प्रवीण शर्मा, BHOPAL.सरकारी दफ्तरों में ऊपर से नीचे तक एक लाइन बड़ी शिद्दत से बोली और सुनी जाती है, वह है फाइल बढ़ा दी है। मगर वल्लभ भवन में सरकारी दफ्तरों का ये सू़त्र वाक्य ही तार-तार हो रहा है। अब फाइल तो बन रही हैं, लेकिन बढ़ नहीं रही हैं। बाबू फाइल बनाकर चकरा जाते हैं कि अब बढ़ाएं कहां और कैसे? असल में मंत्रालय में फाइलें ऊपर भेजने वाला पुल ही ढह चुका है। विभाग के आईएएस मुखियाओं तक फाइलें बढ़ाने का काम करते हैं अंडर, डिप्टी और एडीशनल सेक्रेटरी, लेकिन हालत यह है कि मंत्रालय मंे अब एडीशनल एक भी नहीं हैं डिप्टी सेक्रेटरी बचे केवल एक और अंडर सेक्रेटरी हैं तो आधे से कम। ऐसे में अब फाइल बढ़ाए कौन ? सारा काम 50-50 पर ही चल रहा है। गिनने के लिए बचे हैं तो केवल खाली पद।
असल में दूरदराज में बैठे अधिकारी-कर्मचारी हों अथवा छोटी-बड़ी समस्या से जूझता आम आदमी। हर किसी के लिए ताकत का काम करता है राज्य मंत्रालय यानी वल्लभ भवन। सभी को उम्मीद रहती है कि मंत्रालय में उनकी समस्याएं सुलझाने वाले बैठे हैं। मगर अब लोगों को कौन बताए कि मंत्रालय की खुद ही सांसें फूल रही हैं। उसकी आवाज को ऊपर तक पहुंचाने वाले अधिकारी-कर्मचारी अब रोज-ब-रोज कम होते जा रहे हैं। गिनने के लिए अब कुछ बचा है तो वह हैं खाली पद। यही वजह है कि मंत्रालय कैडर का एक भी अधिकारी या कर्मचारी जिस दिन रिटायर होता है उसी दिन उछाल मार जाता है खाली पदों का आंकड़ा और अचानक मंत्रालय में बढ़ जाता है सन्नाटा। वल्लभ भवन यानी राज्य मंत्रालय 2018 के पहले तक केवल एक ही बिल्डिंग तक सीमित रहता था। इसी पांच मंजिला वल्लभ भवन में पूरा शासन-प्रशासन और प्रदेश समाया रहता था, लेकिन अब इस पुरानी बिल्डिंग के आगे-पीछे दो एनैक्सी बढ़ा दी गई है। करीब 750 करोड़ रुपए खर्च कर बनीं और सजी-संवरी इन एनैक्सी को बनाने के पीछे सबसे बड़ा कारण ही यही था कि अधिकारियों, कर्मचारियों और मंत्रियों को बैठने में दिक्कत होती है। कमरे कम पड़ रहे हैं। मगर विसंगति पूर्ण स्थिति यह है कि जिन अधिकारियों और कर्मचारियों की संख्या का हवाला दिया गया था, उस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। सात सालों से अदालत की रोक लगी होने के कारण भर्ती और पदोन्नति रुकी होने से मंत्रालय में अब केवल खाली पद ही बढ़ रहे हैं। इससे अधिक विसंगति और क्या होगी कि वर्तमान में मंत्रालय के लिए स्वीकृत कुल 2540 पदों में से 1535 पद खाली पड़े हुए हैं। ये अधिकृत आंकडा 1 अप्रैल 2022 की स्थिति का है। इसके बाद बीते चार माह में हर विभाग में अधिकारी-कर्मचारी रिटायर हुए है। जबकि भर्ती या प्रमोशन एक भी कर्मचारी-अधिकारी का नहीं हुआ है। ऐसे में खाली पदों की संख्या 1600 से अधिक हो गई है। जो कुल स्वीकृत पदों का 40 फीसदी हिस्सा है। यानी महज 60 फीसदी स्टॉफ से ही काम चल रहा है।
ये है खाली पदों के हाल, कैसे हो काम
वल्लभ भवन में मंत्रालय कैडर में सबसे बड़ा पद एडीशनल सेक्रेटरी का होता है। सेटअप में अपर सचिव एडीशनल सेक्रेटरी के तीन पद स्वीकृत हैं, लेकिन लंबे समय से मंत्रालय में एडीशनल सेक्रेटरी ही नहीं है। नियमों के तहत कोई पद रिक्त होने से उसी के समकक्ष या वन स्टेप नीचे वाले पद को प्रभार दे दिया जाता है, लेकिन मंत्रालय में अब डिप्टी सेक्रेटरीज भी उपलब्ध नहीं है। डिप्टी सेक्रेटरी के कुल स्वीकृत 13 में से 12 पद खाली है। अब केवल एक डिप्टी सेक्रेटरी कार्यरत हैं। खनिज साधन मंत्रालय में पदस्थ शर्मिष्ठा ठाकुर डिप्टी सेक्रेटरी के पद पर कार्यरत हैं। इन पदों का प्रभार संभालने वालों की ओर भी नजर डाल लेते हैं, अवर सचिव यानी अंडर सेक्रेटरी के 57 स्वीकृत पदों में से 25 पद ही अधिकारी कार्यरत है और 32 खाली पड़े हैं। स्टॉफ आफिसर के 18 में 8 तो अनुभाग अधिकारी के 145 में से 91 पद खाली पड़े है, केवल 54 सेक्शन अधिकारी ही कार्यरत हैं। निचले स्तर के अमले के पद भी बड़ी संख्या में खाली पड़े हैं। इनके भी खाली और भरे पदों का अनुपात 50-50 का बना हुआ है।
