भोपाल. राज्य सरकार देश की 5 ट्रिलियन इकोनॉमी के लक्ष्य में मध्यप्रदेश का अहम योगदान सुनिश्चित करने के लिए प्रदेश में स्टार्टअप कल्चर (Startup culture) को बढ़ावा देना चाहती है। इसके लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (cm shivraj) ने हाल ही में ‘‘स्टार्ट इन इंदौर’’ सम्मलेन में जल्द ही एक नई स्टार्टअप पॉलिसी (startup policy) लागू करने का ऐलान किया है। प्रदेश में नए स्टार्टअप की आर्थिक मदद के लिए उन्होंने वेंचर कैपिटल फंड बनाने की भी घोषणा की है। लेकिन हकीकत ये है कि प्रदेश सरकार ये सब दावे 2015 से लगातार कर रही है। सात साल पहले भी सरकार ने स्टार्टअप की मदद के लिए 100 करोड़ की पूंजी का वेंचर कैपिटल फंड बनाने का ऐलान किया था। इसके लिए 20 फीसदी राशि यानी 20 करोड़ रुपए सरकार की तरफ से और बाकी 80 करोड़ रुपए प्राइवेट इन्वेस्टमेंट से जुटाने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन सरकार निजी निवेश की मदद से 80 करोड़ तो जुटा नहीं पाई। उसने अपने हिस्से के 20 करोड़ रुपए भी मप्र लघु उद्योग निगम (MPLUN) के फंड में ट्रांसफर कर दिए।
1. MP में सीड फंडिंग सपोर्ट एवं वेंचर फंडिंग सपोर्ट जीरो: राज्य स्टार्टअप रैंकिंग, 2019 में मध्य प्रदेश की स्थिति देखी जाए तो वो बेहद बुरी है। इस मामले में भारत के शीर्ष 4 राज्यों में महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश एवं दिल्ली का नाम शुमार हैं। लेकिन भारत के दूसरे सबसे बड़े राज्य मध्य प्रदेश का इसमें कोई जिक्र ही नहीं है। प्रदेश में स्टार्टअप के बारे में अवेयरनेस एंड आउटरीच महज 3%, ईज ऑफ पब्लिक प्रोक्योरमेंट:3%, इंस्टीट्यूशनल सपोर्ट:2%, नियम कानूनों के सरलीकरण में: 0%, इन्क्यूबेशन सपोर्ट:0%, सीड फंडिंग सपोर्ट:0% एवं वेंचर फंडिंग सपोर्ट:0% है।
2. DPIIT की रैंकिंगः 2018 में लीडर 2020 में फिसड्डी: वहीं DPIIT (डिपार्टमेंट फॉर प्रमोशन ऑफ़ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड) की स्टेट्स स्टार्टअप रैंकिंग की 2018 की रिपोर्ट में जहां मध्य प्रदेश लीडर्स केटेगरी में आया था। वहीं सितम्बर 2020 की रिपोर्ट में मध्य प्रदेश लिस्ट में नीचे लुढ़ककर सबसे नीचे की इमर्जिंग स्टार्टअप ईकोसिस्टम्स की केटेगरी में आ गया है।
3. सीड-फंडिंग सपोर्ट एवं वेंचर फंडिंग सपोर्ट में मप्र नदारद: भारत सरकार के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग की एक रिपोर्ट के हिसाब से सीड-फंडिंग सपोर्ट एवं वेंचर फंडिंग सपोर्ट में अग्रणी राज्यों में भी मध्य प्रदेश का कहीं नाम नहीं है। इसमें जो राज्य शामिल हैं उनमें उत्तराखंड, झारखण्ड, बिहार, राजस्थान, असम, महाराष्ट्र, ओडिशा, छत्तीसगढ़, केरल, राजस्थान एवं गुजरात प्रमुख हैं।
