स्वरूपानंद सरस्वती को आज दी जाएगी समाधि, अंतिम दर्शन के लिए उमड़े भक्त, उत्तराधिकारी घोषित किए गए

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Atul Tiwari
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स्वरूपानंद सरस्वती को आज दी जाएगी समाधि, अंतिम दर्शन के लिए  उमड़े भक्त, उत्तराधिकारी घोषित किए गए

NARSINGHPUR. ज्योतिर्मठ बद्रीनाथ और शारदा पीठ द्वारका के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (98) का 11 सितंबर को निधन हो गया था। आज यानी 12 सितंबर को उन्हें समाधि दी जानी है। शंकराचार्य के अंतिम दर्शन के लिए नरसिंहपुर स्थित श्रीधाम में भक्तों का सैलाब उमड़ रहा है। दोपहर 1 बजे तक श्रद्धालुओं ने अंतिम दर्शन किए। शाम 4 बजे उन्हें समाधि दी जाएगी। इस बीच, संतों की बैठक के बाद दंडी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को ज्योतिष पीठ (बद्रीनाथ) और द्वारका पीठ का प्रमु दंडी स्वामी सदानंद सरस्वती को बनाया गया है।



साधुओं को भू-समाधि देने की परंपरा



शैव, नाथ, दशनामी, अघोर और शाक्त परम्परा के साधु-संतों को भू-समाधि दी जाती है। भू-समाधि में पद्मासन या सिद्धि आसन की मुद्रा में बैठाकर समाधि दी जाएगी। अक्सर यह समाधि संतों को उनके गुरु की समाधि के पास या मठ में दी जाती है। शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती को भी भू-समाधि उनके आश्रम में दी जाएगी।




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शंकराचार्य स्वरूपानंद की पार्थिव देह को पालकी से गंगा कुंड तक ले जाया गया।




सिवनी में हुआ था जन्म



स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म 2 सितंबर 1924 को मध्यप्रदेश के सिवनी जिले दिघोरी गांव में हुआ था। उनके पिता धनपति उपाध्याय और मां का नाम गिरिजा देवी था। माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा। 9 साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ कर धर्म यात्राएं शुरू की। इस दौरान वह काशी पहुंचे और यहां उन्होंने स्वामी करपात्री महाराज से वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली।



आजादी की लड़ाई में 2 बार जेल गए 



1942 में जब अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगा तो स्वरूपानंद (तब पोथीराम) भी स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में कूद पड़े। 19 साल की उम्र में वे क्रांतिकारी साधु के रूप में मशहूर हो गए। इसी दौरान उन्होंने वाराणसी की जेल में 9 और मध्य प्रदेश की जेल में 6 महीने की सजा भी काटी। वे करपात्री महाराज के राजनीतिक दल राम राज्य परिषद के अध्यक्ष भी थे। 1950 में वह दंडी संन्यासी बनाए गए और 1981 में शंकराचार्य की उपाधि मिली। 1950 में शारदा पीठ शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती से दंड-संन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती नाम से जाने जाने लगे।




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शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती। (बाएं) युवा स्वरूपानंद, 9 साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ दिया था।



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