रदूषण तोड़ रहा नर्मदा की धार, 30 नाले समा रहे, विलुप्त हो रही महाशीर

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Aashish Vishwakarma
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अवैध खनन, प्रदूषण तोड़ रहा नर्मदा की धार, 30 नाले समा रहे, विलुप्त हो रही महाशीर

भोपाल (राहुल शर्मा). पूरा मध्य प्रदेश 8 फरवरी को नर्मदा जयंती मनाएगा। मां जैसी पूजनीय नर्मदा नदी में दीपदान किया जा रहा है, चुनरी चढ़ाई जा रही है, परिक्रमा हो रही है। ये आस्था का विषय हो सकते हैं, लेकिन क्या इससे नर्मदा नदी का संरक्षण होगा। आप मानें या ना मानें, इस पवित्र, जीवनदायिनी नर्मदा नदी का अस्तित्व खतरे में है। इसका संकेत किसी और ने नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश की स्टेट फिश महाशीर ने ही दिया है। महाशीर टाइगर ऑफ वॉटर के नाम से मशहूर है। मछली की खासियत ये है कि यह फ्रेश वॉटर यानी ताजे पानी में ही रहती है। यह विपरीत धारा में 20.25 नॉटिकल मील (1 नॉटिकल मील=1.85 किमी) की रफ्तार से तैर सकती है। मतलब यह बहते पानी में ही रहती है। 



अब सवाल यह उठता है कि इससे नर्मदा के खत्म होने का कैसे पता चलता है। दरअसल, महाशीर मछली अपने खास गुणों के कारण ही मध्य प्रदेश में सिर्फ नर्मदा नदी में ही पाई जाती है। पर अब ये विलुप्त होने की कगार पर है। वजह ये कि प्रदूषण बढ़ने से नर्मदा का पानी फ्रेश वॉटर नहीं रहा, जिसके कारण महाशीर सर्वाइव नहीं कर पा रही। पानी का बहाव तेज नहीं होने से महाशीर अपने स्वभाव के विपरीत जीवनशैली नहीं अपना पाई। नतीजा ये कि नर्मदा में महाशीर मछली खत्म होने की कगार पर है। मत्स्योद्योग के प्रभारी संचालक भरत सिंह खुद इस बात को स्वीकार करते हैं कि महाशीर फ्रेश वॉटर की मछली है और बांधों के निर्माण से यह कम हुई है। इधर, केंद्रीय अंतरस्थलीय मात्स्यिकीय अनुसंधान कोलकाता की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, नर्मदा नदी में 1966 में महाशीर मछली 28% थी, जो 2011 में घटकर 10% हो गई। जानकार बताते हैं कि नर्मदा में महाशीर अब महज 2% ही बची है। विलुप्त होती यह प्रजाति इस बात का संकेत है कि नर्मदा भी धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है। महाशीर को 22 नवंबर 2011 को मध्य प्रदेश की स्टेट फिश घोषित किया गया था।



हे मां! हमें माफ करना: विकास के नाम पर किए जा रहे खिलवाड़ के कारण नर्मदा की सांसें उखड़ रही हैं, धार टूट रही है, जलस्तर कम हो रहा है। जिस तेजी से प्रदूषण बढ़ रहा है, वो दिन दूर नहीं जब नर्मदा जल आचमन करने लायक भी नहीं रहेगा। नदी के किनारे चल रहा  अवैध उत्खनन (Illegal Mining) सीना छलनी कर रहे हैं। बांधों के लालच ने लाखों एकड़ के जंगल तबाह कर दिए। यही कारण है कि मध्य प्रदेश की जीवनरेखा कही जाने वाली भारत की 5वीं सबसे बड़ी नर्मदा नदी को 2019 में वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट ने एक रिपोर्ट में दुनिया की उन 6 नदियों की सूची में रखा, जिनके अस्तित्व पर खतरा है। पर हम अब भी नहीं चेते। हम चुप हैं...खुश हैं...क्यों?...क्योंकि हम दीपदान, चुनरी चढ़ाने और परिक्रमा को ही अपना धर्म मानते हैं और निभाते हैं। हम इतना ही कर सकते हैं....इतना ही तो कर रहे हैं। इसलिए हे मां नर्मदा! हमें माफ करना। 



