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राहुल शर्मा, BHOPAL. आज यदि कहीं कुछ गैरकानूनी हो रहा है। कुछ गलत हो रहा है तो आप किसके पास जाएंगे। जाहिर सी बात है अधिकारियों के पास क्योंकि इन्हीं अधिकारियों के ऊपर जिम्मा होता है सिस्टम को सही तरीके से चलाने का लेकिन यदि यही गलत करने लगे तो आखिर इन्हें कौन रोकेगा। दरअसल कलियासोत-केरवा (Kaliasot-Kerwa) के इलाके में अवैध निर्माण (illegal construction) या अतिक्रमण (encroachment) करना एक आम आदमी के बस की बात नहीं है। इको सेंसेटिव जोन होने से यहां तमाम तरह की बंदिशे है, कई तरह के नियम-कायदे। यही कारण है कि इस इलाके में जो भी प्राइवेट लैंड है उसे ज्यादातर नौकरशाह, नेता और रसूखदार (bureaucrat, politician, influential) ही खरीदकर अवैध तरीके से निर्माण करा रहे हैं।
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केरवा डैम की हद में अतिक्रमण कर बनी आलीशान कोठी
केरवा और कलियासोत के हरे-भरे इलाके में बड़े पैमाने पर आईएएस-आईपीएस (IAS-IPS), नेताओं के साथ पूंजीपतियों और दबंगों तक के निर्माण हैं या हो रहे हैं। द सूत्र ने इस संबंध में एक जिम्मेदार अधिकारी से बात की तो पता चला कि एक वरिष्ठ आईएएस अफसर तो अभी वहां जमीन की तलाश कर रहे हैं। इसके लिए उनकी इस इलाके में दो-चार विजिट भी हो चुकी है। वहीं द सूत्र की पड़ताल में यह भी सामने आया कि शहर के एक बड़े डॉक्टर ने तो केरवा डैम की हद में पानी को रोककर उसके ऊपर ही अतिक्रमणकर आलीशान कोठी का निर्माण करा लिया है। बड़ा सवाल यह है कि यदि एक आम व्यक्ति अतिक्रमण या अवैध निर्माण करता है तो जिम्मेदार एजेंसी उस पर फौरन कार्रवाई कर देती है, जुर्माना लगा देती है, जो ठीक भी है, लेकिन यदि नौकरशाह-नेता और रसूखदार ही इस तरह अवैध निर्माण या अतिक्रमण करने लगे तो आखिर उन पर कार्रवाई कौन करेगा।
पहले समझ लीजिए क्या है नियम
राजधानी में वर्तमान में भोपाल विकास योजना (मास्टर प्लान- 2005) लागू है। इसके अनुसार कलियासोत और केरवा डैम को तालाब माना गया है। पर्यावरणविद् सुभाष पांडेय के मुताबिक भोपाल विकास योजना- 2005 (Bhopal development plan) के अनुसार कलियासोत और केरवा में किनारों से 33-33 मीटर की भूमि ग्रीन बेल्ट के लिए और फिर उसके बाद 150 हैक्टेयर की भूमि क्षेत्रीय या वनस्पति उद्यान के लिए आरक्षित है। भोपाल विकास योजना- 2005 के अनुसार यदि 150 हैक्टेयर में किसी कि निजी भूमि भी आ रही हो तो उसमें क्षेत्रीय/वनस्पति/जीव उद्यान, पक्षी अभयारण्य, नर्सरी, स्टड फार्म के लिए उपयोग में लाया जा सकता है। इनकी चौकीदारी के लिए सिर्फ 20 वर्गमीटर का अस्थायी आवास निर्माण किया जा सकता है, पर कलियासोत—केरवा डेम के ग्रीन बेल्ट और कैचमेंट की बात तो छोड़िए पानी के अंदर ही अतिक्रमण हो चुका है।
