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BHOPAL. इस 15 अगस्त को आपके घर पर, कार पर या शर्ट पर लगे तिरंगे (tricolor) का रंग क्या है। क्या आपका तिरंगा मेरे तिरंगे से अलग है। आपका तिरंगा नेहरू (Jawaharlal Nehru) वाला है या मोदी (Narendra Modi) वाला। ये सवाल चुभते भी हैं और अजीब भी लगते हैं। 75 साल हुए देश को आजादी मिले। कभी आपने सोचा था कि तिरंगे से जुड़ा ऐसा कोई सवाल पूछा जाएगा। सवाल तो एक तरफ अपने अपने तिरंगे को ज्यादा बेहतर बनाने के लिए डीपी बदलने की होड़ भी लगेगी। आपके पास कुछ वक्त हो तो बीजेपी और कांग्रेस नेताओं की डीपी पर नजर मारिए। तिरंगे को लेकर तेरा और मेरा करने की होड़ कहां तक है आपको समझते देर नहीं लगेगी। आजादी का 75 वां जश्न मना रहे लोगों भी ये नहीं जानते होंगे कि तिरंगा फहराने से पहले ये सोचना होगा कि वो नेहरू का तिरंगा फहरा रहे हैं या मोदी का तिरंगा फहरा रहे हैं।
कमलनाथ ने डीपी नहीं बदली
जश्न-ए-आजादी का ये 75 वां साल है। जिसे अमृत महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है। आजादी की डायमंड जुबली पर मोदी सरकार ने ऐलान किया कि हर घर तिरंगा अभियान चलाया जाएगा। इसके बाद जो सोचा नहीं था वो हो गया। इस अभियान का विरोध कुछ इस कदर शुरू हुआ कि तिरंगा भी बंटा हुआ नजर आने लगा। कांग्रेस ने दावा किया कि तिरंगा उसका है। क्योंकि बीजेपी और संघ ने आजादी के लिए खून नहीं बहाया। संघ पर तो कई उंगलियां उठी। जिनके निशाने पर संघ का भग्वा झंडा था। सफाई भी आई। लेकिन मामला यहीं नहीं थमा।
जैसा की एक चलन बन चुका है। लड़ाई कहीं से भी शुरू हुई हो, किसी भी मुद्दे पर हुई हो उसका ऐलान ए जंग सोशल मीडिया पर भी होना जरूरी है। सो हुआ भी। बीजेपी ने आजादी के अमृत महोत्सव पर हर घर तिरंगा लहराने के साथ ही डीपी पर भी तिरंगा लगाने की अपील की और तिरंगे का रंग यहां भी बदल गया। मोदी की अपील पर तिरंगा लगाने वालों ने डीपी पर सिर्फ तिरंगा लगाया। लेकिन कांग्रेस के आला नेताओं ने वो नेहरूजी की तस्वीर के साथ तिरंगा लगाया। राहुल गांधी, प्रियंका गांधी से लेकर तमाम नेताओं की डीपी में नेहरूजी तिरंगा थामे नजर आए। दिग्विजय सिंह समेत मध्यप्रदेश के तमाम नेताओं ने भी डीपी पर वही तस्वीर लगाई। हालांकि कमलनाथ की डीपी अब तक तीन रंगों में रंगी नहीं दिखाई दे रही है। जब हम आपको यह बता रहे हैं, तब तक कमलनाथ ने अपनी डीपी नहीं बदली है।
गृह विभाग के सर्कुलर पर विवाद
मध्यप्रदेश में सिर्फ डीपी की आंटा बांटी ही नहीं हुई। गृह विभाग के अफसर तो उससे भी एक कदम आगे निकले, जिन्होंने सर्कूलर में तिरंगे का रंग केसरिया की जगह भगवा ही लिख दिया। ये सर्कूलर 13 जुलाई को जारी किया गया था। इसे बाद में गृह विभाग के अफसर टाइपिंग एरर बताकर पल्ला झाड़ने की भी कोशिश करते नजर आए। टाइप करते हुए केसरिया कैसे लिखा जा सकता है ये तो गृह विभाग के अफसर ही बता सकते हैं या फिर ये सरकार की नजरों में आने के लिए जानबूझ कर की गई गलती थी। सवाल ये उठता है कि तिरंगे को नेहरू और मोदी के तिरंगे में बांट कर या उसके केसरिया रंग को भगवा रंग बता कर आखिर क्या साबित करने की कोशिश की जा रही है। हालांकि बाद में इस सर्कूलर हटा लिया गया।