सरकार ने किए थे बड़े वादे: मां नर्मदा के संरक्षण के लिए मध्य प्रदेश सरकार ने कई बड़े-बड़े वादे किए थे। राजधानी की प्रशासन अकादमी में इसके लिए 3 दिनों तक बड़ा वर्कशॉप हुआ, देशभर के पर्यावरणविद जुटे, नदी के संरक्षण पर बात हुई, पर हुआ कुछ नहीं। 3 मई 2017 को नर्मदा नदी को जीवित इकाई का (Live Unit) दर्जा देने के लिए विधानसभा में संकल्प पारित किया गया। इस दौरान तत्कालीन पर्यावरण मंत्री अंतर सिंह आर्य ने विधानसभा में नर्मदा नदी को जीवित इकाई का दर्जा देने का संकल्प रखा। कहा गया कि कानून बनने के बाद नदी को जीवित व्यक्ति के सभी अधिकार मिलेंगे। नदी में प्रदूषण फैलाने या नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ नदी के नाम से ही FIR दर्ज कराई जाएगी। इसके लिए प्राधिकृत अधिकारी तैनात किया जाएगा या फिर किसी संस्था को अधिकार दिए जाएंगे, लेकिन संकल्प पारित होने के बाद इसे भारत सरकार को भेजा गया, पर अब तक कोई जवाब नहीं आया।



सीएम साहब! जयंती तक नहीं शुरू हुए एसटीपी प्लांट: प्रदेश के मुखिया सीएम शिवराज सिंह चौहान ने हाल ही में अधिकारियों को निर्देश दिए थे कि नर्मदा जयंती तक जो नाले सीधे नदी में मिल रहे हैं, वहां एसटीपी प्लांट शुरू हो जाना चाहिए, पर ऐसा हुआ नहीं। पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के अनुसार, मध्य प्रदेश में 30 नाले नर्मदा में मिल रहे हैं। अब जबलपुर का ही उदाहरण ले लें तो अधिकारी ही सीएम के आदेश और उसकी सच्चाई की पोल खोलते हैं। नगर निगम जबलपुर के जल विभाग के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर कमलेश श्रीवास्तव का कहना है कि सिद्ध घाट के पास एक नाला नदी में मिल रहा है, उसके लिए एसटीपी लगाने की योजना है, सीवर लाइन डालने का काम शुरू हो गया है। एक नाला ग्वारीघाट के पीछे से मैदान पर जाकर फिर नदी में मिल रहा है, जिसके लिए पंपिंग स्टेशन बनाने की योजना है। मतलब एसटीपी प्लांट शुरू होना तो दूर की बात है, अभी भी कई जगह यह बने तक नहीं है। 



नदी के पानी की उपलब्धता आधी: 1975 की कैलकुलेशन के अनुसार, नर्मदा नदी में बहने वाली पानी की उपलब्धता 28 मिलियन एकड़ फीट (MAF) थी। नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण ने 1980-81 से हर साल नर्मदा कछार में उपलब्ध जल की मात्रा का जो रिकॉर्ड किया गया, उससे यह पता चलता है कि नर्मदा कछार में उपलब्ध जल की मात्रा घट रही है। 2010-2011 में नर्मदा कछार में 22.11 MAF जल उपलब्ध था। अप्रैल 2018 में आई मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 2017 में नर्मदा नदी की जल उपलब्धता 14.66 MAF पाई गई। साफ है कि 45 सालों में नदी में बहने वाले पानी की उपलब्धता घटकर आधी रह गई है। 



द सूत्र की पड़ताल में बेहद चौंकाने वाले खुलासे...