अब बात करें फ्लोर एरिया रेशो (FAR) की। केरवा-कलियासोत के लो डेंसिटी एरिया में यह 0.6 है, यानी 10 हजार वर्ग फीट के प्लॉट पर निर्माण सिर्फ 600 वर्गफीट पर ही किया जा सकता है। वहीं पहाड़ी के ऊपर जो निर्माण हो रहे हैं वहां एफएआर 1.0 है, यानी 10 हजार वर्गफीट के प्लाट पर निर्माण सिर्फ 1 हजार वर्गफीट पर हो सकता है।
बाघ भ्रमण क्षेत्र में महिला आईएएस की जमीन, एसीएस को भाई
द सूत्र ने पूरे मामले को लेकर एक जिम्मेदार अधिकारी से बात की। मामला इतना संवेदनशील है कि अधिकारी इस पर कुछ भी खुलकर बोलने से बचते हैं, इसलिए हम भी उस अधिकारी का नाम उजागर नहीं कर रहे हैं। अधिकारी के अनुसार एक महिला आईएएस की जमीन केरवा इलाके में है, जिसे देखने दो से तीन बार एसीएस आ चुके है। यहां और भी आईएएस की जमीनें है। हरियाली से आकर्षित होकर इन नौकरशाहों को बाघ भ्रमण क्षेत्र में बड़ी बड़ी इमारतें तानने से भी परहेज नहीं है।
डॉक्टर साहब ने तो हद कर दी, पानी रोककर बनवाई कोठी
केरवा डेम के डाउनस्ट्रीम में कुशलपुरा गांव है। यहां डैम के ग्रीन बेल्ट और कैचमेंट पर जमकर अतिक्रमण हुआ। जब द सूत्र की टीम मौके पर पहुंची तो यहां एक अतिक्रमण ऐसा मिला जो डैम का पानी रोककर किया गया था। वहां काम करने वाले कर्मचारियों ने बताया कि यह किसी डॉक्टर वार्ष्णेय का फार्महाउस औऱ कोठी है। अब बीच पानी में कहां से फार्म हाउस की जमीन आ गई और कैसे इसे निर्माण की परमीशन मिल गई यह तो जिम्मेदार ही जानें। यहां से थोड़ा आगे बढ़े तो डैम के पानी की ओर जाने वाली जगह पर ही किसी ने गेट लगा दिया है। यहां आसपास दर्जनों ऐसे निर्माण है जो पूरी तरह से नियम विरूद्ध है क्योंकि यह जगह या तो ग्रीन बेल्ट या वनस्पति उद्यान के लिए आरक्षित है।
ब्यूरोक्रेट्स और पूंजीपतियों के हैं अवैध निर्माण और अतिक्रमण
केरवा- कलियासोत के मामले को लेकर पर्यावरणविद् सुभाष पांडे ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी में याचिका लगाई हुई है। याचिका के साथ सुभाष पांडे ने 25 अतिक्रमणकारियों या अवैध निर्माण करने वालों को चिन्हित कर उसकी सूची भी एनजीटी को सौंपी है, जिनमें से कुछ के नाम भी सामने आए हैं। सुभाष पांडे ने बताया कि केरवा-कलियासोत पर हुए अतिक्रमण और अवैध निर्माण ब्यूरोक्रेट्स और पूंजीपतियों के हैं। यहां मनीष व्यास, नीरज विजयवर्गीय, उमेश यादव के अलावा गुलिस्तान-ए-आसिफ, हिडन कैसल कैफे, व्हाइट हाउस जैसे कई बड़े-बड़े फार्म हाउस, मैरिज गार्डन, रिसोर्ट हैं जो अतिक्रमण कर बनाए गए हैं या फिर इनका निर्माण अवैध तरीके से किया गया है।
पीसीबी का जवाब- मुद्दा संवेदनशील, अतिक्रमण है मुख्य समस्या
केरवा—कलियासोत पर हुए अतिक्रमण और अवैध निर्माण को लेकर जिम्मेदार खामोश है...कारण जिन लोगों के ये निर्माण और अतिक्रमण हैं उनकी कॉलर तक संबंधित एजेंसियों के अधिकारियों के हाथ काफी बौने साबित हो जाते हैं। यही कारण है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड यानी पीसीबी के रीजनल आफीसर बृजेश शर्मा इसे संवेदनशील मुद्दा बताते हैं। इन अतिक्रमण और अवैध निर्माण से केरवा—कलियासोत का पानी दूषित होने के मामले में बृजेश शर्मा ने कहा कि मुख्य मुद्दा अतिक्रमण का है, यदि अतिक्रमण हट जाता है तो कहीं कोई दिक्कत नहीं है। यदि निर्माण सही है और उसके कारण पानी प्रदूषित होता है तो हम उसे ठीक कर सकते हैं।
