BHOPAL. सोलहवीं शताब्दी में अकबर के काल (1556-1605) मुगल साम्राज्य अपनी जड़ें पूरे भारत में फैला रहा था। बहुत से हिन्दू राजाओं ने उनके सामने घुटने टेक दिए तो बहुतों ने अपने राज्यों को बचाने के लिए डटकर मुकाबला किया। राजपूताना से होते हुए अकबर की नजर मध्य भारत तक भी जा पहुंची लेकिन मध्य भारत को जीतना मुगलों के लिए आसान नहीं था, खासकर गोंडवाना। इसलिए नहीं कि ये कोई बहुत बड़ा राज्य था बल्कि इसलिए क्योंकि एक हिंदू रानी अपने पूरे स्वाभिमान के साथ अपने राज्य को बचाने के लिए अडिग थी।
चंदेल वंश में दुर्गाष्टमी के दिन पैदा हुई थीं रानी
रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 को उत्तर प्रदेश के बांदा में कालिंजर के राजा कीर्ति सिंह चंदेल के यहां हुआ था। वे अपने पिता की इकलौती संतान थीं। दुर्गाष्टमी के दिन जन्म होने के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया। नाम के अनुरूप ही तेज, साहस, शौर्य और सुंदरता के कारण इनकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गई। दुर्गावती चंदेल वंश की थीं और इनके वंशजों ने ही खजुराहो के मंदिरों का निर्माण कराया था। हालांकि 16वीं शताब्दी आते-आते चंदेल वंश की ताकत बिखरने लगी थी।
दुर्गावती को अस्त्र-शस्त्रों में थी रुचि
दुर्गावती बचपन से ही अस्त्र-शस्त्रों रुचि रखती थीं। उन्होंने घुड़सवारी, तीरंदाजी, तलवारबाजी जैसी कलाओं में महारत हासिल की। अकबरनामा में अबुल फजल ने उनके बारे में लिखा है, 'वह (दुर्गावती) बंदूक और तीर से निशाना लगाने में बहुत उम्दा थीं और लगातार शिकार पर जाया करती थीं।'
गोंड वंश में शादी, 8 साल बाद पति का निधन
1542 (इसी साल अकबर का जन्म हुआ) में 18 साल की उम्र में दुर्गावती की शादी गोंड राजवंश के राजा संग्राम शाह के सबसे बड़े बेटे दलपत शाह के साथ हुई। मध्यप्रदेश के गोंडवाना क्षेत्र में रहने वाले गोंड वंशज 4 राज्यों पर राज करते थे, गढ़-मंडला, देवगढ़, चंदा और खेरला। दुर्गावती के पति दलपत शाह का अधिकार गढ़-मंडला पर था। दुर्गावती का दलपत शाह के साथ विवाह बेशक एक राजनैतिक विकल्प था क्योंकि यह शायद पहली बार था जब एक राजपूत राजकुमारी की शादी गोंड वंश में हुई थी। गोंड लोगों की मदद से चंदेल वंश उस समय शेरशाह सूरी से अपने राज्य की रक्षा करने में सफल रहा।
1545 में बेटे को दिया जन्म
1545 में रानी दुर्गावती ने एक बेटे को जन्म दिया जिसका नाम वीर नारायण रखा गया। 1550 में दलपत शाह का निधन हो गया। दलपत शाह की मृत्यु के वक्त उनका बेटा वीर नारायण सिर्फ 5 साल का था। ऐसे में सवाल था कि राज्य का क्या होगा ?