1. 3 साल में ही 31% तक प्रवाह में कमी: द सूत्र की पड़ताल में यह खुलासा हुआ कि नर्मदा नदी के प्रवाह में लगातार कमी आ रही है। मात्र तीन साल में यह कमी 20 से 31% तक है। द सूत्र ने सच्चाई का पता लगाने नर्मदा नदी के तीन प्रमुख स्थान बरमान घाट, सांडिया और होशंगाबाद में नदी के प्रवाह का पता लगाया। जो आंकड़े मिले, वे बेहद चौंकाने वाले हैं। सभी आंकड़े मॉनसून के जाने के बाद के हैं। 31 अक्टूबर 2019, 2020 और 2021 के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि नर्मदा नदी का जल प्रवाह तेजी से कम हुआ है। बरमान घाट पर यह क्रमशः 284 घनमीटर/सेकंड, 118 घनमीटर/सेकंड और 87.3 घनमीटर/सेकंड रहा। इसी तरह सांडिया में नर्मदा नदी का जल प्रवाह 679.2, 290.7, 112.6 घनमीटर/सेकंड रहा। होशंगाबाद में 2019 में 640.1 घनमीटर/सेकंड, 2020 में 210 घनमीटर/सेकंड और 2021 में यह घटकर 129 घनमीटर/सेकंड हो गया। 



2.सांडिया में 3 साल में 1.39 मीटर तक कम हुआ जलस्तर: नर्मदा का जलस्तर कितना कम हो रहा है, यह जानने के लिए द सूत्र ने 2019 से 2020 तक के आंकड़े जुटाए। जो सच सामने आया, वह डराने वाला है। सांडिया में नर्मदा का जलस्तर 3 साल में 1.29 मीटर तक कम हो गया। 31 अक्टूबर 2019 में यह 300.74 मीटर था, 2020 में यह 299.93 मीटर हुआ, जो 2021 में गिरकर 299.35 मीटर तक पहुंच गया। होशंगाबाद में इन्हीं तीन सालों में 0.65 मीटर की कमी आई। 2019 में यहां नर्मदा का जलस्तर 285.15 मीटर था, 2020 में 284.8 और 2021 में 284.5 मीटर पर पहुंच गया। मंडला में इन्हीं 3 सालों में 0.33 मीटर और बरमान घाट में 0.25 मीटर की गिरावट देखी गई। 



सबसे ज्यादा नर्मदा जबलपुर में प्रदूषित: नर्मदा के पानी की क्वालिटी की मॉनीटरिंग के नाम पर कैसे फर्जीवाड़ा हो रहा है, अब हम आपको इसके बारे में बताएंगे। दरअसल, अक्टूबर 2021 में पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार, मध्य प्रदेश में रोजाना 150 एमएलडी से ज्यादा गंदगी मां नर्मदा में मिल रही है। इसमें से सबसे ज्यादा जबलपुर में रोज 136 एमएलडी याने मिलियन लीटर पर गंदगी नर्मदा में मिल रही है। महेश्वर में यह रोज 3.2 एमएलडी और होशंगाबाद में 10 एमएलडी गंदगी नर्मदा में मिल रही है। इसी पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की 2020-21 की रिपोर्ट के अनुसार, जबलपुर में जमतरा और रोड ब्रिज के पास नर्मदा नदी के पानी की क्वालिटी ए ग्रेड की है। 



पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की मॉनीटरिंग सेल की प्रभारी वैज्ञानिक राजश्री शुक्ला का कहना है कि बोर्ड की ओर से नर्मदा नदी के पानी की जांच 5 पॉइंट पर की जाती है, इनसे से अधिकांश पॉइंट के पानी की गुणवत्ता 1 कैटेगरी और शेष पॉइंट की गुणवत्ता बी कैटेगरी की है। जबकि पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के विश्वसनीय सूत्र के मुताबिक, दरअसल बोर्ड नर्मदा नदी में उन जगहों पर ही सैंपल लेता है, जहां हमेशा प्रदूषण का लेवल कम हो या ना के बराबर, क्योंकि बोर्ड की रिपोर्ट में ही यदि नर्मदा ज्यादा प्रदूषित दिखने लगेगी तो पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की मॉनीटरिंग पर ही सवाल खड़े हो जाएंगे। इस पूरे फर्जीवाड़े को सामान्य शब्दों में कहा जाए तो जिस जगह सबसे ज्यादा गंदगी नर्मदा में मिल रही हो, जिस जगह एसटी प्लांट शुरू नहीं हुए हो तो क्या नर्मदा स्वतः ही उस गंदगी को साफ कर रही है, जिससे पानी की गुणवत्ता ए क्वालिटी की आ रही है। जाहिर है, ऐसे चमत्कार सरकारी रिकॉर्ड में ही हो सकते हैं। 



