संजय गुप्ता, INDORE. गली-गली में फैला कचरा, सड़कों पर रखी कचरा पेटियां, लोग निकलते तो रूमाल से भी बदबू नहीं रुकती। हाईकोर्ट में सफाई को लेकर समाजसेवी किशोर कोडवानी की लगी याचिकाएं, जिस पर लगातार अधिकारी तलब होते और फटकार खाते। इसी दौरान शुरू हुआ स्वच्छता सर्वेक्षण। किसी को कोई उम्मीद इंदौर से नहीं थी। इस बीच निगमायुक्त मनीष सिंह ने पदभार संभाला। नगर निगम राजनीति, प्रशासन के साथ ही कर्मचारी संगठनों का अजीब तालमेल वाला सिस्टम है। यहां किसी को एक मुद्दे पर सहमत करना मुश्किल काम है। लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का निगमायुक्त मनीष सिंह को साफ संदेश था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपने को साकार करना है।
महापौर मालिनी गौड़ ने निगम आयुक्त को दिया फ्री-हैंड
महापौर मालिनी गौड़ कंधे से कंधे मिलाकर निगमायुक्त सिंह के साथ खड़ी हुई और फ्री-हैंड दिया। फिर बात आई निगम की अंदरूनी राजनीति और दखलदांजी की, क्योंकि कोई सफाई कर्मचारी, किसी नेता के गुट का है, तो कोई किसी नेता के, इन पर कोई कार्रवाई करना, ट्रांसफर करना यानी सभी से पंगे लेना। इसलिए सिंह ने सभी बड़े नेताओं, कर्मचारी संगठनों से लगातार मुलाकात की और सभी से एक वादा लिया कि मैं दिन-रात सफाई के लिए जुट जाऊंगा, आपके निगम के किसी भी काम में देरी नहीं होगी, बस निगम और मेरे सफाई काम में कोई दखल मत दीजिएगा, किसी कर्मचारी को इसके लिए डांटू, हटाऊं तो बिल्कुल उसकी मदद मत करना। पीएम के सपने को लेकर सीएम, महापौर का साथ पहले से ही था, इसलिए सभी ने वादा कर लिया।
स्पॉट फाइन से नहीं बच पाया कोई
इसके बाद सिंह ने सख्ती दिखाना शुरू किया, कचरा मिलने पर स्पॉट फाइन जैसी व्यवस्था शुरू की। लोगों ने विरोध किया, करीबियों पर फाइन लगता तो नेताओं के फोन आते और सिंह उन्हें उनका वादा याद दिला देते। कुछ समय बाद विरोध खत्म हो गया, आमजन का सहयोग मिला और जनप्रतिनिधियों का भी। सभी महायज्ञ की आहूति में जुट गए।
फिर शुरू हुआ धुआंधार अभियान
इसके बाद सिंह जुट गए अपने धुआंधार अभियान में। फिर दिन क्या, रात क्या, कभी भी वायरलेस सेट पर संदेश आता, फटकार आती कि यहां पर सफाई नहीं हुई है। एक-एक गली वे घूमते रहते। एनजीओ और जानकार लोगों से मिलते, समाजसेवियों, बुद्धिजीवियों की बात सुनते और फिर अपने हिसाब से फैसले करते। महापौर मालिनी गौड़ भी इसमें जुट गईं, डोर टू डोर कचरा कलेक्शन हुआ तो खुद गाड़ियों के निरीक्षण में लग गईं, खुद डस्टबिन उठाकर कचरा गाड़ियों में डालने जैसे काम करके लोगों का उत्साह बढ़ाया।
आखिर मेहनत का फल मिला
आखिरकार मेहनत का फल इंदौर को मिल ही गया। साल 2017 में जब इंदौर को सफाई में पहली बार नंबर वन का खिताब मिला तो मानो सभी की आंखों मे खुशी, उत्साह के आंसू आ गए। महापौर गौड़ और सिंह की जोड़ी ने वो करके दिखा दिया था, जो पीएम मोदी, सीएम चौहान के साथ पूरे इंदौर का सपना था। फिर क्या था वह जो नींव रखी गई। उसके बाद इंदौर अब अन्य शहरों से मील दूर आगे निकल गया। इसके बाद निगमायुक्त आशीष सिंह और प्रतिभा पाल ने इस काम को इसी शिद्दत से जिया कि इस नींव पर स्वच्छता की भव्य इमारत बन गई। पहले ट्रेचिंग ग्राउंड की ड्यूटी सजा के तौर पर लिया जाता था, अब ये इंदौर निगम की सबसे बड़ी और भाग्यशाली जिम्मेदारी बन चुकी है।
अब इंदौर लगातार आगे ही रहेगा, क्योंकि..
इंदौर की सफाई के सिस्टम को संभालने वाले अपर आयुक्त संदीप सोनी बताते हैं कि इंदौर अब नंबर वन से पीछे आ ही नहीं सकता, कारण है, स्वच्छता मिशन 2.0 अभी केंद्र ने शुरू किया जिसमें शहर को गार्बेज फ्री करने का लक्ष्य साल 2026 तक रखा गया है। ये इंदौर तो दो साल पहले ही कर चुका है। अभी केंद्र के अन्य शहरों के लिए जो मानक है, वो तो कभी का इंदौर पार कर चुका है। अब इंदौर को पछाड़ने के लिए किसी शहर को कोई अजूबा ही करना होगा, फिर बात वही क्या इंदौर आगे नहीं बढ़ेगा? फिर इंदौर को नंबर वन से तभी हटाया जा सकता है, जब खुद इंदौर इस रेस से बाहर होकर शहरों के लिए मास्टर ट्रेनर की भूमिका में आ जाए, जैसा खुद राष्ट्रपति ने कहा कि इंदौर के जनभागीदारी के प्रयास अब अन्य शहरों में लाना है।