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Jabalpur. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन याचिकाओं की शीघ्र सुनवाई के लिए राज्य शासन को प्रयास करने के निर्देश दिए हैं। इसके अंतर्गत अर्जेंट हियरिंग की अर्जी दायर करने पर बल दिया गया है। यही नहीं ओबीसी रिजर्वेशन को लेकर हाईकोर्ट में लंबित सभी मामले सुप्रीम कोर्ट स्थानांतरित करने पर भी विचार करने राज्य शासन को निर्देशित किया है। अदालत ने सरकार को इसके लिए 4 सप्ताह का समय दिया है। साथ ही मामले में अंतिम स्तर की नियमित सुनवाई को 11 अक्टूबर तक के लिए स्थगित कर दिया गया।
प्रशासनिक न्यायाधीश शील नागू और जस्टिस वीरेंद्र सिंह की युगलपीठ के समक्ष यह मामला सुनवाई के लिए लगा था। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट में पहले से विचाराधीन ओबीसी आरक्ष्ज्ञण संबंधी मामलों को लेकर हाईकोर्ट ने अपना मत व्यक्त किया। इसके तहत साफ किया कि जब तक सुप्रीम कोर्ट द्वारा विचाराधीन याचिकाओं पर फैसला नहीं सुना दिया जाता, हाईकोर्ट में सुनवाई जारी रखना विधिसम्मत नहीं होगा।
सरकार ने पेश की पेपरबुक
हाईकोर्ट के पूर्व निर्देश के पालन में राज्य शासन की ओर से सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन ओबीसी आरक्षण संबंधी मामलों की पेपरबुक पेश की गई। जिसका अवलोकन करने के बाद हाईकोर्ट ने पाया कि देश की शीर्ष कोर्ट में ये मामले साल 2014 से लंबित हैं। ऐसे में सरकार का दायित्व है कि वह हाईकोर्ट में विचाराधीन मामलों से पहले सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामलों का शीघ्र निराकरण कराने की दिशा में ठोस प्रयास करें।
हाईकोर्ट के क्षेत्राधिकार पर उठा था सवाल
बता दें कि अंतिम सुनवाई के दौरान ओबीसी आरक्षण के समर्थक अधिवक्ता उय कुमार साहू, रामगिरीश वर्मा, परमानंद साहू व अन्य ने यह दलील दी थी कि संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार कानून बनाने का कार्य सिर्फ विधायिका को ही प्राप्त है। इसलिए हाईकोर्ट को विधि व संविधान के प्रावधानों के विपरीत आदेश जारी करने का क्षेत्राधिकार नहीं है। वह भी तब जबकि मामले से संबंधित याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन हों।
अंतरिम आदेशों में संशोधन की मांग
इधर राज्यपाल के आदेशपर राज्य शासन की ओर से हाईकोर्ट में ओबीसी का पक्ष रखने नियुक्त किए गए विशेष अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर व विनायक प्रसाद शाह ने हाईकोर्ट से मांग की कि पूर्व में जारी अंतरिम समस्त आदेशों को संशोधित किया जाए ताकि प्रदेश में 4 सालों से रुकी हुई भर्तियां हो सकें। हाईकोर्ट ने कहा कि पूर्व में किसी भी प्रकरण में भर्ती प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाई गई है। इस पर हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि समस्त नियुक्तियां विचाराधीन याचिकाओं के अंतिम निर्णय के अधीन होंगी।