खतरे में नर्मदा का अस्तित्व क्यों...



1. रेत के बिना नदी का नहीं बचेगा अस्तित्व: वरिष्ठ वैज्ञानिक सुभाष सी पांडे का कहना है कि नर्मदा नदी का अस्तित्व तभी तक है, जब तक की उसमें रेत है। दरअसल, रेत का एक महत्वपूर्ण गुण होता है कि वह पानी को पकड़कर रखती है। नर्मदा में जो पानी देखाई देता है, वह इसी कारण है। यदि रेत नहीं होगी तो पूरा पानी बह जाएगा और बारिश के अलावा ठंड और गर्मी में नदी कई घाटों पर पूरी तरह सूख जाएगी।



जमीनी पड़ताल: नरसिंहपुर में अब भी नर्मदा का सीना छलनी कर रहा माफिया: मध्य प्रदेश में नर्मदा किनारे का शायद ही कोई ऐसा जिला हो, जहां रेत की लूट ना हो रही हो। सरकार भी इस रेत माफिया के आगे लाचार नजर आती है या यूं कहें कि नेता-अफसर और माफिया की मिलीभगत से ही से यह हो रहा है। अवैध उत्खनन की वजह से नर्मदा होशंगाबाद ही नहीं, कई जगहों से अपना रास्ता बदल रही है। नर्मदा में अवैध खनन को लेकर नरसिंहपुर काफी बदनाम है। शगुन घाट के उत्तरी तट से धड़ल्ले से नदी किनारे से ट्रैक्टर ट्रॉलियों से रेत ढोई जा रही है। महादेव पिपरिया, रेवा नगर, वेदर खदान के आसपास के इलाकों से भी रात के अंधेरे में नदी के किनारे से ही बड़ी मात्रा में रेत निकाली जा रही है। 



2. पेड़ पानी को करते हैं हेल्दी: वरिष्ठ वैज्ञानिक सुभाष सी पांडे ने कहा कि नदी के किनारों पर जितने ज्यादा पेड़ होंगे, वहां नदी के पानी में ऑक्सीजन की मात्रा ज्यादा होगी। ऑक्सीजन ज्यादा होने से पानी में उछाल आएगा और इससे नदी में घुली ऑक्सीजन की मात्रा ज्यादा होगी। इससे पानी हेल्दी होगा, जो जलीय जीव जंतुओं और आमजन के लिए भी लाभदायक होगा।



जमीनी पड़ताल: अंधाधुंध हुई पेड़ों की कटाई, 6 करोड़ पेड़ भी नहीं लगे: नर्मदा नदी किनारे पेड़ों की जमकर कटाई हुई। उसके 10% तक पेड़ भी कभी नहीं लगे। बड़े बांधों से पेड़ों के हुए विनाश का अंदाजा सिर्फ एक उदाहरण से लगाया जा सकता है कि इंदिरा सागर बांध बनाने से ही एक लाख एकड़ से ज्यादा जंगल डूब गया। 2017 में सीएम शिवराज सिंह चौहान ने नर्मदा किनारे 6 करोड़ पेड़ लगाने की बात कही, पर ये पेड़ कभी लगे ही नहीं। सूत्रों के मुताबिक 6 करोड़ पेड़ लगाने के लिए उतने गड्ढे कभी खुद ही नहीं पाए थे, क्योंकि आदेश ही आनन-फानन में दिया गया था। वहीं जो पेड़ लगे थे, उनमें से अधिकांश या तो मवेशी खा गए या फिर सूख गए। पेड़ों की कमी से ही नर्मदा बेसिन में सालाना बारिश में कमी आई है। जानकारी के अनुसार 1955-1964 तक 1133 मिमी, 1964-1985 तक 1104 मिमी और 1985-2015 तक 1045 मिमी की कमी हो गई। 



