भोपाल में सौ करोड़ की सरकारी जमीन को बेचे जाने के खेल में कौन-कौन हैं जिम्मेदार

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rahulk kushwaha
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भोपाल में सौ करोड़ की सरकारी जमीन को बेचे जाने के खेल में कौन-कौन हैं जिम्मेदार

अंकुश मौर्य, भोपाल. भोपाल जिला प्रशासन की नाक के नीचे 100 करोड़ रुपए की कीमत की बेशकीमती सरकारी जमीन को यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने नीलाम कर दिया और इस जमीन को आयुष्मति एजुकेशन एंड सोशल सोसाइटी के सिद्धार्थ कपूर ने खरीद लिया। जबकि कलेक्टर कोर्ट का आदेश था कि इस जमीन को नीलाम नहीं किया जा सकता। सिद्धार्थ कपूर आरकेडीएफ ग्रुप ऑफ कॉलेज के एमडी है। बेशकीमती जमीन को खुर्द-बुर्द करने के खेल में हर किसी की मिलीभगत नजर आती है। द सूत्र ने इस खेल में शामिल सभी जिम्मेदारों से बात करने की कोशिश की। हर किसी ने खुद को पाक साफ बताते हुए जिम्मेदारी दूसरों के कंधों पर डाल दी। 



100 करोड़ रुपए की इस बेशकीमती जमीन को बेचने के खेल की कहानी: 2002 में एडवांस मेडिकल साइंस एंड एजुकेशन सोसाइटी को सरकार ने ये जमीन लीज पर दी थी। सरकार की प्राइवेट मेडिकल कॉलेज खोलने की योजना के तहत ये जमीन लीज पर दी थी, जिसमें प्रावधान था कि आर्थिक रूप से सक्षम प्राइवेट संस्थाएं यदि प्रदेश में मेडिकल कॉलेज खोलना चाहती हैं, तो उन्हें सरकार मुफ्त में 25 एकड़ जमीन उपलब्ध करवाएगी। जमीन मिलने के बाद एडवांस मेडिकल साइंस एंड एजुकेशन सोसाइटी ने जमीन को दिल्ली के द नैनीताल बैंक लिमिटेड के पास गिरवी रख दिया। इसके एवज में मेडिकल कॉलेज बनाने के लिए करोड़ों रुपए का लोन ले लिया। लोन तो ले लिया लेकिन एजुकेशन सोसाइटी ने किश्तें नहीं चुकाई। बैंक ने रिकवरी के लिए जिला मजिस्ट्रेट यानी भोपाल कलेक्टर की कोर्ट में केस लगा दिया।

साल 2017-18 में तत्कालीन कलेक्टर सुदाम खाड़े ने इस 25 एकड़ जमीन को नैनीताल बैंक लिमिटेड को सौंपने का आदेश दिया। आदेश के साथ ये शर्त भी जोड़ी कि प्रॉपर्टी को बेचा या नीलाम नहीं किया जा सकता, क्योंकि जमीन पट्टे पर दी गई थी। कलेक्टर के आदेश के बावजूद यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने 21 अक्टूबर 2021 को जमीन की नीलामी कर दी। 61 करोड़ 55 लाख रुपए में आरकेडीएफ ग्रुप ऑफ कॉलेज के एमडी ने अपनी संस्था आयुष्मति एजुकेशन एंड सोशल सोसाइटी के नाम पर जमीन खरीद ली। 



अब जमीन की नीलामी के इस खेल के कौन-कौन जिम्मेदार है, वो सिलसिलेवार आपको बताते हैं- 



जिम्मेदार नंबर-1, बैंक के अधिकारी: एडवांस मेडिकल साइंस एंड एजुकेशन सोसाइटी ने दिल्ली की द नैनीताल बैंक से लोन लिया था और लोन की रिकवरी यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की दिल्ली ब्रांच ने की। 



यहां सवाल ये है कि एक बैंक ने लोन दिया तो दूसरे ने रिकवरी कैसे कर ली ?



द सूत्र ने इस मामले में यूनियन बैंक के रीजनल ऑफिस भोपाल के रिकवरी अधिकारी ओमप्रकाश से बात की, तो उन्होंने तर्क दिया कि लोन की बड़ी रकम यूनियन बैंक ने दी होगी लिहाजा रिकवरी यूनियन बैंक ने की। इस जमीन को यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की दिल्ली ब्रांच ने नीलाम किया था। सेल सर्टिफिकेट पर बैंक अधिकारी उमा शर्मा के दस्तख्त थे, द सूत्र ने उमा शर्मा से बात की तो वो इस सवाल का जवाब नहीं दे पाई, उन्होंने अपने असिस्टेंट को फोन थमा दिया। उन्होंने कहा कि द नैनीताल बैंक ने रिकवरी के लिए यूनियन बैंक को अधिकृत किया था। बैंकों के बीच ऐसी आपसी सहमति बनती है।



इतना ही नहीं जब उमा शर्मा से ये पूछा कि बैंक ने सरकारी पट्टे को कैसे नीलाम कर दिया। इसका रीजनल ऑफिस के अधिकारियों के पास जवाब नहीं है। उन्होंने दिल्ली के अधिकारियों पर सारा ठीकरा फोड़कर मामले से पल्ला झाड़ लिया और दिल्ली के अधिकारियों का कहना है कि वो अधिकृत नहीं है। ऐसे किसी मामले में बयान देने में और जहां तक कलेक्टर के आदेश की बात है तो उनके पास जानकारी नहीं थी। लेकिन जो सेल सर्टिफिकेट जारी हुआ है उसमें तो साफ लिखा है कि ये लीज की जमीन हो। जमीन का पूरा ब्योरा दिया गया है तो सवाल उठता है- 



सरकारी जमीन को कैसे नीलाम कर दिया ?



