GWALIOR. ग्वालियर जिले में गरीबों के घर राशन नहीं पांच सका है क्योंकि उनकी पात्रता पर्चियों का परीक्षण ही नहीं हो सका है। इसकी बड़ी बजह प्रशासन द्वारा चुनावी व्यस्तता में रहना है। जिले में दो लाख से ३९ हराज से गरीब परिवार है जिनका गुजारा सरकार से मिलने वाले राशन से चलता है लेकिन वे दस दिन से अपनी उचित मूल्य किडुकानों पर चक्कर लगा रहे हैं लेकिन उनका खाद्यान वहां पहुंचा ही नहीं क्योंकि उनकी पर्ची का वेरिफेक्शन ही नहीं हो सका।
दो लाख से ज्यादा है पर्ची ग्राहक
ग्वालियर जिले में दो लाख 39 हजार से ज्यादा ऐसे गरीब हैं जिन्हे सरकार ने फ्री राशन की सूची में रखा है। इस सूची में शामिल करने के लिए तमाम तरह की जांचो और प्रपत्रों से गुजरना पड़ता है। जिले में इनकी संख्या 2 लाख 39 हजार से ज्यादा है। इनकी संख्या हर माह घटती बढ़ी रहती है क्योंकि नए आवेदन भी जांच में यदि पात्र पाए जाते हैं तो पात्रता सूची के आधार पर इनका नाम दर्ज हो जाता है। इसमें उसके लिए दूकान भी एलॉट हो जाती है और अगले माह से उसे राशन मिलना शुरु हो जाता है। लेकिन अगस्त माह का राशन अभी तक नहीं मिल सका है क्योंकि कहदी विभाग पात्रता पर्चियां ही तय नहीं कर पाया है। दो दिन पहले जैसे - खाद्य विभाग ने पर्चियां जारी भी कीं तो वे महज पच्चीस फीसदी ही है। बताते हैं कि हर माह नए पात्र परिवारों की औसतन तीन हजार पर्चियां जारी होती है लेकिन जुलाई में सिर्फ 140 जारी हो सकीं और अगस्त में महज 1625 ही नयी पात्रता पर्चियां जारी हो सकीं।
ग्रामीण क्षेत्र में तो हालत और भी बदतर है। जिले के डबरा,पिछोर और बिलौआ कस्बों में जिलाई माह में तो एक भी नयी पात्रता पर्ची जारी नहीं की गयी। भितरवार में सिर्फ एक को ही इसका पात्र माना गया। इसी प्रकार मुरार ,आंतरी और पिछोर में अगस्त माह में एक भी नयी पात्रता पर्ची जारी नहीं हो सकी।
पुरानों को भी नहीं मिला राशन
लेकिन जो लोग पहले से ही पात्रता सूची में शामिल हैं उनकी भी इस माह का राशन नहीं मिल सका है आज तक का आंकड़ा देखें तो वर्तमान में दो लाख उन्तालीस हजार पांच सौर पंचानवे परिवार इस सूची में शामिल है लेकिन इनमें से महज नौ प्रतिशत को ही अगस्त माह का राशन मिल सका है।
पर्चियो पर नेताओ का कब्जा
नियमानुसार इसके लिए प्रपत्रों के साथ स्थानीय निकायों के दफ्तर में आवेदन जमा करना होते है। बाद में इनकी फिजिकल वेरिफिकेशन होती है और पात्र लोगों के लिए पर्ची जारी कर दी जाती है। इसके आधार पर खाद्य विभाग सम्बंधित व्यक्ति की सामग्री उसकी उचित मूल्य दूकान पर भेज देता है लेकिन ग्वालियर में यह काम बीजेपी के जन प्रतिनिधियों के घर पर ही होता है। आवेदन विधायकों के घर पर जमा होते हैं फिर वे नगर निगम को भेजते है तब जांच होती है। पात्र पाए गए लोगों को सूचना भी नेताजी के घर से ही मिलती है। अनेक बार तो पात्रता पर्चियों का वितरण भी इन्ही के घरों से होता है। इसका मकसद श्रेय लेना है।
चुनावों ने किया विलम्ब
अधिकारी मानते हैं कि चुनावों के कारण नयी पात्रता पर्चियों के लिए जांच और पुराने के लिए खाद्य सामग्री का आबंटन लेट होने की वजह पंचायत और फिर स्थानीय निकायों के चुनाव आ जाना रहा। नेता हो या शासकीय अधिकारी और कर्मचारी ,सब चुनाव में व्यस्त हो गए इस बीच किसी को ख्याल ही नहीं रहा कि गरीबों को राशन भी बांटना है। सहायक खाद्य आपूर्ति अधिकारी विपिन श्रीवास्तव भी मानते है कि चुनाव की बजह से एक माह इन पात्रता पर्चियों का वितरण नहीं हो पाया और राशन भी सिर्फ नौ फीसदी ही लोगों तक पहुँच सका
अब सवाल यही है कि आखिरकार चुनावों के लिए गरीबो को उनके निबाले से दूर रखना कहाँ तक उचित है ?