वेंचर कैपिटल फंड के लिए 100 करोड़ की घोषणा, 20 करोड़ की फंडिंग लेकिन वो भी नहीं मिली: वर्ष 2015 में युवा उद्यमियों (young entrepreneurs) को उनके स्टार्टअप में आर्थिक मदद करने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने वेंचर कैपिटल फंड की स्थापना की घोषणा की थी। सरकार ने कहा था कि यह फंड युवा उद्यमियों को उनके स्टार्टअप में मदद करेगा। इस फण्ड का कुल कोष 100 करोड़ रुपए तय हुआ था। इसमें से करीब 20% फण्ड राज्य सरकार कि तरफ से आना था एवं बाकि 80% फंडिंग विभिन्न प्राइवेट एजेंसीज जैसे कि बैंक्स, फाइनेंसियल इंस्टीट्यूशन्स एवं कॉर्पोरेट्स आदि से जुटाया जाना था। सीएम की घोषणा के करीब डेढ़ साल बाद यानी वर्ष 2017 में वित्त विभाग के अधीन MP Venture Finance Limited (MPVFL) की स्थापना की गयी। परन्तु अगले पांच वर्षों में किसी भी युवा उद्यमी या स्टार्ट अप को इस फंड या कंपनी से मदद नहीं मिली। हालात देखते हुए शिवराज सरकार ने आखिरकार सितम्बर 2020 में कंपनी को वित्त विभाग से लेकर MSME विभाग को सौंप दिया। MP MSME Fund Trust के अधीन MP Venture Finance Limited (MPVFL) को इस उद्देश्य के साथ फाइनली रोल आउट किया गया कि वह ऐसे इनोवेटिव, स्केलेबल और सस्टेनेबल स्टार्टअप्स एवं प्रोजेक्ट्स एवं SME वेंचर्स में इक्विटी फंडिंग के माध्यम से इन्वेस्ट करेगी, जिससे मुख्यतः राज्य को फायदा हो। MSME डिपार्टमेंट की मौजूदा स्टार्टअप पालिसी में भी MPVFL का जिक्र है। एमएसएमई विभाग में तत्कालीन सचिव विवेक पोरवाल के कार्यकाल में स्टार्टअप के लिए निर्धारित 20 करोड़ का फण्ड मध्य प्रदेश लघु उद्योग लिमिटेड में बनाया गया था। लेकिन MSME विभाग भी इस फण्ड का उपयोग नहीं कर पाया।
सवालों पर जिम्मेदार अफसरों ने साधा मौन: मुख्यमंत्री ने हाल ही में कहा है कि वे हर महीने एक घंटे का समय निकालकर स्टार्ट-अप उद्यमियों से सीधी बातचीत करेंगे ताकि उनकी मौजूदा रुकावटों को दूर किया जा सके। लेकिन उनकी सरकार के जिम्मेदार अधिकारियों के पास स्टार्टअप्स की समस्याओं के बारे में बात करने का भी वक्त नहीं है। हाल ये है कि MSME डिपार्टमेंट के तत्कालीन सेक्रेटरी विवेक कुमार पोरवाल (इन्हीं के कार्यकाल में स्टार्टअप वेंचर कैपिटल फंड बना था) से सवाल करने पर उन्होंने ये कहते हुए कोई भी जवाब देने से मना कर दिया कि वे अब इस विभाग में नहीं है। वहीं MSME डिपार्टमेंट के वर्तमान सेक्रेटरी पी. नरहरि से भी संपर्क के कई प्रयास करने के बाद भी उन्होंने सवालों के जवाब देना मुनासिब नहीं समझा।
मंत्री बोले- शायद स्टार्टअप्स के आवेदन ही नहीं आए होंगे: द सूत्र ने इस पूरे मुद्दे पर MSME मंत्री ओम प्रकाश सकलेचा से बात की। जानिए उन्होंने द सूत्र के तीन सवालों के क्या जवाब दिए।
1. क्या कारण है कि प्रदेश में स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने के लिए 100 करोड़ का फंडिंग पूल बनाने के सरकार के ऐलान के 7 साल बाद भी स्टार्टअप्स को अब फंडिंग नहीं मिल पा रही है?
जवाब: नहीं ऐसा पूरी तरह सही नहीं है। स्टार्टअप्स को कुछ फंड तो मिला है। हालांकि ये भी सच है की सिस्टम में और सुधार की जरूरत है। 10-12 दिनों में ही नई पॉलिसी आ जाएगी और हम उसमें स्टार्टअप को ज्यादा बड़े पैमाने पर मदद कर पाएंगे।
2. स्टार्टअप इंडिया का गवर्नमेंट फंड जो वेंचर कैपिटल में आया था, उस फंड को ट्रांसफर कैसे कर दिया गया? क्यों स्टार्टअप्स की फंडिंग का 20 करोड़ रुपए MPLUN में डाल दिया गया?
