भोपाल. मैं कलियासोत हूं.... कभी मेरा नाम भी देश की सबसे साफ सुथरी नदियों में शुमार होता था। मैं भोपाल की इकलौती ऐसी नदी थी, जो शहर के बीच से कलकल करते हुए स्वच्छंद रूप से बहती थी। जब से राजनेता और बिल्डरों की नजर मेरे आसपास की जमीनों पर पड़ी, तब से लगातार मेरा दम घोंटा जा रहा है। मेरे ग्रीन बेल्ट (Green Belt) एरिया में लगातार बड़ी इमारतें (Buildings), अस्पताल बनाकर उनका गंदा पानी (Sevage) छोड़ा जा रहा है, इसके चलते मैं अब नदी से नाले में तब्दील हो गई हूं।
25 साल पहले बांध बना
मुझे आज भी याद है जब मेरे बहाव क्षेत्र में 1996 में बांध (Dam) बनना शुरू हुआ। 1998 में डैम से मेरा अस्तित्व जुड़ा। वो भी क्या समय था, मेरी धार अविरल बहती थी, कलियासोत डैम (Kaliyasot Dam) से निकलकर टेढ़े-मेढ़े रास्तों से झूमते-गाते, नाचते हुए मैं भोजपुर (Bhojpur) के पास बेतवा नदी (Betwa River) पर जाकर मिलती थी। लोग घंटों मेरे किनारों पर बैठकर एक दूसरे से सुख-दुख की बातें करते, अपना दर्द बांटते। ‘एक सिर, एक पत्थर’ अभियान के तहत मेरे प्रवाह क्षेत्र (Flow Area) में इन्ही भोपालियों ने बांध बनाकर नाव तक चलाई। सोचती हूं...कहां गए अब वो भोपाली। हर दिन मेरा चीरहरण हो रहा है। अपनों के जुल्म से ही मैं दम तोड़ रही हूं, पर सब चुप हैं।
अतिक्रमण ने पाट कम कर दिया
36 किमी पर 500 से ज्यादा अतिक्रमण (Encroachment) मेरे अस्तित्व (Existence) को मिटाने में लगे हैं। मेरी छाती पर सीवेज का गंदा पानी छोड़ा जा रहा है। अतिक्रमण ने मेरे पाट को कम कर दिया है। युवा तो अब मुझे नदी नहीं, नाले के रूप में ही देखते हैं और मैं कलियासोत अपने अस्तित्व को चुपचाप मिटते हुए देख रही हूं। कुछ लोग आगे आए, एनजीटी (NGT) मैं मेरे अस्तित्व को बचाने गुहार लगाई, फैसले भी हुए...पर सरकारी सिस्टम और राजनीति के आगे एक नदी की क्या अहमियत। फैसला (Judgement) मेरे पक्ष में आने के बाद भी रोज मेरे साथ बलात्कार हो रहा है। मैं कलियासोत (Kaliyasot River) हूं, देखिए मेरे पूरे दर्द की कहानी...