Gwalior: 66 में सिर्फ चौदह समर्थको को ही पार्षद का टिकट दिला पाये सिंधिया

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Dev Shrimali
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Gwalior:  66 में सिर्फ चौदह समर्थको को ही पार्षद का टिकट दिला पाये सिंधिया

GWALIOR news. जैसा कि माना जा रहा था कि नगर निगम के लिए मेयर और पार्षदों के टिकट वितरण में केंद्रीय नागर विमानन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को उतना ही फ्री हेंड मिलेगा जितना कांग्रेस में मिलता था लेकिन ऐसा हुआ नहीं। मेयर पर उनका कोई समर्थक टिकट नहीं पा सका और पार्षद के टिकट भी 66 में से सिर्फ चौदह ही उनके समर्थकों के खाते में आ सके।




सिंधिया ने मांगे थे 28 लेकिन मिले 14

बीजपी के सूत्र बताते हैं कि पार्टी पहले ही मन बना चुकी थी कि सिंधिया को चौदह टिकट देंगे। अगर दबाव ज्यादा डालेंगे तो ये आंकड़ा अठारह तक ले जाएंगे जबकि सिंधिया ने पार्टी को अपने 28 समर्थकों के नाम पार्षद टिकट के लिए दिए थे। पहले जो सूची बनी उसमे बीस लोगों को शामिल भी कर लिया गया था लेकिन सिंधिया ने पूरे अट्ठाइस के लिए दबाव बनाया तो केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर ,सांसद विवेक शेजवलकर, जयभान सिंह पवैया ने भी अपने लोगों के लिए जोर डालना शुरू कर दिया  और अंतत जो सूची जारी हुई उसमें सिंधिया को बड़ा झटका लगा। उनके सिर्फ चौदह समर्थक ही टिकट पा सके।




इन्हें मिला टिकट

ग्वालियर नगर निगम के 66 वार्डों में से इन 14 सिंधिया समर्थकों को बीजेपी का टिकट हासिल हो सका -वार्ड छह से केशव माझी,वार्ड आठ से महेंद्र बैस ,वार्ड 15 से देवेंद्र राठौर ,वार्ड 21  से ब्रजेश श्रीवास ,वार्ड 25  से प्रीती संजू परमार,वार्ड 41 से मोहित जाट ,वार्ड 44 से यामिनी नवीन परांडे ,वार्ड 47 से जीतेन्द्र मुदगल ,वार्ड 48 पाल ,वार्ड  50 से हरी पाल ,वार्ड 50 से अनिल सांखला ,वार्ड 56 से बंटी बघेल ,वार्ड 57 से मनोज शर्मा और वार्ड 60 से सूरज ऐसवार शामिल हैं।




वंशवाद ही आधार

सिंधिया द्वारा दिलाये गए टिकटों में परिवारवाद का बोलबाला है। कम से काम चार टिकट समर्थको की जगह उनके परिजनों को मिले हैं मसलन सिंधिया के काह्स किशन मुदगल के बेटे जीतेन्द्र टिकट पा गए।  इसी तरह तीन बार कांग्रेस पार्षद रहीं और महिला कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं कुसुम शर्मा के बेटे मनोज शर्मा को सिंधिया ने बीजेपी का टिकट दिला दिया इसी तरह अपने करीबी नवीन परांडे की पत्नी यामिनी को भी सिंधिया ने टिकट दिलाया जबकि इस सीट पर बीजेपी की सशक्त दावेदारी थी। यह लोग स्वयं राजनीती में सक्रीय नहीं है बल्कि सक्रीय लोगों के भाई-भतीजे ,पत्नी या बेटे हैं।




बीजेपी की जगह सिंधिया की चली

हालाँकि सिंधिया टिकट हासिल करने के मामले में बहुत पिछड़ गए लेकिन अनेक प्रतिष्ठापूर्ण सीटों पर सिंधिया ने बीजपी और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर दोनों को मात दी। एक मामला वार्ड 44 का है।  सूत्र बताते हैं की तोमर इस सीट पर अपनी समर्थक राखी गेड़ा को टिकट दिलाना चाहते थे। उन्होंने इसकी शिफारिश भी की थी। बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता आशीष अग्रवाल ने भी सीके लिए प्रयास किये लेकिन सिंधिया अपने समर्थक नवीन की पत्नी को टिकट दिलाने में कामयाब हो गए। अब कहा जा रहा है कि पार्टी में विद्रोह की स्थिति है। राखी ने इसी वार्ड से निर्दलीय चुनाव लड़ने के लिए नामांकन कर दिया है।




कांग्रेस के मुकाबले घाटे में सिंधिया

यदि कांग्रेस  के समय और बीजपी में शामिल होने के बाद सिंधिया के समर्थकों के नफ़ा -नुक्सान का आकलन किया जाए तो सिंधिया समर्थक घाटे में ही रहे। 1980 से एकर 2015 तक कांग्रेस के सभी मेयर प्रत्याशी और लगभग नब्बे फीसदी परिषदों के टिकट जय विलास से तय होकर सिंधिया समर्थकों को ही मिलते थे लेकिन बीजपी में न तो उनके समर्थक मेयर का टिकट पा सके और पार्षद पदों के लिए भी सिंधिया समर्थक महज बीस फीसदी ही टिकट पा सके।


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