तिरंगे की शान के आगे ये रकम कुछ नहीं लगती
सारा बवाल तब से शुरू हुआ जब पीएम नरेंद्र मोदी ने हर घर तिरंगा अभियान का ऐलान किया। इसके बाद जगह-जगह तिरंगा बांटने और बेचने की होड़ लगी हुई। रेल विभाग सहित कई सरकारी दफ्तरों की तरफ से कर्मचारियों को तिरंगा दिया जा रहा है। इसके पैसे उनकी सैलेरी से काट लिए जाएंगे। हर साल आजादी और गणतंत्र दिवस से पहले सड़क पर फेरी लगाने वाले बच्चों से आप 10-10 रुपए में खरीदे लेते थे। उसे नगर निगम जैसी कई सरकारी संस्थाएं ऑफिश्यली-अनऑफिश्यली 25 से तीस रुपए में बेच रही हैं। खैर तिरंगे की शान के आगे ये रकम कुछ नहीं लगती। लेकिन बवाल की ये जड़ समझना बहुत जरूरी है। बीजेपी के तिरंगा अभियान पर कांग्रेस के सवालिया निशान लगाने की वजह भी आरएसएस का पुराना इतिहास ही है।
राहुल के ट्वीट पर बवाल
हर घर तिरंगा अभियान के तहत देश के 24 करोड़ घरों में 13-15 अगस्त के बीच तिरंगा फहराया जाएगा। ये भारतीय आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने पर मनाए जा रहे अमृत महोत्सव के तहत किया जा रहा है। इसके बाद से राजनीति गर्मा रही है। कांग्रेस का कहना है कि जिस पार्टी ने देश की आजादी में कोई योगदान नहीं दिया उसे तिरंगा अभियान चलाने का भी कोई हक नहीं है। सियासत की इस आग में घी का काम किया राहुल गांधी के एक ट्वीट में। जिसमें उन्होंने लिखा कि "इतिहास गवाह है, 'हर घर तिरंगा' मुहीम चलाने वाले, उस देशद्रोही संगठन से निकले हैं, जिन्होंने 52 सालों तक तिरंगा नहीं फहराया।" राहुल गांधी का ये निशाना आरएसएस की तरफ था। जिसके मुख्यालय पर लंबे समय तक भगवा ध्वज ही फेहराता नजर आता रहा।
भारत सरकार के मंत्रियों और बीजेपी के नेताओं ने तो अपनी प्रोफ़ाइल पिक्चर में तिरंगा लगाया है लेकिन आरएसएस ने अपने आधिकारिक पेज या आरएसएस से जुड़े शीर्ष लोगों ने सोशल मीडिया पर प्रोफ़ाइल तस्वीर में फिलहाल अब तक तो तिरंगे का इस्तेमाल नहीं किया है। जब हम आपको यह बता रहे हैं, तब तक आरएसएस की प्रोफाइल नहीं बदली गई है।
तिरंगे का इतिहास
कुछ कांग्रेसियों का ये भी दावा है कि दिसंबर 1929 में कांग्रेस ने अपने लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज का नारा दिया था और लोगों से हर साल 26 जनवरी को तिरंगा फहराकर स्वतंत्रता दिवस मनाने का आह्वान किया था। लेकिन 26 जनवरी 1930 को तत्कालीन सरसंघचालक हेडगेवार ने सभी स्वयंसेवको को राष्ट्रध्वज के रूप में भगवा झंडे की पूजा करने का आदेश देते हुए सर्कुलर जारी किया था। उस वक्त तिरंगे पर चक्र की जगह चरखा हुआ करता था।
दिल्ली यूनिवर्सिटी में पॉलीटिकल साइंस के प्रोफसर और लेखक शम्स-उल-इस्लाम कहते हैं कि "इस सर्कुलर को कभी भी वापस नहीं लिया गया। आरएसएस के सबसे प्रमुख विचारक एमएस गोलवलकर ने 14 जुलाई 1946 को नागपुर में आरएसएस मुख्यालय में गुरु पूर्णिमा पर उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा था कि भगवा ध्वज भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है। ये ईश्वर का प्रतीक है और हमारा ये दृढ़ विश्वास है कि एक दिन संपूर्ण राष्ट्र इसी ध्वज को नमन करेगा।"
