नई दिल्ली. मध्य प्रदेश में सरकारी पदों पर प्रमोशन (Promotion in Govt Job) पर आरक्षण (Reservation) के मामले में सुप्रीम कोर्ट (SC) 21 अक्टूबर से सुनवाई शुरू करेगा। शीर्ष अदालत की 3 सदस्यीय बेंच ने केंद्र सरकार ने पक्ष सुन लिया है। कोर्ट में छुट्टी घोषित हो गई है, आगे की सुनवाई के दौरान मध्य प्रदेश समेत अन्य राज्य अपनी-अपनी दलील रखेंगे।MP सरकार की तरफ से मामले की पैरवी कर रहे सीनियर एडवोकेट मनोज गोरकेला ने बताया कि SC में प्रमोशन में आरक्षण के मामले में 21 अक्टूबर को सुनवाई दोबारा शुरू होगी। सबसे पहले मध्य प्रदेश सरकार पक्ष रखेगी। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मामले में 10 अक्टूबर फैसला देंगे, लेकिन छुट्टी के चलते त्योहार के बाद सुनवाई होगी।
सरकार कर्मचारियों की वर्गवार संख्या कोर्ट में बताएगी
इधर, मध्य प्रदेश के सामान्य प्रशासन विभाग (GAD) के सूत्रों का कहना है कि सभी 52 विभागों से बैकलॉग (रिक्त पदों) की जानकारी विभागों से मंगाई है। जिनमें से अब तक 38 विभागों ने ही जानकारी भेजी है। शेष विभागों को जानकारी भेजने के लिए कहा गया है। विभागों से अभी तक आई जानकारी के मुताबिक, प्रदेश में कर्मचारियों के एक लाख 15 हजार 756 पद खाली हैं।
प्रमोशन में आरक्षण में सरकार को प्रदेश में कर्मचारियों की वर्गवार संख्या बतानी है। इसकी तैयारी के चलते सामान्य प्रशासन विभाग ने सभी विभागों से वर्गवार कर्मचारियों के स्वीकृत (Accepted), भरे (Filled) और खाली पदों (Vacant Posts) की जानकारी मांगी है। विभाग ने 20 सितंबर तक जानकारी मांगी थी, पर अब तक 38 विभागों ने जानकारी दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने लिखित में पक्ष रखने को कहा था
मामले में सुप्रीम कोर्ट में 15 सितंबर को सुनवाई हुई थी। सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश समेत सभी राज्यों का पक्ष सुनने के बाद कहा था कि आगे सुनवाई नहीं होगी। सभी राज्य 2 हफ्ते में अपना पक्ष लिखित में पेश करें। शीर्ष अदालत ने 5 अक्टूबर से केंद्र और राज्य सरकार को आधा-आधा घंटे पक्ष रखने के लिए समय दिया था।
कर्मचारियों को प्रमोशन नहीं मिल पा रहा
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली 3 सदस्यीय बेंच ने कहा था कि कई साल से ये मामला लंबित है। इसकी वजह से कर्मचारियों को प्रमोशन नहीं मिल पा रहा। अब आगे तारीख नहीं दी जाएगी। कोर्ट ने साफ कर दिया कि मामले के फैसले में इंदिरा साहनी और नागराज के केस को शामिल नहीं किया जाएगा, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट इन मामलों में फैसला दे चुका है।
हाईकोर्ट ने पदोन्नति नियम में आरक्षण, बैकलॉग के खाली पदों को कैरिफारवर्ड करने और रोस्टर संबंधी प्रावधान को संविधान के विरुद्ध मानते हुए इन पर रोक लगा दी थी। इस फैसले के खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, इस पर फैसला होना बाकी है।
2016 में हाईकोर्ट ने लगाई थी रोक
प्रदेश में पदोन्नति नियम 2002 के तहत अधिकारियों-कर्मचारियों का प्रमोशन होता था, लेकिन 2016 में हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी। दरअसल, अनारक्षित वर्ग (Unreserved) की ओर से अनुसूचित जाति-जनजाति को दिए जा रहे आरक्षण की वजह से उनके अधिकार प्रभावित होने को लेकर हाईकोर्ट में 2011 में 24 याचिकाएं दायर की गई थीं। इनमें सरकार द्वारा बनाए मप्र पब्लिक सर्विसेज (प्रमोशन) रूल्स 2002 में SC-ST को दिए गए आरक्षण को कठघरे में रखा गया था।
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट (MP High Court) ने 30 अप्रैल 2016 को राज्य में एससी-एसटी वर्ग को प्रमोशन में आरक्षण देने के नियम को असंवैधानिक ठहराते हुए रद्द कर दिया था। तत्कालीन चीफ जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस संजय यादव की बेंच ने कहा कि यह नियम भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 व 335 के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र को दिए गए दिशा-निर्देश के खिलाफ है।
HC के फैसले को SC में चुनौती
राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन कोर्ट ने यथास्थिति बरकरार रखने के निर्देश दिए। ऐसे में अब प्रमोशन तभी मिल सकता है, जब कोर्ट इसकी परमिशन दे। सरकार ने इसको लेकर कोर्ट से अनुरोध भी किया था, पर अनुमति नहीं मिली। इससे सबसे ज्यादा नुकसान उन कर्मचारियों व अधिकारियों को हुआ, जो पिछले 5 साल में रिटायर हो गए। इसकी संख्या करीब 1 लाख बताई जाती है।