सरकार से इसकी मंजूरी लेना भी जरूरी क्यों नहीं समझा ? 



जिम्मेदार नंबर-2, जिला रजिस्ट्रार: जब बैंक के सेल लेटर में प्रॉपर्टी के लीज होल्ड होने की जानकारी दर्ज थी तो रजिस्ट्रार दफ्तर के अधिकारियों ने इसे अनदेखा क्यों किया। रजिस्ट्री करते वक्त सब रजिस्ट्रार राजेश कुमार जैन ने तहसीलदार और एसडीएम से जानकारी लेना जरूरी क्यों नहीं समझा और 26 अक्टूबर 2021 को आरकेडीएफ के सिद्धार्थ कपूर के नाम पर रजिस्ट्री कर दी गई। हालांकि कलेक्टर का कहना है कि किसी भी जमीन की रजिस्ट्री होना उसके बेचे जाने का प्रमाण नहीं है।



जमीन की खरीद फरोख्त का तो सबसे बड़ा दस्तावेज रजिस्ट्री ही होती है। द सूत्र ने सब रजिस्ट्रार राजेश कुमार जैन से संपर्क किया तो उन्होंने जमीन को सरकारी मानने से ही इनकार दिया और जब उन्हें दस्तावेज दिखाए तो कहा कि बैंक के सेल लैटर के आधार पर रजिस्ट्री की, तो क्या रजिस्ट्रार विभाग रजिस्ट्री से पहले दस्तावेजों की जांच नहीं करता। रजिस्ट्रार विभाग के अधिकारी ऐसे ही आंखें बंद कर बैठे रहे तो ऐसे में तो बड़ी बात नहीं कि कोई वल्लभ भवन की रजिस्ट्री भी अपने नाम से करवा लें। जाहिर है कि सांठगांठ है। 



जिम्मेदार नंबर- 3, आरकेडीएफ ग्रुप के एमडी सिद्धार्थ कपूर: जमीन को बेचने वाले की जितनी जिम्मेदारी होती है। उतनी ही जिम्मेदारी जमीन को खरीदने वाले की भी होती है। सिद्धार्थ कपूर ने 25 एकड़ जमीन को 61 करोड़ 55 लाख रुपए में खरीदा। इतना बड़ा सौदा करते वक्त क्या सिद्धार्थ कपूर को जानकारी नहीं थी कि जिस जमीन को वो खरीद रहे हैं वो सरकारी पट्टे की जमीन है। क्या सिद्धार्थ कपूर को अपने रसूख और पहुंच पर इतना भरोसा है कि वो अधिकारियों और बैंक के साथ मिलीभगत कर इसे वैध संपत्ति में तब्दील करने में कामयाब हो जाएंगे। शायद है क्योंकि जिस बिल्डिंग पर 26 अक्टूबर 2021 के पहले एडवांस मेडिकल कॉलेज के बोर्ड हुआ करते थे वहां अब आरके डीएफ कॉलेज के बोर्ड लगे हुए है और बकायदा मेडिकल कॉलेज की परमिशन की कोशिशों में जुट गए हैं। 



जिम्मेदार नंबर- 4, जिला प्रशासन: सरकारी जमीन का लेखा-जोखा रखने की पूरी जिम्मेदारी जिला प्रशासन की होती है। इस मामले में द सूत्र ने एसडीएम क्षितिज शर्मा से बात की तो उन्होंने कहा कि जमीन नीलाम हो गई उन्हें जानकारी ही नहीं थी। जब जानकारी मिली तो पूरी फाइल कलेक्टर दफ्तर भेज दी। तीन महीने पहले एसडीएम ने फाइल कलेक्टर दफ्तर भेज दी लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई, तो क्या मामले को दबाने की कोशिश की जा रही है। क्या मामला ज्यादा ना उछले इसकी कोशिश हो रही है। कलेक्टर का कहना है कि कार्रवाई की जाएगी।



कलेक्टर तो कार्रवाई की बात कर रहे हैं लेकिन द सूत्र के हाथ जानकारी लगी है कि इस मामले को जिला प्रशासन वल्लभ भवन भेजने की तैयारी कर रहा है। क्यों, जबकि बैंक ने कलेक्टर के आदेश को तोड़ा, रजिस्ट्रार दफ्तर ने दस्तावेजों की जांच नहीं की। खरीददार सिद्धार्थ कपूर ने भी सरकारी जमीन खरीदने में देरी नहीं की। पूरी कार्रवाई का अधिकार तो जिला प्रशासन के पास है। मगर जिला प्रशासन शायद मामले में हाथ फंसाना नहीं चाहता।


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