घड़ियां हो गई बंद, अभी भी चल रहे हैं घड़ीसाज
करीब चार दशक पहले बने मंत्रालय संवर्ग के पदों की सूची में समय-समय पर पदों की संख्या तो बढ़ी है, लेकिन सालों बाद भी किसी से इस सेटअप को रिव्यूह करने की जरूरत नहीं समझी है। इसी का परिणाम है कि वर्तमान सेटअप में कई पद ऐसे हैं, जिनकी जरूरत ही नहीं है। ऐसे ही पद हैं घड़ीसाज, डुप्लीकेटिंग सुपरवाईजर। घड़ीसाज उस समय रखे जाते थे जब चाबी भरने वाली घड़ियां होती थी। रोजाना चाबी भरने के साथ ही उनके पेंडुलम को बार-बार सुधारना पड़ता था। अब तो सेल और इलेक्ट़ानिक्स घड़ियां मंत्रालय में लग गई है। इस पद की भी अब जरूरत नहीं है। तकनीशियन के तौर पर भी ऐसे ही विसंगतिपूर्ण कार्यों का बंटवारा किया गया है। जिन्हें अब उनके संवर्ग के जरूरत वाले पदों में शामिल कर दिया जाना चाहिए। जैसे पूर्व में टाइपिस्ट के पद कंप्यूटर ऑपरेटर में जोड़ दिए गए हैं।
आखिरी डीपीसी को भी नहीं किया मान्य
वर्ष 2016 में अदालत का आदेश आने के पहले मंत्रालय में पदोन्नति के लिए विभागीय पदोन्नति समिति डीपीसी की बैठक हो चुकी थी। अन्य विभागों में तो अंतिम डीपीसी को मान्य करते हुए पदोन्नति दे दी गई थी, लेकिन मंत्रालय में इस डीपीसी के बाद आदेश ही रोक दिए गए। इससे मंत्रालय में सैकड़ों की संख्या में अधिकारी-कर्मचारी बगैर प्रमोशन के ही रिटायर हो गए।
कमेटियां बनीं, सिफारिश भी भेजीं, माना किसी ने नहीं
मंत्रालयीन कर्मचारी संघ के प्रवक्ता आनंद भट्ट का कहना है इस दौरान सेटअप में बदलाव और खाली पदों को भरने के लिए समय-समय पर कमेटियों का गठन किया गया। कमेटियों ने अपनी सिफारिश भी तत्कालीन सरकारों को भेजी, लेकिन इन पर ध्यान किसी ने नहीं दिया। अन्य विभागों में तो अदालत के अंतरिम आदेश पर पदोन्नति भी दे दी गई, लेकिन मंत्रालय को इससे भी दूर रखा गया। इसी का परिणाम है कि हर अधिकारी-कर्मचारी पर डबल काम हो गया है। लगातार भार और तनाव के कारण स्टॉफ की शारीरिक स्थिति भी बिगड़ रही है। यही वजह है कि मंत्रालय में अब 62 की जगह 65 साल में सेवानिवृत्त करने की मांग कर्मचारी कर रहे हैं। इसका प्रस्ताव राज्य कर्मचारी कल्याण समिति ने भी राज्य सरकार को भेजा है। भर्ती-पदोन्नति न होने तक कुछ विकल्प तो सरकार को अपनाना ही चाहिए।
सेटअप काफी पुराना है, इसे बदला जाए
राज्य सरकार ने मंत्रालय कैडर के पदों को लेकर कभी गंभीरता नहीं दिखाई है। सेटअप भी काफी पुराना ही चल रहा है। आज की डेट में मंत्रालय में स्वीकृत पदों की तुलना में आधे अधिकारी-कर्मचारी ही काम कर रहे हैं। जो सेटअप है, उसका भी युक्तियुक्तकरण किया जाना चाहिए। जो पद अब जरूरत के नहीं हैं, उन्हें दूसरे वर्ग में कनवर्ट कर देना चाहिए। खाली पद बढ़ने से काम की गति भी बिगड़ी है। अंडर सेक्रेटरी एक भी नहीं बचे हैं तो डिप्टी सेक्रेटरी भी केवल एक बचे हैं। ऐसे में काम कैसे हो सकेगा। ओएसडी के दम पर मंत्रालय का काम नहीं चल सकता। जल्द ही इस पर विचार किया जाना चाहिए। अन्यथा समस्या बढ़ जाएगी।
आशीष सोनी, अध्यक्ष मप्र मंत्रालयीन कर्मचारी संघ