टीएंडसीपी का ऐसा रवैया : न निरीक्षण करेंगे, न क्रियान्वयन की जिम्मेदारी
भोपाल विकास योजना तैयार करने वाला नगर एवं ग्राम निवेश यानी टीएंडसीपी ने अपने हाथ खड़े कर दिए, जबकि किस जगह पर क्या होगा...कैसे होगा यह निर्धारित टीएंडसीपी ही करती है। बावजूद इसके टीएंडसीपी डायरेक्टर मुकेशचंद गुप्ता का कहना है कि उनका काम सिर्फ प्लान बनाना है उसके क्रियान्वयन की जिम्मेदारी लोकल एथारिटी की है। निर्माण और अतिक्रमण पंचायतों के दायरे में आते हैं तो क्या सचिव के पास इतना पॉवर है जो इन नौकरशाहों, नेताओं और रसूखदारों पर लगाम लगा सके, जाहिर सी बात है बिल्कुल नहीं। मुकेशचंद गुप्ता ने यह तक कह दिया कि उनके पास स्टाफ नहीं है इसलिए वह फील्ड इंस्पेक्शन भी नहीं कर सकते। कुल मिलाकर टीएंडसीपी ने अपनी जवाबदारी से पड़ला झाड़ लिया। जबकि हकीकत इससे उलट है, बिल्डिंग परमीशन के लिए टीएंडसीपी की अनुमति जरूरी होती है।
एनजीटी ने 3 सप्ताह में मांगी अतिक्रमण और अवैध निर्माण की जानकारी
केरवा-कलियासोत पर हुए अतिक्रमण और अवैध निर्माण को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी में पर्यावरणविद् डॉ. सुभाष पांडे की ओर से एक याचिका प्रस्तुत की गई है। एनजीटी ने शासन को आदेश दिया है कि केरवा-कलियासोत के सभी अतिक्रमण को चिन्हित कर रिपोर्ट 3 सप्ताह में सबमिट करें। सुभाष पांडे ने बताया कि एनजीटी ने प्रमुख सचिव पर्यावरण विभाग को 10 बिंदुओं पर डिटेल और समग्र जानकारी मांगी है। मामले की अगली सुनवाई 23 अगस्त को होने वाली है।
इन अवैध निर्माण और अतिक्रमण से हमें ये हानि
केरवा डैम से राजधानी की करीब 1 लाख जनसंख्या को रोजाना पानी की सप्लाई होती है। केरवा डैम से औसतन 5 एमसीएम यानी मिलियन क्यूबिक मीटर पानी की सप्लाई होती है। हालांकि डैम में पानी की स्थिति को देखते हुए ठंड और गर्मी के मौसम में इस सप्लाई को कम और ज्यादा भी किया जाता है। डीके 3, 5 कालोनी, सुमित्रा परिसर, गरीब नगर, ओम नगर, पुलिस कालोनी, बैरागढ़ चीचली, सलैया क्षेत्र, रतनपुर, हनुमंत नरेला, हिनोतिया, सोहागपुर, सेमरीकलां, पिपलिया केशर, इनायतपुर, रसूलिया, गौरव नगर, दौलतपुर आदि इलाकों में पानी सप्लाई की सप्लाई इसी डैम से होती है। पर्यावरणविद् सुभाष पांडे का कहना है कि डैम के कैचमेंट, ग्रीन बेल्ट पर अतिक्रमण और अवैध निर्माण होने से डैम के पानी पर असर पड़ता है। डैम के पानी में मानवजनित गंदगी के कारण पानी प्रदूषित होता है। वहीं ग्रीन बेल्ट खत्म होने से पानी में डिजॉल्व आक्सीजन की मात्रा कम होती है, जिससे पानी हेल्दी नहीं रह जाता।