रानी ने बेटे को गद्दी पर बैठाया, खुद शासन संभाला
पति के निधन के बाद दुर्गावती ना केवल एक रानी, बल्कि एक बेहतरीन शासक के रूप में उभरीं। उन्होंने अपने बेटे को सिंहासन पर बैठाया और खुद गोंडवाना की बागडोर अपने हाथ में ले ली। उन्होंने अपने शासन के दौरान अनेक मठ, कुएं, बावड़ी और धर्मशालाएं बनवाईं। वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केंद्र था। उन्होंने अपनी दासी के नाम पर चेरीताल, अपने नाम पर रानीताल और अपने विश्वस्त दीवान आधार सिंह के नाम पर आधारताल बनवाया। ये तालाब आज भी मौजूद हैं। इतना ही नहीं, रानी दुर्गावती ने अपने राज दरबार में मुस्लिम लोगों को भी उम्दा पदों पर रखा। उन्होंने अपनी राजधानी को चौरागढ़ से सिंगौरगढ़ स्थानांतरित किया क्योंकि ये जगह राजनैतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण थी। उन्होंने अपने पूर्वजों के जैसे ही राज्य की सीमाओं को बढ़ाया।
दुर्गावती पर हमले
1556 में मालवा के सुल्तान बाज बहादुर ने गोंडवाना पर हमला बोल दिया लेकिन रानी दुर्गावती के साहस के सामने वह बुरी तरह से हारा। पर यह शांति कुछ ही समय की थी। 1562 में अकबर ने मालवा को मुगल साम्राज्य में मिला लिया था। इसके अलावा रेवा (नर्मदा) पर आसफ खान का राज हो गया। अब मालवा और रेवा, दोनों की ही सीमाएं गोंडवाना को छूती थीं। ऐसे में तय था कि मुगल साम्राज्य गोंडवाना को भी अपने में विलय करने की कोशिश करेगा।
रानी दुर्गावती ने मुगलों को चौंकाया
1564 में मुगल सेनापति आसफ खान ने गोंडवाना पर हमला बोल दिया। इस युद्ध में रानी दुर्गावती ने खुद सेना का मोर्चा सम्भाला। हालांकि उनकी सेना छोटी थी लेकिन दुर्गावती की युद्ध शैली ने मुगलों को भी चौंका दिया। उन्होंने अपनी सेना की कुछ टुकड़ियों को जंगलों में छुपा दिया और बाकी को अपने साथ लेकर चल पड़ीं। जब आसफ खान ने हमला किया और उसे लगा कि रानी की सेना हार गई है तब ही छुपी हुई सेना ने तीर बरसाना शुरू कर दिया और उसे पीछे हटना पड़ा। कहा जाता है इस युद्ध के बाद भी 3 बार रानी दुर्गावती और उनके बेटे वीर नारायण ने मुगल सेना का सामना किया और उन्हें हराया, लेकिन जब वीर नारायण बुरी तरह से घायल हो गया तो रानी ने उसे सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया और खुद युद्ध का मोर्चा संभाला।
बुरी तरह घायल हुईं, अंतिम समय तक डटी रहीं
रानी दुर्गावती के पास केवल 300 सैनिक बचे थे। उन्हें सीने और आंख में तीर लगे। इसके बाद उनके सैनिकों ने उन्हें युद्ध छोड़कर जाने के लिए कहा लेकिन रानी ने ऐसा करने से मना कर दिया। जब दुर्गावती को आभास हुआ कि उनका जीतना असंभव है तो उन्होंने अपने विश्वासपात्र मंत्री आधार सिंह से आग्रह किया कि वे उसकी जान ले लें ताकि उन्हें दुश्मन छू भी न पाए। आधार ऐसा नहीं कर पाए तो उन्होंने खुद ही अपनी कटार अपने सीने में उतार ली।
24 जून 1564 को रानी दुर्गावती ने ली अंतिम सांस
24 जून 1564 को रानी ने अंतिम सांस ली। उनकी मृत्यु के बाद उनके बेटे ने युद्ध जारी रखा लेकिन जल्द ही वे भी वीरगति (शहीद) को प्राप्त हुए। इसके बाद गढ़-मंडला का विलय मुगल साम्राज्य में हो गया। मंडला मध्यप्रदेश का एक जिला है, जहां चौरागढ़ किला (पचमढ़ी) सूर्योदय देखने के लिए प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है।
जबलपुर के पास रानी की समाधि
जबलपुर के पास जहां यह ऐतिहासिक युद्ध हुआ था, उस स्थान का नाम बरेला है जो मंडला रोड पर है। वहीं रानी की समाधि बनी है, जहां गोंड जनजाति के लोग जाकर अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। जबलपुर में रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय रानी के नाम पर है। भारत सरकार ने 1988 में रानी दुर्गावती के सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया था।