SINGRAULI: अब शुरू हुई नगर निगम परिषद अध्यक्ष की जोर - आजमाइश 

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Arvind Mishra
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SINGRAULI: अब शुरू हुई नगर निगम परिषद अध्यक्ष की जोर - आजमाइश 

SINGRAULI. नगर निगम चुनाव का परिणाम आने के बाद अब ननि परिषद अध्यक्ष के लिए जोर - आजमाइश आरंभ हो चुकी है। यूं तो महापौर की सीट शर्मनाक तरीके से गंवा चुकी बीजेपी को 23 पार्षदों के साथ अध्यक्ष पद के लिए स्पष्ट बहुमत मिला हुआ है। बावजूद इसके कांग्रेस भी अपने 12 व शेष अन्य 10 पार्षदों के भरोसे कोई कसर छोड़ने को तैयार नहीं नजर आ रही है। 





कांग्रेस का यह भरोसा निवर्तमान परिषद के लिए हुए चुनाव के घटनाक्रम के मद्देनजर और मजबूत हो रहा है। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि लेन - देन व तोड़ - भांज की नीति से जब 27 पार्षद संख्या वाली बीजेपी पिछली बार ह्विप जारी होने के उपरांत भी अपने घोषित प्रत्याशी संजीव अग्रवाल को परिषद अध्यक्ष नहीं बना पायी थी और चमत्कारिक ढंग से निर्दलीय पार्षद चंद्र प्रताप विश्वकर्मा अध्यक्ष बन गये थे। तो कांग्रेस भी उसी चमत्कार से अपना अध्यक्ष क्यों नहीं बना सकती है। फिर  बसपा, आप और निर्दलीय मिलाकर संख्या भी 22 हो रही है तो सफलता मिलना कोई कठिन नहीं है। उधर बीजेपी के रणनीतिकार महापौरी गंवाने के बाद अध्यक्ष पद के लिए मिले अवसर को किसी भी तरह फिसलने देने के मूड में नजर नहीं आ रहे हैं। इनके लिए यह पद अब अपनी व पार्टी की साख बचाने का मुख्य जरिया जो बन चुका है। ऐसे दोनों दल से चलने वाली जोर आजमाइश रोचक रूप ले सकती है। सर्वाधिक पार्षद संख्या वाली बीजेपी की बात करें तो इस दल से दूसरी दफा परिषद कक्ष तक पहुंचने वाले वार्ड 17 के देवेश पाण्डेय व वार्ड 41 की सीमा जायसवाल में से किसी एक को बीजेपी अपना प्रत्याशी बना सकती है। इसके अलावा वार्ड 31 के भारतेन्दु पाण्डेय भी बीजेपी की पंसद बन सकते हैं। वैसे बीजेपी सूत्रों की मानें तो हमेशा धन बल के आधार पर होने वाले इस चुनाव में भी इस पहलू से मजबूत कन्डीडेट पर ही दांव लगाया जायेगा। कांग्रेस की ओर से दूसरी बार पार्षद बने अनुभवी वार्ड 18 के अखिलेश सिंह को सामने लाया जा सकता है। यह अजय सिंह राहुल के भी पसन्दीदा उम्मीदवार हो सकते हैं। उधर कांग्रेस के बैनर तले वार्ड 9 से पहली बार चुनाव जीतने वाले शेखर सिंह के भी मैदान में उतरने की चर्चा भी जोरो पर है। जो धन बल में अखिलेश से भारी हो सकते हैं। 





दल बदल की भी चल रही गोलबंदी 





निर्वाचन अवधि से 20 दिनों के भीतर सम्मिलन बुला लिये जाने के प्रावधान को देखते हुए इस पद पर काबिज होने की गुणा - गणित अभी से ही शुरू कर दी गई है। इस के लिए दल बदल का विकल्प भी खुला रखा गया है। यानी कि जो कांग्रेस से पार्षद बना है वो चुनाव जीतते ही अपना लुक बदल जहाँ रामनामी चोले में नजर आने लगा है तो भाजपाई कांग्रेसी बाना धारण करने लगा है। अपुष्ट खबर पर भरोसा करें तो बीजेपी के एक शीर्ष पदाधिकारी की पहली पसंद एक धनबली कांग्रेसी पार्षद बने हुए हैं। जिन्हें वह हर हाल में परिषद की पीठ पर बैठाने को बेकरार हैं। इस हेतु वह दल बदल का सहारा लेने की कोशिश में भी देखे जा रहे हैं।



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