3. गंदा पानी मिलाना मां नर्मदा का अपमान: नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़ी रहीं मेघा पाटकर का कहना है कि सरकार ने इजराइली कंपनी को ट्रीटमेंट प्लांट बनाने का ठेका दिया। कंपनी बहुत धीरे काम कर रही है। मध्य प्रदेश के बड़े शहर हों या छोटे, ड्रेनेज का पानी बिना ट्रीटमेंट सीधे ही नदी में मिल रहा है, इसमें इंदिरा सागर बांध के पास बनी ऑफिसर्स कॉलोनी भी शामिल है।



जमीनी पड़ताल: जबलपुर में गंदे पानी का आचमन कर रहे भक्तगण: जबलपुर के ग्वारीघाट पर नर्मदा जयंती की व्यवस्थाओं का जायजा लेने आए तत्कालीन कलेक्टर कर्मवीर शर्मा नर्मदा को जबलपुर की आत्मा कह रहे हैं, नदी को शहर के लिए वरदान बता रहे हैं। शर्मा के अनुसार, मां नर्मदा के कारण ही जबलपुर फल-फूल रहा है, नालों की टेपिंग कर उन्हें एसटीपी प्लांट में भेजा जा रहा है, जिससे गंदा पानी नर्मदा में ना मिले। लेकिन हकीकत इससे उलट है। कलेक्टर साहब सवाल यह भी है कि जबलपुर में नर्मदा के प्रदूषण को रोकने प्रशासन फेल क्यों हुआ। नर्मदा भक्त मनीष दुबे का कहना है कि जिन सीवर ट्रीटमेंट प्लांट (STP) की बात की जा रही है, वे कभी भी बंद हो जाते हैं, जिससे गंदा पानी सीधे नर्मदा में मिलता है। भटोली से साईंधाम तक 10 से 12 नाले सीधे नर्मदा में मिल रहे हैं। पूर्व पार्षद ओंकार दुबे का कहना है कि 5 ऐसे प्रमुख नाले हैं, जिनके बीच में भक्त सीधे चरणामृत करते हैं। जिसके कारण वह गंदे पानी का आचमन कर रहे हैं। 



विधायक विनय सक्सेना का कहना है कि नगर निगम द्वारा सीवर ट्रीटमेंट प्लांट की स्थापना तो की गई है, लेकिन इसके पास से जल प्रदाय योजना के संयंत्र स्थापित हैं। नियमों के मुताबिक, सीवर ट्रीटमेंट प्लांट से कम से कम 10 किमी तक जल प्रदाय योजना के संयंत्र स्थापित नहीं हो सकते। खंदारी नाले की बात हो या ग्वारीघाट का चेंबर, सीधे नर्मदा में गंदगी मिल रही है। उमा घाट पर करोड़ों रुपए सिर्फ पत्थर पर फूंक दिए, उस स्थान पर भी गंदा नाला नर्मदा में मिल रहा है। सरकार के वादे और इरादे में काफी अंतर है। नर्मदा किनारे चल रही डेरियों को हटाने का मामला भी हाईकोर्ट में चला, इसके बावजूद हालात में कोई खास फर्क नहीं पड़ा। हैरानी इस बात की है कि जिलेटिन फैक्ट्री के अलावा अन्य कारखानों की गंदगी भी लगातार नर्मदा में मिल रही है। कहने को तो नगर निगम ने नर्मदा में गंदे नालों को मिलने से रोकने के लिए लाखों रूपए फूंक दिए, लेकिन नर्मदा निर्मल होने के बजाय और प्रदूषित होती जा रही है।



(इनपुट: जबलपुर से ओपी नेमा, नरसिंहपुर मो. समीर खान, बड़वानी से राकेश रंकेश वैष्णव।)


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