तिरंगे पर आरएसएस का इतिहास
शम्स-उल-इस्लाम कहते हैं कि जब 15 अगस्त 1947 की पूर्व संध्या जब लाल किले पर तिरंगा फहराने की तैयारी हो रही थी और देश भर में लोग तिरंगा हाथ में लेकर जश्न मना रहे थे तब भी आरएसएस ने तिरंगे का विरोध किया था। बीबीसी में शम्स उल इस्लाम की ओर से ये दावा भी किया गया है कि 14 अगस्त, 1947 को आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइज़र में प्रकाशित एक संपादकीय में कहा गया था- जो लोग भाग्य से सत्ता में आ गए हैं, उन्होंने हमारे हाथों में तिरंगा पकड़ा दिया है लेकिन इसे हिंदू कभी स्वीकार नहीं करेंगे और कभी इसका सम्मान नहीं करेंगे। तीन शब्द अपने आप में अशुभ है और तीन रंगों वाला झंडा निश्चित तौर पर बुरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव पैदा करेगा और देश के लिए हानिकारक साबित होगा।"(सोर्स बीबीसी)
RSS का विवाद पर पक्ष
हालांकि इसी रिपोर्ट में RSS के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर इन आरोपों और आलोचना को खारिज करते हैं। साल 2002 तक तिरंगा ना लगाने के प्रश्न पर आंबेकर कहते हैं- "2004 तक निजी तौर पर तिरंगा लगने को लेकर कई तरह की पाबंदियां थीं। 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में निर्णय दिया। तब से संघ कार्यालय पर भी राष्ट्रध्वज फहराया जा रहा है। इससे पहले भी स्वयंसेवक और कई संस्थाएं तो राष्ट्रध्वज को फहराते ही रहे हैं।" (सोर्स-बीबीसी)
पिंगली वेंकैया ने बनाया था तिरंगा
इन सभी आरोपों के जवाब में बीजेपी के भी कुछ सवाल हैं। बीजेपी का सवाल है कि कांग्रेस ने क्या कभी उस व्यक्ति का सम्मान किया। जिसने राष्ट्रीय ध्वज को डिजाइन किया है। 1947 में संविधान सभा ने तिरंगे के मौजूदा स्वरूप को स्वीकार किया था, तिरंगे का मूल डिजाइन आंध्र के पिंगली वेंकैया ने 5 साल तक 30 देशों के झंडों का अध्ययन करने के बाद 1921 में तैयार किया था। उस समय उसमें ऊपर लाल रंग था और बीच में चरखा। संविधान सभा ने लाल की जगह केसरिया और बीच में चरखे की जगह चक्र कर दिया था। बीजेपी का आरोप है कि तिरंगा डिजाइन करने वाले वेंकैया को कांग्रेस ने भुला दिया जबकि नरेंद्र मोदी की सरकार में ही वेंकैया पर डाक टिकट जारी किया गया।
धर्म और मजहब के इर्द-गिर्द घूमने वाली सियासत अब तिरंगे पर मंडराने लगी है। तिरंगे के लिए किसने क्या किया। किसने अपनाया किसने नहीं। इन सियासी शगूफों के बीच ये सवाल उठना भी लाजमी है कि क्या जो आजादी की लड़ाई का हिस्सा नहीं थे वो तिरंगे का शान बढ़ाने के हकदार नहीं। विदेशी धरती पर देश मान बढ़ाने वाले स्टूडेंट, खिलाड़ी क्या तिरंगे नहीं फहरा सकते। जब तिरंगा पूरे देश का है तो इसे मोदी या नेहरू में बांट कर सियासी दल तिरंगे की ही आन बान और शान को नीचे नहीं कर रहे हैं।