जवाब: बजट का पैसा लैप्स न हो जाए इसलिए इस राशि को MPLUN में ट्रांसफर किया गया। जहां तक स्टार्टअप के लिए निर्धारित 20 करोड़ रुपए तय समय में जरूरतमंद स्टार्टअप्स को न मिल पाने का सवाल है तो हो सकता है कि शायद स्टार्टअप्स ने मदद के लिए आवेदन ही नहीं किया होगा। मेरी जानकारी के अनुसार किसी भी स्टार्टअप का आवेदन रिजेक्ट तो नहीं किया गया है।
3. क्या कारण है फिर कि प्रदेश की रैंकिंग 2018 कि तुलना मे बहुत ज्यादा गिर गई?
जवाब: मेरी राय में ये स्टार्टअप पालिसी के ऑउटडेटेड होने का असर है और इसलिए पॉलिसी को बीच-बीच में अपडेट करते रहने की जरुरत है। पॉलिसी को जितना जल्दी, ज्यादा और बेहतर अपडेट किया जाएगा, उतना ही स्टार्टअप कल्चर को बढ़ावा मिलेगा। कोविड-19 महामारी भी प्रदेश के स्टार्टअप कल्चर की ग्रोथ में एक बड़ी रुकावट बनी है।
इन्क्यूबेटर्स की स्थिति अच्छी लेकिन सरकारी मदद न के बराबर: द सूत्र की टीम ने LNCT समूह द्वारा भोपाल में संचालित प्राइवेट कल्चुरी इन्क्यूबेशन सेंटर एवं स्मार्ट सिटी द्वारा संचालित इन्क्यूबेटर्स का जायजा लिया। पता चला कि इन्क्यूबेटर्स स्टार्टअप्स को मदद करने के लिए बेहतर काम कर रहें हैं। लेकिन दोनों ही जगह प्राइवेट इन्वेस्टर्स से ही ज्यादातर फंडिंग मिल पाती है। सरकारी फंडिंग मिलना बहुत मुश्किल होती है। इसकी वजह ये है कि सरकारी फंडिंग प्राप्त करने की डॉक्यूमेंटेशन प्रोसेस बहुत जटिल और लम्बी होती है। ज्यादातर स्टार्टअप्स को फंडिंग स्कीम्स की प्रक्रिया की सही जानकारी ही नहीं होती है।
जानिए, क्या है एमपी इन्क्यूबेशन एंड स्टार्टअप पॉलिसी: प्रदेश में फिलहाल 'एमपी इन्क्यूबेशन एंड स्टार्टअप पॉलिसी', 2019 , 01 अप्रैल 2020 से लागू है। MSME डिपार्टमेंट (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विभाग) के तहत इस पॉलिसी में कपड़ा निर्माण, ऑटोमोबाइल, खाद्य प्रसंस्करण, सोया प्रसंस्करण, इंजीनियरिंग और कृषि उपकरण निर्माण जैसे क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया गया है।
किसे माना जाता है 'स्टार्टअप' वेंचर:
- पंजीयन की तारीख से दस साल की अवधि तक का वेंचर।
क्या है इन्क्यूबेटर्स या पार्टनर इन्क्यूबेटर्स की परिभाषा: इन्क्यूबेटर या पार्टनर इन्क्यूबेटर वे होते हैं जो स्टार्टअप्स के शुरूआती दौर में संसाधनों और सेवाओं (जैसे कि प्रोफेशनल एंड मैनेजीरियल असिस्टेंस, वर्कस्पेस, बिजनेस, लीगल, एवं फाइनेंसियल मदद) के माध्यम से मदद देकर एक स्केलेबल व्यवसाय मॉडल विकसित करने में मदगार होता है। इनके अलावा मध्य प्रदेश आधारित इन्क्यूबेटर जिसका MSME डिपार्टमेंट के साथ MOU हो। स्टार्टअप नीति- 2019 के अनुसार भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर में स्टेट ऑफ़ आर्ट इन्क्यूबेटर्स बनाने का ऐलान किया गया था।