भोपाल: बिजली संकट से पार पाने के लिए मध्य प्रदेश सरकार सरकारी दफ्तरों, बंगलों को सौर उर्जा से रोशन करने की बात कर रही है, परन्तु अटपटी बात हए है कि मप्र को सोलर ऊर्जा की मदद से बिजली संकर से उबारने के लिए जिम्मेदार मध्य प्रदेश का ऊर्जा विकास निगम का ऑफिस खुद पूरी तरह ग्रीन एनर्जी पर नहीं चलता। निगम के कार्यालय की बिल्डिंगअपनी बिजली की आधी जरूरतें पूरी करने के लिए मध्य प्रदेश मध्य क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी लिमिटेड (MPEB) पर निर्भर है। इसके लिए हज़ारों का बिल हर महीने चुकाया जा रहा है। वहीं बात अगर मंत्रालय की करें तो संस्थान में स्थापित सोलर पैनल भी अपनी पूरी क्षमता से केवल आधा ही ऊर्जा का उत्पादन कर पा रहा है। जिसके वजह से हर महीने लाखों का बिजली बिल जा रहा है। पढ़िए द सूत्र की ग्राउंड रिपोर्ट.
मध्य प्रदेश का ऊर्जा विकास निगम: 60 KV का सोलर पैनल, फिर भी 40% बिजली जरूरतों के लिए MPEB पर निर्भर
वर्ष 2018 में मध्य प्रदेश ऊर्जा विकास निगम कार्यालय की बिल्डिंग की छत पर रूफटॉप सोलर पैनल इंस्टॉल किया गया था। इनकी क्षमता करीब 60 KW (किलोवाट) है - एक किलोवाट से 4 यूनिट बिजली पैदा होती है - और यह प्लांट 240 बिजली यूनिट रोजाना पैदा करता है। अधिकारियों के अनुसार मध्य प्रदेश ऊर्जा विकास निगम की महीने भर की बिजली की जरूरत का 60% ही इससे पूरा हो पा रहा है। बाकी के 40% बिजली की जरुरत को MPEB का ही सहारा है। जनवरी, 2022 से मार्च 2022 तक के तीन महीनों के बिल के बात करी जाए तो जनवरी में 68 हज़ार रुपए, फरवरी में 67 हज़ार रुपए और मार्च में भी 67 हज़ार रुपए का बिल आया है।
जब द सूत्र ने ऊर्जा निगम के SE श्रीकांत देशमुख से बात की तो उनका कहना है की उनकी कोशिश जारी है कि ऊर्जा निगम की बिल्डिंग पूरी तरह ग्रीन एनर्जी पर ही चले और MPEB पर डिपेंडेंसी ख़त्म हो। जब पूछा गया कि क्या रिन्युएबल एनर्जी यानी नवकरणीय ऊर्जा या सोलर एनर्जी प्रदेश में व्याप्त ऊर्जा संकट का सही सॉल्यूशन है?श्रीकांत देशमुख ने साफ़ किया की सौर ऊर्जा समाधान है पर त्वरित समाधान नहीं क्योंकि सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट्स के संचालन में कई बाधाएं हैं। जो मुख्य बाधाएं उन्होंने गिनवाई है वे इस प्रकार हैं:
- सरकारी फण्ड की कमी: देशमुख ने साफ़ कहा की फण्ड की कमी सोलर ऊर्जा प्रोजेक्ट्स के अनुमानित ग्रोथ को रोकने की बड़ी वजह है। उनका कहना है कि इसी समस्या के समाधान स्वरुप फ़िलहाल जो रूफटॉप सोलर पैनल लगाए जा रहे हैं वे RESCO मॉडल के तहत लगाए जा रहे हैं। इसमें सरकार जिस भी रिन्यूएबल एनर्जी सप्लायर कंपनी को रूफटॉप सोलर पैनल लगाने का टेंडर देगी, वही कंपनी खर्चा उठाएगी। मॉडल के तहत, कंपनी, परिसर के मालिक के लिए रूफटॉप पर सौर पैनल लगाएगा और उससे जो ऊर्जा अर्जित होगी उसको वह MPEB द्वारा दी जाने वाली नार्मल बिजली से करीब आधी दरों पर वापस परिसर के मालिक को देगा।
वल्लभ भवन का सोलर पैनल कर रहा आधा-अधूरा काम, जा रहा लाखों-करोड़ो का बिल
वल्लभ भवन में करीब 2017-18 में सोलर पैनल इंस्टॉल किया गया था। इसकी क्षमता 130 किलोवाट ऊर्जा पैदा करने की है। रिपोर्ट्स बताती हैं की शुरू के दो साल यह काम ही नहीं किया खराब रहा। और बाद में इसने जब काम करना शुरू भी किया तब भी अपनी पूरी क्षमता से प्रोडक्शन नहीं कर पा रहा। जिसकी वजह से सरकार को हर महीने लाखों रुपए बिल भरना पड़ रहा है। यानि साल भर में 5 करोड़ से भी ज्यादा। सूत्रों के अनुसार ताज़ा बिल मई महीने का करीब 60 लाख का आया है। एक अधिकारी ने नाम ना छापने कि शर्त पर कहा कि मंत्रालय का सलार पैनल अपनी पूरी क्षमता से प्रोडक्शन इसलिए नहीं कर पा रहा क्योंकि इसका ठीक रखरखाव और सफाई नहीं कि जाती। यह ऊर्जा संस्थान और पैनल प्रोवाइडर कंपनी कि लापरवाही का नतीजा साफ़ दर्शाता है।
मध्य प्रदेश में कुल 4300 बिल्डिंग में ही सोलर पैनल
- नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, 31 अगस्त, 2021 तक राज्य में रूफटॉप सौर परियोजनाओं की स्थापित क्षमता 120.11 मेगावाट (0.12 गीगावाट) है
सौर ऊर्जा उत्पादन में टारगेट से पांच गुना पीछे हैं मध्यप्रदेश
- नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार मध्य प्रदेश को वर्ष 2022 के लिए करीब 5,636 मेगावाट का सोलर एनर्जी बनाने का टारगेट मिला है
सोलर ऊर्जा पर पूरी तरह निर्भरता मुमकिन नहीं: संजय दुबे, PS, ऊर्जा निगम
जब ऊर्जा निगम के PS संजय दुबे से इस बारे में बात करी गई की क्यों ऐसा है की खुद निगम का ऑफिस अपनी बिजली जरूरतों के लिए आज तक आत्मनिर्भर नहीं हो पाया है? और वल्लभ भवन का सोलर पैनल ठीक क्यों नहीं काम करता? तो उनका जवाब था कि वल्लभ भवन में स्थापित सोलर पैनल के रखरखाव की जिम्मेदारी उस कंपनी की है जिसने उसे इंस्टॉल किया है, अगर वह ऐसा नहीं करती है तो उसी का नुकसान है। ऊर्जा निगम के ऑफिस के बारे में उनका तर्क था कि तकनीकी कारणों के अनुसार यह मुमकिन नहीं है की किसी भी सरकारी बिल्डिंग अपनी बिजली की जरूरतों के लिए पूरी तरह सौर ऊर्जा पर ही आधारित हो जाए। कहा कितनी सौर ऊर्जा बनाई जा सकती है उसमे कई फैक्टर्स इन्वॉल्व होते हैं।